मुख्य बिंदु
- – यह भजन भोलेनाथ (शिव जी) की महिमा और उनकी भक्ति का वर्णन करता है, जो भक्तों के रक्षक और संकटहर हैं।
- – भोलेनाथ के माथे पर चंद्रमा, जटाओं में गंगा और गले में नाग का सुंदर रूप दर्शाया गया है।
- – भंग, धतूरा, भभूत और गंगा जल का प्रयोग शिव पूजा में महत्वपूर्ण माना गया है।
- – नीलकंठ बाबा के ध्यान से सभी संकट दूर होते हैं और भक्तों को सुख-शांति मिलती है।
- – सोमवार के दिन भोलेनाथ के दर्शन का विशेष महत्व बताया गया है, जिससे भक्तों के भाग्य जागृत होते हैं।
- – भजन में भोलेनाथ को “भूतेश्वर” और “भोलो धणी” के रूप में पुकारा गया है, जो सभी भक्तों के रक्षक हैं।

भजन के बोल
भूतेश्वर ने ध्यालो जी,
सोया भाग्य जगा लो जी,
भगता रो यो रखपाल,
बैठ्यो भोलो धणी ॥
माथे ऊपर चंदा सोहे,
जटा में गंग विराजे रे,
मुकुट मणि री आभा सोहे,
नाग गले में साजे रे,
आ ने आज रिझा ल्यो जी,
बिगड़ा काम बणाल्यो जी,
भगता रो यो रखपाल,
बैठ्यो भोलो धणी ॥
आक धतूरा खावे बाबो,
भंगिया भोग लगावे रे,
अंग भभूत रमावे भोलो,
धुनि अलख जगावे रे,
गंगा जल सु नहा ल्यो जी,
काचो दूध चढ़ा ल्यो जी,
भगता रो यो रखपाल,
बैठ्यो भोलो धणी ॥
नीलकंठ बाबा को म्हाने,
रूप सुहानो लागे रे,
भोला जी को ध्यान धरया सु,
सगला संकट भागे रे,
भक्तो मिलकर ध्यालो जी,
सगळा कष्ट मिटा ल्यो जी,
भगता रो यो रखपाल,
बैठ्यो भोलो धणी ॥
सोमवार ने भूतनाथ,
दर्शन री महिमा भारी रे,
निशदिन माथो टेकन,
आवे नर ने नारी रे,
‘हर्ष’ के सागे चालो जी,
जाकर दर्शन पा लो जी,
भगता रो यो रखपाल,
बैठ्यो भोलो धणी ॥
भूतेश्वर ने ध्यालो जी,
सोया भाग्य जगा लो जी,
भगता रो यो रखपाल,
बैठ्यो भोलो धणी ॥
