रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम् ।
जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम् ॥1
सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं
भक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम् ।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु ॥2
छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा ।
साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया
सङ्कल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो ॥3
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः ।
सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम् ॥4
किं वा वानेन धनेन वाजिकरिभी प्राप्तेन राज्येन किम ।
किं वा पुत्रकलत्र पशुभिर देहन गेहेन किम ।
ज्ञातवेत तत्क्षण भंगुरं सपदि रे त्याज्यं मनो दुरत: ।
स्वामार्थम गुरु वाक्यतो भज भज श्री पार्वती बल्भम् ॥5
शिव मानस पूजा
रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं
श्लोक के इस भाग में भगवान शिव की पूजा और उनकी सेवा का अत्यंत भावुक और सौंदर्यपूर्ण चित्रण किया गया है। भक्त भगवान शिव के लिए सबसे उत्तम आसन (जो रत्नों से सजाया गया है) अर्पित करता है। स्नान के लिए ठंडे और शुद्ध जल का उपयोग करता है, ताकि भगवान शिव की पवित्रता और शीतलता का आदान-प्रदान हो सके।
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम्
यहां, भगवान शिव को अलग-अलग रत्नों से अलंकृत चंदन अर्पित किया जाता है, जिसे मृगमद (कस्तूरी) के सुगंध से युक्त किया गया है। यह चंदन भगवान की देह को शीतलता प्रदान करता है और पवित्रता का प्रतीक है।
जातिचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा
भक्त भगवान शिव को जाति (जेस्मीन), चम्पा और बिल्वपत्र से बने पुष्प अर्पित कर रहा है, जो शिव पूजा में विशेष महत्व रखते हैं। इसके साथ ही, धूप अर्पण किया जाता है, जो शुद्धिकरण और वातावरण को पवित्र करने का प्रतीक है।
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्
भगवान शिव, जो दयानिधि (करुणा के सागर) और पशुपति (समस्त जीवों के स्वामी) हैं, को दीप अर्पित किया जा रहा है। यह दीप अंधकार को दूर करने और ज्ञान का प्रकाश फैलाने का प्रतीक है।
सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं
इस भाग में भगवान शिव को सोने के पात्र में नवरत्नों से सजी हुई सामग्री अर्पित की जा रही है। इसमें घी और पायसम (खीर) शामिल हैं, जो भोग के रूप में अर्पित किए जाते हैं। यह समर्पण भक्ति और समृद्धि का प्रतीक है।
भक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम्
यहां विभिन्न प्रकार के भक्ष्य (खाने योग्य सामग्री) जैसे दूध, दही और केले के फल सहित अन्य स्वादिष्ट पदार्थ भगवान शिव को अर्पित किए जा रहे हैं। यह सामग्री उनकी प्रसन्नता के लिए अर्पित की जाती है।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं
इसके साथ ही, भगवान शिव को अनेक प्रकार की सब्जियाँ, जल, और कर्पूर से युक्त जल भी अर्पित किया जाता है। यह उनके स्वास्थ्य और ताजगी के प्रतीक के रूप में है।
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु
अंत में, भगवान शिव को ताम्बूल (पान) अर्पित किया जाता है। यह मन से बनाई गई एक अत्यंत भावपूर्ण सेवा है, जो भक्ति और समर्पण के साथ की जा रही है।
छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
इस श्लोक में भगवान शिव को छत्र (छाता), चामर (याक के बाल से बना पंखा), और अन्य सम्मानजनक वस्तुएं अर्पित की जा रही हैं। यह सभी वस्तुएं निर्मल (शुद्ध) हैं और भगवान की सेवा में उपयोग की जा रही हैं।
वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा
भगवान शिव को संगीत की स्वर लहरियों के साथ-साथ नृत्य की प्रस्तुति भी अर्पित की जा रही है। वीणा, भेरी, मृदंग, और अन्य वाद्य यंत्रों की ध्वनियाँ भगवान के गुणों का गुणगान करती हैं।
साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया
यहां, भक्त भगवान शिव को साष्टांग प्रणाम कर रहा है और विभिन्न प्रकार की स्तुतियाँ (प्रशंसा) कर रहा है। यह सब भक्ति और श्रद्धा के साथ भगवान शिव को समर्पित किया जा रहा है।
सङ्कल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो
भक्त भगवान शिव को अपनी सम्पूर्ण पूजा और सेवा समर्पित कर रहा है। वह भगवान से विनती करता है कि वे इस पूजा को स्वीकार करें और उसे आशीर्वाद प्रदान करें।
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं
इस श्लोक में भक्त अपने आत्म-समर्पण का भाव व्यक्त करता है। वह कहता है कि भगवान शिव ही उसका आत्मा हैं, और उनकी पत्नी पार्वती देवी उनकी मति (मन या बुद्धि) हैं। उनके प्राण (जीवन शक्ति) उनके सहचर (साथी) हैं, और उनका शरीर एक गृह (मंदिर) है जिसमें भगवान शिव का वास है। यह दर्शाता है कि भक्त की पूरी सत्ता भगवान शिव के लिए है।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः
यहां, भक्त अपने भोग-विलास और दैनिक जीवन के कार्यों को भगवान शिव की पूजा के रूप में समर्पित करता है। वह कहता है कि उसकी निद्रा (नींद) भगवान शिव की समाधि जैसी स्थिति है। भक्त का हर कार्य, हर विचार भगवान शिव की भक्ति में लीन हो गया है।
सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो
भक्त का कहना है कि जब वह कहीं चलता है, तो वह प्रदक्षिणा (भगवान की परिक्रमा) करता है, और उसके द्वारा बोले गए हर शब्द भगवान की स्तुति (प्रशंसा) हैं। उसका हर कार्य भगवान शिव की आराधना के रूप में है।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्
इस श्लोक का यह भाग अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यहां भक्त कहता है कि वह जो भी कर्म (कार्य) करता है, वह सब भगवान शिव की आराधना है। यह एक बहुत ही उन्नत भक्ति का रूप है, जिसमें भक्त का हर कार्य, चाहे वह सामान्य हो या विशेष, भगवान को समर्पित है।
किं वा वानेन धनेन वाजिकरिभी प्राप्तेन राज्येन किम
यह श्लोक भक्त के अंतर्दृष्टि को दर्शाता है। वह पूछता है, “धन, घोड़े, हाथी, और राज्य प्राप्त करने से क्या लाभ है?” यह भौतिक वस्त्रों और अधिकारों को नगण्य मानते हुए आध्यात्मिक खोज की ओर संकेत करता है। भक्त का उद्देश्य भगवान शिव की प्राप्ति है, न कि सांसारिक सुख।
किं वा पुत्रकलत्र पशुभिर देहन गेहेन किम
भक्त पूछता है, “पुत्र, पत्नी, पशु और शरीर का क्या महत्व है?” यह सांसारिक रिश्तों और धन के अस्थिर और क्षणिक होने का संदर्भ देता है। भक्त भगवान शिव की शरण में आने की महत्ता को समझाता है।
ज्ञातवेत तत्क्षण भंगुरं सपदि रे त्याज्यं मनो दुरत:
यहां भक्त अपने मन को संबोधित करता है और उसे सावधान करता है कि सांसारिक वस्त्र और रिश्ते क्षणभंगुर हैं। वे किसी भी क्षण नष्ट हो सकते हैं। इसीलिए भक्त मन को समझाता है कि वह इन्हें त्याग दे और भगवान शिव की ओर अपना ध्यान केंद्रित करे।
स्वामार्थम गुरु वाक्यतो भज भज श्री पार्वती बल्भम्
अंत में, भक्त अपने मन से कहता है कि वह गुरु के वचन का पालन करे और भगवान शिव की भक्ति में लीन हो जाए। भगवान शिव को श्री पार्वती बल्भम् कहा गया है, जो यह दर्शाता है कि वे पार्वती जी के प्रिय हैं। गुरु के मार्गदर्शन से ही भगवान शिव की प्राप्ति संभव है।