भजन

शिव में मिलना हैं: भजन (Shiv Mein Milna Hai)

धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें Join Now

दोहा – कितना रोकूं मन के शोर को,
ये कहा रुकता है,
की शोर से परे,
उस मौन से मिलना है,
मुझे शिव से भी नहीं,
शिव में मिलना हैं ॥

मुझे शिव से नहीं,
शिव में मिलना है,
अपने अहम की,
आहुति दे जलना है,
मुझे शिव से नहीं,
शिव में मिलना हैं ॥

क्यों मुझे किसी और के,
कष्टों का कारण बनना है,
चाँद जो शीश सुशोभित,
उस चाँद सा शीतल बनना है,
उस चाँद सा शीतल बनना है,
मुझे शिव से नहीं,
शिव में मिलना हैं ॥

जितना मैं भटका,
उतना मैला हो आया हूँ,
कुछ ने है छला मोहे,
कुछ को मैं छल आया हूँ,
कुछ को मैं छल आया हूँ,
मुझे शिव से नहीं,
शिव में मिलना हैं ॥

मुझे शिव से नहीं,
शिव में मिलना हैं,
अपने अहम की,
आहुति दे जलना है,
मुझे शिव से नहीं,
शिव में मिलना हैं ॥

शिव में मिलना हैं: भजन – गहन अर्थ और व्याख्या

यह भजन केवल काव्यात्मक रचना नहीं है, बल्कि यह साधना, आत्मा की शुद्धता, और अद्वैत की ओर एक आध्यात्मिक यात्रा का गहरा संदेश है। हर पंक्ति में शिव की व्यापकता और हमारी आत्मा की सीमा का वर्णन है। आइए, इसे गहराई से समझें।


दोहा:

कितना रोकूं मन के शोर को,
ये कहा रुकता है,
की शोर से परे,
उस मौन से मिलना है,
मुझे शिव से भी नहीं,
शिव में मिलना हैं ॥

गहरी व्याख्या:

  1. “कितना रोकूं मन के शोर को”
    यह पंक्ति हमारे जीवन के एक सार्वभौमिक सत्य को सामने लाती है: मन की अशांत प्रकृति।
    आध्यात्मिक दृष्टिकोण: शोर केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक भी है—हमारी इच्छाएँ, संदेह, और विचार। यह पंक्ति योग और ध्यान की शुरुआत की ओर संकेत करती है, जहां साधक अपने “मन” को स्थिर करने की चुनौती का सामना करता है।
    ध्यान का पहलू: यह सुझाव देता है कि मन का शोर रोकना केवल कोशिशों से संभव नहीं, बल्कि उसे मौन की ओर स्थानांतरित करना होगा।
  2. “शोर से परे, उस मौन से मिलना है”
    यह पंक्ति हमें ध्यान, मौन और समाधि की गहराई में ले जाती है। शोर केवल बाहरी नहीं, बल्कि हमारे अंदर की अशांति भी है।
    मौन: यहां मौन केवल आवाज़ की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि एक अवस्था है जिसमें साधक अपनी आत्मा को शिव से जोड़ता है। यह वह स्थिति है जहां समय और स्थान दोनों विलीन हो जाते हैं।
  3. “मुझे शिव से भी नहीं, शिव में मिलना है”
    यह पंक्ति अद्वैत वेदांत का गूढ़ संदेश देती है। शिव “से” मिलना और शिव “में” मिलना में अंतर है।
    • शिव से मिलना: अलगाव की स्थिति है, जहां साधक शिव को बाहर की इकाई के रूप में देखता है।
    • शिव में मिलना: अद्वैत की अवस्था है, जहां साधक और शिव एक हो जाते हैं।
      संदेश: यह स्वयं की पहचान को मिटाकर ब्रह्मांडीय चेतना में विलीन होने की बात करता है।
यह भी जानें:  राम भजन - अवध में राम आए हैं - Ram Bhajan: Awadh Mein Ram Aaye Hain - Bhajan: Ram Bhajan - Awadh Mein Ram Aaye Hain - Ram Bhajan: Awadh Mein Ram Aaye Hain - Hinduism FAQ

पहला पद:

मुझे शिव से नहीं,
शिव में मिलना है,
अपने अहम की,
आहुति दे जलना है,
मुझे शिव से नहीं,
शिव में मिलना हैं ॥

गहरी व्याख्या:

  1. “अपने अहम की आहुति दे जलना है”
    • अहम (Ego): यह हमारा “मैं” है, जो हमें संसार से जोड़ता है। यह हमारे कर्म, इच्छाओं और दुखों की जड़ है।
    • आहुति देना: इसका अर्थ है अपने “मैं” का संपूर्ण त्याग। यह त्याग आसान नहीं, बल्कि आत्मा के गहरे तप और समर्पण से संभव है।
      आध्यात्मिक संदेश: जब तक अहम (इगो) मौजूद है, शिव में मिलन असंभव है। शिव में विलीन होने का अर्थ है खुद को पूरी तरह से नष्ट करना।
  2. “मुझे शिव में मिलना है”
    • गहराई: यह वाक्य सिद्धि की स्थिति की ओर संकेत करता है। यह साधक की यात्रा का अंतिम पड़ाव है, जहां वह शिव के बाहर नहीं, बल्कि उनकी चेतना में समाहित होता है।
      आध्यात्मिक दृष्टिकोण: इसे समाधि कहा जा सकता है, जहां आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं रह जाता।

दूसरा पद:

क्यों मुझे किसी और के,
कष्टों का कारण बनना है,
चाँद जो शीश सुशोभित,
उस चाँद सा शीतल बनना है,
उस चाँद सा शीतल बनना है,
मुझे शिव से नहीं,
शिव में मिलना हैं ॥

गहरी व्याख्या:

  1. “क्यों मुझे किसी और के, कष्टों का कारण बनना है”
    • संदेश: यह पंक्ति साधक की आत्मा की पश्चाताप अवस्था को दिखाती है।
    • अर्थ: अपने कर्मों से दूसरों को पीड़ा पहुंचाने का बोध साधक के हृदय को खिन्न करता है। यह “अहिंसा” और “करुणा” का संदेश देता है।
      गहराई: यह योग और ध्यान का ऐसा स्तर है जहां साधक दूसरों को दुख देने की अपनी प्रवृत्ति का भी अंत कर देता है।
  2. “चाँद जो शीश सुशोभित, उस चाँद सा शीतल बनना है”
    • शिव का चंद्रमा: चंद्रमा का अर्थ केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि मन की शीतलता और स्थिरता है।
      गहरा संदेश: साधक शिव के समान शीतल, शांत और स्थिर बनना चाहता है। यह उसकी आंतरिक अशांति और क्रोध को समाप्त करने की गहरी इच्छा को दिखाता है।
यह भी जानें:  हम गुनाहगार है तेरे श्याम बरसो से भजन लिरिक्स - Hum Gunahgar Hai Tere Shyam Barso Se Bhajan Lyrics - Hinduism FAQ

तीसरा पद:

जितना मैं भटका,
उतना मैला हो आया हूँ,
कुछ ने है छला मोहे,
कुछ को मैं छल आया हूँ,
कुछ को मैं छल आया हूँ,
मुझे शिव से नहीं,
शिव में मिलना हैं ॥

गहरी व्याख्या:

  1. “जितना मैं भटका, उतना मैला हो आया हूँ”
    • भटकाव: यह संसार में हमारी यात्रा का प्रतीक है, जो हमें सांसारिक बंधनों में बांधता है।
    • मेलापन: भटकाव के कारण आत्मा पर संचित विकारों और अधर्म का संकेत है।
      आध्यात्मिक संदेश: यह स्वीकारोक्ति और आत्म-शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। जब साधक अपने पाप और विकार को पहचान लेता है, तो वह शुद्धि की ओर बढ़ता है।
  2. “कुछ ने है छला मोहे, कुछ को मैं छल आया हूँ”
    • चेतना का विकास: यह पंक्ति साधक की आत्मा की निष्पक्षता को दर्शाती है। वह अपने कर्मों और संसार के प्रभाव को स्पष्ट रूप से देखता है।
      संदेश: यह कर्म योग का प्रतीक है, जहां साधक अपने कर्मों की जिम्मेदारी लेता है और उन्हें सुधारने की इच्छा रखता है।

अंतिम निष्कर्ष:

भजन बार-बार इस बात पर जोर देता है कि शिव को बाहर नहीं, भीतर खोजना है। “शिव में मिलना” का अर्थ है आत्मा का पूर्ण रूप से ब्रह्मांडीय चेतना में विलय। यह मार्ग कठिन है, क्योंकि इसमें हमें अपने अहंकार, कर्मों, और सांसारिक मोह-माया का त्याग करना पड़ता है।

गहरा संदेश:
यह भजन हमें सिखाता है कि शिव केवल ध्यान या भक्ति का विषय नहीं, बल्कि वह चेतना हैं जिसमें आत्मा को विलीन होना है। यह विलीनता ही मोक्ष है।

अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

You may also like