- – यह कविता भगवान शिव के प्रति भक्ति और समर्पण की भावना को दर्शाती है, जिसमें शिव सुमिरण से दिन की शुरुआत और शिव मंदिर में शाम बिताने की इच्छा व्यक्त की गई है।
- – कवि अपनी सांसों की ताल पर शिव का नाम गाने और शिव भक्ति में लीन रहने की बात करता है, जिससे जीवन में शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा बनी रहे।
- – “नमः शिवाय” का जाप कर हृदय को पवित्र करने और मोह-माया से दूर रहने की प्रेरणा दी गई है।
- – मृत्यु के समय भी शिव की छवि मन में बनी रहे और शिव के धाम को अपना अंतिम निवास स्थान माना जाए, ऐसी भावना व्यक्त की गई है।
- – पूरी कविता में शिव की करुणा, भक्ति और श्रद्धा का महत्व बताया गया है, जो जीवन को सार्थक और सुखमय बनाती है।

शिव सुमिरन से सुबह शुरू हो,
शिव मंदिर में शाम हो,
शिव करुणा की छैया में,
शाम ढले विश्राम हो।।
साँसों की में ताल पे मेरी,
भक्ति शिव शिव गाये,
शिव दीवानी रसना को कोई,
दूजा गीत ना भाए,
जबतक जीवन ज्योत जले,
मेरे होठो पे शिव नाम हो,
शिव सुमिरण से सुबह शुरू हो,
शिव मंदिर में शाम हो।।
नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय,
बोल के पलके खोलूं,
शिव सागर में स्नान करूँ में,
हृदय का दर्पण धोलू,
मोह माया से दूर रहू में,
श्रद्धा मेरी निष्काम हो,
शिव सुमिरण से सुबह शुरू हो,
शिव मंदिर में शाम हो।।
काल का भय ना हो मन में मेरा,
अंत समय जब आये,
शिव मूरत हो नैनो में शिव,
धाम ये आता जाये,
जहाँ मेरे शिव का डेरा है,
वही पे मेरा धाम हो,
शिव सुमिरण से सुबह शुरू हो,
शिव मंदिर में शाम हो।।
शिव सुमिरन से सुबह शुरू हो,
शिव मंदिर में शाम हो,
शिव करुणा की छैया में,
शाम ढले विश्राम हो।।
