श्री चित्रगुप्त जी की आरती in Hindi/Sanskrit
श्री विरंचि कुलभूषण,
यमपुर के धामी ।
पुण्य पाप के लेखक,
चित्रगुप्त स्वामी ॥
सीस मुकुट, कानों में कुण्डल,
अति सोहे ।
श्यामवर्ण शशि सा मुख,
सबके मन मोहे ॥
भाल तिलक से भूषित,
लोचन सुविशाला ।
शंख सरीखी गरदन,
गले में मणिमाला ॥
अर्ध शरीर जनेऊ,
लंबी भुजा छाजै ।
कमल दवात हाथ में,
पादुक परा भ्राजे ॥
नृप सौदास अनर्थी,
था अति बलवाला ।
आपकी कृपा द्वारा,
सुरपुर पग धारा ॥
भक्ति भाव से यह,
आरती जो कोई गावे ।
मनवांछित फल पाकर,
सद्गति पावे ॥
Shri Chitragupt Aarti in English
Shree Viranchi Kulbhooshan,
Yampur ke Dhaami.
Punya Paap ke Lekhak,
Chitragupt Swami.
Sees Mukut, Kaanon Mein Kundal,
Ati Sohe.
Shyamvarn Shashi Sa Mukh,
Sabke Man Mohe.
Bhaal Tilak Se Bhooshit,
Lochan Suvishaala.
Shankh Sareekhi Gardan,
Gale Mein Manimaala.
Ardh Shareer Janeu,
Lambi Bhuja Chhaajai.
Kamal Davaat Haath Mein,
Paduka Para Bhraaje.
Nrip Saudasa Anarthi,
Tha Ati Balwala.
Aapki Kripa Dwara,
Surpur Pag Dhaara.
Bhakti Bhaav Se Yeh,
Aarti Jo Koi Gaave.
Manvaanchhit Phal Paakar,
Sadgati Paave.
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श्री चित्रगुप्त जी की आरती का अर्थ
श्री विरंचि कुलभूषण, यमपुर के धामी
अर्थ:
चित्रगुप्त जी का वर्णन ब्रह्मा जी के वंश के गहने के रूप में किया गया है। वे यमराज के सहायक हैं, जो यमलोक (मृत्युलोक) के स्वामी के रूप में कार्य करते हैं। यह उनके परम पवित्र और उच्च पद का संकेत देता है, जो जीवों के कर्मों का हिसाब रखते हैं।
पुण्य पाप के लेखक, चित्रगुप्त स्वामी
अर्थ:
चित्रगुप्त जी वह हस्ती हैं जो सभी जीवों के पुण्य और पाप का लेखा-जोखा रखते हैं। उनका स्वामीत्व कर्मों के संतुलन पर है। उनके द्वारा ही निर्णय होता है कि व्यक्ति को पुण्य के आधार पर स्वर्ग मिलेगा या पाप के आधार पर नरक। यह दर्शाता है कि उनके पास अद्वितीय और सार्वभौमिक न्यायाधिकार है।
सीस मुकुट, कानों में कुण्डल, अति सोहे
अर्थ:
इस पंक्ति में चित्रगुप्त जी की भव्यता का चित्रण है। उनके सिर पर सुंदर मुकुट है, जो उनके दिव्य और राजसी रूप को प्रकट करता है। उनके कानों में कुण्डल (झुमके) हैं, जो उनकी शाही और पौराणिक छवि को और भी सुशोभित करते हैं। यह उनके तेजस्वी और आलोकित स्वरूप को व्यक्त करता है।
श्यामवर्ण शशि सा मुख, सबके मन मोहे
अर्थ:
चित्रगुप्त जी का श्यामवर्ण का रूप उनकी गंभीरता और शक्ति का प्रतीक है, जबकि उनके मुख का वर्ण चंद्रमा के समान मोहक और शांत है। यह संयोजन भक्तों के मन को आकर्षित करता है और उनके प्रति भक्ति की भावना उत्पन्न करता है।
भाल तिलक से भूषित, लोचन सुविशाला
अर्थ:
चित्रगुप्त जी के मस्तक पर तिलक (चिह्न) लगा हुआ है, जो धार्मिकता और तपस्या का प्रतीक है। उनकी आंखें विशाल और सुंदर हैं, जो उनकी प्रज्ञा और गहन दृष्टि का प्रतीक हैं। यह बताता है कि वे संसार के सभी कर्मों को देख सकते हैं और न्याय कर सकते हैं।
शंख सरीखी गरदन, गले में मणिमाला
अर्थ:
उनकी गरदन शंख जैसी कोमल और सुसज्जित है, जो उनके सौम्य रूप का प्रतीक है। गले में मणियों की माला है, जो उनकी उच्च आध्यात्मिक स्थिति और दिव्यता को दर्शाती है।
अर्ध शरीर जनेऊ, लंबी भुजा छाजै
अर्थ:
चित्रगुप्त जी के शरीर पर यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण है, जो उनकी धार्मिकता और संस्कारित अवस्था का प्रतीक है। उनकी भुजाएं लंबी और शक्तिशाली हैं, जो उनकी शक्ति और पराक्रम को व्यक्त करती हैं।
कमल दवात हाथ में, पादुक परा भ्राजे
अर्थ:
चित्रगुप्त जी के हाथ में कमल और दवात (स्याही पात्र) है, जो उनके लेखाकार होने का प्रतीक है। वे हर जीव के कर्मों का हिसाब रखते हैं, जिनके आधार पर यमराज न्याय करते हैं। उनके चरणों में पादुकाएं हैं, जो उनकी दिव्यता और सम्मान का प्रतीक हैं।
नृप सौदास अनर्थी, था अति बलवाला
अर्थ:
यहां प्राचीन कथा का उल्लेख है, जिसमें राजा सौदास, जो बहुत बलशाली और अनर्थकारी था, ने चित्रगुप्त जी की कृपा से मुक्ति प्राप्त की। यह कथा चित्रगुप्त जी की कृपा और शक्ति का प्रमाण है, जिससे एक अनर्थकारी भी स्वर्ग का मार्ग प्राप्त कर सकता है।
आपकी कृपा द्वारा, सुरपुर पग धारा
अर्थ:
चित्रगुप्त जी की कृपा से राजा सौदास जैसे व्यक्ति को भी स्वर्ग का मार्ग प्राप्त हुआ। यह दर्शाता है कि उनकी कृपा कितनी महान और उद्धार करने वाली है।
भक्ति भाव से यह, आरती जो कोई गावे
अर्थ:
जो भी व्यक्ति इस आरती को भक्तिभाव से गाता है, वह चित्रगुप्त जी की कृपा प्राप्त करता है। इस आरती के गान से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता और धार्मिकता का संचार होता है।
मनवांछित फल पाकर, सद्गति पावे
अर्थ:
इस आरती को गाने वाला व्यक्ति अपने मनवांछित फल को प्राप्त करता है, अर्थात उसकी इच्छाएं पूरी होती हैं। अंत में, वह सद्गति (मोक्ष) प्राप्त करता है, जो जीवन का अंतिम और सर्वोच्च लक्ष्य माना गया है।
निष्कर्ष
चित्रगुप्त जी की आरती उनके दिव्य रूप, कर्मों के लेखा-जोखा और उनकी कृपा का वर्णन करती है। यह आरती भक्तों के लिए आस्था और भक्ति का महत्वपूर्ण स्रोत है। इसे गाने से व्यक्ति को न केवल अपने जीवन में सफलता मिलती है, बल्कि उसे सद्गति का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।