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श्री जगन्नाथ आरती in Hindi/Sanskrit

चतुर्भुज जगन्नाथ
कंठ शोभित कौसतुभः ॥
पद्मनाभ, बेडगरवहस्य,
चन्द्र सूरज्या बिलोचनः

जगन्नाथ, लोकानाथ,
निलाद्रिह सो पारो हरि

दीनबंधु, दयासिंधु,
कृपालुं च रक्षकः

कम्बु पानि, चक्र पानि,
पद्मनाभो, नरोतमः

जग्दम्पा रथो व्यापी,
सर्वव्यापी सुरेश्वराहा

लोका राजो, देव राजः,
चक्र भूपह स्कभूपतिहि

निलाद्रिह बद्रीनाथशः,
अनन्ता पुरुषोत्तमः

ताकारसोधायोह, कल्पतरु,
बिमला प्रीति बरदन्हा

बलभद्रोह, बासुदेव,
माधवो, मधुसुदना

दैत्यारिः, कुंडरी काक्षोह, बनमाली
बडा प्रियाह, ब्रम्हा बिष्णु, तुषमी

बंगश्यो, मुरारिह कृष्ण केशवः
श्री राम, सच्चिदानंदोह,

गोबिन्द परमेश्वरः
बिष्णुुर बिष्णुुर, महा बिष्णुपुर,

प्रवर बिशणु महेसरवाहा
लोका कर्ता, जगन्नाथो,
महीह करतह महजतहह ॥

महर्षि कपिलाचार व्योह,
लोका चारिह सुरो हरिह

वातमा चा जीबा पालसाचा,
सूरह संगसारह पालकह
एको मीको मम प्रियो ॥

ब्रम्ह बादि महेश्वरवरहा
दुइ भुजस्च चतुर बाहू,

सत बाहु सहस्त्रक
पद्म पितर बिशालक्षय

पद्म गरवा परो हरि
पद्म हस्तेहु, देव पालो

दैत्यारी दैत्यनाशनः
चतुर मुरति, चतुर बाहु
शहतुर न न सेवितोह …

पद्म हस्तो, चक्र पाणि
संख हसतोह, गदाधरह

महा बैकुंठबासी चो
लक्ष्मी प्रीति करहु सदा ।

Shri Jagganath Aarti in English

Chaturbhuj Jagannath
Kanth shobhit kaustubhah ॥
Padmanabh, Bedgarvahasya,
Chandra Suryaya bilochanah

Jagannath, Lokanath,
Niladrih so paro Hari

Deenbandhu, Dayasindhu,
Kripalum cha Rakshakah

Kambu Pani, Chakra Pani,
Padmanabho, Narottamah

Jagdampa Ratho Vyapi,
Sarvavyapi Sureshvaraha

Loka Rajo, Deva Rajah,
Chakra Bhupah Skabhupatihi

Niladrih Badrinathashah,
Ananta Purushottamah

Takaarasodhayoh, Kalpataru,
Bimala Preeti Baradanha

Balabhadroh, Vasudev,
Madhavo, Madhusudana

Daityarih, Kundari Kakshoh, Banamali
Bada Priyah, Brahma Vishnu, Tushmi

Bangashyo, Murari Krishna Keshavah
Shri Ram, Sachchidanandoh,

Govinda Parameshvarah
Vishnur Vishnur, Maha Vishnupur,

Pravar Vishnu Mahesharavaha
Loka Karta, Jagannatho,
Mahi Kartah Mahajatah ॥

Maharshi Kapilachar Vyoh,
Loka Chariah Suro Harih

Vatama Cha Jeeva Palasacha,
Sura Sangasara Palakah
Eko Meeko Mama Priyo ॥

Brahma Badi Maheshwaravaraha
Dui Bhujashcha Chatur Bahu,

Sat Bahu Sahasraka
Padma Pitar Vishalakshya

Padma Garva Paro Hari
Padma Hastehu, Deva Palo

Daityari Daityanashanah
Chatur Murti, Chatur Bahu
Shahatur Na Na Sevitoh …

Padma Hasto, Chakra Pani
Sankha Hastoh, Gadadharah

Maha Vaikunthabasi Cho
Lakshmi Preeti Karahu Sada ।

श्री जगन्नाथ आरती PDF Download

श्री जगन्नाथ आरती का अर्थ

श्री जगन्नाथ भगवान की आरती भक्तिभाव और प्रेम के साथ की जाती है। इस आरती में भगवान जगन्नाथ की महिमा, उनके रूप, गुण और लीला का वर्णन है। इस आरती में जगन्नाथ को विभिन्न नामों और उपाधियों से पुकारा गया है, जो उनके दिव्य स्वरूप और भव्यता का परिचय देते हैं। अब हम प्रत्येक पंक्ति का विस्तार से अर्थ समझते हैं।

चतुर्भुज जगन्नाथ

चतुर्भुज जगन्नाथ
भगवान जगन्नाथ चार भुजाओं वाले हैं, जो विष्णु भगवान के स्वरूप में हैं। चतुर्भुज रूप भगवान विष्णु का एक विशेष स्वरूप है, जो उनकी सर्वशक्तिमानता और विश्वरक्षक होने का प्रतीक है।

कंठ शोभित कौस्तुभः

कंठ शोभित कौस्तुभः
भगवान के गले में कौस्तुभ मणि है, जो उनकी दिव्यता का प्रतीक है। यह मणि समुद्र मंथन में प्राप्त हुई थी और इसे भगवान विष्णु ने अपने कंठ में धारण किया। यह मणि भगवान के तेज और सुंदरता में वृद्धि करती है।

पद्मनाभ, बेडगरवहस्य

पद्मनाभ, बेडगरवहस्य
भगवान को “पद्मनाभ” कहा गया है, जिसका अर्थ है कि उनके नाभि से कमल उत्पन्न होता है, जिसमें ब्रह्मा का जन्म हुआ। “बेडगरवहस्य” का अर्थ है कि भगवान जगन्नाथ एक रहस्यमय और अलौकिक शक्ति से परिपूर्ण हैं।

चन्द्र सूरज्या बिलोचनः

चन्द्र सूरज्या बिलोचनः
भगवान के नेत्र सूर्य और चंद्र के समान उज्जवल हैं। यह उनकी ज्ञान और शक्ति को दर्शाता है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित करती है और जीवन का आधार है।

जगन्नाथ, लोकानाथ

जगन्नाथ, लोकानाथ
भगवान जगन्नाथ को “जगन्नाथ” और “लोकानाथ” कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे पूरे संसार के नाथ (स्वामी) और पालनहार हैं। वे सबकी रक्षा करते हैं और सभी के कल्याण का ख्याल रखते हैं।

निलाद्रिह सो पारो हरि

निलाद्रिह सो पारो हरि
भगवान नील पर्वत पर विराजमान हैं और इस पर्वत का महत्व विशेष है। उन्हें ‘पारो हरि’ भी कहा गया है, जो इस तथ्य को दर्शाता है कि वे पारलौकिक शक्तियों से युक्त हैं।

दीनबंधु, दयासिंधु

दीनबंधु, दयासिंधु
भगवान जगन्नाथ दीनों के मित्र (दीनबंधु) हैं और करुणा के सागर (दयासिंधु) हैं। उनका हृदय दया से भरा है और वे सभी जीवों पर अपनी कृपा बरसाते हैं।

कृपालुं च रक्षकः

कृपालुं च रक्षकः
वे कृपालु हैं और हमारे रक्षक भी हैं। यह गुण दर्शाता है कि वे सबकी सहायता करने वाले और सभी की रक्षा करने वाले भगवान हैं।

कम्बु पानि, चक्र पानि

कम्बु पानि, चक्र पानि
भगवान जगन्नाथ के हाथों में शंख (कम्बु) और चक्र हैं। यह उनकी शस्त्र और शक्ति का प्रतीक है, जिससे वे असुरों का नाश करते हैं और धर्म की स्थापना करते हैं।

पद्मनाभो, नरोतमः

पद्मनाभो, नरोतमः
पद्मनाभ का अर्थ है कि उनके नाभि में कमल का पुष्प है, जिसमें ब्रह्मा का निवास होता है। नरोतम का अर्थ है कि वे मनुष्यों में श्रेष्ठ हैं, अर्थात उनके जैसा श्रेष्ठ कोई और नहीं है।

जग्दम्पा रथो व्यापी

जग्दम्पा रथो व्यापी
भगवान का रथ (रथयात्रा) सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है और यह उनके भक्तों के प्रति प्रेम का प्रतीक है। वे इस यात्रा के माध्यम से अपने भक्तों के बीच आते हैं।

सर्वव्यापी सुरेश्वराहा

सर्वव्यापी सुरेश्वराहा
भगवान जगन्नाथ सर्वव्यापी और सभी देवताओं के ईश्वर हैं। वे संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त हैं और हर स्थान में विद्यमान रहते हैं।

लोका राजो, देव राजः

लोका राजो, देव राजः
भगवान जगन्नाथ समस्त लोकों के राजा और देवताओं के राजा हैं। वे सभी लोकों और देवताओं का नेतृत्व करते हैं और उनके रक्षक हैं।

चक्र भूपह स्कभूपतिहि

चक्र भूपह स्कभूपतिहि
भगवान जगन्नाथ चक्र धारण करने वाले हैं और समस्त भूमण्डल के अधिपति हैं। वे शक्तिशाली और स्थिर हैं और सभी का आधार हैं।

निलाद्रिह बद्रीनाथशः

निलाद्रिह बद्रीनाथशः
भगवान जगन्नाथ को “निलाद्रिह” कहा गया है, जो नील पर्वत पर स्थित हैं। “बद्रीनाथशः” का अर्थ है कि वे भगवान बद्रीनाथ के रूप में भी पूजे जाते हैं। इस प्रकार, वे उत्तर भारत के तीर्थ बद्रीनाथ से भी जुड़े हुए हैं और विष्णु का ही रूप हैं।

अनन्ता पुरुषोत्तमः

अनन्ता पुरुषोत्तमः
भगवान को “अनन्त” कहा गया है, जो उनकी असीमितता और अनन्तता का प्रतीक है। “पुरुषोत्तम” का अर्थ है श्रेष्ठ पुरुष, यानी सबसे महान और सर्वश्रेष्ठ भगवान, जो सबकी रक्षा और कल्याण के लिए समर्पित हैं।

ताकारसोधायोह, कल्पतरु

ताकारसोधायोह, कल्पतरु
भगवान का नाम “ताकारसोधायोह” दिया गया है, जिसका अर्थ है वे दिव्य पुरुष जो सबकी कामनाओं को पूर्ण करते हैं। “कल्पतरु” का अर्थ है कि वे इच्छा पूर्ति करने वाले वृक्ष के समान हैं, जो भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं।

बिमला प्रीति बरदन्हा

बिमला प्रीति बरदन्हा
भगवान जगन्नाथ की पत्नी देवी बिमला हैं, और वे भक्तों के प्रति प्रेम रखने वाले हैं। इस पंक्ति में बताया गया है कि भगवान बिमला देवी को प्रिय हैं और उनकी कृपा से भक्तों को विशेष आशीर्वाद मिलता है।

बलभद्रोह, बासुदेव

बलभद्रोह, बासुदेव
भगवान जगन्नाथ को बलभद्र (बड़े भाई) और वासुदेव (कृष्ण का एक नाम) कहा गया है। वे बल और शौर्य के प्रतीक बलभद्र हैं और ज्ञान एवं धर्म के अधिष्ठाता वासुदेव हैं।

माधवो, मधुसुदना

माधवो, मधुसुदना
भगवान को “माधव” कहा गया है, जो भगवान विष्णु का एक नाम है और “मधुसूदन” भी कहा गया है, जिसका अर्थ है मधु नामक राक्षस का नाश करने वाला। यह उनके अधर्म का नाश करने की शक्ति का प्रतीक है।

दैत्यारिः, कुंडरी काक्षोह, बनमाली

दैत्यारिः, कुंडरी काक्षोह, बनमाली
भगवान “दैत्यारि” हैं, अर्थात दैत्यों (असुरों) के शत्रु हैं। “कुंडरी काक्षोह” का अर्थ है कमल के समान विशाल नेत्रों वाले। “बनमाली” का अर्थ है वनमाला पहनने वाले, जो उनके सौंदर्य और वैराग्य का प्रतीक है।

बडा प्रियाह, ब्रम्हा बिष्णु, तुषमी

बडा प्रियाह, ब्रम्हा बिष्णु, तुषमी
भगवान जगन्नाथ सभी को प्रिय हैं और वे ब्रह्मा और विष्णु के समान पूजनीय हैं। तुषमी का अर्थ है शांति, वे शांति और प्रेम के प्रतीक हैं।

बंगश्यो, मुरारिह कृष्ण केशवः

बंगश्यो, मुरारिह कृष्ण केशवः
भगवान “मुरारि” हैं, अर्थात मुर नामक असुर का नाश करने वाले। वे “कृष्ण” और “केशव” के रूप में भी पूजे जाते हैं। इन नामों से उनके अद्वितीय रूप और लीलाओं का गुणगान किया गया है।

श्री राम, सच्चिदानंदोह

श्री राम, सच्चिदानंदोह
भगवान को श्री राम और सच्चिदानंद कहा गया है। सच्चिदानंद का अर्थ है कि वे सत् (सत्य), चित् (चेतना), और आनंद के स्वरूप हैं। श्री राम के रूप में वे आदर्श पुरुष और धर्म के प्रतीक हैं।

गोबिन्द परमेश्वरः

गोबिन्द परमेश्वरः
भगवान गोविंद (गायों के रक्षक) और परमेश्वर (सर्वोच्च भगवान) हैं। यह उनके करुणामय और पालनहार स्वरूप का प्रतीक है, जो सभी जीवों के प्रति दया रखते हैं।

बिष्णुुर बिष्णुुर, महा बिष्णुपुर

बिष्णुुर बिष्णुुर, महा बिष्णुपुर
भगवान विष्णु स्वयं में ही महाविष्णु हैं। महाविष्णुपुर का अर्थ है कि वे महान विष्णु रूप में हैं और संपूर्ण विश्व में व्याप्त हैं।

प्रवरे बिशणु महेसरवाहा

प्रवरे बिशणु महेसरवाहा
भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं और महेश्वर (महादेव) के समान शक्तिशाली हैं। यह उनके महान और महाशक्तिमान स्वरूप का परिचायक है।

लोका कर्ता, जगन्नाथो, महीह करतह महजतहह

लोका कर्ता, जगन्नाथो, महीह करतह महजतहह
भगवान लोकों के कर्ता हैं, अर्थात वे सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार के अधिपति हैं। “महजतहह” का अर्थ है महान और सर्वज्ञ, जो सबका हित करते हैं।

महर्षि कपिलाचार व्योह

महर्षि कपिलाचार व्योह
भगवान कपिल मुनि के ज्ञान के प्रतीक हैं। वे ज्ञान और विवेक का स्रोत हैं और इस रूप में सबको आत्मज्ञान प्रदान करते हैं।

लोका चारिह सुरो हरिह

लोका चारिह सुरो हरिह
भगवान लोकों का रक्षण करने वाले हैं। वे देवताओं के भी हरि (रक्षक) हैं और सभी के कल्याण हेतु कार्य करते हैं।

वातमा चा जीबा पालसाचा

वातमा चा जीबा पालसाचा
भगवान वात के समान सर्वत्र व्याप्त हैं और सभी जीवों के रक्षक हैं। वे सभी का पालन करने वाले हैं और जीवन का आधार हैं।

सूरह संगसारह पालकह

सूरह संगसारह पालकह
भगवान सूर्य के समान तेजस्वी हैं और संसार के पालक हैं। वे इस सृष्टि को चलाते हैं और सभी प्राणियों की रक्षा करते हैं।

एको मीको मम प्रियो

एको मीको मम प्रियो
भगवान अकेले ही सबके प्रिय हैं। भक्त उनके प्रेम में सभी सांसारिक इच्छाओं को त्याग देते हैं और भगवान से ही जुड़ जाते हैं।

ब्रम्ह बादि महेश्वरवरहा

ब्रम्ह बादि महेश्वरवरहा
भगवान जगन्नाथ को “ब्रह्मा” और “महेश्वर” के समान महान माना गया है। यह दर्शाता है कि भगवान जगन्नाथ सभी प्रमुख देवताओं की शक्ति और महिमा को अपने अंदर समाहित किए हुए हैं। वे ब्रह्मांड के निर्माता, पालनकर्ता, और संहारकर्ता भी हैं।

दुइ भुजस्च चतुर बाहू

दुइ भुजस्च चतुर बाहू
भगवान के पास दो और चार भुजाओं वाले रूप हैं। ये भुजाएँ उनकी शक्ति, शौर्य और सभी दिशाओं में उनकी उपस्थिति का प्रतीक हैं। उनके चार भुजाओं में विभिन्न शस्त्र हैं जो धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए उपयोग किए जाते हैं।

सत बाहु सहस्त्रक

सत बाहु सहस्त्रक
भगवान के अनगिनत भुजाएँ हैं। “सहस्त्रक” का अर्थ है हजारों भुजाएँ, जो इस बात का प्रतीक है कि उनकी शक्ति अनंत है। वे किसी भी रूप में अपने भक्तों की रक्षा कर सकते हैं और संसार का संचालन कर सकते हैं।

पद्म पितर बिशालक्षय

पद्म पितर बिशालक्षय
भगवान के विशाल नेत्र कमल के समान हैं, जो उनके गहन ज्ञान और दिव्यता को दर्शाते हैं। उनके नेत्र भक्तों के समर्पण और प्रेम से प्रसन्न होकर आशीर्वाद बरसाते हैं।

पद्म गरवा परो हरि

पद्म गरवा परो हरि
भगवान जगन्नाथ का एक नाम “पद्म गरवा” भी है, जिसका अर्थ है कि वे कमल से उत्पन्न होकर स्वयं हरि (विष्णु) के रूप में प्रकट होते हैं। यह उनकी दिव्य उत्पत्ति और सभी प्राणियों के लिए करुणा का प्रतीक है।

पद्म हस्तेहु, देव पालो

पद्म हस्तेहु, देव पालो
भगवान के हाथों में कमल सुशोभित है और वे देवताओं के रक्षक हैं। कमल उनके पवित्रता और सौंदर्य का प्रतीक है, और देव पालो का अर्थ है कि वे सभी देवताओं के पालनकर्ता हैं।

दैत्यारी दैत्यनाशनः

दैत्यारी दैत्यनाशनः
भगवान दैत्यारी (असुरों के शत्रु) हैं और दैत्यों का नाश करने वाले हैं। उनका यह रूप दुष्टों का विनाश करने और धर्म की रक्षा करने के लिए है। वे अपनी शक्ति से असुरों को पराजित कर धर्म की स्थापना करते हैं।

चतुर मुरति, चतुर बाहु

चतुर मुरति, चतुर बाहु
भगवान जगन्नाथ के चार रूप और चार भुजाएँ हैं। ये रूप उनके अलग-अलग कर्तव्यों का प्रतीक हैं और यह उनकी दिव्य लीलाओं को दर्शाते हैं। उनके चार भुजाएँ भक्तों की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहती हैं।

शहतुर न न सेवितोह

शहतुर न न सेवितोह
भगवान जगन्नाथ को सैकड़ों भक्त सेवा करते हैं और उनके सामने समर्पण करते हैं। यह दर्शाता है कि उनके चारों ओर भक्तों का समूह हमेशा बना रहता है, जो उनकी भक्ति में रत रहते हैं।

पद्म हस्तो, चक्र पाणि

पद्म हस्तो, चक्र पाणि
भगवान के हाथों में कमल और चक्र हैं। कमल उनकी करुणा और शांति का प्रतीक है, जबकि चक्र उनकी न्यायिक शक्ति और अधर्म के नाश का प्रतीक है। यह उनके संतुलित और करुणामय रूप को दर्शाता है।

संख हसतोह, गदाधरह

संख हसतोह, गदाधरह
भगवान के एक हाथ में शंख और दूसरे में गदा है। शंख उनका आह्वान करने का प्रतीक है, जबकि गदा शक्ति का प्रतीक है। यह भगवान के साहस और शक्ति को व्यक्त करता है।

महा बैकुंठबासी चो

महा बैकुंठबासी चो
भगवान जगन्नाथ महावैकुंठ में निवास करते हैं, जो विष्णु लोक के रूप में जाना जाता है। यह उनके दिव्य निवास स्थान का प्रतीक है, जो मोक्ष प्राप्ति का स्थान है।

लक्ष्मी प्रीति करहु सदा

लक्ष्मी प्रीति करहु सदा
भगवान लक्ष्मी के प्रिय हैं और वे सदैव अपने भक्तों को प्रेम और आशीर्वाद देते हैं। माता लक्ष्मी के साथ उनकी संगति संपत्ति, समृद्धि और शुभता का प्रतीक है, जो उनके भक्तों को धन-धान्य से परिपूर्ण करती है।


इस प्रकार से भगवान जगन्नाथ की इस आरती में उनकी दिव्यता, शक्ति, करुणा और रक्षक स्वरूप का गुणगान किया गया है। यह आरती भगवान जगन्नाथ के प्रति गहरी भक्ति को व्यक्त करती है और इस पाठ से उनके अलौकिक स्वरूप, लीला और भक्तों के प्रति प्रेम का अनुभव होता है। उनके भक्त इस आरती के माध्यम से भगवान से आशीर्वाद और मार्गदर्शन की प्रार्थना करते हैं।

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