श्री ललिता माता की आरती in Hindi/Sanskrit
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी ।
राजेश्वरी जय नमो नमः ॥
करुणामयी सकल अघ हारिणी ।
अमृत वर्षिणी नमो नमः ॥
जय शरणं वरणं नमो नमः ।
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी ॥
अशुभ विनाशिनी, सब सुख दायिनी ।
खल-दल नाशिनी नमो नमः ॥
भण्डासुर वधकारिणी जय माँ ।
करुणा कलिते नमो नम: ॥
जय शरणं वरणं नमो नमः ।
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी ॥
भव भय हारिणी, कष्ट निवारिणी ।
शरण गति दो नमो नमः ॥
शिव भामिनी साधक मन हारिणी ।
आदि शक्ति जय नमो नमः ॥
जय शरणं वरणं नमो नमः ।
जय त्रिपुर सुन्दरी नमो नमः ॥
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी ।
राजेश्वरी जय नमो नमः ॥
Shri Lalita Mata Ki Aarti in English
Shri Mateshwari Jai Tripureshwari.
Rajeshwari Jai Namo Namah.
Karunamayi Sakal Agh Harini.
Amrit Varshini Namo Namah.
Jai Sharanam Varanam Namo Namah.
Shri Mateshwari Jai Tripureshwari.
Ashubh Vinashini, Sab Sukh Dayini.
Khal-Dal Nashini Namo Namah.
Bhandasur Vadhkarini Jai Maa.
Karuna Kalite Namo Namah.
Jai Sharanam Varanam Namo Namah.
Shri Mateshwari Jai Tripureshwari.
Bhav Bhay Harini, Kasht Nivaarini.
Sharan Gati Do Namo Namah.
Shiv Bhamini Sadhak Man Harini.
Adi Shakti Jai Namo Namah.
Jai Sharanam Varanam Namo Namah.
Jai Tripur Sundari Namo Namah.
Shri Mateshwari Jai Tripureshwari.
Rajeshwari Jai Namo Namah.
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श्री ललिता माता की आरती का अर्थ
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी
यह आरती श्री ललिता माता की स्तुति में रची गई है, जो त्रिपुरेश्वरी और मातेश्वरी के नाम से जानी जाती हैं। वह त्रिपुरा की अधिष्ठात्री देवी हैं और संपूर्ण ब्रह्मांड की संरक्षिका मानी जाती हैं। इस आरती में उनके विभिन्न रूपों और दिव्य गुणों का वर्णन किया गया है।
राजेश्वरी जय नमो नमः
इस पंक्ति में देवी ललिता को राजेश्वरी कहा गया है, जो सम्पूर्ण सृष्टि की रानी हैं। “जय नमो नमः” के माध्यम से भक्त उन्हें प्रणाम और जयकार करते हैं।
करुणामयी सकल अघ हारिणी
इसका अर्थ है कि ललिता देवी करुणामयी अर्थात दया की मूर्ति हैं। वह सभी पापों और दोषों का नाश करने वाली हैं, जो उनके भक्तों के कष्टों को दूर करती हैं।
अमृत वर्षिणी नमो नमः
यहां देवी को अमृत वर्षिणी कहा गया है, जो अमृत समान कृपा की वर्षा करती हैं। यह उनकी अनंत कृपा का प्रतीक है, जो भक्तों पर हमेशा बरसती रहती है।
जय शरणं वरणं नमो नमः
यहां भक्त देवी से शरण मांगते हैं, उन्हें वरण यानी स्वीकार करते हैं। “नमो नमः” का अर्थ उन्हें बार-बार प्रणाम करना है।
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी
इस पंक्ति में एक बार फिर देवी को त्रिपुरेश्वरी कह कर उनकी महिमा का बखान किया गया है। त्रिपुरेश्वरी वह देवी हैं जो तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल) की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं।
अशुभ विनाशिनी, सब सुख दायिनी
यह पंक्ति बताती है कि ललिता देवी सभी अशुभ तत्वों का विनाश करती हैं और अपने भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं।
खल-दल नाशिनी नमो नमः
देवी खल और दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों का नाश करती हैं, इसलिए उन्हें खल-दल नाशिनी कहा गया है। भक्त उन्हें प्रणाम करते हैं कि वह उनके जीवन में आने वाले सभी बुरे तत्वों को समाप्त करें।
भण्डासुर वधकारिणी जय माँ
इस पंक्ति में भण्डासुर का उल्लेख है, जो एक असुर था जिसे देवी ललिता ने मारा। यह उनकी शक्ति और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।
करुणा कलिते नमो नमः
यहां देवी को करुणा से भरी हुई बताया गया है। उनका यह रूप भक्तों को अपनी ममता और कृपा से संतुष्ट करता है।
जय शरणं वरणं नमो नमः
यहां फिर से देवी से शरण मांगने का भाव व्यक्त किया गया है, जिससे भक्त देवी के संरक्षण में रहने की कामना करते हैं।
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी
इस पंक्ति में एक बार फिर देवी त्रिपुरेश्वरी की महिमा का गान किया गया है, जिसमें उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति को व्यक्त किया गया है।
भव भय हारिणी, कष्ट निवारिणी
यहां देवी को भव सागर के भय को हरने वाली बताया गया है। भव सागर का भय संसार के मोह-माया से जुड़ा हुआ है और देवी इसे दूर करती हैं। वह सभी कष्टों को भी दूर करने वाली हैं।
शरण गति दो नमो नमः
भक्त इस पंक्ति में देवी से शरण प्राप्त करने का निवेदन करते हैं, जिससे उन्हें हर संकट में देवी का संरक्षण मिले।
शिव भामिनी साधक मन हारिणी
इस पंक्ति में देवी को शिव भामिनी कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वह शिव की संगिनी हैं और साधकों के मन को हरने वाली हैं।
आदि शक्ति जय नमो नमः
देवी को आदि शक्ति कहा गया है, जो सृष्टि की प्रारंभिक और मूल शक्ति हैं। यह शक्ति ही सम्पूर्ण सृष्टि को धारण करती है।
जय शरणं वरणं नमो नमः
यहां फिर से देवी की शरण में जाने की भावना व्यक्त की गई है और उन्हें विनम्रतापूर्वक प्रणाम किया गया है।
जय त्रिपुर सुन्दरी नमो नमः
देवी को त्रिपुर सुंदरी के नाम से संबोधित करते हुए उनकी सुंदरता और उनके तीनों लोकों में अद्वितीय रूप का वर्णन किया गया है।
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी
इस अंतिम पंक्ति में भक्त एक बार फिर से त्रिपुरेश्वरी देवी को नमन करते हैं, उनके सामर्थ्य और उनके अद्वितीय स्वरूप की प्रशंसा करते हैं।
इस प्रकार, यह आरती भक्तों के लिए अपने सभी कष्टों और चिंताओं को देवी के चरणों में समर्पित करने का माध्यम है और देवी की महिमा का गान है।