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श्री मल्लिकार्जुन मंगलाशासनम् in Hindi/Sanskrit

उमाकांताय कांताय कामितार्थ प्रदायिने
श्रीगिरीशाय देवाय मल्लिनाथाय मंगलम् ॥

सर्वमंगल रूपाय श्री नगेंद्र निवासिने
गंगाधराय नाथाय श्रीगिरीशाय मंगलम् ॥

सत्यानंद स्वरूपाय नित्यानंद विधायने
स्तुत्याय श्रुतिगम्याय श्रीगिरीशाय मंगलम् ॥

मुक्तिप्रदाय मुख्याय भक्तानुग्रहकारिणे
सुंदरेशाय सौम्याय श्रीगिरीशाय मंगलम् ॥

श्रीशैले शिखरेश्वरं गणपतिं श्री हटकेशं
पुनस्सारंगेश्वर बिंदुतीर्थममलं घंटार्क सिद्धेश्वरम् ।
गंगां श्री भ्रमरांबिकां गिरिसुतामारामवीरेश्वरं
शंखंचक्र वराहतीर्थमनिशं श्रीशैलनाथं भजे ॥

हस्तेकुरंगं गिरिमध्यरंगं शृंगारितांगं गिरिजानुषंगम्
मूर्देंदुगंगं मदनांग भंगं श्रीशैललिंगं शिरसा नमामि ॥

Shri Mallikarjuna Mangalashasanam in English

Umakantaya Kantaya Kamitartha Pradayine
Shrigirishaaya Devaya Mallinathaya Mangalam

Sarvamangal Rupaya Shri Nagendra Nivasine
Gangadharaya Nathaya Shrigirishaaya Mangalam

Satyananda Svarupaya Nityananda Vidhayine
Stutyaya Shrutigamyaya Shrigirishaaya Mangalam

Mukti Pradaya Mukhyaya Bhaktanugraha Karine
Sundareshaya Saumyaya Shrigirishaaya Mangalam

Shrishaila Shikhareshwaram Ganapatim Shri Hatakesham
Punassarangeshwara Bindutirtham Amalam Ghantarka Siddheshwaram
Gangam Shri Bhramarambikam Girisutam Aramavireshwaram
Shankham Chakram Varahatirtham Anisham Shrishailanatham Bhaje

Haste Kurangam Giri Madhyarangam Shringa Ritamgam Girija Anushangam
Murdendu Gangam Madanang Bhangam Shrishailalingam Shirasaa Namami

श्री मल्लिकार्जुन मंगलाशासनम् PDF Download

श्री मल्लिकार्जुन मंगलाशासनम् का अर्थ

उमाकांताय कांताय कामितार्थ प्रदायिने

अर्थ:
उमाकांत का अर्थ है माता पार्वती के प्रिय, भगवान शिव। कांताय का अर्थ है प्रियतम। यहाँ भगवान शिव को उनकी पत्नी पार्वती के प्रति उनके प्रेम के संदर्भ में सम्बोधित किया गया है। कामितार्थ का अर्थ है इच्छाओं की पूर्ति करने वाले। अर्थात, यह श्लोक भगवान शिव को समर्पित है जो भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं।

विवरण:
इस पंक्ति में भगवान शिव को एक प्रेमी और इच्छाओं को पूर्ण करने वाले रूप में चित्रित किया गया है। शिव और पार्वती का मिलन न केवल भौतिक प्रेम का प्रतीक है, बल्कि वह दिव्य प्रेम का भी प्रतीक है जो सभी सांसारिक बंधनों से परे है। भक्तगण जब भगवान शिव की आराधना करते हैं, तो वे उनकी इच्छा पूरी करते हैं और जीवन में सौभाग्य प्रदान करते हैं।

श्रीगिरीशाय देवाय मल्लिनाथाय मंगलम्

अर्थ:
गिरीश का अर्थ है “पर्वतों के स्वामी,” जो भगवान शिव के कैलाश पर्वत पर निवास करने का संकेत है। देवाय का अर्थ है “भगवान,” मल्लिनाथ का मतलब है मल्लिकार्जुन, जो शिव का एक विशेष रूप है जो श्रीशैलम में पूजनीय है। मंगलम् का अर्थ है “कल्याण” या शुभकामनाएँ।

विवरण:
यह पंक्ति भगवान शिव के एक विशिष्ट रूप मल्लिकार्जुन को समर्पित है। श्रीशैलम का मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है, जहाँ भक्तजन अपनी प्रार्थनाओं के माध्यम से उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इस श्लोक के माध्यम से भगवान शिव को शुभकामनाएँ और मंगल कामनाएँ दी जा रही हैं ताकि वे अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि बनाए रखें।

सर्वमंगल रूपाय श्री नगेंद्र निवासिने

अर्थ:
सर्वमंगल का अर्थ है “सभी प्रकार के कल्याण का स्रोत।” श्री नगेंद्र निवास का तात्पर्य है “पर्वत के राजा (नगेंद्र) के निवासी,” अर्थात भगवान शिव जो कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं।

विवरण:
भगवान शिव को सर्वमंगल रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो भक्तों को हर प्रकार का कल्याण प्रदान करते हैं। वे अपने दिव्य निवास कैलाश पर्वत से संसार को देखते हैं और अपनी कृपा से जीवन को शुद्ध और शांतिपूर्ण बनाते हैं। यह श्लोक भगवान शिव के उस रूप का गुणगान करता है जिसमें वे एक शक्तिशाली और करुणामय देवता के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं।

गंगाधराय नाथाय श्रीगिरीशाय मंगलम्

अर्थ:
गंगाधर का अर्थ है “जो गंगा नदी को धारण करते हैं,” अर्थात भगवान शिव जिनकी जटाओं में गंगा निवास करती हैं। नाथ का अर्थ है “स्वामी,” और श्रीगिरीश का मतलब “पर्वतों के स्वामी” है। मंगलम् का अर्थ है “कल्याण।”

विवरण:
यह श्लोक भगवान शिव के उस रूप का वर्णन करता है जिसमें उन्होंने गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया। गंगा को धारण करने के पीछे यह विश्वास है कि भगवान शिव संसार के सभी पापों को शुद्ध करते हैं। उन्हें नाथ (स्वामी) कहकर उनके नेतृत्व और संरक्षण की कामना की गई है। इस श्लोक में भी भगवान शिव के कल्याणकारी रूप का गुणगान किया गया है, जहाँ वे अपने भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करते हैं।

सत्यानंद स्वरूपाय नित्यानंद विधायने

अर्थ:
सत्यानंद का अर्थ है “सच्चे आनंद का स्वरूप,” और नित्यानंद विधायने का अर्थ है “सदैव आनंद प्रदान करने वाले।”

विवरण:
भगवान शिव को सत्यानंद के रूप में वर्णित किया गया है, जो सभी सच्चे और शाश्वत आनंद के स्रोत हैं। भक्तों के जीवन में जो भी सुख और आनंद है, वह भगवान शिव की कृपा से ही आता है। उनकी आराधना से मनुष्य को शाश्वत आनंद प्राप्त होता है, जो माया और सांसारिक बंधनों से परे होता है। उनकी कृपा से भक्तजन जीवन के सत्य को जान सकते हैं और अपने आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध बना सकते हैं।

स्तुत्याय श्रुतिगम्याय श्रीगिरीशाय मंगलम्

अर्थ:
स्तुत्य का अर्थ है “जो स्तुति के योग्य है,” और श्रुतिगम्य का अर्थ है “जो वेदों और उपनिषदों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।” श्रीगिरीश का अर्थ है “पर्वतों के स्वामी।”

विवरण:
यह श्लोक भगवान शिव की स्तुति करता है, जो वेदों और शास्त्रों के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते हैं। उनके ज्ञान का विस्तार इतना गहन और व्यापक है कि उसे समझने के लिए वेद और शास्त्रों का अध्ययन आवश्यक है। उनके इस स्वरूप का वर्णन करते हुए श्लोक कहता है कि वे स्तुति के योग्य हैं, क्योंकि वे सृष्टि के समस्त ज्ञान के भंडार हैं।

मुक्तिप्रदाय मुख्याय भक्तानुग्रहकारिणे

अर्थ:
मुक्तिप्रदाय का अर्थ है “मुक्ति देने वाले,” मुख्याय का अर्थ है “प्रधान या सर्वश्रेष्ठ,” और भक्तानुग्रहकारिणे का अर्थ है “भक्तों पर अनुग्रह करने वाले।”

विवरण:
इस श्लोक में भगवान शिव को उस रूप में वर्णित किया गया है जो भक्तों को मोक्ष प्रदान करते हैं। वह सर्वोच्च भगवान हैं जो अपने भक्तों को न केवल सांसारिक सुख, बल्कि आध्यात्मिक मुक्ति का भी वरदान देते हैं। भगवान शिव का अनुग्रह भक्तों पर विशेष होता है, जिससे वे जीवन के सभी दुखों से मुक्ति पाते हैं और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। उनके कृपापूर्ण रूप का ध्यान करना सभी भक्तों के लिए कल्याणकारी होता है, जिससे वे मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होते हैं।

सुंदरेशाय सौम्याय श्रीगिरीशाय मंगलम्

अर्थ:
सुंदरेश का अर्थ है “सुंदरता के स्वामी,” और सौम्य का अर्थ है “शांत और कोमल।” श्रीगिरीश का अर्थ है “पर्वतों के स्वामी।” मंगलम् का अर्थ है “कल्याण।”

विवरण:
यह श्लोक भगवान शिव के उस स्वरूप की स्तुति करता है जिसमें वे अत्यंत सुंदर और कोमल दिखाई देते हैं। शिव का सौम्य रूप उनके करुणामय और शांति-प्रदायक व्यक्तित्व को दर्शाता है। उनके इस रूप को देखकर भक्तगण शांति और आत्मिक संतोष का अनुभव करते हैं। उनका सुंदरेश रूप संसार की सभी सुंदरताओं का प्रतीक है, और उनकी उपासना से जीवन में सौंदर्य, संतुलन और शांति आती है। भक्तगण इस श्लोक के माध्यम से भगवान शिव के शांत और सौम्य रूप का ध्यान करते हुए उनसे आशीर्वाद की कामना करते हैं।

श्रीशैले शिखरेश्वरं गणपतिं श्री हटकेशं

अर्थ:
श्रीशैले का अर्थ है “श्रीशैल पर्वत,” जो एक पवित्र स्थान है। शिखरेश्वर का अर्थ है “पर्वत के शिखर पर निवास करने वाले,” गणपतिं का अर्थ है “गणों के स्वामी गणेश,” और श्री हटकेश का अर्थ है “हट्टकेश्वर महादेव,” जो भगवान शिव का एक रूप है।

विवरण:
यह श्लोक श्रीशैलम के प्रमुख देवता भगवान शिव की स्तुति करता है, जिन्हें शिखरेश्वर और हटकेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। श्रीशैलम का यह स्थान हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है और यहाँ भगवान शिव की उपासना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस श्लोक में गणपति (भगवान गणेश) की भी स्तुति की गई है, जो हर कार्य के प्रारंभ में पूजनीय माने जाते हैं। भक्तगण इस श्लोक के माध्यम से भगवान शिव और गणेश से अपनी प्रार्थनाओं की सफल सिद्धि और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

पुनस्सारंगेश्वर बिंदुतीर्थममलं घंटार्क सिद्धेश्वरम्

अर्थ:
पुनस्सारंगेश्वर का अर्थ है “पुनः भगवान सारंगेश्वर,” बिंदुतीर्थ का अर्थ है “बिंदु सरोवर,” अमलं का अर्थ है “शुद्ध,” और घंटार्क सिद्धेश्वर का अर्थ है “घंटार्क नामक सिद्ध स्थल के देवता।”

विवरण:
यह श्लोक भगवान शिव के विभिन्न तीर्थस्थानों की महिमा का वर्णन करता है, जहाँ भक्तगण उनकी कृपा पाने के लिए जाते हैं। बिंदुतीर्थ, सारंगेश्वर, और घंटार्क जैसे स्थानों पर भगवान शिव की उपासना करना शुद्धता और आध्यात्मिकता के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इन स्थानों की यात्रा करने से भक्तों के पापों का नाश होता है और वे आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करते हैं। भगवान शिव का इन पवित्र स्थलों से गहरा संबंध है, और भक्तगण इन स्थानों पर जाकर उनकी कृपा का अनुभव कर सकते हैं।

गंगां श्री भ्रमरांबिकां गिरिसुतामारामवीरेश्वरं

अर्थ:
गंगा का अर्थ है “पवित्र नदी गंगा,” श्री भ्रमरांबिका का अर्थ है “देवी पार्वती का रूप,” गिरिसुता का अर्थ है “पर्वतराज की पुत्री (पार्वती),” और अरामवीरेश्वर का अर्थ है “अराम नामक स्थान के वीर देवता।”

विवरण:
इस पंक्ति में भगवान शिव और देवी पार्वती की स्तुति की गई है। गंगा का स्थान भगवान शिव की जटाओं में है, और भ्रमरांबिका देवी पार्वती का एक रूप है जो भगवान शिव की पत्नी हैं। गिरिसुता होने के नाते, पार्वती हिमालय की पुत्री हैं, और उनका शिव के साथ मिलन दिव्यता का प्रतीक है। अरामवीरेश्वर भगवान शिव के एक वीर रूप का वर्णन करता है, जहाँ वह अपनी शक्ति और पराक्रम के साथ भक्तों की रक्षा करते हैं। इस श्लोक में शिव और पार्वती की संयुक्त उपासना की गई है, जिससे भक्तों को आशीर्वाद और सुरक्षा की प्राप्ति होती है।

शंखंचक्र वराहतीर्थमनिशं श्रीशैलनाथं भजे

अर्थ:
शंख और चक्र भगवान विष्णु के प्रतीक हैं, वराहतीर्थ एक पवित्र स्थल है, और श्रीशैलनाथ का अर्थ है “श्रीशैल पर्वत के स्वामी,” अर्थात भगवान शिव।

विवरण:
यह श्लोक भगवान शिव की स्तुति के साथ-साथ भगवान विष्णु के प्रतीकों का भी स्मरण करता है। शंख और चक्र विष्णु की शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, और वराहतीर्थ एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। इस पंक्ति के माध्यम से यह बताया गया है कि भगवान शिव और विष्णु की उपासना साथ में की जा सकती है, और दोनों देवताओं की कृपा से भक्तगण जीवन में उन्नति प्राप्त करते हैं। श्रीशैलनाथ भगवान शिव का नाम है, जो श्रीशैलम में पूजनीय हैं। भक्तगण इस श्लोक के माध्यम से दोनों देवताओं से आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं।

हस्तेकुरंगं गिरिमध्यरंगं शृंगारितांगं गिरिजानुषंगम्

अर्थ:
हस्तेकुरंग का अर्थ है “हाथी के रूप में भगवान,” गिरिमध्यरंग का अर्थ है “पर्वत के मध्य में स्थित,” शृंगारितांग का अर्थ है “सजे हुए शरीर वाले,” और गिरिजानुषंग का अर्थ है “गिरिजा (पार्वती) के संग रहने वाले।”

विवरण:
इस श्लोक में भगवान शिव के भव्य और आकर्षक रूप का वर्णन किया गया है। यहाँ शिव को हाथी की तरह विशाल और शक्तिशाली रूप में चित्रित किया गया है, जो पर्वत के मध्य में स्थित हैं। उनका शरीर दिव्य आभूषणों से सजा हुआ है, और वे सदैव माता पार्वती के साथ रहते हैं। यह श्लोक भगवान शिव के उस रूप का वर्णन करता है जहाँ वे दिव्य प्रेम और शक्ति का प्रतीक हैं। उनकी उपासना करने से भक्तगण जीवन में शक्ति, प्रेम, और समृद्धि प्राप्त करते हैं।

मूर्देंदुगंगं मदनांग भंगं श्रीशैललिंगं शिरसा नमामि

अर्थ:
मूर्देंदुगंग का अर्थ है “जटा में गंगा और मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाले,” मदनांग भंग का अर्थ है “कामदेव के शरीर को भस्म करने वाले,” और श्रीशैललिंग का अर्थ है “श्रीशैलम में स्थित लिंग रूपी शिव।”

विवरण:
इस पंक्ति में भगवान शिव के अद्वितीय रूप का वर्णन किया गया है। उनकी जटाओं में गंगा और मस्तक पर चंद्रमा का वास है, जो उनकी दिव्यता का प्रतीक है। कामदेव को भस्म करने का उल्लेख उनके वासनाओं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति का प्रतीक है। श्रीशैलम में स्थित भगवान शिव का लिंग रूपी स्वरूप अत्यंत पवित्र माना जाता है, और भक्तगण इस लिंग की उपासना से अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं। इस श्लोक में भगवान शिव के श्रीशैलम के लिंग रूपी स्वरूप का वंदन करते हुए, उनके चरणों में नमन किया गया है।

भगवान शिव का त्रिपुरारि स्वरूप

विवरण:
भगवान शिव को त्रिपुरारि के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है “त्रिपुरासुर का संहार करने वाले।” त्रिपुरासुर तीन असुरों का समुच्चय था, जिन्होंने तीन शहर बनाए थे। शिव ने इन तीनों को एक साथ नष्ट किया, जिससे उन्हें त्रिपुरारि कहा गया। यह उनके उन गुणों को दर्शाता है, जहाँ वे बुराई और अधर्म का नाश करते हैं। शिव का यह रूप दर्शाता है कि वे सत्य, धर्म और न्याय के संरक्षक हैं।

भगवान शिव का योगेश्वर रूप

विवरण:
शिव को योगेश्वर के नाम से भी संबोधित किया जाता है, जो उनके एकांत, ध्यान और योग के प्रति गहन समर्पण को दर्शाता है। शिव सबसे महान योगी माने जाते हैं, जो न केवल साधारण योग के ज्ञाता हैं, बल्कि उन्हें संपूर्ण सृष्टि का महान ज्ञानी और योग के गुरु माना जाता है। उनका यह योगेश्वर रूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में आत्म-संयम, ध्यान और अनुशासन आवश्यक हैं ताकि हम आत्मज्ञान की प्राप्ति कर सकें।

भगवान शिव का नटराज रूप

विवरण:
भगवान शिव का नटराज रूप उनके नृत्य के रूप में प्रकट होता है, जहाँ वे सृष्टि, पालन और विनाश का प्रतीकात्मक नृत्य करते हैं। इस नृत्य को तांडव कहा जाता है। शिव का यह रूप हमें यह बताता है कि जीवन एक निरंतर परिवर्तनशील चक्र है, जिसमें निर्माण, संरक्षण और विनाश एक निरंतर प्रक्रिया है। शिव का नटराज रूप उस दिव्य ऊर्जा का प्रतीक है जो इस चक्र को संतुलन में रखती है।

शिव का करुणामय रूप

विवरण:
भगवान शिव को करुणामय देवता माना जाता है, जो अपने भक्तों पर अत्यंत कृपा और दया बरसाते हैं। शिव का यह रूप दर्शाता है कि वे भक्तों की पीड़ा और कष्टों को दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। उनकी करुणा और दया का कोई अंत नहीं है, और वे अपने भक्तों की हर छोटी-बड़ी समस्या को सुलझाते हैं। शिव का यह रूप उन्हें भक्तों के हृदय में अत्यंत प्रिय और निकट बना देता है, और इसी कारण उन्हें शरणागत वत्सल कहा जाता है, जो हर शरण में आए व्यक्ति का उद्धार करते हैं।

शिव का रौद्र रूप

विवरण:
भगवान शिव का रौद्र रूप भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह रूप उनके क्रोध और शक्ति का प्रतीक है। जब अधर्म और अन्याय की सीमा पार हो जाती है, तो शिव अपने रौद्र रूप में प्रकट होते हैं और पूरी सृष्टि को बुराई से मुक्त करने के लिए विनाश करते हैं। शिव का यह रूप एक चेतावनी भी है कि वे केवल प्रेम और करुणा के देवता ही नहीं हैं, बल्कि जब स्थिति मांगती है, तो वे विनाशक भी बन सकते हैं। उनका यह रूप न्याय और धर्म की रक्षा के लिए अनिवार्य है।

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