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श्री मातृ पञ्चकम् in Hindi/Sanskrit

आस्तां तावदियं प्रसूतिसमये दुर्वारशूलव्यथा
नैरुच्यं तनुशोषणं मलमयी शय्या च संवत्सरी ।

एकस्यापि न गर्भभारभरणक्लेशस्य यस्याक्षमः
दातुं निष्कृतिमुन्नतोऽपि तनयस्तस्यै जनन्यै नमः ॥

मातः सोऽहमुपस्तितोऽस्मि पुरतः पूर्वप्रतिज्ञां स्मरन्,
प्रत्यश्रावि पुराहि तेऽन्त्य समये प्राप्तुं समीपं तव ।

ग्राहग्रासमिषाद्यया ह्यनुमतस्तुर्याश्रमं प्राप्तुवान्,
यत्प्रीत्यै च समागतोऽहमधुना तस्यै जनन्यै नमः ॥ १॥

ब्रूते मातृसमा श्रुतिर्भगवती यद्बार्हदारण्यकै,
तत्त्वं वेत्स्यति मातृमांश्च पितृमानाचार्यवानित्यसौ ।

तत्रादौ किल मातृशिक्षणविधिं सर्वोत्तमं शासती,
पूज्यात्पूज्यतरां समर्थयति यां तस्यै जनन्यै नमः ॥ २॥

अम्बा तात इति स्वशिक्षणवशादुच्चारणप्रक्रियां,
या सूते प्रथमं क्व शक्तिरिह नो मातुस्तु शिक्षां विना ।

व्युत्पत्तिं क्रमशश्च सार्वजनिकीं तत्तत्पदार्थेषु या,
ह्याधत्ते व्यवहारमप्यवकिलं तस्यै जनन्यै नमः ॥ ३॥

इष्टानिष्टहिताहितादिधिषणाहौना वयं शैशवे,
कीटान् शष्कुलवित् करेण दधतो भक्ष्याशया बालिशाः ।

मात्रा वारितसाहसाः खलुततो भक्ष्याण्यभक्ष्याणि वा,
व्यज्ञासिष्म हिताहिते च सुतरां तस्यै जनन्यै नमः ॥ ४॥

आत्मज्ञानसमार्जनोपकरणं यद्देहयन्त्रं विदुः
तद्रोगादिभयान्मृगोरगरिपुव्रातादवन्ती स्वयम् ।

पुष्णन्ती शिषुमादराद्गुरुकुलं प्रापय्य कालक्रमात्
या सर्वज्ञशिखामणिं वितनुते तस्यै जनन्यै नमः ॥ ५॥

श्री शङ्कराचार्य कृतं

Shri Mathru Panchakam in English

Here is the Hindi text written in simple English script without adding any meaning:

Astam tavadiyam prasooti samaye durvar shool vyatha Nairuchyam tanushoshanam malmayee shayya cha samvatsari.

Ekasyapi na garbha bhaar bharana kleshasya yasyakshamah Daatum nishkritim unnato’pi tanayastasyai jananyai namah.

Maatah so’ham upasthito’smi puratah purva pratigyaam smaran, Pratyashravi purahi te’nty samaye praaptum sameepam tava.

Graah graasamishadyaya hyanumatas turyashramam praaptuvaan, Yat preetyai cha samaagato’hamadhuna tasyai jananyai namah. (1)

Broote matru samaa shrutirbhagavati yad barhadaranyakai, Tatvam vetsyati matruman cha pitruman aacharyavaan ityasau.

Tatraadau kila matru shikshanavidhim sarvottamam shasati, Poojyat poojyataram samarthayati yaam tasyai jananyai namah. (2)

Ambaa taata iti swashikshanavashaad uchcharan prakriyaam, Yaa soote prathamam kva shaktir iha no maatas tu shikshaam vina.

Vyutpattim kramashash cha sarvajanikim tat tat padartheshu ya, Hyadhatte vyavaharam apyavakilam tasyai jananyai namah. (3)

Ishtanishtahitahitadi dhishanaahouna vayam shaishave, Keetaan shashkulavit karen dadhato bhakshyaashayaa baalishaah.

Maatra vaaritasahasah khalutato bhakshyani abhakshyani vaa, Vyagyaasishma hitahite cha sutaram tasyai jananyai namah. (4)

Atmagyaan samarjanopakaranam yad dehayantam viduh Tad rogaadibhayaan mrigoragaripu vrataad avanti svayam.

Pushnanti shishum adaraad gurukulam praapayya kaalakramaat Yaa sarvajna shikhamanim vitanute tasyai jananyai namah. (5)

Shri Shankaracharya kritam

श्री मातृ पञ्चकम् PDF Download

श्री मातृ पञ्चकम् का अर्थ

श्लोक १

आस्तां तावदियं प्रसूतिसमये दुर्वारशूलव्यथा
माता जब बच्चे को जन्म देती है, उस समय की अत्यंत असहनीय प्रसव पीड़ा का वर्णन किया जा रहा है। यह दर्द बहुत प्रबल होता है और सहन करना मुश्किल होता है।

नैरुच्यं तनुशोषणं मलमयी शय्या च संवत्सरी
प्रसव के बाद माता का शरीर कमजोर हो जाता है। उसकी भूख कम हो जाती है, और उसका शरीर शोषित हो जाता है। उसकी बिस्तर मल से दूषित हो जाती है और एक वर्ष तक उसकी स्थिति ठीक नहीं होती।

एकस्यापि न गर्भभारभरणक्लेशस्य यस्याक्षमः
बच्चा इतना बड़ा हो जाता है, फिर भी वह उस गर्भ के भार को और उस समय मां द्वारा झेली गई पीड़ा का प्रतिकार नहीं कर सकता।

दातुं निष्कृतिमुन्नतोऽपि तनयस्तस्यै जनन्यै नमः
भले ही पुत्र बहुत बड़ा क्यों न हो जाए, वह अपने जन्म के समय मां द्वारा सहन की गई पीड़ा का बदला नहीं चुका सकता। इसलिए उस मां को नमन है।

श्लोक २

मातः सोऽहमुपस्तितोऽस्मि पुरतः पूर्वप्रतिज्ञां स्मरन्
मैं (शिष्य या पुत्र) तुम्हारे सामने उपस्थित हूँ, मां, और तुम्हें दिए गए अपने पूर्व वचनों को स्मरण कर रहा हूँ।

प्रत्यश्रावि पुराहि तेऽन्त्य समये प्राप्तुं समीपं तव
यह तुम्हें पहले ही कहा गया था कि मैं तुम्हारे अंतिम समय में तुम्हारे पास आऊंगा।

ग्राहग्रासमिषाद्यया ह्यनुमतस्तुर्याश्रमं प्राप्तुवान्
मां की अनुमति से मैं संसार से मुक्त होकर संन्यास (चतुर्थ आश्रम) में प्रवेश कर चुका हूँ, जो मां ने स्वीकार किया था।

यत्प्रीत्यै च समागतोऽहमधुना तस्यै जनन्यै नमः
अब मैं अपनी मां से मिलने आया हूँ, उस मां को नमन है जिसने इस संन्यास की राह पर चलने के लिए मेरा मार्गदर्शन किया।

श्लोक ३

ब्रूते मातृसमा श्रुतिर्भगवती यद्बार्हदारण्यकै
वेद और श्रुतियां, जैसे बार्हदारण्यक उपनिषद, हमें सिखाते हैं कि मां का स्थान सबसे ऊंचा होता है। मातृ समान कोई नहीं है।

तत्त्वं वेत्स्यति मातृमांश्च पितृमानाचार्यवानित्यसौ
वह व्यक्ति जो मां, पिता और गुरु का सम्मान करता है, वह संसार के तत्त्व और सत्य को समझ सकता है।

तत्रादौ किल मातृशिक्षणविधिं सर्वोत्तमं शासती
सबसे पहले मां की शिक्षा सर्वोत्तम होती है। मां बच्चे को शिक्षा देने का पहला माध्यम होती है।

पूज्यात्पूज्यतरां समर्थयति यां तस्यै जनन्यै नमः
मां को देवताओं से भी अधिक पूजनीय बताया गया है। उस महान मां को नमन है जो यह महान शिक्षा देती है।

श्लोक ४

अम्बा तात इति स्वशिक्षणवशादुच्चारणप्रक्रियां
मां हमें सिखाती है कि हम ‘अम्मा’ और ‘तात’ जैसे शब्दों का उच्चारण करें। बच्चे का पहला शब्द माँ की शिक्षा से आता है।

या सूते प्रथमं क्व शक्तिरिह नो मातुस्तु शिक्षां विना
बिना मां की शिक्षा के कोई भी बच्चा अपने जीवन की प्रारंभिक अवस्था में कुछ भी नहीं सिख सकता। मां के बिना हमारे पास कोई शक्ति नहीं है।

व्युत्पत्तिं क्रमशश्च सार्वजनिकीं तत्तत्पदार्थेषु या
मां हमें क्रमशः समाज और संसार के सभी कार्यों का बोध कराती है।

ह्याधत्ते व्यवहारमप्यवकिलं तस्यै जनन्यै नमः
मां हमें न केवल शब्दों का अर्थ सिखाती है, बल्कि हमें जीवन के व्यावहारिक कार्य भी सिखाती है। उस मां को नमन।

श्लोक ५

इष्टानिष्टहिताहितादिधिषणाहौना वयं शैशवे
हम बचपन में यह नहीं समझ पाते कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। हमें समझ नहीं होती कि क्या करना उचित है और क्या अनुचित।

कीटान् शष्कुलवित् करेण दधतो भक्ष्याशया बालिशाः
बचपन में हम कीड़े, मिट्टी जैसी चीज़ों को खाने की कोशिश करते हैं, क्योंकि हमें यह नहीं पता होता कि यह हमारे लिए हानिकारक है।

मात्रा वारितसाहसाः खलुततो भक्ष्याण्यभक्ष्याणि वा
लेकिन मां हमें हमेशा रोकती है और सिखाती है कि क्या खाना चाहिए और क्या नहीं।

व्यज्ञासिष्म हिताहिते च सुतरां तस्यै जनन्यै नमः
मां हमें अच्छे और बुरे के बीच भेद करना सिखाती है। उस मां को नमन है।

श्लोक ६

आत्मज्ञानसमार्जनोपकरणं यद्देहयन्त्रं विदुः
मां हमें आत्मज्ञान का साधन हमारे शरीर के रूप में देती है। यह शरीर एक उपकरण है, जिसके द्वारा हम आत्मज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं।

तद्रोगादिभयान्मृगोरगरिपुव्रातादवन्ती स्वयम्
मां हमें बीमारियों, पशुओं, सर्पों, और शत्रुओं से बचाती है। वह अपने आप हमारी रक्षा करती है, चाहे कोई भी संकट हो।

पुष्णन्ती शिषुमादराद्गुरुकुलं प्रापय्य कालक्रमात्
मां अपने बच्चे का पालन-पोषण करती है, उसे स्नेह और आदर से बड़ा करती है, और सही समय पर उसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल भेजती है।

या सर्वज्ञशिखामणिं वितनुते तस्यै जनन्यै नमः
मां वह है जो हमें सर्वज्ञ (सर्वज्ञान) की ओर ले जाती है। वह हमें समग्र ज्ञान की प्राप्ति की ओर मार्गदर्शन करती है। उस मां को नमन है।


इस स्तुति का भावार्थ

श्री शंकराचार्य द्वारा रचित इस स्तुति में मां के योगदान और उसके महत्व को विस्तार से बताया गया है। हर श्लोक मां की महानता को बताता है, कैसे वह न केवल शारीरिक रूप से अपने बच्चे की रक्षा करती है, बल्कि उसे ज्ञान, विवेक और आत्मसम्मान भी देती है। प्रसव के समय की पीड़ा से लेकर बच्चे के शिक्षित होने तक, मां अपने जीवन के हर क्षण को समर्पित करती है। स्तुति में मां के प्रति सम्मान व्यक्त किया गया है और यह बताया गया है कि बच्चे के बड़े होने के बाद भी वह अपनी मां के त्याग और समर्पण का प्रतिदान नहीं कर सकता।

इस स्तुति के हर श्लोक में मां की उस भूमिका को वर्णित किया गया है, जिसे केवल वही निभा सकती है। मां ही बच्चे का पहला गुरु होती है, जो उसे बोलना, चलना, समाज के नियमों का पालन करना, अच्छा-बुरा समझना और अंततः ज्ञान प्राप्त करने का मार्ग दिखाती है।

श्री शंकराचार्य ने मां की महानता को सर्वोच्च स्थान दिया है, और हमें यह संदेश दिया है कि मां का कर्ज कभी नहीं चुकाया जा सकता, चाहे पुत्र कितना ही बड़ा और प्रतिष्ठित क्यों न हो।

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