श्री नन्दकुमाराष्टकम् in Hindi/Sanskrit
सुन्दरगोपालम् उरवनमालंनयनविशालं दुःखहरं।
वृन्दावनचन्द्रमानन्दकन्दंपरमानन्दं धरणिधर
वल्लभघनश्यामं पूर्णकामंअत्यभिरामं प्रीतिकरं।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारंतत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्॥1॥
सुन्दरवारिजवदनं निर्जितमदनंआनन्दसदनं मुकुटधरं।
गुञ्जाकृतिहारं विपिनविहारंपरमोदारं चीरहर
वल्लभपटपीतं कृतउपवीतंकरनवनीतं विबुधवरं।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारंतत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्॥2॥
शोभितमुखधूलं यमुनाकूलंनिपटअतूलं सुखदतरं।
मुखमण्डितरेणुं चारितधेनुंवादितवेणुं मधुरसुर
वल्लभमतिविमलं शुभपदकमलंनखरुचिअमलं तिमिरहरं।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारंतत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्॥3॥
शिरमुकुटसुदेशं कुञ्चितकेशंनटवरवेशं कामवरं।
मायाकृतमनुजं हलधरअनुजंप्रतिहतदनुजं भारहर
वल्लभव्रजपालं सुभगसुचालंहितमनुकालं भाववरं।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारंतत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्॥4॥
इन्दीवरभासं प्रकटसुरासंकुसुमविकासं वंशिधरं।
हृतमन्मथमानं रूपनिधानंकृतकलगानं चित्तहर
वल्लभमृदुहासं कुञ्जनिवासंविविधविलासं केलिकरं।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारंतत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्॥5॥
अतिपरप्रवीणं पालितदीनंभक्ताधीनं कर्मकरं।
मोहनमतिधीरं फणिबलवीरंहतपरवीरं तरलतर
वल्लभव्रजरमणं वारिजवदनंहलधरशमनं शैलधरं।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारंतत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्॥6॥
जलधरद्युतिअङ्गं ललितत्रिभङ्गंबहुकृतरङ्गं रसिकवरं।
गोकुलपरिवारं मदनाकारंकुञ्जविहारं गूढतर
वल्लभव्रजचन्द्रं सुभगसुछन्दंकृतआनन्दं भ्रान्तिहरं।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारंतत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्॥7॥
वन्दितयुगचरणं पावनकरणंजगदुद्धरणं विमलधरं।
कालियशिरगमनं कृतफणिनमनंघातितयमनं मृदुलतर
वल्लभदुःखहरणं निर्मलचरणम्अशरणशरणं मुक्तिकरं।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारंतत्त्वविचारं ब्रह्मपरम्॥8॥
Shri Nandakumarashtakam in English
Sundargopalam uravanamalan nayana-vishalan dukhaharam.
Vrindavanachandram anandakandam paramanandam dharanidhar
Vallabh ghanashyamam purnakamam atyabhiramam preetikaram.
Bhaja Nandakumaram sarva-sukhasaram tattva-vicharam brahmaparam.
Sundar-varij-vadanam nirjita-madanam anandasadanam mukutadharam.
Gunjakrti-haram vipin-viharam paramodaram chiraharam
Vallabh-pat-pitam krta-upavitam kara-navnitam vibudh-varam.
Bhaja Nandakumaram sarva-sukhasaram tattva-vicharam brahmaparam.
Shobhit-mukha-dhulam yamuna-kulam nipata-atulam sukhataram.
Mukha-mandita-renum charita-dhenum vadita-venum madhurasura
Vallabh-ativimalam shubha-padakamalam nakharuchi-amalam timiraharam.
Bhaja Nandakumaram sarva-sukhasaram tattva-vicharam brahmaparam.
Shira-mukut-sudesham kunchit-kesham natvar-vesham kamavaram.
Mayakrta-manujam haladharanujam pratihatanujam bharaharam
Vallabh-vraja-palam subhaga-suchalam hitamanukalam bhava-varam.
Bhaja Nandakumaram sarva-sukhasaram tattva-vicharam brahmaparam.
Indivara-bhasam prakat-surasam kusuma-vikasam vanshidharam.
Hrt-manmath-mananam rupa-nidhanam krta-kal-gaanam chitta-haram
Vallabh-mrduhasam kunja-nivasam vividha-vilasam keli-karam.
Bhaja Nandakumaram sarva-sukhasaram tattva-vicharam brahmaparam.
Ati-parapravinam palita-dinam bhakta-dhinam karma-karam.
Mohan-matidheeram phanibal-veeram hat-paraveeram taralatar
Vallabh-vrajaramanam varija-vadanam haladhar-shamanam shailadharam.
Bhaja Nandakumaram sarva-sukhasaram tattva-vicharam brahmaparam.
Jaladhar-dyuti-angam lalita-tribhangam bahukrita-rangam rasikavaram.
Gokul-parivaram madanakarankunjaviharam gudhatar
Vallabh-vrajachandram subhaga-suchandam krta-anandam bhranti-haram.
Bhaja Nandakumaram sarva-sukhasaram tattva-vicharam brahmaparam.
Vandita-yuga-charanam pavana-karanam jagaduddharanam vimaladharam.
Kaliya-shiragamanam krta-phaninamanam ghatita-yamanam mridulatar
Vallabh-duhkhaharanam nirmalacharanam asharanasharanam muktikaram.
Bhaja Nandakumaram sarva-sukhasaram tattva-vicharam brahmaparam.
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श्री नन्दकुमाराष्टकम् का अर्थ
यह स्तुति भगवान श्रीकृष्ण की दिव्यता, उनकी लीलाओं और स्वरूप का वर्णन करती है। यह श्लोक उनके विभिन्न रूपों, कार्यों और गुणों का विस्तृत चित्रण करता है। आइए, इस श्लोक के हर श्लोकांश का विस्तार से विश्लेषण करें।
श्लोक 1: सुन्दरगोपालम् उरवनमालंनयनविशालं दुःखहरं…
सुन्दर गोपालम् (भगवान श्रीकृष्ण का सौंदर्य)
भगवान श्रीकृष्ण के रूप का यहाँ विशेष रूप से वर्णन किया गया है। वह सुंदर हैं, उनका गोपियों के साथ प्रेममय संबंध और उनकी मनमोहक छवि का उल्लेख है।
- उरवनमालं: कृष्ण के गले में फूलों की माला है, जो उनके मोहक रूप को और भी बढ़ा देती है।
- नयनविशालं: उनके नेत्र विशाल और अत्यंत आकर्षक हैं, जो प्रेम और करुणा से भरे हुए हैं।
- दुःखहरं: उनका दर्शन मात्र सभी दुखों का हरण करने वाला है। भगवान के प्रेमपूर्ण दृष्टि से ही भक्त के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
- वृन्दावनचन्द्रम्: वृंदावन के चन्द्रमा के रूप में, वे पूरे ब्रज भूमि में अपनी लीलाओं से प्रकाश फैलाते हैं।
- आनन्दकन्दम्: वे आनंद के स्रोत हैं। उनका सान्निध्य और उनकी लीलाएँ जीवों को आनंदित करती हैं।
- धरणिधर वल्लभम्: श्रीकृष्ण धरती के प्रेमी हैं, विशेष रूप से गोवर्धन धारण करने की कथा में उनका उल्लेख आता है।
नन्दकुमारं (नंद बाबा के पुत्र)
कृष्ण का बाल रूप, विशेषकर नंद बाबा के पुत्र के रूप में, यहाँ वर्णित है। इस रूप में वे सर्वसुखसारं यानी सभी प्रकार के सुखों का सार हैं। उनके दर्शन और सेवा से भक्त को हर प्रकार का सुख प्राप्त होता है। वे तत्त्वविचारं यानी तात्त्विक दृष्टिकोण से भी सर्वोच्च हैं और ब्रह्मपरम् यानी ब्रह्म के स्वरूप में स्थित हैं।
श्लोक 2: सुन्दरवारिजवदनं निर्जितमदनं…
सुन्दर वारिजवदनम् (कमल जैसा मुख)
कृष्ण के मुख को यहाँ कमल के फूल के समान सुंदर बताया गया है।
- निर्जितमदनम्: उनका रूप इतना सुंदर है कि कामदेव को भी मात दे देता है।
- आनन्दसदनम्: वे आनंद के निवास हैं, उनकी उपस्थिति ही सभी के लिए सुख का कारण बनती है।
- मुकुटधरम्: उनके सिर पर मुकुट है, जो उनकी दिव्यता और राजसी रूप को दर्शाता है।
- गुञ्जाकृतिहारम्: उनके हार में गुञ्जा के दाने गुथे हुए हैं, जो उनकी सरलता और लोकप्रियता को दर्शाता है।
- विपिनविहारम्: कृष्ण की बाल लीलाएँ वन में गोपियों और ग्वालबालों के साथ होती हैं, जहाँ वे आनंदपूर्वक विहार करते हैं।
- परमोदारम्: उनकी उदारता अपरिमित है, वे अपने भक्तों पर बिना किसी शर्त के अनुग्रह करते हैं।
करनवनीतं (माखनचोरी की लीला)
श्रीकृष्ण का बाल्यकाल में माखन चोरी करना एक प्रसिद्ध लीला है। करनवनीतं से यह प्रकट होता है कि उनके हाथों में माखन है, जो उनकी बाल्यकाल की लीला का एक महत्वपूर्ण भाग है।
श्लोक 3: शोभितमुखधूलं यमुनाकूलं…
शोभित मुखधूलम् (धूल से सुशोभित मुख)
कृष्ण के मुख पर धूल लगी हुई है, जो उनकी बाल लीलाओं का प्रतीक है।
- यमुनाकूलम्: कृष्ण का निवास यमुना नदी के तट पर है, जहाँ वे अपनी लीलाएँ करते हैं।
- निपटअतूलम्: उनका सौंदर्य अतुलनीय है, कोई अन्य उनके समान नहीं हो सकता।
- मुखमण्डितरेणुं: उनके मुख पर गोपी ग्वालों की प्रेम भरी रज का मंडन है।
- चारितधेनुं: वे गोपाल हैं, जो गौधन की देखभाल करते हैं और उन्हें चारागाह में चराते हैं।
- वादितवेणुं: उनकी बांसुरी वादन की मधुर ध्वनि सभी को आकर्षित करती है। यह बांसुरी की ध्वनि गोपियों को विशेष रूप से मोह लेती है।
मधुरसुर वल्लभम् (मधुर संगीत के प्रिय)
कृष्ण को मधुर संगीत का अत्यधिक प्रेम है, और उनकी बांसुरी की ध्वनि से संपूर्ण ब्रजमंडल मंत्रमुग्ध हो जाता है। उनका स्वरूप अत्यंत पवित्र और शुभपदकमलम् यानी उनके चरण कमल भी शुभकारी हैं।
श्लोक 4: शिरमुकुटसुदेशं कुञ्चितकेशं…
शिरमुकुटसुदेशम् (मुकुट धारण करने वाला)
यहाँ श्रीकृष्ण के शिर पर मुकुट की शोभा का वर्णन है। उनका मुकुट दिव्य है और उनकी राजसी स्थिति को दर्शाता है।
- कुञ्चितकेशं: उनके घुंघराले केशों का विशेष उल्लेख है, जो उनके सौंदर्य को और बढ़ाते हैं।
- नटवरवेशम्: कृष्ण नटवर यानी श्रेष्ठ नर्तक के रूप में हैं, उनका यह रूप गोपियों और भक्तों के दिलों में विशेष स्थान रखता है। वह अपनी अद्वितीय नृत्य कला से सभी को मोहित कर लेते हैं।
- कामवरम्: वह कामदेव से भी श्रेष्ठ हैं, जिनकी सुंदरता का कोई सानी नहीं है।
मायाकृतमनुजम् (माया से निर्मित मानव रूप)
श्रीकृष्ण माया के अधीन नहीं होते, बल्कि माया उनकी अधीन होती है। उन्होंने मानव रूप धारण कर अपनी लीलाएँ रचाईं, लेकिन उनकी दिव्यता और परमात्मा का स्वरूप इससे परे है।
- हलधर अनुजम्: बलराम उनके भाई हैं, जिन्हें यहाँ “हलधर” के रूप में संबोधित किया गया है।
- प्रतिहतदनुजम्: यह बताता है कि कृष्ण ने अपने सभी शत्रुओं को पराजित किया। वे अजेय हैं और उनके समक्ष कोई टिक नहीं सकता।
- भारहरम्: पृथ्वी का भार उठाने वाले भगवान के रूप में उनका विशेष वर्णन है। उन्होंने धरती से अधर्म और पापों का नाश किया, जो उनकी प्रमुख लीलाओं में से एक है।
व्रजपालम् (व्रज भूमि के रक्षक)
श्रीकृष्ण को व्रज भूमि के रक्षक के रूप में दिखाया गया है। उन्होंने व्रजवासियों को कई संकटों से बचाया, जैसे इंद्र का कोप और गोवर्धन पर्वत की रक्षा।
- सुभगसुचालम्: उनके चाल-ढाल की भी विशेषता है, जो अत्यंत आकर्षक और मोहक है। उनकी चाल में इतनी सुंदरता है कि सभी गोप-गोपियाँ उसे देखने के लिए लालायित रहते हैं।
- भाववरम्: कृष्ण की भावनाएँ उच्च कोटि की हैं। वे प्रेम, करुणा और शांति के प्रतीक हैं, और उनका सान्निध्य सभी को आत्मिक आनंद प्रदान करता है।
श्लोक 5: इन्दीवरभासं प्रकटसुरासं…
इन्दीवरभासम् (नील कमल के समान वर्ण)
श्रीकृष्ण का वर्ण नीले कमल के समान है, जो उनकी दिव्यता को दर्शाता है। उनका यह रूप सभी को मोहित करता है।
- प्रकटसुरासम्: वे देवताओं के लिए भी अद्वितीय और सुलभ हैं। देवता भी उनके गुणों की स्तुति करते हैं।
- कुसुमविकासम्: श्रीकृष्ण के आने से जैसे फूल खिल उठते हैं, वैसे ही उनका दर्शन सभी जीवों में प्रसन्नता और उल्लास भर देता है।
वंशीधरम् (बांसुरी धारण करने वाला)
कृष्ण की बांसुरी वादन कला का यहाँ वर्णन किया गया है। उनकी बांसुरी की ध्वनि से समस्त प्रकृति और जीव मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
- हृतमन्मथमानम्: उनके रूप और संगीत से कामदेव यानी मनमथ भी पराजित होते हैं। उनकी छवि और ध्वनि से मन में उत्पन्न सभी विकार और अशांत भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं।
- रूपनिधानम्: वह सुंदरता और रूप के धरोहर हैं, जिनकी तुलना में कुछ भी नहीं टिकता।
मृदुहासम् (मधुर मुस्कान)
श्रीकृष्ण की मुस्कान अत्यंत मधुर और प्रेमपूर्ण है, जो उनके चेहरे की शोभा को और बढ़ा देती है।
- कुञ्जनिवासम्: कृष्ण अक्सर ब्रज के कुंजों यानी वृक्षों के समूहों के बीच विहार करते हैं। उनका यह क्रीड़ास्थल अत्यंत आनंदमय और सुंदर होता है।
- विविधविलासम्: कृष्ण की लीलाएँ बहुआयामी हैं। वह हर क्षण नई-नई लीलाएँ रचते हैं, जिससे उनके भक्तों को आनंद प्राप्त होता है।
- केलिकरम्: वे विविध प्रकार की क्रीड़ाओं और लीलाओं में प्रवृत्त रहते हैं, जो उनकी बाल्यकाल की अद्भुत विशेषताएँ हैं।
श्लोक 6: अतिपरप्रवीणं पालितदीनं…
अतिपरप्रवीणम् (अत्यधिक बुद्धिमान)
श्रीकृष्ण को यहाँ अत्यधिक बुद्धिमान बताया गया है। वे परम प्रवीण हैं और सभी स्थितियों का कुशलता से समाधान निकालते हैं।
- पालितदीनम्: वे दीन-दुखियों के रक्षक हैं। उनके भक्तों को कोई कष्ट नहीं होता, क्योंकि वे सदैव उनकी रक्षा करते हैं।
- भक्ताधीनम्: भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों के अधीन हैं। वे उनके सच्चे प्रेम के सामने झुक जाते हैं और उनकी सेवा में तत्पर रहते हैं।
मोहनमतिधीरम् (मोहक और धैर्यवान)
श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व अत्यंत मोहनकारी है। वे धैर्यवान और संयमी हैं, जो उनके व्यवहार में स्पष्ट दिखता है।
- फणिबलवीरम्: कालिया नाग का मर्दन करके उन्होंने अपना पराक्रम और वीरता दिखाई।
- हतपरवीरम्: उन्होंने कई असुरों और दुष्टों का संहार किया, जिससे पृथ्वी का भार कम हुआ और धर्म की पुनर्स्थापना हुई।
व्रजरमणम् (व्रज के आनंददाता)
व्रजवासियों को आनंद प्रदान करने वाले श्रीकृष्ण ने अपने लीलाओं से सभी को संतुष्ट किया। वे वारिजवदनम् यानी कमल के समान मुख वाले हैं, जिनकी छवि अत्यंत आकर्षक है।
श्लोक 7: जलधरद्युतिअङ्गं ललितत्रिभङ्गम्…
जलधरद्युतिअङ्गम् (जलधर के समान अंग का वर्ण)
श्रीकृष्ण का वर्ण जलधर यानी बारिश से भरे मेघ के समान है। उनका शरीर श्यामल और सुंदर है, जो सभी को मोह लेने वाला है।
- ललितत्रिभङ्गम्: यहाँ श्रीकृष्ण की त्रिभंग मुद्रा का उल्लेख है, जिसमें उनका शरीर तीन स्थानों पर हल्का मुड़ा हुआ है – सिर, कमर और पैर। यह उनकी नृत्य मुद्रा है, जो अत्यंत आकर्षक और सुंदर है।
- बहुकृतरङ्गम्: कृष्ण का रूप और उनकी गतिविधियाँ कई लहरों की तरह निरंतर प्रवाहित होती रहती हैं। उनका स्वरूप बदलता रहता है, और वे अपने हर रूप में सुंदर और मनमोहक हैं।
रसिकवरम् (श्रेष्ठ रसिक)
कृष्ण को यहाँ रसिकों के श्रेष्ठ रूप में वर्णित किया गया है।
- गोकुलपरिवारम्: कृष्ण का परिवार गोकुल के वासियों से बना है। वे सभी गोकुलवासियों के प्रिय हैं, और गोकुलवासी भी उनसे अत्यंत प्रेम करते हैं।
- मदनाकारम्: कृष्ण कामदेव के समान सुंदर हैं, बल्कि उनसे भी बढ़कर हैं। उनका रूप ऐसा है कि हर कोई उनके आकर्षण में बंध जाता है।
कुञ्जविहारम् (कुञ्जों में विहार करने वाले)
कृष्ण की लीलाएँ ब्रज के कुञ्जों यानी वन के विभिन्न हिस्सों में होती हैं। वे वहाँ गोपियों के साथ विभिन्न लीलाएँ करते हैं, और उनकी लीलाएँ प्रेम और भक्ति से भरी होती हैं।
- गूढतरम्: उनकी लीलाओं का रहस्य बहुत गूढ़ है। केवल उनके सच्चे भक्त ही उनकी लीलाओं की गहराई को समझ सकते हैं।
- वल्लभव्रजचन्द्रम्: वे व्रज भूमि के चन्द्रमा हैं, जो अपनी लीलाओं से पूरे ब्रज को प्रकाशमान करते हैं। उनकी उपस्थिति से व्रजमंडल में आनंद की बाढ़ आ जाती है।
- सुभगसुछन्दम्: कृष्ण का रूप और चाल-ढाल अत्यंत सुशोभित और आकर्षक है, जिससे सभी गोपियाँ और गोपाल प्रेम में डूब जाते हैं।
- कृतआनन्दम्: उन्होंने व्रजवासियों के जीवन में आनंद भर दिया है। उनके कारण हर कोई आनंदित और संतुष्ट है।
- भ्रान्तिहरम्: कृष्ण के दर्शन मात्र से सभी भ्रांतियाँ दूर हो जाती हैं। उनकी लीला और उपदेश से जीवन के सभी भ्रम समाप्त हो जाते हैं।
श्लोक 8: वन्दितयुगचरणं पावनकरणं…
वन्दितयुगचरणम् (वंदनीय चरण)
श्रीकृष्ण के दोनों चरणों की यहाँ स्तुति की गई है। उनके चरण कमल अत्यंत पावन और वंदनीय हैं। देवता, ऋषि-मुनि और भक्तगण उनके चरणों की वंदना करते हैं।
- पावनकरणम्: उनके चरणों का स्पर्श मात्र से स्थान पवित्र हो जाता है। यमुना, गोवर्धन, वृंदावन आदि उनके चरणों से पवित्र हुए हैं।
- जगदुद्धरणम्: श्रीकृष्ण ने जगत को उद्धार किया है। वे अधर्म का नाश करके धर्म की पुनः स्थापना करते हैं।
कालियशिरगमनम् (कालिया नाग के फण पर नृत्य)
यह प्रसंग श्रीकृष्ण की लीला का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जब उन्होंने कालिया नाग के फणों पर नृत्य किया था।
- कृतफणिनमनम्: उन्होंने कालिया नाग को अपने फणों से नमन करवाया, जिससे उसकी अहंकार समाप्त हो गया। यह दर्शाता है कि श्रीकृष्ण दुष्टों का अहंकार भी समाप्त कर देते हैं।
- अघातितयमनम्: कृष्ण ने यमराज की शक्ति को भी विफल कर दिया, जिससे उनके भक्तों को मृत्यु का भय नहीं रहता।
मृदुलतर वल्लभम् (मधुर और कोमल प्रियतम)
श्रीकृष्ण को यहाँ मृदुलतर यानी अत्यंत कोमल और प्रेममय रूप में दिखाया गया है।
- दुःखहरणम्: कृष्ण के दर्शन मात्र से सभी दुःख समाप्त हो जाते हैं। वे अपने भक्तों के सभी कष्टों का नाश करते हैं।
- निर्मलचरणम्: उनके चरणों की शोभा अत्यंत पवित्र और निर्मल है। उनके चरणों का स्पर्श और उनका स्मरण जीवन में शुद्धता और पवित्रता लाता है।
- अशरणशरणम्: जो भी उनके शरण में आता है, वह सुरक्षित हो जाता है, चाहे वह कितना ही दुखी या निराश क्यों न हो।
- मुक्तिकरम्: वे मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। उनकी भक्ति और सान्निध्य से जीव को मोक्ष प्राप्त होता है।
श्रीकृष्ण का सौंदर्य और उनका रूप
इस स्तुति में भगवान श्रीकृष्ण के सौंदर्य का अत्यधिक महत्व है। उनके चेहरे की सुंदरता की तुलना कमल के साथ की गई है, जो हिंदू धर्म में पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक माना जाता है। उनके चेहरे की मुस्कान को मधुर और शांति प्रदान करने वाला बताया गया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि उनकी उपस्थिति मात्र से सभी प्रकार के अशांति और दुख समाप्त हो जाते हैं।
उनकी त्रिभंग मुद्रा का उल्लेख इस बात का प्रमाण है कि वे न केवल सुंदरता और आकर्षण के प्रतीक हैं, बल्कि उनकी हर गतिविधि में एक दिव्यता और कलात्मकता है। यह मुद्रा विशेष रूप से उनके नृत्य और बांसुरी वादन के दौरान प्रकट होती है, जिसे देखकर उनके भक्त असीम आनंद का अनुभव करते हैं।
श्रीकृष्ण का बाल रूप और लीलाएँ
श्रीकृष्ण का बाल रूप उनकी लीला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने गोपियों और ग्वालों के साथ अनेक लीलाएँ कीं, जिनमें माखन चोरी, बांसुरी बजाना और गोपियों के साथ रास रचाना शामिल हैं।
उनकी माखन चोरी की लीला को भी बाल्यकाल की एक प्रमुख घटना के रूप में देखा जाता है। यह केवल एक सामान्य बाल लीला नहीं थी, बल्कि इस लीला के माध्यम से भगवान ने यह दर्शाया कि भले ही वे सर्वशक्तिमान हों, परंतु वे अपने भक्तों के स्नेह और प्रेम में इतने घुलमिल जाते हैं कि वे उनके साथ खेलते हैं और उनकी जीवन में मिठास भरते हैं। करनवनीतं यानी माखन लेकर चलना, उनके सरल और बाल सुलभ रूप का द्योतक है, जो सभी को मोह लेता है।
श्रीकृष्ण का वीर रूप
भगवान श्रीकृष्ण केवल प्रेम और सुंदरता के प्रतीक नहीं हैं, वे एक वीर योद्धा भी हैं। उनका वीर रूप कालिया नाग का दमन और विभिन्न असुरों का वध करते हुए प्रकट होता है। उन्होंने जब कालिया नाग के फणों पर नृत्य किया, तो यह केवल एक अद्भुत लीला नहीं थी, बल्कि इससे यह संदेश भी दिया गया कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी दुष्ट शक्ति का संहार कर सकते हैं।
- फणिबलवीरम्: कालिया नाग के फणों पर नृत्य करना, इस बात का प्रतीक है कि भगवान श्रीकृष्ण दुष्टों और अहंकारियों का पराजय करने में सक्षम हैं।
- हतपरवीरम्: श्रीकृष्ण ने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की और अधर्म का नाश किया। यह श्लोक विशेष रूप से उनके उस रूप की चर्चा करता है, जब उन्होंने अधर्म के खिलाफ अपनी वीरता का परिचय दिया।
भक्तवत्सलता और करुणा
श्रीकृष्ण की एक और विशेषता उनकी भक्तवत्सलता है। वे अपने भक्तों के प्रति अत्यंत करुणामय और स्नेहमय हैं। इस स्तुति में यह वर्णन है कि श्रीकृष्ण अपने भक्तों की हर स्थिति में रक्षा करते हैं।
- अशरणशरणम्: श्रीकृष्ण उन सभी के शरणदाता हैं जो कहीं और नहीं जा सकते। उनके पास आने वाले हर प्राणी को सुरक्षा और शांति मिलती है। वे उन भक्तों को अपनी शरण में लेते हैं जो कठिनाई में होते हैं और उन्हें हर संकट से उबारते हैं।
- पालितदीनम्: वे दीन-दुखियों के रक्षक हैं। यह उनकी करुणा और दया को दर्शाता है, जो उनके प्रत्येक कार्य में स्पष्ट रूप से झलकता है। वे अपने भक्तों की हर स्थिति में सहायता करते हैं और उन्हें संकट से बाहर निकालते हैं।
श्रीकृष्ण का आध्यात्मिक और दार्शनिक रूप
श्रीकृष्ण केवल एक लीलामय भगवान नहीं हैं, बल्कि वे आध्यात्मिकता और ज्ञान के भी प्रतीक हैं। इस श्लोक में तत्त्वविचारम् और ब्रह्मपरम् जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है, जो यह दर्शाता है कि वे ब्रह्म के स्वरूप में स्थित हैं और उनकी भक्ति से केवल सांसारिक सुख ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक मुक्ति भी प्राप्त होती है।
यह श्लोक संकेत देता है कि श्रीकृष्ण की लीलाओं के पीछे गहरे दार्शनिक और आध्यात्मिक अर्थ छिपे हैं। उनकी लीलाएँ केवल मनोरंजन नहीं हैं, बल्कि वे जीवों को जीवन के उच्चतम सत्य की ओर प्रेरित करती हैं।
श्रीकृष्ण की बांसुरी और उसका महत्व
बांसुरी का वादन भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का एक प्रमुख हिस्सा है। उनकी बांसुरी की ध्वनि इतनी मोहक है कि उसे सुनकर हर कोई मोहित हो जाता है। गोपियाँ, ग्वाले और यहाँ तक कि पशु-पक्षी भी उनकी बांसुरी सुनकर आनंद से भर जाते हैं।
- वादितवेणुं: उनकी बांसुरी की ध्वनि आत्मा को शांति और आनंद देती है। उनकी बांसुरी के स्वर से मनुष्य अपने सभी मानसिक तनाव और अशांति को भूलकर प्रेम और भक्ति के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है।
- मधुरसुर वल्लभम्: श्रीकृष्ण मधुर संगीत के प्रियतम हैं। उनकी बांसुरी की मधुर ध्वनि से ही वृंदावन के जीव-जंतु, वृक्ष, नदियाँ और धरती सभी आनंदित होते हैं। यह ध्वनि प्रेम, करुणा और भक्ति का प्रतीक है, जो उनके भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।