श्री शनि देव – आरती in Hindi/Sanskrit
आरती कीजै नरसिंह कुंवर की ।
वेद विमल यश गाउँ मेरे प्रभुजी ॥
पहली आरती प्रह्लाद उबारे ।
हिरणाकुश नख उदर विदारे ॥
दुसरी आरती वामन सेवा ।
बल के द्वारे पधारे हरि देवा ॥
तीसरी आरती ब्रह्म पधारे ।
सहसबाहु के भुजा उखारे ॥
चौथी आरती असुर संहारे ।
भक्त विभीषण लंक पधारे ॥
पाँचवीं आरती कंस पछारे ।
गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले ॥
तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा ।
हरषि-निरखि गावे दास कबीरा ॥
Shri Shani Dev Aarti in English
Aarti kije Narasinh Kunwar ki.
Ved vimal yash gaun mere prabhuji.
Pehli aarti Prahlad ubare,
Hiranyakush nakh udar vidare.
Dusri aarti Vaman seva,
Bal ke dware padhare Hari deva.
Tisri aarti Brahm padhare,
Sahasbahu ke bhuja ukhade.
Chauthi aarti asur sanhare,
Bhakt Vibhishan Lank padhare.
Paanchvi aarti Kans pachare,
Gopi Gwal Sakha pratipale.
Tulsi ko patr kanth mani heera,
Harsh-nirakhi gaave Das Kabira.
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श्री शनि देव – आरती का अर्थ
आरती कीजै नरसिंह कुंवर की
इस पंक्ति में ‘नरसिंह कुंवर’ की आरती करने का आह्वान किया गया है। नरसिंह अवतार को विष्णु के अवतारों में एक माना जाता है, जो भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए आधे शेर और आधे मानव के रूप में प्रकट हुए थे। आरती करने का अर्थ है भगवान की पूजा करना, उन्हें प्रणाम करना और उनका धन्यवाद करना।
वेद विमल यश गाउँ मेरे प्रभुजी
इस पंक्ति का अर्थ है, “मैं अपने प्रभु का पवित्र यश वेदों की तरह शुद्ध और पावन स्वर में गा रहा हूँ।” इसमें प्रभु की महिमा का गायन करने की प्रेरणा दी गई है। वेदों की शुद्धता और पवित्रता के समान ही भगवान के गुणों का वर्णन और प्रशंसा की गई है।
पहली आरती प्रह्लाद उबारे
हिरणाकुश नख उदर विदारे
इसमें भगवान नरसिंह की उस लीला का वर्णन है जब उन्होंने अपने भक्त प्रह्लाद को असुर हिरण्यकशिपु से बचाया था। ‘हिरणाकुश नख उदर विदारे’ का अर्थ है कि भगवान नरसिंह ने हिरण्यकशिपु का वध अपने नुकीले नाखूनों से किया और उसके पेट को चीर दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी स्थिति में प्रकट हो सकते हैं और सभी बाधाओं को दूर कर सकते हैं।
दुसरी आरती वामन सेवा
बल के द्वारे पधारे हरि देवा
इस पंक्ति में भगवान विष्णु के वामन अवतार का उल्लेख है। उन्होंने वामन रूप में अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी और अपनी विराट काया से तीनों लोकों को नाप लिया। इसमें यह दिखाया गया है कि भगवान अपने भक्तों की परीक्षा लेने के लिए विभिन्न रूपों में आते हैं और उनकी भक्ति को स्वीकार करते हैं।
तीसरी आरती ब्रह्म पधारे
सहसबाहु के भुजा उखारे
इस पंक्ति में भगवान परशुराम के अवतार का वर्णन है, जिन्होंने अपनी शक्ति से सहस्रबाहु नामक अत्याचारी राजा के बल का अंत किया। “सहसबाहु के भुजा उखारे” का अर्थ है कि भगवान ने उसके बल को समाप्त करने के लिए उसके भुजाओं को उखाड़ दिया, जो यह दर्शाता है कि भगवान अधर्म और अन्याय का अंत करने के लिए अवतरित होते हैं।
चौथी आरती असुर संहारे
भक्त विभीषण लंक पधारे
इसमें भगवान राम की लीलाओं का उल्लेख है, जिन्होंने लंका के राजा रावण का वध किया और भक्त विभीषण को लंका का राज-पाठ सौंपा। भगवान ने असुरों का संहार किया और अपने भक्त विभीषण को सम्मानित किया, यह दर्शाता है कि भगवान अपने भक्तों की सहायता करने के लिए हर समय तैयार रहते हैं और अधर्म का नाश करते हैं।
पाँचवीं आरती कंस पछारे
गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले
इसमें भगवान श्रीकृष्ण के अवतार का वर्णन है, जिन्होंने अत्याचारी कंस का वध किया और गोकुल में गोपियों और ग्वाल बालों के साथ आनंदित होकर अपने भक्तों की रक्षा की। यह दिखाता है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी समय प्रकट हो सकते हैं और उन्हें प्रेम और स्नेह से भर देते हैं।
तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा
हरषि-निरखि गावे दास कबीरा
अंतिम पंक्ति में तुलसी के पत्ते को भगवान के गले में मणि और हीरे के समान पवित्र माना गया है। भक्त कबीर ने अत्यंत प्रसन्नता से भगवान की स्तुति की है और यह दिखाता है कि सच्चे भक्त के लिए भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति ही सबसे बड़ा गहना है।