श्री उमा महेश्वर स्तोत्रं in Hindi/Sanskrit
नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्यां
परस्पराश्लिष्टवपुर्धराभ्याम् ।
नगेन्द्रकन्यावृषकेतनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 1 ॥
नमः शिवाभ्यां सरसोत्सवाभ्यां
नमस्कृताभीष्टवरप्रदाभ्याम् ।
नारायणेनार्चितपादुकाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 2 ॥
नमः शिवाभ्यां वृषवाहनाभ्यां
विरिञ्चिविष्ण्विन्द्रसुपूजिताभ्याम् ।
विभूतिपाटीरविलेपनाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 3 ॥
नमः शिवाभ्यां जगदीश्वराभ्यां
जगत्पतिभ्यां जयविग्रहाभ्याम् ।
जम्भारिमुख्यैरभिवन्दिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 4 ॥
नमः शिवाभ्यां परमौषधाभ्यां
पञ्चाक्षरीपञ्जररञ्जिताभ्याम् ।
प्रपञ्चसृष्टिस्थितिसंहृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 5 ॥
नमः शिवाभ्यामतिसुन्दराभ्यां
अत्यन्तमासक्तहृदम्बुजाभ्याम् ।
अशेषलोकैकहितङ्कराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 6 ॥
नमः शिवाभ्यां कलिनाशनाभ्यां
कङ्कालकल्याणवपुर्धराभ्याम् ।
कैलासशैलस्थितदेवताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 7 ॥
नमः शिवाभ्यामशुभापहाभ्यां
अशेषलोकैकविशेषिताभ्याम् ।
अकुण्ठिताभ्यां स्मृतिसम्भृताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 8 ॥
नमः शिवाभ्यां रथवाहनाभ्यां
रवीन्दुवैश्वानरलोचनाभ्याम् ।
राकाशशाङ्काभमुखाम्बुजाभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 9 ॥
नमः शिवाभ्यां जटिलन्धराभ्यां
जरामृतिभ्यां च विवर्जिताभ्याम् ।
जनार्दनाब्जोद्भवपूजिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 10 ॥
नमः शिवाभ्यां विषमेक्षणाभ्यां
बिल्वच्छदामल्लिकदामभृद्भ्याम् ।
शोभावतीशान्तवतीश्वराभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 11 ॥
नमः शिवाभ्यां पशुपालकाभ्यां
जगत्रयीरक्षणबद्धहृद्भ्याम् ।
समस्तदेवासुरपूजिताभ्यां
नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 12 ॥
स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं शिवपार्वतीभ्यां
भक्त्या पठेद्द्वादशकं नरो यः ।
स सर्वसौभाग्यफलानि
भुङ्क्ते शतायुरान्ते शिवलोकमेति ॥ 13 ॥
Shri Uma Maheswara Stotram in English
Namah Shivabhyam Navayauvanabhyam
Parasparashlishtavapur Dharabhyam.
Nagendra Kanya Vrishaketanabhyam
Namo Namah Shankar Parvatibhyam.
Namah Shivabhyam Sarasotsavabhyam
Namaskrutabhishtavarapradabhyam.
Narayanenarchitapadukabhyam
Namo Namah Shankar Parvatibhyam.
Namah Shivabhyam Vrishavahanabhyam
Virinchivishnvindrasupujitabhyam.
Vibhutipatiravilepanabhyam
Namo Namah Shankar Parvatibhyam.
Namah Shivabhyam Jagadishwarabhyam
Jagatpatibhyam Jayavigrahabhyam.
Jambharimukhyairabhivanditabhyam
Namo Namah Shankar Parvatibhyam.
Namah Shivabhyam Paramoushadhabhyam
Panchaksharipanjara Ranjitabhyam.
Prapanchasrishtisthitisamhritabhyam
Namo Namah Shankar Parvatibhyam.
Namah Shivabhyamatishundarabhyam
Atyantamasaktahridambujabhyam.
Asheshalokaihitan Karabhyam
Namo Namah Shankar Parvatibhyam.
Namah Shivabhyam Kalinashanabhyam
Kankalakalyaanvapurdharabhyam.
Kailasashail Sthitadevatabhyam
Namo Namah Shankar Parvatibhyam.
Namah Shivabhyam Ashubapahabhyam
Asheshalokaikavisishitabhyam.
Akuntitabhyam Smritisambhritabhyam
Namo Namah Shankar Parvatibhyam.
Namah Shivabhyam Rathavahanabhyam
Ravinduvaishvanaralochanabhyam.
Rakashashankabmukhamubujabhyam
Namo Namah Shankar Parvatibhyam.
Namah Shivabhyam Jatilandharabhyam
Jaramritibhyam Cha Vivarjitabhyam.
Janardanabjodbhavapujitabhyam
Namo Namah Shankar Parvatibhyam.
Namah Shivabhyam Vishamekshanabhyam
Bilvachchadamallikadamabhridbhyam.
Shobhavateeshantavateeshwarabhyam
Namo Namah Shankar Parvatibhyam.
Namah Shivabhyam Pashupalakabhyam
Jagatrayirakshanabaddhridbhyam.
Samastadevasurapujitabhyam
Namo Namah Shankar Parvatibhyam.
Stotram Trisandhyam Shivaparvatibhyam
Bhaktya Patheddvadashakam Naro Yah.
Sa Sarvasaubhagyaphalani
Bhunkte Shatatyurante Shivalokameti.
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श्री उमा महेश्वर स्तोत्रं का अर्थ
श्लोक 1:
नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्यां परस्पराश्लिष्टवपुर्धराभ्याम्।
इस पंक्ति में भगवान शिव और माता पार्वती की नित-नवीन, यौवनयुक्त, और परस्पर आलिंगनबद्ध स्वरूप की वंदना की गई है। यौवन का अर्थ केवल भौतिक सौंदर्य से नहीं है, बल्कि यहां यह शिव और पार्वती की ऊर्जा, शक्ति, और प्रेम की अपरिमितता को दर्शाता है। आलिंगनबद्ध वपु का तात्पर्य है कि दोनों एक-दूसरे में पूर्ण रूप से विलीन हैं, जिससे संसार के सृजन, पालन और संहार का प्रतीकात्मक रूप प्रकट होता है।
नगेन्द्रकन्यावृषकेतनाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्॥
यहां माता पार्वती को ‘नगेन्द्रकन्या’ कहा गया है, जो कि हिमालय की पुत्री हैं, और भगवान शिव को ‘वृषकेतन’ कहा गया है, जिनका वाहन वृषभ है। इस पंक्ति के द्वारा शिव-पार्वती के दिव्य युगल रूप को नमस्कार किया गया है। वृषभ शिव की स्थिरता और शक्ति का प्रतीक है, जबकि नगेन्द्रकन्या का अर्थ है प्रकृति की कोमलता और धैर्य।
श्लोक 2:
नमः शिवाभ्यां सरसोत्सवाभ्यां नमस्कृताभीष्टवरप्रदाभ्याम्।
इस पंक्ति में शिव और पार्वती को उन देवताओं के रूप में वर्णित किया गया है जो हमेशा उल्लास और उत्सव से भरे रहते हैं। वे भक्तों की कामनाओं को पूरा करने वाले हैं। सरसोत्सव का अर्थ है कि उनकी उपस्थिति से समस्त संसार में समृद्धि और आनंद का संचार होता है। उनके चरणों की वंदना करने से भक्तों को उनकी इच्छाओं की प्राप्ति होती है।
नारायणेनार्चितपादुकाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्॥
भगवान विष्णु ने भी शिव और पार्वती के चरणों की पूजा की है। इस पंक्ति में यह बताने का प्रयास है कि शिव और पार्वती की महिमा इतनी महान है कि स्वयं भगवान विष्णु भी उनके उपासक हैं। यह शिव-पार्वती के अद्वितीय स्थान और शक्ति का संकेत देता है।
श्लोक 3:
नमः शिवाभ्यां वृषवाहनाभ्यां विरिञ्चिविष्ण्विन्द्रसुपूजिताभ्याम्।
यह पंक्ति भगवान शिव और माता पार्वती की महत्ता को बताती है। शिव और पार्वती, जिनका वाहन वृषभ (बैल) है, उनकी पूजा ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र जैसे प्रमुख देवताओं ने भी की है। इसका तात्पर्य है कि शिव और पार्वती सभी देवताओं में सर्वोच्च हैं और उनका पूजन करना अत्यंत लाभकारी है।
विभूतिपाटीरविलेपनाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्॥
विभूति से शिव का श्रृंगार होता है और पाटीर (पार्वती का दिव्य श्रृंगार) से माता पार्वती का। यह पंक्ति शिव और पार्वती के आंतरिक और बाहरी सौंदर्य की स्तुति करती है। विभूति शिव की तपस्या और ज्ञान का प्रतीक है, जबकि पाटीर पार्वती की कोमलता और दिव्यता का।
श्लोक 4:
नमः शिवाभ्यां जगदीश्वराभ्यां जगत्पतिभ्यां जयविग्रहाभ्याम्।
भगवान शिव और माता पार्वती को यहां जगदीश्वर कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे सम्पूर्ण संसार के अधिपति हैं। वे सभी जीत के प्रतीक हैं, चाहे वह जीवन के संघर्षों में हो या आत्मिक उन्नति में। इस पंक्ति के द्वारा यह सिद्ध होता है कि उनकी आराधना से संसार के सभी संकट दूर हो सकते हैं।
जम्भारिमुख्यैरभिवन्दिताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्॥
यहां शिव और पार्वती की वंदना उन देवताओं द्वारा की जाती है जो सभी प्रकार की बुराइयों का अंत करने में समर्थ हैं। यह पंक्ति बताती है कि सभी प्रमुख देवता भी शिव और पार्वती को नमन करते हैं।
श्लोक 5:
नमः शिवाभ्यां परमौषधाभ्यां पञ्चाक्षरीपञ्जररञ्जिताभ्याम्।
शिव और पार्वती को यहां परम औषध कहा गया है, यानी वे समस्त रोगों और कष्टों का नाश करने वाले हैं। इसके साथ ही उन्हें पञ्चाक्षरी मंत्र (“नमः शिवाय”) से सुशोभित बताया गया है, जिसका जप करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
प्रपञ्चसृष्टिस्थितिसंहृताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्॥
यह पंक्ति शिव और पार्वती को सृष्टि के रचयिता, पालनकर्ता और संहारक के रूप में मान्यता देती है। शिव सृष्टि के संहारक और माता पार्वती सृष्टि की पोषक शक्ति हैं। दोनों का यह सामंजस्य संसार की संरचना और विकास के लिए आवश्यक है।
श्लोक 6:
नमः शिवाभ्यां अतिसुन्दराभ्यां अत्यन्तमासक्तहृदम्बुजाभ्याम्।
शिव और पार्वती को यहां परम सुंदरता का प्रतीक कहा गया है। उनके प्रति अत्यधिक प्रेम और आसक्ति के कारण, भक्तों का हृदय उनका निवास स्थान बन जाता है। भक्तों के हृदय कमल में उनका वास हमेशा बना रहता है।
अशेषलोकैकहितङ्कराभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्॥
इस पंक्ति में शिव और पार्वती की महिमा का वर्णन किया गया है कि वे सम्पूर्ण संसार का हित करने वाले हैं। उनकी उपासना से केवल भक्तों को ही नहीं, बल्कि पूरे लोकों को लाभ प्राप्त होता है।
श्लोक 7:
नमः शिवाभ्यां कलिनाशनाभ्यां कङ्कालकल्याणवपुर्धराभ्याम्।
इस पंक्ति में शिव और पार्वती को ‘कलिनाशन’ कहा गया है, अर्थात वे कलियुग के सभी संकटों और बुराइयों का नाश करने वाले हैं। शिव का कंकाल स्वरूप, जो मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र का प्रतीक है, और पार्वती का कल्याणकारी रूप, दोनों एक साथ विश्व की संरचना और संतुलन बनाए रखते हैं। यह बताता है कि भगवान शिव विनाशक होते हुए भी अपने भक्तों के लिए कल्याणकारी हैं और माता पार्वती सभी जीवों को पोषण देती हैं।
कैलासशैलस्थितदेवताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्॥
यहां शिव और पार्वती की उपासना कैलाश पर्वत के निवासियों के रूप में की गई है। कैलाश पर्वत वह स्थान है जो शिव का निवास स्थान माना जाता है, और यह स्थान शिव के तप, ध्यान और असीम शांति का प्रतीक है। कैलाश पर्वत स्वयं में आध्यात्मिकता और शांति का एक महान केंद्र है, जहां से शिव और पार्वती समस्त संसार की निगरानी करते हैं।
श्लोक 8:
नमः शिवाभ्यां अशुभापहाभ्यां अशेषलोकैकविशेषिताभ्याम्।
इस श्लोक में शिव और पार्वती की महिमा को इस रूप में वर्णित किया गया है कि वे समस्त अशुभों का नाश करने वाले हैं। कोई भी भक्त जो इनकी उपासना करता है, उसके जीवन से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा और अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाते हैं। उनका आशीर्वाद केवल व्यक्तिगत नहीं होता, बल्कि सम्पूर्ण संसार के लिए होता है। वे संपूर्ण लोकों के लिए विशेष रूप से कल्याणकारी माने जाते हैं।
अकुण्ठिताभ्यां स्मृतिसम्भृताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्॥
शिव और पार्वती की स्मृति कभी कुंठित नहीं होती, यानी उनकी कृपा हमेशा सक्रिय और सजीव रहती है। जो भी भक्त उन्हें स्मरण करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। उनका स्मरण करने से मनुष्य को जीवन के सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और उसे आत्मिक शांति प्राप्त होती है।
श्लोक 9:
नमः शिवाभ्यां रथवाहनाभ्यां रवीन्दुवैश्वानरलोचनाभ्याम्।
इस पंक्ति में शिव और पार्वती की महिमा रथवाहन के रूप में वर्णित की गई है। उनका स्वरूप सूर्य, चंद्रमा और अग्नि के तेज से प्रकाशित है। शिव के तीन नेत्र हैं, जिसमें एक नेत्र सूर्य का प्रतीक, दूसरा चंद्रमा का और तीसरा अग्नि का प्रतीक है। यह पंक्ति उनके दिव्य और तेजस्वी स्वरूप को दर्शाती है, जो अज्ञानता के अंधकार को समाप्त करता है और ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित करता है।
राकाशशाङ्काभमुखाम्बुजाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्॥
यहां पार्वती की महिमा पूर्णिमा के चंद्रमा के समान सौम्य और सुंदर चेहरे वाली देवी के रूप में की गई है। उनका मुख पूर्णिमा के चंद्रमा के समान प्रकाशवान है, जो समस्त संसार को शीतलता और शांति प्रदान करता है। शिव और पार्वती दोनों का यह संयुक्त स्वरूप शांति और आनंद का प्रतीक है।
श्लोक 10:
नमः शिवाभ्यां जटिलन्धराभ्यां जरामृतिभ्यां च विवर्जिताभ्याम्।
यहां शिव और पार्वती को जटाओं वाले और अजर-अमर बताया गया है। भगवान शिव अपनी जटाओं में गंगा को धारण करते हैं, जो कि संसार की पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है। इसके साथ ही शिव और पार्वती दोनों जन्म और मृत्यु के बंधनों से मुक्त हैं। वे अजर और अमर हैं, अर्थात काल के परे हैं। यह बताता है कि उनकी महिमा अनंतकाल तक बनी रहती है और वे सदा शाश्वत हैं।
जनार्दनाब्जोद्भवपूजिताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्॥
भगवान विष्णु और ब्रह्मा भी शिव और पार्वती की पूजा करते हैं। इस पंक्ति में यह कहा गया है कि जो देवता संसार के सृजन और पालन का कार्य करते हैं, वे भी शिव और पार्वती की वंदना करते हैं। यह शिव और पार्वती की महिमा को सर्वोच्चता प्रदान करता है, जिससे यह सिद्ध होता है कि वे सभी देवताओं के पूजनीय हैं।
श्लोक 11:
नमः शिवाभ्यां विषमेक्षणाभ्यां बिल्वच्छदामल्लिकदामभृद्भ्याम्।
इस श्लोक में शिव को विषमेक्षण कहा गया है, क्योंकि उनके तीन नेत्र हैं, और माता पार्वती के सुगंधित मालाओं और पुष्पों से सुशोभित रूप का वर्णन किया गया है। शिव के नेत्र, जिनमें से एक अग्नि का प्रतीक है, संसार की तमाम बुराइयों को जलाकर समाप्त कर देता है। पार्वती का सौम्य रूप, जिसमें वे बिल्व पत्र और मल्लिका फूलों से सजी रहती हैं, समस्त भक्तों को शांति और सुख प्रदान करता है।
शोभावतीशान्तवतीश्वराभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्॥
शिव और पार्वती के इस स्वरूप में शोभा और शांति दोनों का अद्भुत संगम दिखाया गया है। जहां शिव का स्वरूप शक्तिशाली और गंभीर है, वहीं पार्वती का स्वरूप सौम्य और शांत है। दोनों की संयुक्त उपासना से भक्तों को जीवन में शक्ति और शांति दोनों प्राप्त होती हैं।
श्लोक 12:
नमः शिवाभ्यां पशुपालकाभ्यां जगत्रयीरक्षणबद्धहृद्भ्याम्।
शिव को यहां पशुपालक कहा गया है, यानी वे समस्त प्राणियों के रक्षक हैं। वे केवल मनुष्यों के ही नहीं, बल्कि सभी जीवों के पालनहार हैं। शिव और पार्वती का हृदय सभी जगतों के रक्षण में लगा हुआ है। वे अपने भक्तों की देखभाल करते हैं और उन्हें सभी प्रकार के संकटों से बचाते हैं।
समस्तदेवासुरपूजिताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम्॥
शिव और पार्वती की पूजा सभी देवता और असुर करते हैं। यह दिखाता है कि उनकी महिमा देवताओं और दानवों दोनों के लिए समान रूप से प्रभावशाली है। उनके आशीर्वाद से सभी प्रकार के प्राणी अपनी जीवन यात्रा में सफल होते हैं, चाहे वे देवता हों या दानव।
श्लोक 13:
स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं शिवपार्वतीभ्यां भक्त्या पठेद्द्वादशकं नरो यः।
यहां यह कहा गया है कि जो भक्त इस स्तोत्र को दिन में तीन बार (त्रिसन्ध्या) शिव और पार्वती की भक्ति से पढ़ता है, उसे समस्त सौभाग्य और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। यह स्तोत्र भगवान शिव और माता पार्वती की स्तुति में द्वादशक (12 श्लोक) के रूप में है, जिसे नित्य पाठ करने से जीवन के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं।
स सर्वसौभाग्यफलानि भुङ्क्ते शतायुरान्ते शिवलोकमेति॥
यह अंतिम पंक्ति बताती है कि जो भक्त इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे सौभाग्य, दीर्घायु और जीवन के अंत में शिवलोक की प्राप्ति होती है। यह भक्त को मोक्ष की ओर ले जाता है, जहां उसे शिव और पार्वती के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
शिव-पार्वती स्तोत्र का आध्यात्मिक महत्त्व
शिव और पार्वती की भक्ति से मोक्ष की प्राप्ति
इस शिव-पार्वती स्तोत्र का न केवल धार्मिक, बल्कि गहरा आध्यात्मिक महत्त्व है। हर श्लोक में शिव और पार्वती के विभिन्न रूपों की स्तुति की गई है, जो कि केवल देवताओं के बाहरी स्वरूप को ही नहीं, बल्कि उनके आंतरिक गुणों, शक्तियों और ब्रह्मांडीय महिमा को भी प्रकट करता है। भक्त के जीवन में शिव और पार्वती की उपासना से उसे सांसारिक कष्टों से मुक्ति और आत्मिक उन्नति मिलती है। शिव को संहारक और पार्वती को सृजनकर्ता के रूप में देखने का अर्थ है कि जीवन और मृत्यु का चक्र उनके अधीन है। जब कोई भक्त इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करता है, तो उसे जीवन में कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शिव और पार्वती का संतुलन: प्रकृति और पुरुष का संगम
शिव और पार्वती के विभिन्न रूपों को इस स्तोत्र में दर्शाया गया है, जिनमें से कुछ विशेष रूप से सृजन और विनाश, शक्ति और सौम्यता के अद्वितीय संतुलन को दर्शाते हैं। भगवान शिव, जो तपस्वी और संहारक हैं, उनकी ऊर्जा स्थिर और आक्रामक मानी जाती है। वहीं माता पार्वती सृजन की देवी हैं, जिनका स्वरूप कोमल और मातृत्व से भरा हुआ है। इस प्रकार, शिव और पार्वती का युगल रूप संपूर्ण सृष्टि के संतुलन का प्रतीक है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त इस संतुलन को अपने जीवन में स्थापित कर सकता है, जिससे उसे मानसिक और आत्मिक शांति मिलती है।
स्तोत्र के हर श्लोक की व्याख्या
भगवान शिव और माता पार्वती का अद्वितीय स्थान
इस स्तोत्र के हर श्लोक में शिव और पार्वती के स्वरूप और गुणों का विस्तृत वर्णन किया गया है। उदाहरण के लिए, पहले श्लोक में शिव-पार्वती को नवयौवन युक्त बताया गया है, जो उनकी सदा युवा रहने वाली और अनंत ऊर्जा का प्रतीक है। इसी प्रकार, दूसरे श्लोक में उनकी पूजा का महत्त्व बताया गया है, जहां विष्णु और अन्य देवताओं ने भी उनके चरणों की पूजा की है। यह उनके महत्त्व और स्थान की उच्चता को दर्शाता है।
शिव-पार्वती की पूजा का प्रभाव
शिव और पार्वती की पूजा करने से भक्त को भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। उनकी कृपा से भक्त के जीवन से सभी प्रकार के संकट दूर हो जाते हैं, और उसे आत्मिक शांति और मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से न केवल व्यक्ति के कष्टों का निवारण होता है, बल्कि उसे आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
भगवान शिव के तीन नेत्र और उनकी शक्ति
भगवान शिव के तीन नेत्रों का उल्लेख कई स्थानों पर किया गया है, जो उनकी त्रिकालदर्शिता और अनंत शक्ति का प्रतीक हैं। उनका तीसरा नेत्र अग्नि का प्रतीक है, जो संसार की तमाम बुराइयों को जलाकर समाप्त कर देता है। शिव के ये तीन नेत्र भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता होने का संकेत देते हैं।
पार्वती के सौम्य और कल्याणकारी स्वरूप का वर्णन
माता पार्वती के सौम्य रूप की भी स्तुति की गई है। वे सदा ही शांति और कल्याण का प्रतीक हैं। उनका चेहरा पूर्णिमा के चंद्रमा के समान चमकता है, जो भक्तों को मानसिक शांति प्रदान करता है। पार्वती का रूप उनके मातृत्व, सृजन और प्रेम का प्रतीक है।
शिव-पार्वती स्तोत्र का जीवन में महत्त्व
जीवन के संकटों से मुक्ति का उपाय
इस स्तोत्र का पाठ भक्तों के जीवन में आने वाली समस्याओं और संकटों को दूर करता है। शिव, जो संहारक हैं, वे सभी प्रकार के अशुभ प्रभावों का नाश करते हैं। पार्वती, जो सृजन की देवी हैं, वे जीवन में सुख-समृद्धि का संचार करती हैं। इस स्तोत्र के हर श्लोक में भक्तों को इन दोनों शक्तियों की एकता और महत्त्व समझाया गया है।
शिव-पार्वती का आराध्य स्वरूप
शिव और पार्वती की उपासना न केवल भौतिक जीवन में, बल्कि आध्यात्मिक जीवन में भी आवश्यक है। उनकी कृपा से भक्त को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। शिव की आराधना से आत्मिक शक्ति और स्थिरता प्राप्त होती है, जबकि पार्वती की आराधना से मन की शांति और सुख मिलता है।