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श्याम को जिसने चाहा उसी भक्त की झोलियाँ भर गई देखते देखते – Shyam Ko Jisne Chaha Usi Bhakt Ki Jholiyan Bhar Gayi Dekhte Dekhte – Hinduism FAQ

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  • – यह कविता भगवान श्याम (कृष्ण) की भक्ति और उनकी कृपा पर आधारित है, जो भक्तों के जीवन में चमत्कारिक बदलाव लाती है।
  • – जो भी सच्चे दिल से श्याम को चाहता है, उसकी झोली (जीवन) भर जाती है और उसकी गरीबी दूर हो जाती है।
  • – कविता में सुदामा, नरसी, मीरा जैसे भक्तों के उदाहरण दिए गए हैं, जिनकी भक्ति से उनके जीवन में अद्भुत परिवर्तन हुए।
  • – श्याम की भक्ति से न केवल व्यक्तिगत जीवन सुधरता है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक समस्याएं भी हल हो जाती हैं।
  • – कवि ने अपने शब्दों में भक्ति की शक्ति और भगवान की दया को सरल और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है।
  • – स्वर मोहित चौहान का है, जो इस कविता को और भी भावपूर्ण बनाता है।

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श्याम को जिसने चाहा,
उसी भक्त की,
झोलियाँ भर गई देखते देखते।

तर्ज – देखते देखते।



दोहा – जिसने तुमको दिल से पुकारा,

तुमने उसका जीवन संवारा,
मैं भी तुमको आज पुकारूँ,
आकर मुझको दे दो सहारा।

श्याम को जिसने चाहा,
उसी भक्त की,
झोलियाँ भर गई देखते देखते,
दीन कमजोर निर्धन सुदामा की भी,
कोठियाँ बन गई देखते देखते।।



एक नरसी हुआ था भगत श्याम का,

नाम प्यारा लगा था उसे श्याम का,
नरसी पागल हुआ श्याम की चाह में,
श्याम बहतैया बने पुत्र के ब्याह में,
पुरे गाँव के हर एक परिवार में,
हुंडिया बंट गई देखते देखते।
श्याम कों जिसने चाहा,
उसी भक्त की,
झोलियाँ भर गई देखते देखते,
दीन कमजोर निर्धन सुदामा की भी,
कोठियाँ बन गई देखते देखते।।



जब मीरा हुई श्याम की प्रेयशी,

सारी दुनिया ने उनकी उड़ाई हंसी,
जहर पिने की जब जान पर आ पड़ी,
श्याम ने उसको अम्रत किया उस घडी,
श्याम के नाम से मीरा बाई की भी,
जिंदगी बच गई देखते देखते।
श्याम कों जिसने चाहा,
उसी भक्त की,
झोलियाँ भर गई देखते देखते,
दीन कमजोर निर्धन सुदामा की भी,
कोठियाँ बन गई देखते देखते।।

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‘अनुज”मोहित’ लगा लो लगन श्याम से,

कौन वाकिफ नही इनके अंजाम से,
बंद माता पिता इनके जब जेल में,
मुक्त उनको किया खेल ही खेल में,
राजा नारी कहे उनकी चाबी बिना,
बेड़िया खुल गई देखते देखते।
श्याम कों जिसने चाहा,
उसी भक्त की,
झोलियाँ भर गई देखते देखते,
दीन कमजोर निर्धन सुदामा की भी,
कोठियाँ बन गई देखते देखते।।



श्याम को जिसने चाहा,

उसी भक्त की,
झोलियाँ भर गई देखते देखते,
दीन कमजोर निर्धन सुदामा की भी,
कोठियाँ बन गई देखते देखते।।

स्वर – मोहित चौहान।


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