- – यह गीत भगवान कृष्ण (श्याम कन्हाई) की स्तुति और भक्ति में लिखा गया है, जिसमें भक्त अपनी दीवानगी और प्रेम व्यक्त करती है।
- – गीत में भक्त कहती है कि उसने भगवान की महिमा सुनी है और वह भी उनकी शरण में आई है।
- – भक्त स्वीकार करती है कि वह जप-तप या पूजा में पारंगत नहीं है, लेकिन उसका प्रेम और भक्ति सच्ची है।
- – गीत में मीरा और अन्य भक्तों की भक्ति का उल्लेख है, परन्तु भक्त अपने अनोखे प्रेम और लगाव को व्यक्त करती है।
- – यह गीत भावपूर्ण और सरल भाषा में भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण और श्रद्धा को दर्शाता है।

सुन लो श्याम कन्हाई,
दीवानी तेरे दर पे है आई,
दर पे है आई, कान्हा,
दर पे है आई,
दर पे है आई, कान्हा,
दर पे है आई,
कर लो मेरी भी सुनाई,
दीवानी तेरे दर पे है आई।।
तर्ज – लल्ला की सुन के मैं आई।
मैंने सुनी है तेरी जग में बड़ाई,
मैंने सुनी है तेरी जग में बड़ाई,
करते हो तुम कान्हा सबकी सहाई,
करते हो तुम कान्हा सबकी सहाई,
मैंने भी अरज लगाई,
दीवानी तेरे दर पे है आई।।
मैं नही जानू कान्हा जप तप पूजा,
मैं नही जानू कान्हा जप तप पूजा,
तेरे सिवा मेरा कोई नही दूजा,
तेरे सिवा मेरा कोई नही दूजा,
तुम से ही मैंने लौ लगाई,
दीवानी तेरे दर पे है आई।।
मैं नही कान्हा तेरी कर्मा बाई,
मैं नही कान्हा तेरी कर्मा बाई,
ना ही मीरा जैसी प्रीत रचाई,
ना ही मीरा जैसी प्रीत रचाई,
कहते रवि छवि भाई,
दीवानी तेरे दर पे है आई।।
सुन लो श्याम कन्हाई,
दीवानी तेरे दर पे है आई,
दर पे है आई, कान्हा,
दर पे है आई,
दर पे है आई, कान्हा,
दर पे है आई,
कर लो मेरी भी सुनाई,
दीवानी तेरे दर पे है आई।।
स्वर – तृप्ति जी शाक्या।
