- – गीत में भजन सुनने और उसके भाव को समझने की अपील की गई है, चाहे सुरताल सही हो या न हो।
- – गीतकार अपनी कृपा और नसीब के लिए आभार व्यक्त करता है, जो उसे भजन गाने का अवसर देता है।
- – मन में उठ रहे सवालों और जज्बातों को गीत के माध्यम से व्यक्त करने की कोशिश की गई है।
- – अपने स्तर और क्षमता को समझते हुए भी भजन गाने का जुनून और समर्पण दिखाया गया है।
- – गीत में अनिश्चितता और भविष्य की अनजान स्थिति को स्वीकार करते हुए वर्तमान में भजन सुनने की महत्ता बताई गई है।

सुनले भजन मेरे भले,
सुरताल हो ना हो,
किसको खबर की कल तेरा,
ये लाल हो ना हो,
सुनले भजन मेरे भलें,
सुरताल हो ना हो,
किसको खबर की कल तेरा,
ये लाल हो ना हो,
सुनले भजन मेरे भलें।।
तर्ज – लग जा गले की फिर।
तेरी कृपा से ही मुझे,
दरबार ये मिला,
मेरे नसीब से चला,
बरसो ये सिलसिला,
किस्मत मेरी ऐसी ही तो,
हर साल हो ना हो,
किसको खबर की कल तेरा,
ये लाल हो ना हो,
सुनले भजन मेरे भलें।।
मन में उठे सवाल है,
कैसे दबाऊं मैं,
दिल के मेरे जज्बात को,
गा के सुनाऊँ मैं,
शायद ये दिल में फिर कोई,
सवाल हो ना हो,
किसको खबर की कल तेरा,
ये लाल हो ना हो,
सुनले भजन मेरे भलें।।
मेरी तो है औकात क्या,
मुझसे बड़े बड़े,
गाते हुए भजन तेरा,
दुनिया से चल पड़े,
‘सोनू’ मेरा भी कल वही,
हाल हो ना हो,
किसको खबर की कल तेरा,
ये लाल हो ना हो,
सुनले भजन मेरे भलें।।
सुनले भजन मेरे भले,
सुरताल हो ना हो,
किसको खबर की कल तेरा,
ये लाल हो ना हो,
सुनले भजन मेरे भलें,
सुरताल हो ना हो,
किसको खबर की कल तेरा,
ये लाल हो ना हो,
सुनले भजन मेरे भलें।।
स्वर – सौरभ मधुकर।
