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स्वामीनारायण आरती in Hindi/Sanskrit

जय स्वामीनारायण, जय अक्षरपुरुषोत्तम,
अक्षरपुरुषोत्तम जय, दर्शन सर्वोत्तम
जय स्वामीनारायण

मुक्त अनंत सुपुजित, सुंदर साकारम्,
सर्वोपरी करुणाकर, मानव तनुधारम्
जय स्वामीनारायण

पुरूषोत्तम परब्रह्म, श्रीहरि सहजानन्द,
अक्षरब्रह्म अनादि, गुणातीतानंद
जय स्वामीनारायण

प्रकट सदा सर्वकर्ता, परम मुक्तिदाता,
धर्म एकान्तिक स्थापक, भक्ति परित्राता
जय स्वामीनारायण

दशभाव दिव्यता सह, ब्रह्मरूपे प्रीति,
सुह्राद्भाव अलौकिक, स्थापित शुभ रीति
जय स्वामीनारायण

धन्य धन्य मम जीवन, तव शरणे सुफलम्,
यज्ञपुरुष प्रवर्तित, सिद्धांतम् सुखदम्
जय स्वामीनारायण,

जय स्वामीनारायण, जय अक्षरपुरुषोत्तम,
अक्षरपुरुषोत्तम जय, दर्शन सर्वोत्तम
जय स्वामीनारायण

Swaminarayan Aarti in English

Jai Swaminarayan, Jai AksharPurushottam,
AksharPurushottam Jai, Darshan Sarvottam
Jai Swaminarayan

Mukt Anant Supujit, Sundar Sakaram,
Sarvopari Karunakara, Manav Tanudharam
Jai Swaminarayan

Purushottam Parabrahma, Shri Hari Sahajanand,
Aksharbrahma Anadi, Gunatit Anand
Jai Swaminarayan

Prakat Sada Sarvakarta, Param Muktidata,
Dharma Ekantik Sthapak, Bhakti Paritrata
Jai Swaminarayan

Dashbhav Divyata Sah, Brahmarupe Preeti,
Suhradbhaav Alaukik, Sthapit Shubh Reeti
Jai Swaminarayan

Dhanya Dhanya Mam Jeevan, Tav Sharane Sufalam,
Yajnapurush Pravartit, Siddhantam Sukhadam
Jai Swaminarayan

Jai Swaminarayan, Jai AksharPurushottam,
AksharPurushottam Jai, Darshan Sarvottam
Jai Swaminarayan

स्वामीनारायण आरती PDF Download

स्वामीनारायण आरती का अर्थ

इस स्तुति में श्री स्वामीनारायण संप्रदाय के आदर्शों और आस्था का सुंदर चित्रण है। इसमें भगवान स्वामीनारायण के दिव्य स्वरूप, उनके महान गुणों, और मानव जीवन में उनके मार्गदर्शन की स्तुति की गई है। आइए प्रत्येक पंक्ति के गहरे अर्थ को समझते हैं।

जय स्वामीनारायण, जय अक्षरपुरुषोत्तम

यह पंक्ति भगवान स्वामीनारायण और उनके परमधाम “अक्षरपुरुषोत्तम” की जय-जयकार करती है। अक्षरपुरुषोत्तम सिद्धांत में “अक्षर” को शाश्वत परमात्मा और “पुरुषोत्तम” को परमेश्वर के सर्वोच्च रूप के रूप में देखा जाता है। इसका अर्थ है:

  • जय स्वामीनारायण – भगवान स्वामीनारायण की महिमा और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करना।
  • जय अक्षरपुरुषोत्तम – भगवान स्वामीनारायण के परमधाम “अक्षरपुरुषोत्तम” को भी प्रणाम।

अक्षरपुरुषोत्तम जय, दर्शन सर्वोत्तम

यहाँ भगवान के दर्शन और उनके दिव्य स्वरूप की महिमा की जाती है, जो भक्तों के लिए सर्वोच्च अनुभव है।

  • अक्षरपुरुषोत्तम जय – अक्षरपुरुषोत्तम की महिमा, जो परमधाम का प्रतीक है।
  • दर्शन सर्वोत्तम – भगवान के दर्शन को जीवन का सर्वोत्तम अनुभव माना गया है।

मुक्त अनंत सुपुजित, सुंदर साकारम्

यहाँ भगवान की अनंत मुक्ति का वर्णन है, जो अनगिनत मुक्त आत्माओं द्वारा पूजित हैं और सुंदर साकार रूप में प्रकट होते हैं।

  • मुक्त अनंत सुपुजित – अनगिनत मुक्त आत्माओं द्वारा पूजित भगवान।
  • सुंदर साकारम् – भगवान का सुंदर और आकर्षक साकार रूप।

सर्वोपरी करुणाकर, मानव तनुधारम्

इसमें भगवान स्वामीनारायण को सबसे अधिक करुणा रखने वाले बताया गया है, जिन्होंने मानव शरीर धारण किया।

  • सर्वोपरी करुणाकर – भगवान स्वामीनारायण की करुणा का कोई सानी नहीं है।
  • मानव तनुधारम् – मानव शरीर में अवतरित हुए भगवान, जिन्होंने मानवता को राह दिखाई।

पुरूषोत्तम परब्रह्म, श्रीहरि सहजानन्द

यह पंक्ति भगवान के सर्वोच्च ब्रह्म रूप “पुरुषोत्तम” के रूप में उनकी महिमा का वर्णन करती है, जिन्हें श्रीहरि सहजानंद भी कहा जाता है।

  • पुरूषोत्तम परब्रह्म – सर्वोच्च ब्रह्मरूप में पुरुषोत्तम भगवान।
  • श्रीहरि सहजानन्द – भगवान का वह रूप जो सहज, सरल, और सभी के हितकारी हैं।

अक्षरब्रह्म अनादि, गुणातीतानंद

यह पंक्ति भगवान के शाश्वत ब्रह्म और गुणों से परे स्वरूप की प्रशंसा करती है।

  • अक्षरब्रह्म अनादि – भगवान स्वामीनारायण शाश्वत और अनादि ब्रह्म हैं।
  • गुणातीतानंद – वे सभी गुणों से परे हैं, फिर भी आनंदमय स्वरूप में प्रकट होते हैं।

प्रकट सदा सर्वकर्ता, परम मुक्तिदाता

इस पंक्ति में भगवान की उस शक्ति का वर्णन है कि वे सर्वव्यापक और सदा प्रकट रूप में उपस्थित हैं और परम मुक्तिदाता हैं।

  • प्रकट सदा सर्वकर्ता – भगवान सभी कार्यों के कर्ता हैं और सदा प्रकट रहते हैं।
  • परम मुक्तिदाता – भगवान ही परम मोक्ष देने वाले हैं।

धर्म एकान्तिक स्थापक, भक्ति परित्राता

भगवान को धर्म और भक्ति के रक्षक और स्थापन करने वाले के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

  • धर्म एकान्तिक स्थापक – भगवान ने एकल धर्म के सिद्धांत की स्थापना की।
  • भक्ति परित्राता – वे भक्तों के रक्षक और भक्ति के संवर्धक हैं।

दशभाव दिव्यता सह, ब्रह्मरूपे प्रीति

यहाँ भगवान के दिव्य दश भावों की चर्चा की गई है, जो उनके ब्रह्मरूप में प्रीति का प्रदर्शन करते हैं।

  • दशभाव दिव्यता सह – भगवान के 10 दिव्य भाव, जो उनकी ब्रह्म शक्ति का परिचायक हैं।
  • ब्रह्मरूपे प्रीति – उनके ब्रह्म रूप में प्रेम की विशिष्टता।

सुह्राद्भाव अलौकिक, स्थापित शुभ रीति

भगवान का अलौकिक मित्रता भाव और शुभ मार्गदर्शन की बात की गई है।

  • सुह्राद्भाव अलौकिक – भगवान का स्नेहपूर्ण मित्रता का भाव।
  • स्थापित शुभ रीति – भगवान ने शुभ और सच्चे आचरण को स्थापित किया है।

धन्य धन्य मम जीवन, तव शरणे सुफलम्

यहाँ भक्त स्वयं को भगवान की शरण में धन्य मानते हैं, जहाँ उन्हें सच्चा सुख मिलता है।

  • धन्य धन्य मम जीवन – भगवान की कृपा से जीवन धन्य है।
  • तव शरणे सुफलम् – भगवान की शरण में जीवन का सच्चा फल मिलता है।

यज्ञपुरुष प्रवर्तित, सिद्धांतम् सुखदम्

यह पंक्ति भगवान को यज्ञपुरुष के रूप में संबोधित करती है, जिन्होंने सुख देने वाले सिद्धांत स्थापित किए।

  • यज्ञपुरुष प्रवर्तित – भगवान यज्ञ पुरुष हैं और उनकी प्रेरणा से ही सभी धार्मिक कार्य होते हैं।
  • सिद्धांतम् सुखदम् – उनके सिद्धांत सभी के लिए सुखदायी हैं।

जय स्वामीनारायण, जय अक्षरपुरुषोत्तम

यह अंतिम पंक्ति पुनः भगवान स्वामीनारायण और अक्षरपुरुषोत्तम की महिमा गाते हुए इस स्तुति का समापन करती है।


इस प्रकार, यह स्तुति भगवान स्वामीनारायण के महान कार्यों, उनके प्रेम और भक्तों के प्रति उनके दयालु व्यवहार का विवरण है। उनके प्रति श्रद्धा और समर्पण भाव का यह अद्भुत प्रदर्शन है।

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