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तन तम्बूरा, तार मन,
अद्भुत है ये साज ।
हरी के कर से बज रहा,
हरी ही है आवाज ।तन के तम्बूरे में दो,
सांसो की तार बोले ।
जय सिया राम राम,
जय राधे श्याम श्याम ।

तन के तम्बूरे में दो,
सांसो की तार बोले ।
जय सिया राम राम,
जय राधे श्याम श्याम ।

अब तो इस मन के मंदिर में,
प्रभु का हुआ बसेरा ।
मगन हुआ मन मेरा,
छूटा जनम जनम का फेरा ।
मन की मुरलिया में,
सुर का सिंगार बोले ।
जय सिया राम राम,
जय राधे श्याम श्याम ।

तन के तम्बूरे में दो,
सांसो की तार बोले ।
जय सिया राम राम,
जय राधे श्याम श्याम ।

लगन लगी लीला धारी से,
जगी रे जगमग ज्योति ।
राम नाम का हीरा पाया,
श्याम नाम का मोती ।
प्यासी दो अंखियो में,
आंसुओ के धार बोले ।
जय सिया राम राम,
जय राधे श्याम श्याम ।

तन के तम्बूरे में दो,
सांसो की तार बोले ।
जय सिया राम राम,
जय राधे श्याम श्याम ।

तन के तम्बूरे में दो,
सांसो की तार बोले ।
जय सिया राम राम,
जय राधे श्याम श्याम ।

तन के तम्बूरे में, दो सांसों की तार बोले – अर्थ एवं भावार्थ

यह भजन केवल एक गीत नहीं है, बल्कि हमारे अस्तित्व, सांसारिक जीवन और आध्यात्मिक यात्रा की गहराई को व्यक्त करता है। इसमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर मानव जीवन के अर्थ को समझाने का प्रयास किया गया है। आइए इसे गहराई से विश्लेषित करें।


तन तम्बूरा, तार मन, अद्भुत है ये साज

गहराई से अर्थ:
मनुष्य का शरीर तम्बूरे की तरह है – यह एक साधन (यंत्र) है जो भक्ति और साधना का माध्यम बन सकता है। इसमें मन तार के समान है, जो सही रूप से बजने पर दिव्य संगीत उत्पन्न करता है।

तम्बूरा का प्रतीकात्मक महत्व:

  1. तम्बूरा (शरीर):
    • तम्बूरा स्वयं कोई ध्वनि नहीं उत्पन्न करता; उसे बजाने वाले की आवश्यकता होती है।
    • इसी प्रकार, हमारा शरीर तब तक निष्क्रिय है जब तक ईश्वर रूपी वादक इसे सक्रिय नहीं करते।
  2. तार (मन):
    • तार को सही से बांधना (तुन करना) आवश्यक है; यदि यह ढीला या कसाव में हो, तो संगीत विकृत हो जाता है।
    • इसी तरह, हमारा मन भी यदि विकारों (काम, क्रोध, लोभ) से ग्रसित हो, तो यह ईश्वर की भक्ति के लिए अयोग्य हो जाता है।
  3. साज का अद्भुत होना:
    • यह दर्शाता है कि ईश्वर ने मनुष्य को कितना उत्कृष्ट बनाया है।
    • हर सांस, हर क्रिया, और हर भावना में ईश्वर की दिव्यता का वास है।

आध्यात्मिक शिक्षा:
मनुष्य के शरीर और मन को सही मार्ग पर चलाने के लिए भक्ति और साधना का अभ्यास करना चाहिए।


हरी के कर से बज रहा, हरी ही है आवाज

गहराई से अर्थ:
यह शरीर और मन का संगीत केवल तब संभव है जब इसे भगवान स्वयं बजाते हैं। जो ध्वनि निकलती है, वह भी ईश्वर की ही उपस्थिति को दर्शाती है।

ईश्वर की सर्वव्यापकता:

  1. हरी के कर (हाथ):
    • भगवान हमें जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं।
    • हमारी हर क्रिया, हर सांस उन्हीं के द्वारा नियंत्रित है।
  2. हरी ही है आवाज:
    • जो कुछ भी हमारे भीतर या बाहर होता है, वह ईश्वर की इच्छा का परिणाम है।
    • यह आवाज हमें हमारे वास्तविक उद्देश्य की ओर निर्देशित करती है।

आध्यात्मिक शिक्षा:
जीवन में जो भी सकारात्मकता, प्रगति, या ऊर्जा है, वह ईश्वर की कृपा से है। हमें अपनी अहंकारपूर्ण सोच को त्याग कर उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।


तन के तम्बूरे में, दो सांसो की तार बोले

गहराई से अर्थ:
शरीर रूपी तम्बूरे के तार हमारी सांसें हैं। यह सांसें ईश्वर के आदेश पर चलती हैं और हमें जीवन प्रदान करती हैं।

सांसों का महत्व:

  1. सांसें – जीवन का आधार:
    • सांस हमारे जीवन का मूल तत्व है।
    • यह भगवान द्वारा दिया गया एक अटूट उपहार है।
  2. सांसों के तार:
    • सांसें दो प्रकार की हैं – आवागमन (प्राण और अपान)
    • इनका निरंतर प्रवाह भगवान की उपस्थिति का प्रतीक है।
  3. संगीत का माध्यम:
    • यदि सांसें नियमित और शांत हों, तो यह ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रतीक बनती हैं।
    • सांसों के माध्यम से ध्यान, जप, और प्रार्थना की गहराई बढ़ाई जा सकती है।

आध्यात्मिक शिक्षा:
अपनी सांसों पर ध्यान देना और उन्हें नियंत्रित करना ही ध्यान और समाधि का पहला कदम है।


जय सिया राम राम, जय राधे श्याम श्याम

गहराई से अर्थ:
यह केवल भगवान के नामों का उच्चारण नहीं है, बल्कि यह ईश्वर के गुणों और उनकी लीलाओं की महिमा है।

राम और श्याम के प्रतीकात्मक अर्थ:

  1. जय सिया राम:
    • राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं; वे धर्म, कर्तव्य और सच्चाई के प्रतीक हैं।
    • उनकी पत्नी सीता, समर्पण और शक्ति का प्रतीक हैं।
  2. जय राधे श्याम:
    • श्याम (कृष्ण) प्रेम और माधुर्य के प्रतीक हैं।
    • राधा भक्ति और दिव्यता की मूर्ति हैं।

नाम जप की शक्ति:

  • भगवान के नाम का जप करने से मन शुद्ध होता है।
  • यह सांसारिक मोह को समाप्त कर हमें ईश्वर से जोड़ता है।

आध्यात्मिक शिक्षा:
भगवान के नामों का उच्चारण न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह आत्मा को जागृत करने का माध्यम भी है।


अब तो इस मन के मंदिर में, प्रभु का हुआ बसेरा

गहराई से अर्थ:
जब मन को ईश्वर के प्रति समर्पित किया जाता है, तो वह भगवान का निवास बन जाता है।

मन को मंदिर बनाने की प्रक्रिया:

  1. मोह से मुक्त होना:
    • सांसारिक वस्तुओं से लगाव को त्यागना।
    • मन को स्वार्थ, क्रोध और लोभ से शुद्ध करना।
  2. प्रभु का प्रवेश:
    • भगवान तभी हमारे मन में प्रवेश करते हैं, जब वह पूर्णतः शुद्ध हो।
    • ध्यान और भक्ति इस प्रक्रिया को सशक्त बनाते हैं।

आध्यात्मिक शिक्षा:
मनुष्य का मन ही ईश्वर का वास्तविक निवास स्थान है। इसे स्वच्छ और निर्मल बनाए रखना आवश्यक है।


मगन हुआ मन मेरा, छूटा जनम जनम का फेरा

गहराई से अर्थ:
जब मन ईश्वर की भक्ति में तल्लीन हो जाता है, तो उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।

जन्म-मरण चक्र का तात्पर्य:

  1. माया का प्रभाव:
    • माया (सांसारिक मोह) के कारण आत्मा को बार-बार जन्म लेना पड़ता है।
    • यह भक्ति ही है जो आत्मा को इस चक्र से बाहर निकाल सकती है।
  2. मुक्ति का मार्ग:
    • जब मन को ईश्वर के प्रति समर्पित किया जाता है, तो इसे मोक्ष प्राप्त होता है।
    • यह भजन इसी अवस्था को दर्शाता है।

आध्यात्मिक शिक्षा:
ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और उनकी कृपा ही हमें इस संसार के बंधन से मुक्त कर सकती है।


मन की मुरलिया में, सुर का सिंगार बोले

गहराई से अर्थ:
मन रूपी बांसुरी से भक्ति का संगीत तभी निकलता है, जब उसमें भगवान का सुर हो।

बांसुरी और मन का प्रतीक:

  1. बांसुरी का खालीपन:
    • बांसुरी जब खाली होती है, तभी उसमें से संगीत निकलता है।
    • हमारा मन भी तभी ईश्वर की ओर प्रवाहित होता है, जब वह सांसारिक इच्छाओं से खाली हो।
  2. सुर का सिंगार:
    • सुर तभी सुंदर लगता है, जब इसे सही धुन में बजाया जाए।
    • इसी प्रकार, मन को सही दिशा में साधना पड़ता है।

आध्यात्मिक शिक्षा:
हमारा मन तब तक व्यर्थ है, जब तक वह ईश्वर के प्रति समर्पित नहीं होता।


निष्कर्ष

यह भजन केवल एक आध्यात्मिक गीत नहीं है, बल्कि यह हमें अपने शरीर, मन और आत्मा के वास्तविक उद्देश्य को समझने का मार्ग दिखाता है। इसमें सांसों, मन और शरीर को ईश्वर की ओर निर्देशित करने का महत्व बताया गया है।

यदि आप और गहराई से किसी बिंदु पर चर्चा करना चाहें, तो अवश्य बताएं।

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