- – यह कविता प्रभु से प्रार्थना करती है कि वे अपने भक्तों का मार्गदर्शन करें और उनका सहारा बनें।
- – भक्तों को भटकाव और कठिनाइयों से बचाने की विनती की गई है।
- – कविता में भक्तों की भक्ति और उनकी आशाओं को महत्व दिया गया है।
- – यह याद दिलाया गया है कि प्रभु ही भक्तों के उद्धारकर्ता और सहारा हैं।
- – पिछले भक्तों और मसीहों का उदाहरण देते हुए, प्रभु से दया और सहायता की गुहार लगाई गई है।
- – अंत में, प्रभु के मार्ग पर चलने वाले मुसाफिरों के लिए दामन थामने की अपील की गई है।

तेरे रस्ते के मुसाफिर है प्रभु,
थाम लो दामन हमारा हे प्रभु,
तेरे रस्ते के मुसाफिर है प्रभु।।
तर्ज – दिल के अरमा आंसुओ में।
भटको को रस्ता दिखाते आए हो,
दिन बंधू नाम तभी तो पाए हो,
आप इसमें हो खिलाडी हे प्रभु,
थाम लो दामन हमारा हे प्रभु,
थाम लो दामन हमारा हे प्रभु,
तेरे रस्ते के मुसाफिर है प्रभु।।
अपने भक्तो को यूँ ना बिसराइये,
दास पर अपने तरस कुछ खाइये,
भक्तो से ही आप कहलाते प्रभु,
थाम लो दामन हमारा हे प्रभु,
थाम लो दामन हमारा हे प्रभु,
तेरे रस्ते के मुसाफिर है प्रभु।।
जिनके माझी बन गए वो कौन थे,
भव से जिनको पार तारा कौन थे,
वो भी तेरे दीवाने थे प्रभु,
थाम लो दामन हमारा हे प्रभु,
थाम लो दामन हमारा हे प्रभु,
तेरे रस्ते के मुसाफिर है प्रभु।।
तेरी मर्जी से चले तेरी डगर,
जोर दिखलाता है फिर भी ये भवर,
फर्ज अपना तुम निभा दो हे प्रभु,
थाम लो दामन हमारा हे प्रभु,
थाम लो दामन हमारा हे प्रभु,
तेरे रस्ते के मुसाफिर है प्रभु।।
तेरे रस्ते के मुसाफिर है प्रभु,
थाम लो दामन हमारा हे प्रभु,
तेरे रस्ते के मुसाफिर है प्रभु।।
