- – भजन में सतगुरू की महिमा और उनकी बेमिसाल कृपा का वर्णन किया गया है।
- – भक्ति भाव से भरे इस गीत में आत्मा की भटकन और सतगुरू के प्रति समर्पण की भावना व्यक्त की गई है।
- – सतगुरू की दया और करुणा से जीवन में सुख और निहालता प्राप्त होने की बात कही गई है।
- – भजन में प्रभु से मन को अपने रंग में रंगने और शरण लेने की प्रार्थना की गई है।
- – लेखक शिवनारायण वर्मा ने इस भजन के माध्यम से सतगुरू की महिमा का गुणगान किया है।
तेरी गाऊँ ऐ सतगुरू,
महिमा मै क्या,
मै हूँ भटका हुआ,
एक दास तेरा,
कुछ कहूँ है कहाँ,
ये मजाल मेरी,
महिमा है सतगुरू,
बेमिशाल तेरी।।
तर्ज – खुश रहे तू सदा ये दुआ।
हर तरफ हर जगह,
सतगुरू रुतबा तेरा,हो..
हर डगर हर नज़र,
मे है जलवा तेरा,
महिमा गाऊँ मै क्या,
दीन दयाल तेरी,
कुछ कहूँ है कहाँ,
ये मजाल मेरी,
महिमा है सतगुरू,
बेमिशाल तेरी।।
तुमने करके क़रम,
मुझको तन ये दिया,हो..
उसपे करके दया मुझको,
शरण ले लिया,
हो गई जिदँगी,
ये निहाल मेरी,
कुछ कहूँ है कहाँ,
ये मजाल मेरी,
महिमा है सतगुरू,
बेमिशाल तेरी।।
रँग दो मेरी चुनर,
अपने रँग मे प्रभू.हो..,
आ के बस जाओ मेरे,
मन मे प्रभू,
कर दो चूनर मेरी,
लालो लाल प्रभू,
कुछ कहूँ है कहाँ,
ये मजाल मेरी,
महिमा है सतगुरू,
बेमिशाल तेरी।।
तेरी गाऊँ ऐ सतगुरू,
महिमा मै क्या,
मै हूँ भटका हुआ,
एक दास तेरा,
कुछ कहूँ है कहाँ,
ये मजाल मेरी,
महिमा है सतगुरू,
बेमिशाल तेरी।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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