- – यह कविता सांवरिया (श्री कृष्ण) के प्रति गहरे प्रेम और भक्ति को दर्शाती है।
- – मोर की छड़ी और श्याम हवेली जैसे प्रतीकात्मक चित्रों के माध्यम से कृष्ण की महिमा का वर्णन किया गया है।
- – भावुकता और श्रद्धा से भरे शब्दों में भक्तों की भक्ति और कृष्ण के प्रति समर्पण को उजागर किया गया है।
- – कविता में कृष्ण के रूप, मुकुट, और उनके भक्तों के प्रति प्रेम की भावना को मिठास से प्रस्तुत किया गया है।
- – हर stanza में “म्हाने सांवरो सलोनो, जादुगारो लागे” का दोहराव भक्तिभाव को और गहरा करता है।
- – यह रचना राजस्थानी भाषा और संस्कृति की मिठास और लोकभावनाओं को समेटे हुए है।

थारी मोर की छड़ी को,
फटकारो लागे,
फटकारो लागे,
म्हाने सांवरो सलोनो,
जादुगारो लागे।।
तर्ज – मीठे रस से भरयो री।
मकराणे की श्याम हवेली,
बड़ी अनोखी है अलबेली,
ओ बाबा घडी घडी नाम को,
जयकारो लागे,
जयकारो लागे,
म्हाने सांवरो सलोनो,
जादुगारो लागे।।
सेवकिया सुध बुध बिसरावे,
निरख निरख आंसू ढलकावे,
जाणु म्हारे स्यामी बैठ्यो,
मायत म्हारो लागे,
मायत म्हारो लागे,
म्हाने सांवरो सलोनो,
जादुगारो लागे।।
मोर मुकुट में हीरो चमके,
मुखड़ो थारो दम दम दमके,
थारो भक्ता ने रूप,
घणो प्यारो लागे,
घणो प्यारो लागे,
म्हाने सांवरो सलोनो,
जादुगारो लागे।।
‘हर्ष’ शरण जो हार के आवे,
सांवरियो बिन कंठ लगावे,
बाबो हारोड़या भगत को,
सहारो लागे,
हाँ सहारो लागे,
म्हाने सांवरो सलोनो,
जादुगारो लागे।।
थारी मोर की छड़ी को,
फटकारो लागे,
फटकारो लागे,
म्हाने सांवरो सलोनो,
जादुगारो लागे।।
