- – जीवन क्षणिक और नश्वर है, इसलिए अभिमान त्यागकर खुद की सच्ची पहचान बनानी चाहिए।
- – शरीर को हीरे के समान मूल्यवान बताया गया है, जिसे समझना और सही दिशा में उपयोग करना आवश्यक है।
- – गुरु ने हमें ज्ञान और आभूषण दिए हैं, इसलिए आँखें खोलकर प्रभु का नाम जपना चाहिए।
- – सांसों में रत्न छिपे हैं, इसलिए जीवन को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए और माया से दूर रहना चाहिए।
- – मृत्यु के बाद कोई भी सांसारिक वस्तु साथ नहीं जाती, इसलिए समय रहते भगवान की भक्ति करनी चाहिए।
- – अंत में, जीवन की नश्वरता को समझकर विनम्रता और भक्ति के मार्ग पर चलना सबसे महत्वपूर्ण है।
तू मत कर रे अभिमान,
ये जीवन चार दिन का है,
तू कौन है रे इँसान,
करले रे खुद की जरा पहचान,
ये जीवन चार दिन का है।।
तर्ज – तेरे द्वार खड़ा भगवान।
हीरा सा ये तन है पाया,
पर तू समझ न पाया,
फिर पछिताएगा तू बन्दे,
जल जाए जब काया रे,
जल जाए जब काया,
तू खुद है सकल गुण खान,
करले रे खुद की जरा पहचान,
ये जीवन चार दिन का है।।
हीरे मोती दिए गुरू ने,
अब तो आँखे खोल,
स्वाँस स्वाँस मे रतन जड़ा है,
मत माटी मे रोल रे,
मत माटी मे रोल,
सब छोड़के तू अभिमान,
जपले रे प्यारे प्रभू का नाम,
करले रे खुद की जरा पहचान,
ये जीवन चार दिन का है।।
न कुछ साथ मे आया बन्दे,
न कुछ सँग मे जाए,
आज समय है,
भजले हरि को,
वर्ना फिर पछिताए रे,
वर्ना फिर पछिताए,
इस जग का कुछ सामान,
नही आएगा रे तेरे काम,
करले रे खुद की जरा पहचान,
ये जीवन चार दिन का है।।
तू मत कर रे अभिमान,
ये जीवन चार दिन का है,
तू कौन है रे इँसान,
करले रे खुद की जरा पहचान,
ये जीवन चार दिन का है।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
वीडियो अभी उपलब्ध नहीं।
