धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें
Join Now
- – यह कविता एक भक्त की अपने बाबा (ईश्वर) के प्रति समर्पण और आस्था को दर्शाती है।
- – भक्त अपने बाबा से शरण मांगता है और उनसे मदद एवं मार्गदर्शन की प्रार्थना करता है।
- – कविता में भक्त अपने जीवन की कठिनाइयों और समस्याओं का उल्लेख करता है, और बाबा से उनका समाधान चाहता है।
- – भक्त बाबा की महिमा और उनकी सर्वज्ञता को स्वीकार करता है, जो सब कुछ जानने वाले हैं।
- – भक्त बाबा की सेवा और भक्ति का वचन देता है, और उनके प्रति अपनी सच्ची प्रीत निभाने का संकल्प करता है।
- – यह कविता श्रद्धा, भक्ति, और विश्वास की भावना से ओतप्रोत है, जो आध्यात्मिक शांति की कामना करती है।

तू तो सब जाने रे,
तेरे से क्या छानी रे,
शरण पड्यो हूँ बाबा,
देख मेरे कानी रे।।
वांड के खड्यो हूँ झोली,
खाली को ना जाऊ रे,
टाबरा ने जाके कुणसो,
मुखडो दिखाऊं रे,
धीर तो बँधाऊँ जाके,
दे दे क्यों निशानी रे,
शरण पड्यो हूँ बाबा,
देख मेरे कानी रे।।
मैं तो सुणी हूँ दोनों,
हाथा से लुटावे रे,
दुनिया में बाबा,
लखदातार तू कहावे रे,
काई में बिगड्यो तेरो,
क्यों रे बेईमानी रे,
शरण पड्यो हूँ बाबा,
देख मेरे कानी रे।।
दोनों टेम रोज तेरी,
चाकरी बजास्यु रे,
मेरे घरा आवोगा तो,
ज्योत भी जगास्यु रे,
“लहरी” बोलो साँची झूटी,
प्रीत के निभाणी रे,
शरण पड्यो हूँ बाबा,
देख मेरे कानी रे।।
तू तो सब जाने रे,
तेरे से क्या छानी रे,
शरण पड्यो हूँ बाबा,
देख मेरे कानी रे।।
अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।
