- – जीवन की नश्वरता और क्षणभंगुरता को समझना आवश्यक है, क्योंकि यह “दो दिन की जिंदगी” है जो व्यर्थ बातों में बीत जाती है।
- – गुरु का महत्व अत्यंत है, क्योंकि गुरु ही सच्चा साथी और मार्गदर्शक होता है जो जीवन को सफल बनाने में मदद करता है।
- – संसार में कोई भी स्थायी नहीं है, माता-पिता और परिवार भी अंतिम सहारा नहीं हैं, इसलिए हरि (ईश्वर) की भक्ति ही असली सुख और शांति का मार्ग है।
- – मनुष्य अक्सर अपने ही जाल में फंसकर समय और जीवन दोनों को व्यर्थ गँवाता है, जैसे मकड़ी अपने जाल में फंस जाती है।
- – संतों और गुरुओं की बातों को समझना और उनका अनुसरण करना जीवन को सार्थक और सफल बनाता है।
- – बार-बार गुरु समझाते हैं, परन्तु यदि मनुष्य समझने को तैयार न हो तो जीवन व्यर्थ ही बीत जाता है।
तुझे गुरू कितना समझाए,
पर तेरी समझ न आए,
गुरू बार बार समझाऐ,
तेरी दो दिन की यह जिँदगी,
बातो में बीती जाऐ,
तुझे गुरू कितना समझाये,
पर तेरी समझ न आए।।
तर्ज – हाय हाय ये मजबूरी।
एक गुरु के सिवा जगत में,
कोई नही है अपना,
सँतो ने भी यही कहा है,
भजन बिना जग सपना,
जग सपना, जग सपना,
फिर क्यो जग में उलझ के बन्दे,
जीवन नरक बनाए,
तेरी दो दिन की यह जिँदगी,
बातो में बीती जाऐ,
तुझे गुरू कितना समझाये,
पर तेरी समझ न आए।।
सच्चा साथी सिवा गुरू के,
कोई नजर न आऐ,
मात पिता और कटुम्ब कबीँला,
सँग न तेरे जाए,
न जाए, न जाए,
क्यो न हरि को भज के बन्दे,
जीवन सफल बनाए,
तेरी दो दिन की यह जिँदगी,
बातो में बीती जाऐ,
तुझे गुरू कितना समझाये,
पर तेरी समझ न आए।।
ज्यो मकड़ी खुद जाल मे फँस कर,
अपने प्राण गँवाए,
ऐसे ही यह मानव जग मे,
अपना समय गँवाए,
गँवाए, हाँ गँवाए,
खुद ही उलझा है जग मे तू,
कोई नही उलझाऐ,
तेरी दो दिन की यह जिँदगी,
बातो में बीती जाऐ,
तुझे गुरू कितना समझाये,
पर तेरी समझ न आए।।
तुझे गुरू कितना समझाए,
पर तेरी समझ न आए,
गुरू बार बार समझाऐ,
तेरी दो दिन की यह जिँदगी,
बातो में बीती जाऐ,
तुझे गुरू कितना समझाये,
पर तेरी समझ न आए।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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