तुम से लागी लगन,
ले लो अपनी शरण, पारस प्यारा,
मेटो मेटो जी संकट हमारा ।
निशदिन तुमको जपूँ,
पर से नेह तजूँ, जीवन सारा,
तेरे चरणों में बीत हमारा ॥टेक॥
अश्वसेन के राजदुलारे,
वामा देवी के सुत प्राण प्यारे।
सबसे नेह तोड़ा,
जग से मुँह को मोड़ा,
संयम धारा ॥
मेटो मेटो जी संकट हमारा ॥
इंद्र और धरणेन्द्र भी आए,
देवी पद्मावती मंगल गाए ।
आशा पूरो सदा,
दुःख नहीं पावे कदा,
सेवक थारा ॥
मेटो मेटो जी संकट हमारा ॥
जग के दुःख की तो परवाह नहीं है,
स्वर्ग सुख की भी चाह नहीं है।
मेटो जामन मरण,
होवे ऐसा यतन,
पारस प्यारा ॥
मेटो मेटो जी संकट हमारा ॥
लाखों बार तुम्हें शीश नवाऊँ,
जग के नाथ तुम्हें कैसे पाऊँ ।
‘पंकज’ व्याकुल भया,
दर्शन बिन ये जिया लागे खारा ॥
मेटो मेटो जी संकट हमारा ॥
तुम से लागी लगन,
ले लो अपनी शरण, पारस प्यारा,
मेटो मेटो जी संकट हमारा ।
भजन: तुम से लागी लगन.. पारस प्यारा: भजन का अर्थ
भजन “तुम से लागी लगन” केवल एक भक्ति-गीत नहीं है, बल्कि आत्मा के उस गहन संवाद को दर्शाता है जो परमात्मा के प्रति उसकी अनवरत खोज और समर्पण को प्रकट करता है। अब इसे गहराई से विश्लेषित करते हैं:
तुम से लागी लगन
- भावार्थ:
इस पंक्ति में भक्त कहता है कि उसकी आत्मा अब केवल भगवान पारसनाथ से ही जुड़ चुकी है।- “तुम” यहां परमात्मा का प्रतीक है, जो शाश्वत सत्य और मोक्ष के द्वार हैं।
- “लगी लगन” का अर्थ है, भक्त का मन अब कहीं और विचलित नहीं होता। यह गहरी भक्ति और एकाग्रता को दर्शाता है।
- आध्यात्मिक संकेत:
- आत्मा का परमात्मा से मिलन ही इसका अंतिम उद्देश्य है।
- यह पंक्ति अद्वैत वेदांत के विचारों की ओर इशारा करती है, जिसमें आत्मा और परमात्मा की एकता पर जोर दिया गया है।
ले लो अपनी शरण, पारस प्यारा
- भावार्थ:
भक्त भगवान से अपनी शरण में लेने का अनुरोध करता है।- “शरण” का अर्थ केवल भौतिक सुरक्षा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक मार्गदर्शन और मुक्ति है।
- “पारस प्यारा” यहां भगवान पारसनाथ का उल्लेख करता है, जिन्हें “मोक्ष का दाता” माना जाता है।
- दर्शन और भक्ति का स्वरूप:
- शरणागति (ईश्वर की शरण में जाना) भक्ति का सर्वोच्च रूप है।
- यह गीता के “सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज” की भावना को प्रतिबिंबित करता है।
मेटो मेटो जी संकट हमारा
- भावार्थ:
भक्त भगवान से अपने सभी संकट और समस्याओं को समाप्त करने की प्रार्थना करता है।- “संकट” न केवल भौतिक कठिनाइयों, बल्कि आत्मिक बंधनों का भी प्रतीक है।
- “मेटो” का दोहराव भक्त की गहरी व्याकुलता और समर्पण को दर्शाता है।
- गहरी व्याख्या:
- “संकट” का अर्थ सांसारिक दुखों से कहीं अधिक गहरा है। यह कर्मों के बंधन, आत्मा की अशुद्धियां, और अज्ञानता का भी प्रतीक है।
- भक्त अपनी आत्मा को इन सब से मुक्त करने के लिए भगवान से विनती करता है।
निशदिन तुमको जपूँ, पर से नेह तजूँ
- भावार्थ:
यहां भक्त कहता है कि वह दिन-रात भगवान का स्मरण करता है और संसार की सभी मोह-माया को त्याग चुका है।- “निशदिन” की निरंतरता यह दर्शाती है कि भक्ति एक सतत प्रक्रिया है।
- “पर से नेह तजूँ” का अर्थ है, बाहरी चीजों से मोह खत्म करना।
- आध्यात्मिक दृष्टिकोण:
- यह पंक्ति वैराग्य (सांसारिक इच्छाओं का त्याग) की ओर इशारा करती है।
- भक्ति और वैराग्य का यह मिलन भक्त को आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की ओर ले जाता है।
जीवन सारा तेरे चरणों में बीत हमारा
- भावार्थ:
भक्त अपने पूरे जीवन को भगवान के चरणों में समर्पित करने की इच्छा व्यक्त करता है।- “चरणों में बीत” एक आध्यात्मिक स्थिति को दर्शाता है, जहां भक्त अपने अहंकार को पूरी तरह त्याग देता है।
- “जीवन सारा” का अर्थ है कि यह समर्पण केवल एक पल का नहीं, बल्कि जीवनभर का है।
- आध्यात्मिक संकेत:
- यह पंक्ति भक्त और भगवान के बीच अद्वैत संबंध को प्रकट करती है।
- भगवान के चरणों में रहना आत्मा की सबसे शुद्ध अवस्था है।
अश्वसेन के राजदुलारे, वामा देवी के सुत प्राण प्यारे
- भावार्थ:
यह भगवान पारसनाथ के सांसारिक अवतार का वर्णन करता है।- “अश्वसेन के राजदुलारे” और “वामा देवी के सुत” यह बताते हैं कि भगवान पारसनाथ सांसारिक रूप से भी शुद्धता और महानता का प्रतीक थे।
- “प्राण प्यारे” भक्त की गहरी श्रद्धा और प्रेम को दर्शाता है।
- धार्मिक दृष्टिकोण:
- भगवान पारसनाथ केवल एक ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं, बल्कि करुणा, त्याग, और संयम के प्रतीक हैं।
- यह पंक्ति यह भी याद दिलाती है कि भौतिक जन्म आत्मा के शाश्वत सत्य को बाधित नहीं करता।
सबसे नेह तोड़ा, जग से मुँह को मोड़ा
- भावार्थ:
भक्त कहता है कि उसने संसार की सभी चीजों से अपना मोह तोड़ लिया है।- “नेह तोड़ा” का अर्थ है, संसारिक प्रेम का त्याग।
- “जग से मुँह मोड़ा” का संकेत है, सांसारिक चीजों को अस्वीकार करना और भगवान की ओर उन्मुख होना।
- आध्यात्मिक संकेत:
- यह पंक्ति यह समझाती है कि संसार की माया से मुक्ति पाए बिना मोक्ष संभव नहीं है।
- “जग” यहां माया और भ्रम का प्रतीक है।
संयम धारा
- भावार्थ:
भक्त संयमित जीवन जीने का प्रण लेता है।- “संयम” आत्म-नियंत्रण, इच्छाओं पर विजय और आध्यात्मिक शुद्धता को दर्शाता है।
- यह भगवान पारसनाथ की शिक्षाओं का अनुसरण है।
- गहरी व्याख्या:
- संयम केवल शारीरिक स्तर पर नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी आवश्यक है।
- यह हमें अपने आंतरिक सत्य से जोड़ता है।
इंद्र और धरणेन्द्र भी आए
- भावार्थ:
इस पंक्ति में भगवान पारसनाथ की दिव्यता और उनकी आराधना करने वालों का उल्लेख है।- “इंद्र” देवताओं के राजा हैं, और “धरणेन्द्र” नागराज।
- ये दोनों महान आत्माएं भगवान की महिमा और उनके दिव्य स्वरूप का आदर करने के लिए आए।
- आध्यात्मिक दृष्टिकोण:
- “इंद्र और धरणेन्द्र” केवल ऐतिहासिक पात्र नहीं हैं, बल्कि वे भक्तों के भीतर मौजूद विनम्रता और सेवा भावना के प्रतीक हैं।
- भगवान की आराधना करने वाले इन पात्रों का उल्लेख यह दर्शाता है कि ईश्वर की कृपा का अनुभव सभी जीवों को हो सकता है, चाहे वे मानव हों या अन्य जीव।
देवी पद्मावती मंगल गाए
- भावार्थ:
यहां देवी पद्मावती का उल्लेख है, जो भगवान पारसनाथ की दिव्य आराधिका थीं।- “मंगल गाए” का अर्थ है, उनके गुणों और कृपा का स्तवन करना।
- गहरी व्याख्या:
- “पद्मावती” धन, सौभाग्य और धर्म की देवी के रूप में जानी जाती हैं।
- उनका मंगल गान यह संदेश देता है कि भगवान पारसनाथ की आराधना से भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि दोनों प्राप्त की जा सकती हैं।
आशा पूरो सदा, दुःख नहीं पावे कदा
- भावार्थ:
भक्त भगवान से यह प्रार्थना करता है कि उसकी आशाओं को पूरा करें और उसे कभी भी दुख का सामना न करना पड़े।- “आशा पूरो” का अर्थ है, भगवान उसकी आत्मिक और सांसारिक इच्छाओं को पूर्ण करें।
- “दुःख नहीं पावे कदा” का संकेत यह है कि भक्त केवल सांसारिक सुख नहीं, बल्कि स्थायी शांति चाहता है।
- आध्यात्मिक संकेत:
- यह पंक्ति भगवान के प्रति विश्वास को दर्शाती है।
- दुख से मुक्ति केवल सांसारिक बाधाओं से नहीं, बल्कि आत्मा के अज्ञान से मुक्ति में है।
जग के दुःख की तो परवाह नहीं है, स्वर्ग सुख की भी चाह नहीं है
- भावार्थ:
भक्त यहां कहता है कि उसे न तो संसार के दुखों का भय है और न ही स्वर्गीय सुख की कोई लालसा।- “जग के दुःख” सांसारिक जीवन के कष्टों को दर्शाता है।
- “स्वर्ग सुख की चाह नहीं” यह बताता है कि भक्त का लक्ष्य सांसारिक और स्वर्गीय दोनों इच्छाओं से परे है।
- गहरी व्याख्या:
- यह पंक्ति निर्लिप्तता (detachment) और मोक्ष की ओर इशारा करती है।
- भक्त को केवल भगवान की भक्ति और उनकी कृपा का सहारा चाहिए।
मेटो जामन मरण, होवे ऐसा यतन
- भावार्थ:
यहां भक्त पुनर्जन्म और मृत्यु के चक्र को समाप्त करने की प्रार्थना करता है।- “जामन मरण” संसार के जीवन-मृत्यु के चक्र का प्रतीक है।
- “ऐसा यतन” यह दर्शाता है कि भक्त अपने कर्मों और भगवान की कृपा से मोक्ष चाहता है।
- आध्यात्मिक दृष्टिकोण:
- पुनर्जन्म और मृत्यु से मुक्त होना जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाओं में से एक है।
- यह आत्मा के शुद्धिकरण और भगवान के साथ मिलन का संदेश देता है।
लाखों बार तुम्हें शीश नवाऊँ
- भावार्थ:
यह पंक्ति भगवान के प्रति भक्त के संपूर्ण समर्पण को दर्शाती है।- “लाखों बार” का प्रतीक यह है कि भक्त अनगिनत बार भगवान के चरणों में झुकता है।
- “शीश नवाऊँ” का अर्थ है, आत्मा का अहंकार छोड़कर पूर्ण समर्पण करना।
- गहरी व्याख्या:
- यह भगवान की महिमा का गुणगान है, जो हर भक्त को उनके प्रति समर्पण के लिए प्रेरित करता है।
- यह पंक्ति यह भी दर्शाती है कि भक्ति कभी समाप्त नहीं होती।
जग के नाथ तुम्हें कैसे पाऊँ
- भावार्थ:
भक्त यहां अपनी व्याकुलता व्यक्त करता है और भगवान से पूछता है कि वह उन्हें कैसे प्राप्त कर सकता है।- “जग के नाथ” का अर्थ है, संसार के स्वामी।
- “कैसे पाऊँ” का संकेत है कि भक्त अपनी आत्मा की शुद्धि और भगवान के मार्गदर्शन के लिए प्रयासरत है।
- आध्यात्मिक संकेत:
- यह आत्मा की उस स्थिति को दर्शाता है जब वह परमात्मा से जुड़ने की तीव्र इच्छा रखती है।
- यह पंक्ति यह भी बताती है कि भगवान तक पहुंचने का मार्ग केवल भक्ति और आत्मसमर्पण है।
‘पंकज’ व्याकुल भया, दर्शन बिन ये जिया लागे खारा
- भावार्थ:
भजन के रचयिता ‘पंकज’ यहां अपनी व्याकुलता को व्यक्त करते हैं।- “दर्शन बिन” भगवान के दर्शन के अभाव को दर्शाता है।
- “जिया लागे खारा” का अर्थ है, जीवन नीरस और कष्टपूर्ण लगना।
- गहरी व्याख्या:
- यह पंक्ति भगवान के प्रति उत्कट प्रेम और उनकी अनुपस्थिति में होने वाली पीड़ा को दर्शाती है।
- “पंकज” यह संकेत देता है कि भगवान का साक्षात्कार ही जीवन को सार्थक बना सकता है।
भजन का गहन संदेश
- शरणागति का महत्व:
भजन यह सिखाता है कि भगवान की शरण में जाने से ही आत्मा की मुक्ति संभव है। - वैराग्य और भक्ति:
संसार के सुख-दुख और मोह-माया को त्यागकर भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण का महत्व इसमें स्पष्ट है। - पुनर्जन्म और मृत्यु से मुक्ति:
यह भजन मोक्ष (पुनर्जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) की कामना करता है। - भगवान के प्रति प्रेम:
भगवान के दर्शन और उनकी कृपा प्राप्त करना भक्त के जीवन का एकमात्र लक्ष्य है।
निष्कर्ष
भजन “तुम से लागी लगन” न केवल भगवान पारसनाथ के प्रति भक्ति को व्यक्त करता है, बल्कि यह गहन आध्यात्मिक मार्गदर्शन भी देता है। यह आत्मा के परमात्मा के साथ एकाकार होने की प्रक्रिया, शरणागति, और भक्ति की महिमा का वर्णन करता है।
पारस प्यारा! मेटो मेटो जी संकट हमारा।
यह अंतिम पंक्ति यह सिखाती है कि भगवान के प्रति समर्पण और उनकी शरणागति ही आत्मा को हर प्रकार की बाधा और अज्ञानता से मुक्त कर सकती है।