- – जीवन का वास्तविक अर्थ प्रभु के प्रति प्रेम में है; बिना उसके जीवन निरर्थक है।
- – विद्या, बल और वैभव तब तक निष्फल हैं जब तक वे संसार के कल्याण में उपयोग न हों।
- – मानव जीवन दुर्लभ अवसर है, जिसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए, और संतों के चरणों को आधार बनाना चाहिए।
- – सत्संग आत्मा के लिए भोजन के समान है, जो मन के विकारों को दूर करता है।
- – गलत संगति से बचना चाहिए, क्योंकि सही मित्रता और भगवान का ध्यान ही जीवन को सफल बनाते हैं।
- – कबीर जी ने चेतावनी दी है कि नारायण का ध्यान रखकर ही इस मानव जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।
वह जीवन जन्म निरर्थक है,
जिसमें प्रभु के प्रति प्यार न हो,
निष्फल वह विद्या बल वैभव,
जिससे जग का उपकार न हो।।
तर्ज – अब सौंप दिया इस जीवन का।
वैसे तो नर तन दुर्लभ है,
जिसको पाने को सुर तरसे,
धिक्कार किन्तु उस मानव को,
जो नर तन पा भव पार न हो।।
ऐसा अनुपम अवसर पाकर,
मत चूको फँसकर दुनिया में,
मंजिल तक कैसे पहुंच सके,
यदि सन्त चरण आधार न हो।।
जैसे तन की खुराक भोजन,
सत्संग आत्मा का जीवन,
सत्संगति भी वह क्या जिससे,
इस मन का दूर विकार न हो।।
कहीं बनी बनाई बिगड़ न जाय,
बिगड़ों के संग बनाने में,
बन सके न बिगड़ी जनम जनम,
यदि साँवरिया सा यार न हो।।
औरन की भूलन भटकनि लख,
तू सावधान हो ऐ कबीर,
रख नारायण प्रभु ध्यान सदा,
यह नर जीवन बेकार न हो।।
वह जीवन जन्म निरर्थक है,
जिसमें प्रभु के प्रति प्यार न हो,
निष्फल वह विद्या बल वैभव,
जिससे जग का उपकार न हो।।
स्वर – श्री राजेन्द्रदास जी महाराज।
प्रेषक – ओमप्रकाश पांचाल।
9926652202
https://youtu.be/ehTvGFEic_Y
