- – वैष्णव वह होता है जो दूसरों के दुख-दर्द को समझता है और उनकी सहायता करता है बिना गर्व किए।
- – वह सभी का सम्मान करता है, किसी की निंदा नहीं करता और उसका मन, वचन और कर्म शुद्ध होते हैं।
- – वैष्णव समदृष्टि रखता है, तृष्णा त्यागता है, सत्य बोलता है और स्त्री का आदर करता है।
- – मोह-माया से मुक्त होता है, दृढ़ वैराग्य रखता है और राम नाम का स्मरण करता है।
- – वह लोभ, कपट, काम और क्रोध से दूर रहता है और नरसिंह भगवान के दर्शन से प्रेरित होता है।
- – यह भक्ति और सदाचार की भावना से परिपूर्ण एक आदर्श वैष्णव की विशेषताएँ हैं।

वैष्णव जन तो तेने कहिये जे,
पीड़ परायी जाणे रे,
पर दुख्खे उपकार करे तोये,
मन अभिमान ना आणे रे,
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे,
पीड़ परायी जाणे रे।।
सकळ लोक मान सहुने वंदे,
नींदा न करे केनी रे,
वाच काछ मन निश्चळ राखे,
धन धन जननी तेनी रे,
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे,
पीड़ परायी जाणे रे।।
सम दृष्टी ने तृष्णा त्यागी,
पर स्त्री जेने मात रे,
जिह्वा थकी असत्य ना बोले,
पर धन नव झाली हाथ रे,
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे,
पीड़ परायी जाणे रे।।
मोह माया व्यापे नही जेने,
द्रिढ़ वैराग्य जेना मन मान रे,
राम नाम सुन ताळी लागी,
सकळ तिरथ तेना तन मान रे,
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे,
पीड़ परायी जाणे रे।।
वण लोभी ने कपट रहित छे,
काम क्रोध निवार्या रे,
भणे नरसैय्यो तेनुन दर्शन कर्ता,
कुळ एकोतेर तारया रे,
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे,
पीड़ परायी जाणे रे।।
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे,
पीड़ परायी जाणे रे,
पर दुख्खे उपकार करे तोये,
मन अभिमान ना आणे रे,
वैष्णव जन तो तेने कहिए जे,
पीड़ परायी जाणे रे।।
Singer: Sanjeevani Bhelande
“नरसिंह मेहता की रचना”
