- – यह भजन गुरु की महिमा और उनकी कृपा का गुणगान करता है, जो भक्त को भवसागर से उबारते हैं।
- – गुरु के बिना आत्मज्ञान संभव नहीं है और संसार में अज्ञान ही व्याप्त है।
- – सतगुरु की दी हुई शिक्षा और शबद से ही मनुष्य जागरूक होता है और असंग के अंधकार से बाहर आता है।
- – गुरु की सहायता के बिना इस जगत में कोई भी संकट से उबर नहीं सकता।
- – भजन में भक्त अपनी विनती और आभार व्यक्त करता है कि गुरु ने उसे संकट से बचाया और जीवन में आनंद दिया।

वारि ओ गुरुदेव आपने बलिहारी,
भवजल डूबत तारियो रे,
म्हारा सतगुरु लियो रे उबारी,
आप नी वेता जगत में तो,
कुण करता म्हारी सहाई,
वारि ओ गुरुदेव आपने बलिहारी।।
असंग जुगा रो सुतो म्हारो हंसलो,
सतगुरु रे दियो रे जगाय,
शबद री सिसकारी,
हां रे शबद री सिसकारी,
वारि ओ गुरुदेव आपने बलिहारी।।
जम सु झगड़ा जितिया रे,
इण भव सागर या रे माए,
भयो आनंद भारी,
हां रे भयो आनंद भारी,
वारि ओ गुरुदेव आपने बलिहारी।।
गुरु बिन अँधा जाणिये रे,
नहीं है आतम ज्ञान,
जगत पच पच हारी,
हां रे जगत पच पच हारी,
वारि ओ गुरुदेव आपने बलिहारी।।
‘फूलगिरि’ जी री विनती रे,
एक दुर्बल करे है पुकार,
अरज अब सुण म्हारी,
हां रे अरज अब सुण म्हारी,
वारि ओ गुरुदेव आपने बलिहारी।।
वारि ओ गुरुदेव आपने बलिहारी,
भवजल डूबत तारियो रे,
म्हारा सतगुरु लियो रे उबारी,
आप नी वेता जगत में तो,
कुण करता म्हारी सहाई,
वारि ओ गुरुदेव आपने बलिहारी।।
Bhajan Suggested By –
Viki Dhanak Sagr
Mob. 9929092205
