वेंकटाचल निलयं in Hindi/Sanskrit
वेंकटाचल* निलयं वैकुण्ठ पुरवासं
पङ्कज नेत्रं परम पवित्रं
शङ्क चक्रधर चिन्मय रूपं
वेंकटाचल निलयं वैकुण्ठ पुरवासं
पङ्कज नेत्रं परम पवित्रं
शङ्क चक्रधर चिन्मय रूपं
अम्बुजोद्भव विनुतं अगणित गुण नामं
तुम्बुरु नारद गानविलोलं
वेंकटाचल निलयं वैकुण्ठ पुरवासं
पङ्कज नेत्रं परम पवित्रं
शङ्क चक्रधर चिन्मय रूपं
मकर कुण्डलधर मदनगोपलं
भक्त पोषक श्री पुरन्दर विठलं
वेंकटाचल निलयं वैकुण्ठ पुरवासं
पङ्कज नेत्रं परम पवित्रं
शङ्क चक्रधर चिन्मय रूपं
Venkatachala Nilayam in English
Venkatachala Nilayam Vaikuntha Puravasam
Pankaja Netram Param Pavitram
Shankha Chakradhara Chinmaya Rupam
Venkatachala Nilayam Vaikuntha Puravasam
Pankaja Netram Param Pavitram
Shankha Chakradhara Chinmaya Rupam
Ambujodbhava Vinutam Aganita Guna Namam
Tumburu Narada Gana Vilolam
Venkatachala Nilayam Vaikuntha Puravasam
Pankaja Netram Param Pavitram
Shankha Chakradhara Chinmaya Rupam
Makara Kundaladhara Madana Gopalam
Bhakta Poshaka Shri Purandara Vittalam
Venkatachala Nilayam Vaikuntha Puravasam
Pankaja Netram Param Pavitram
Shankha Chakradhara Chinmaya Rupam
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वेंकटाचल निलयं का अर्थ
यह स्तुति भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन करती है। इसमें विष्णु जी के विभिन्न रूपों और गुणों का उल्लेख है। हर एक पंक्ति भगवान विष्णु के एक विशेष रूप, गुण, या निवास स्थान को दर्शाती है। इस विस्तृत विवरण में हम प्रत्येक पंक्ति का हिंदी में अर्थ और भावार्थ समझेंगे।
वेंकटाचल निलयं वैकुण्ठ पुरवासं
वेंकटाचल निलयं
यह वाक्य भगवान विष्णु के निवास स्थान को इंगित करता है। “वेंकटाचल” से तात्पर्य दक्षिण भारत में स्थित वेंकट पर्वत (तिरुपति) से है, जहाँ भगवान विष्णु का मंदिर स्थित है। “निलय” का अर्थ है निवास या वास। इस प्रकार, “वेंकटाचल निलयं” का अर्थ हुआ, जो वेंकट पर्वत पर निवास करते हैं।
वैकुण्ठ पुरवासं
यह वाक्य भगवान विष्णु के दिव्य लोक “वैकुण्ठ” को संदर्भित करता है। “वैकुण्ठ” को विष्णु का स्वर्गीय आवास माना जाता है, जहाँ मुक्ति प्राप्त आत्माएं जाती हैं। “पुरवासं” का अर्थ है पुर में निवास करने वाला। इस प्रकार, इसका भावार्थ हुआ, जो वैकुण्ठ में निवास करते हैं।
पङ्कज नेत्रं परम पवित्रं
पङ्कज नेत्रं
“पङ्कज” का अर्थ है कमल, और “नेत्रं” का अर्थ है आँखें। भगवान विष्णु की आँखों की तुलना कमल के फूल से की गई है, जो सुंदरता, शांति और करुणा का प्रतीक है।
परम पवित्रं
“परम” का अर्थ है सर्वोच्च, और “पवित्रं” का अर्थ है शुद्ध या पवित्र। भगवान विष्णु को परम पवित्र कहा गया है, जो अपने स्वरूप और कार्यों में पूर्णतया पवित्र हैं।
शङ्क चक्रधर चिन्मय रूपं
शङ्क चक्रधर
यहां “शङ्क” से तात्पर्य शंख (काउच) से है, और “चक्रधर” से तात्पर्य है चक्र धारण करने वाला। भगवान विष्णु के हाथों में शंख और चक्र होते हैं, जो उनके दिव्य अस्त्र हैं।
चिन्मय रूपं
“चिन्मय” का अर्थ है चेतना से युक्त, और “रूपं” का अर्थ है स्वरूप। इसका भावार्थ है, जो चेतना से परिपूर्ण दिव्य रूप में हैं।
अम्बुजोद्भव विनुतं अगणित गुण नामं
अम्बुजोद्भव विनुतं
“अम्बुज” का अर्थ है कमल, और “उद्भव” का अर्थ है उत्पन्न होने वाला। “विनुतं” का अर्थ है स्तुति या प्रशंसा किया जाना। यहाँ भगवान विष्णु की प्रशंसा की जा रही है, जो कमल से उत्पन्न हुए ब्रह्मा द्वारा स्तुत हैं।
अगणित गुण नामं
“अगणित” का अर्थ है असंख्य, “गुण” का अर्थ है गुण, और “नामं” का अर्थ है नाम। भगवान विष्णु के असंख्य गुणों और नामों की बात की गई है, जो अनगिनत हैं और जिनका कोई अंत नहीं है।
तुम्बुरु नारद गानविलोलं
तुम्बुरु नारद
तुम्बुरु और नारद देवताओं के प्रसिद्ध गायक माने जाते हैं। वे भगवान विष्णु की महिमा में गान करते हैं।
गानविलोलं
“गान” का अर्थ है गायन, और “विलोलं” का अर्थ है जो आनंदमग्न हो। भगवान विष्णु उन गीतों में रमण करते हैं जो तुम्बुरु और नारद द्वारा गाए जाते हैं।
मकर कुण्डलधर मदनगोपलं
मकर कुण्डलधर
“मकर” का अर्थ है मछली, और “कुण्डलधर” का अर्थ है कान में कुण्डल पहनने वाला। भगवान विष्णु के कानों में मछली के आकार के कुण्डल हैं, जो उनकी दिव्य सुंदरता को दर्शाते हैं।
मदनगोपलं
“मदन” का अर्थ है प्रेम और आकर्षण, और “गोपलं” का अर्थ है ग्वालक या गोपालक (गायों का रक्षक)। भगवान विष्णु को यहाँ श्रीकृष्ण के रूप में मदनगोपल कहा गया है, जो प्रेम और आकर्षण के स्रोत हैं।
भक्त पोषक श्री पुरन्दर विठलं
भक्त पोषक
“भक्त” का अर्थ है भक्त या अनुयायी, और “पोषक” का अर्थ है पालन करने वाला या रक्षा करने वाला। भगवान विष्णु अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें पोषित करते हैं।
श्री पुरन्दर विठलं
“पुरन्दर” का अर्थ है शत्रुओं का नाश करने वाला, और “विठलं” एक विशेष रूप से भगवान विष्णु का नाम है। विठ्ठल भगवान विष्णु का एक रूप है, जिसकी महाराष्ट्र में विशेष रूप से पूजा की जाती है।
वेंकटाचल निलयं वैकुण्ठ पुरवासं
इस पंक्ति का अर्थ पहले ही समझाया जा चुका है, लेकिन यहाँ इसे फिर से दोहराया गया है ताकि भगवान विष्णु के वैकुण्ठ और वेंकटाचल दोनों निवासों की महिमा फिर से गायी जा सके। भगवान विष्णु का ये विशेष स्वरूप वेंकटाचल में और वैकुण्ठ में निवास करता है, और यह भक्तों के मन में इन स्थानों की दिव्यता को और अधिक गहराई से बिठाता है।
पङ्कज नेत्रं परम पवित्रं
इस पंक्ति का भी पहले वर्णन किया गया था। भगवान विष्णु की कमल जैसी सुंदर और शांत नेत्रों को पुनः संदर्भित किया गया है, जो उनकी परम पवित्रता को इंगित करता है। यह दोहराव उनकी दिव्यता और शांति की महत्ता को फिर से दर्शाता है।
शङ्क चक्रधर चिन्मय रूपं
यह पंक्ति भी भगवान विष्णु के चिन्मय (चेतना से भरे) रूप की ओर इशारा करती है, जिसमें वे शंख और चक्र धारण किए हुए हैं। शंख और चक्र का यह रूप पुनः उनके दिव्य अस्त्रों और उनकी परम चेतना को दर्शाता है।
मकर कुण्डलधर मदनगोपलं
यहाँ फिर से भगवान विष्णु के मकर (मछली) के आकार के कुण्डलों और मदनगोपल (प्रेम और आकर्षण के स्रोत) के रूप में वर्णन किया गया है। यह पंक्ति भगवान विष्णु की उस दिव्यता को और विस्तार से दर्शाती है, जिसमें वे प्रेम और सौंदर्य के प्रतीक बने हुए हैं।
भक्त पोषक श्री पुरन्दर विठलं
यह पंक्ति भी पहले समझाई जा चुकी है, लेकिन भगवान विष्णु को भक्तों के रक्षक के रूप में और शत्रुओं के नाशक के रूप में फिर से वर्णित किया गया है। “विठल” के रूप में उनकी महिमा यहाँ दोहराई गई है, जो उनके भक्तों की सेवा और शत्रुओं के नाश का प्रतीक है।
वेंकटाचल निलयं वैकुण्ठ पुरवासं
यह पंक्ति एक बार फिर भगवान विष्णु के दो प्रमुख निवास स्थानों को संदर्भित करती है—वेंकटाचल पर्वत और वैकुण्ठ। इन दोनों स्थानों का उल्लेख बार-बार इस बात पर जोर देने के लिए किया गया है कि भगवान विष्णु की उपस्थिति इन दोनों पवित्र स्थानों में है।
पङ्कज नेत्रं परम पवित्रं
यह पंक्ति भी दोहराई गई है ताकि भगवान विष्णु की आँखों की कमल जैसी सुंदरता और उनकी परम पवित्रता का फिर से गुणगान हो सके। कमल के समान नेत्र भगवान की सुंदरता, शांति और करुणा का प्रतीक हैं।
शङ्क चक्रधर चिन्मय रूपं
भगवान विष्णु के हाथों में शंख और चक्र धारण किए हुए रूप को फिर से इस पंक्ति में दोहराया गया है। “चिन्मय रूपं” का अर्थ फिर से यही है कि भगवान विष्णु का रूप चेतना से भरा हुआ है, और वह दिव्यता से परिपूर्ण हैं।