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श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् in Hindi/Sanskrit

निशुम्भ शुम्भ गर्जनी,
प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी ।
बनेरणे प्रकाशिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

त्रिशूल मुण्ड धारिणी,
धरा विघात हारिणी ।
गृहे-गृहे निवासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

दरिद्र दुःख हारिणी,
सदा विभूति कारिणी ।
वियोग शोक हारिणी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

लसत्सुलोल लोचनं,
लतासनं वरप्रदं ।
कपाल-शूल धारिणी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

कराब्जदानदाधरां,
शिवाशिवां प्रदायिनी ।
वरा-वराननां शुभां,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

कपीन्द्न जामिनीप्रदां,
त्रिधा स्वरूप धारिणी ।
जले-थले निवासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

विशिष्ट शिष्ट कारिणी,
विशाल रूप धारिणी ।
महोदरे विलासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

पुंरदरादि सेवितां,
पुरादिवंशखण्डितम्‌ ।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं,
भजामि विन्ध्यवासिनीं ॥

Shri Vindhyeshwari Stotram in English

Nishumbha Shumbha Garjani,
Prachanda Munda Khandini.
Baneraṇa Prakashini,
Bhajami Vindhyavasini.

Trishula Munda Dharini,
Dhara Vighata Harini.
Grihe-Grihe Nivasini,
Bhajami Vindhyavasini.

Daridra Duhkha Harini,
Sada Vibhuti Karini.
Viyoga Shoka Harini,
Bhajami Vindhyavasini.

Lasat Sulola Lochanam,
Latasanam Varapradam.
Kapala-Shula Dharini,
Bhajami Vindhyavasini.

Karabjadana Dadharam,
Shivashivam Pradayini.
Vara-Varanadam Shubham,
Bhajami Vindhyavasini.

Kapindra Jaminipradam,
Tridha Svarupa Dharini.
Jale-Thale Nivasini,
Bhajami Vindhyavasini.

Vishishta Shishta Karini,
Vishala Rupa Dharini.
Mahodare Vilasini,
Bhajami Vindhyavasini.

Purandaradi Sevitaam,
Puradivansh Khanditam.
Vishuddha Buddhikarini,
Bhajami Vindhyavasinim.

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् PDF Download

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम्: हिंदी में विस्तृत अर्थ

परिचय

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् देवी विन्ध्यवासिनी को समर्पित एक स्तुति है, जो उनके शक्तिशाली, दयालु और कल्याणकारी रूप का वर्णन करती है। इस स्तोत्र के माध्यम से भक्त देवी की महिमा का गान करते हैं और उनके विभिन्न रूपों में अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। यह स्तोत्र उनकी शक्ति, कृपा, और दिव्यता का परिचायक है।


1. निशुम्भ शुम्भ गर्जनी

निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी। बनेरणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥

अर्थ:

  • निशुम्भ शुम्भ गर्जनी: देवी वह हैं जिन्होंने निशुम्भ और शुम्भ जैसे असुरों का नाश किया। यह पंक्ति उनकी अजेय शक्ति और दुष्टों पर विजय का प्रतीक है।
  • प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी: देवी ने प्रचण्ड और मुण्ड नामक दैत्यों को पराजित किया। यह उनकी रणक्षेत्र की अदम्य क्षमता को दर्शाता है।
  • बनेरणे प्रकाशिनी: देवी युद्ध के मैदान में अपने प्रकाश से अज्ञान और अंधकार का नाश करती हैं।
  • भजामि विन्ध्यवासिनी: मैं विन्ध्यवासिनी देवी की आराधना करता/करती हूँ।

विस्तार:

यह श्लोक देवी की शक्ति और विजय की महिमा का वर्णन करता है। उनके पराक्रम ने दैत्यों को परास्त कर संसार में धर्म और शांति की स्थापना की।


2. त्रिशूल मुण्ड धारिणी

त्रिशूल मुण्ड धारिणी, धरा विघात हारिणी। गृहे-गृहे निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥

अर्थ:

  • त्रिशूल मुण्ड धारिणी: देवी अपने त्रिशूल पर दैत्यों के मुण्ड (सिर) धारण करती हैं। यह उनकी निडरता और रौद्र रूप का प्रतीक है।
  • धरा विघात हारिणी: देवी संसार से सभी प्रकार के संकटों को हरने वाली हैं।
  • गृहे-गृहे निवासिनी: देवी हर घर में निवास करती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
  • भजामि विन्ध्यवासिनी: मैं विन्ध्यवासिनी देवी की पूजा करता/करती हूँ।

विस्तार:

यह पंक्तियाँ देवी की उपस्थिति को सार्वभौमिक रूप से दर्शाती हैं। वे भक्तों के जीवन से दुख और संकट दूर करती हैं।


3. दरिद्र दुःख हारिणी

दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी। वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥

अर्थ:

  • दरिद्र दुःख हारिणी: देवी दरिद्रता और दुख को हरने वाली हैं।
  • सदा विभूति कारिणी: देवी अपने भक्तों को हमेशा धन-धान्य और सफलता प्रदान करती हैं।
  • वियोग शोक हारिणी: देवी वियोग और शोक का नाश करती हैं।
  • भजामि विन्ध्यवासिनी: मैं विन्ध्यवासिनी देवी की आराधना करता/करती हूँ।

विस्तार:

इस श्लोक में देवी के करुणामयी और कल्याणकारी रूप की प्रशंसा की गई है। वे भक्तों को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।


4. लसत्सुलोल लोचनं

लसत्सुलोल लोचनं, लतासनं वरप्रदं। कपाल-शूल धारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥

अर्थ:

  • लसत्सुलोल लोचनं: देवी की आँखें चमकदार और करुणा से भरी हुई हैं।
  • लतासनं वरप्रदं: देवी लता के समान कोमल आसन पर विराजमान हैं और वरदान प्रदान करती हैं।
  • कपाल-शूल धारिणी: देवी कपाल और त्रिशूल धारण करती हैं।
  • भजामि विन्ध्यवासिनी: मैं विन्ध्यवासिनी देवी की आराधना करता/करती हूँ।

विस्तार:

यहां देवी के शांत और वरदायी रूप का वर्णन किया गया है। उनकी उपस्थिति से भक्तों को शांति और आशीर्वाद मिलता है।


5. कराब्जदानदाधरां

कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनी। वरा-वराननां शुभां, भजामि विन्ध्यवासिनी॥

अर्थ:

  • कराब्जदानदाधरां: देवी अपने कमल के समान कोमल हाथों से वरदान देती हैं।
  • शिवाशिवां प्रदायिनी: देवी शुभ और अशुभ, दोनों प्रकार के परिणाम देने में सक्षम हैं।
  • वरा-वराननां शुभां: देवी का चेहरा अत्यंत शुभ और दिव्य है।
  • भजामि विन्ध्यवासिनी: मैं विन्ध्यवासिनी देवी की आराधना करता/करती हूँ।

विस्तार:

यह श्लोक देवी के सौम्य और करुणामयी स्वरूप को प्रस्तुत करता है। उनका आशीर्वाद जीवन को शुभता से भर देता है।


6. कपीन्द्न जामिनीप्रदां

कपीन्द्न जामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप धारिणी। जले-थले निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥

अर्थ:

  • कपीन्द्न जामिनीप्रदां: देवी वह हैं जो वानरों (हनुमान) को विजय प्रदान करती हैं।
  • त्रिधा स्वरूप धारिणी: देवी तीन रूपों में प्रकट होती हैं – सृजन, पालन, और संहार।
  • जले-थले निवासिनी: देवी जल और स्थल, दोनों में निवास करती हैं।
  • भजामि विन्ध्यवासिनी: मैं विन्ध्यवासिनी देवी की आराधना करता/करती हूँ।

विस्तार:

यहां देवी की सार्वभौमिकता और सभी तत्वों पर उनकी उपस्थिति को रेखांकित किया गया है। वे जीवन के हर क्षेत्र में विद्यमान हैं।


7. विशिष्ट शिष्ट कारिणी

विशिष्ट शिष्ट कारिणी, विशाल रूप धारिणी। महोदरे विलासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥

अर्थ:

  • विशिष्ट शिष्ट कारिणी: देवी विशेष रूप से सभ्य और धर्मपरायण कर्मों का समर्थन करती हैं।
  • विशाल रूप धारिणी: देवी का रूप विशाल और अनंत है।
  • महोदरे विलासिनी: देवी अपने विशाल उदर में संसार का पालन करती हैं।
  • भजामि विन्ध्यवासिनी: मैं विन्ध्यवासिनी देवी की आराधना करता/करती हूँ।

विस्तार:

यह श्लोक देवी के विराट और दिव्य स्वरूप को प्रस्तुत करता है। वे संपूर्ण ब्रह्मांड को धारण करने वाली हैं।


8. पुंरदरादि सेवितां

पुंरदरादि सेवितां, पुरादिवंशखण्डितम्। विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीं॥

अर्थ:

  • पुंरदरादि सेवितां: देवी को इंद्र (पुंरदर) और अन्य देवता भी सेवा करते हैं।
  • पुरादिवंशखण्डितम्: देवी ने पुराणों में वर्णित कई दुष्ट वंशों का नाश किया है।
  • विशुद्ध बुद्धिकारिणीं: देवी भक्तों को शुद्ध और दिव्य बुद्धि प्रदान करती हैं।
  • भजामि विन्ध्यवासिनीं: मैं विन्ध्यवासिनी देवी की आराधना करता/करती हूँ।

विस्तार:

यहां देवी के पूजनीय और बुद्धिदायिनी रूप का वर्णन किया गया है। उनकी आराधना से भक्तों को शुद्धता और ज्ञान की प्राप्ति होती है।


श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् का विस्तार: भाग 2

हमने पहले भाग में विन्ध्यवासिनी देवी की महिमा, स्वरूप और उनकी कृपा का वर्णन किया। अब हम शेष श्लोकों का विस्तार से अर्थ और व्याख्या प्रस्तुत करते हैं।


9. श्री विन्ध्यवासिनी के रूप और महत्ता का सार

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् देवी के शक्ति और कृपा स्वरूप को एकसाथ प्रस्तुत करता है। उनकी आराधना से न केवल सांसारिक दुखों का नाश होता है, बल्कि भक्तों को आध्यात्मिक आनंद और शांति प्राप्त होती है।

कुल मिलाकर, इस स्तोत्र से हमें निम्नलिखित बातें सीखने को मिलती हैं:

  1. शक्ति का सम्मान: देवी ने अपने शक्ति स्वरूप से दैत्यों और अधर्म का नाश किया, जो यह सिखाता है कि धर्म और सत्य की स्थापना के लिए शक्ति का उपयोग आवश्यक है।
  2. करुणा और कृपा: देवी का सौम्य रूप उनकी करुणा और भक्तों के प्रति उनकी कृपा का प्रतीक है।
  3. सार्वभौमिक उपस्थिति: देवी हर स्थान पर विद्यमान हैं और सभी को समान रूप से आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
  4. सुख-समृद्धि का स्रोत: उनकी पूजा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
  5. आध्यात्मिक प्रगति: उनकी आराधना से शुद्ध बुद्धि और आत्मिक उन्नति होती है।

विन्ध्यवासिनी देवी की आराधना का महत्व

1. भक्तों के लिए फलदायी:

विन्ध्यवासिनी देवी की पूजा और श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् का पाठ:

  • जीवन के संकटों को समाप्त करता है।
  • दरिद्रता, शोक, और वियोग से मुक्ति देता है।
  • सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की उन्नति प्रदान करता है।

2. स्त्रोत का पठन विधि:

  • इस स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल या संध्या समय करें।
  • पाठ से पहले देवी विन्ध्यवासिनी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
  • पाठ के दौरान मन को एकाग्र रखें और देवी का ध्यान करें।

विन्ध्यवासिनी देवी का स्वरूप और प्रतीकात्मकता

  1. त्रिशूल और मुण्ड: अधर्म और अन्याय का नाश।
  2. शुभ और अशुभ का संतुलन: देवी शुभ और अशुभ दोनों परिणाम देने में सक्षम हैं। यह कर्म के सिद्धांत पर आधारित है।
  3. दर्शन और कृपा: देवी का सौम्य रूप भक्तों को आश्वस्त करता है कि वे हमेशा उनकी रक्षा करेंगी।

उपसंहार

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् का नियमित पाठ जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक ऊर्जा लाता है। यह न केवल भक्त के सांसारिक कष्टों को समाप्त करता है, बल्कि उसे आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी अग्रसर करता है। विन्ध्यवासिनी देवी की महिमा अनंत है, और उनकी आराधना से भक्तों को जीवन में संतुलन, शांति, और समृद्धि प्राप्त होती है।

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