धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें Join Now

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

विश्वनाथ अष्टकम in Hindi

गङ्गातरङ्गरमणीयजटाकलापं

गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम्।

नारायणप्रियमनङ्गमदापहारं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥1॥

वाचामगोचरमनेकगुणस्वरूपं

वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम्।

वामेन विग्रहवरेण कलत्रवन्तं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥2॥

भूताधिपं भुजगभूषणभूषिताङ्गं

व्याघ्राजिनाम्बरधरं जटिलं त्रिनेत्रम्।

पाशाङ्कुशाभयवरप्रदशूलपाणिं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥3॥

शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं

भालेक्षणानलविशोषितपञ्चबाणम्।

नागाधिपारचितभासुरकर्णपुरं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥4॥

पञ्चाननं दुरितमत्तमतङ्गजानां

नागान्तकं दनुजपुङ्गवपन्नगानाम्।

दावानलं मरणशोकजराटवीनां

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥5॥

तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीयम्_

आनन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम्

नागात्मकं सकलनिष्कलमात्मरूपं।

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥6॥

रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं

वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम्।

माधुर्यधैर्यसुभगं गरलाभिरामं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥7॥

आशां विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां

पापे रतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ।

आदाय हृत्कमलमध्यगतं परेशं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥8॥

वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य

व्याख्यातमष्टकमिदं पठते मनुष्यः

विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं

सम्प्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम्॥9॥

Vishwanath Ashtakam in English

Ganga tharanga ramaneeya jata kalapam
Gowri niranthara vibhooshitha vama bhagam
Narayana priya mananga madapaharam
Varanasi pura pathim Bhajhe Viswanadham || 1 ||

Vachamagocharamanekaguna swaroopam
Vageesa Vishnu sura sevitha pada padmam
Vamena vigraha varena kalathravantham
Varanasi pura pathim Bhajhe Viswanadham || 2 ||

Bhoothadhipam bhujaga bhooshana bhooshithangam
Vygrajinambaradharam jatilam trinethram
Pasungusa bhaya vara pradha soola panim
Varanasi pura pathim Bhajhe Viswanadham || 3 ||

Seethamsu shobitha kireeta virajamanam
Balekshananila visoshitha pancha banam
Nagadhiparachitha basaura karma pooram
Varanasi pura pathim Bhajhe Viswanadham || 4 ||

Panchananam durutha matha mathangajanaam
Naganthagam danuja pungava pannaganam
Davanalam marana soka jarataveenam
Varanasi pura pathim Bhajhe Viswanadham || 5 ||

Thejomayam suguna nirgunamadweetheeyam
Anandakandamaparajithamaprameyam
Nagathmakam sakala nishkalamathma roopam
Varanasi pura pathim Bhajhe Viswanadham || 6 ||

Aasam vihaya parihruthya parasya nindam
Pape rathim cha sunivarya mana samadhou
Aadhaya hruth kamala Madhya gatham paresam
Varanasi pura pathim Bhajhe Viswanadham || 7 ||

Ragadhi dosha rahitham sujananuraga
Vairagya santhi nilayam girija sahayam
Madhurya dhairya subhagam garalabhi ramam
Varanasi pura pathim Bhajhe Viswanadham || 8 ||

Varanasi pura pathe sthavanam sivasya
Vyakhyathamashtakamitham patahe manushya
Vidhyam sriyaam vipula soukhya manantha keerthim
Samprapya deva nilaye labhathe cha moksham ||

visvanādhastakamidam puṇyaṃ yaḥ paṭheḥ siva sannidhau
sivalokamavapnoti sivenasaha modate ||

॥ श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकम् ॥

यह श्री काशी विश्वनाथ के प्रति आठ श्लोकों का स्तोत्र है। इसके रचयिता महर्षि व्यास हैं।

श्लोक 1:

गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं
गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम्।
नारायणप्रियमनंगमदापहारं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥1॥

अर्थ: जिनकी जटाएं गंगा की लहरों से सजी हुई हैं, जिनके वाम भाग में गौरी (पार्वती) विराजमान हैं, जो नारायण के प्रिय हैं और कामदेव के अभिमान को नष्ट करने वाले हैं, ऐसे वाराणसी नगरी के स्वामी श्री विश्वनाथ का भजन करो।

श्लोक 2:

वाचामगोचरमनेकगुणस्वरूपं
वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम्।
वामेनविग्रहवरेणकलत्रवन्तं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥2॥

अर्थ: जो वाणी की सीमा से परे हैं और अनेक गुणों के रूप में प्रकट होते हैं, जिनके चरण पाद पीठ की सेवा ब्रह्मा, विष्णु और देवता करते हैं, और जिनके वाम भाग में पार्वती हैं, ऐसे वाराणसी के स्वामी श्री विश्वनाथ का भजन करो।

श्लोक 3:

भूताधिपं भुजगभूषणभूषितांगं
व्याघ्राजिनांबरधरं जटिलं त्रिनेत्रम्।
पाशांकुशाभयवरप्रदशूलपाणिं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥3॥

अर्थ: जो भूतों के स्वामी हैं, जिनका शरीर सर्पों के आभूषणों से सुसज्जित है, जो व्याघ्र चर्म धारण करते हैं, जिनकी जटाएं जटिल हैं, और जो त्रिनेत्रधारी हैं, ऐसे वाराणसी के स्वामी श्री विश्वनाथ का भजन करो।

श्लोक 4:

शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं
भालेक्षणानलविशोषितपंचबाणम्।
नागाधिपारचितभासुरकर्णपूरं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥4॥

अर्थ: जिनका मुकुट चंद्रमा से सुसज्जित है, जिनकी भाल दृष्टि से कामदेव के पाँच बाण नष्ट हो गए हैं, जिनके कानों में सर्पों के आभूषण चमक रहे हैं, ऐसे वाराणसी के स्वामी श्री विश्वनाथ का भजन करो।

श्लोक 5:

पंचाननं दुरितमत्तमतङ्गजानां
नागान्तकं दनुजपुंगवपन्नगानाम्।
दावानलं मरणशोकजराटवीनां
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥5॥

अर्थ: जो पांच मुखों वाले हैं, जो पापमय मतवाले हाथियों के संहारक हैं, जो नागों के नाशक और राक्षसों के भी संहारक हैं, जो मृत्यु, शोक और बुढ़ापे के जंगल की दावानल (आग) हैं, ऐसे वाराणसी के स्वामी श्री विश्वनाथ का भजन करो।

श्लोक 6:

तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीयं
आनन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम्।
नागात्मकं सकलनिष्कलमात्मरूपं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥6॥

अर्थ: जो तेजस्वी हैं, जो सगुण और निर्गुण दोनों हैं, जो अद्वितीय हैं, जो आनंद के मूल हैं, जो अपराजित और अप्रमेय हैं, जो नाग स्वरूप हैं, जो संपूर्ण और निष्कल (निर्मल) आत्मस्वरूप हैं, ऐसे वाराणसी के स्वामी श्री विश्वनाथ का भजन करो।

श्लोक 7:

रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं
वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम्।
माधुर्यधैर्यसुभगं गरलाभिरामं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥7॥

अर्थ: जो राग आदि दोषों से रहित हैं, जो अपने जनों के प्रति प्रेम से युक्त हैं, जो वैराग्य और शांति के निवास हैं, जो गिरिजा (पार्वती) के सहायक हैं, जो मधुरता और धैर्य से सुसज्जित हैं, जो विष को धारण करने वाले हैं, ऐसे वाराणसी के स्वामी श्री विश्वनाथ का भजन करो।

श्लोक 8:

आशां विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां
पापे रतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ।
आदाय हृत्कमलमध्यगतं परेशं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥8॥

अर्थ: आशा को त्यागकर, दूसरों की निंदा को परित्याग करके, पाप में रति को रोककर, मन को समाधि में लगाकर, ह्रदय कमल के मध्य में स्थित परमेश्वर को अपनाकर, ऐसे वाराणसी के स्वामी श्री विश्वनाथ का भजन करो।

फलश्रुति:

वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य
व्याख्यातमष्टकमिदं पठते मनुष्यः।
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं
सम्प्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम्।

विश्वनाथाष्टकमिदं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
इति श्रीमहर्षिव्यासप्रणीतं श्रीविश्वनाथाष्टकं सम्पूर्णम्॥

अर्थ: जो व्यक्ति वाराणसी के स्वामी श्री विश्वनाथ के इस स्तोत्र को पढ़ता है, वह विद्या, लक्ष्मी, अधिक सुख, अनन्त कीर्ति प्राप्त करता है और शरीर छोड़ने पर मोक्ष को प्राप्त करता है। श्री विश्वनाथाष्टक को शिव की उपस्थिति में पढ़ने से शिवलोक प्राप्त होता है और शिव के साथ आनंद में निवास करता है। श्रीमहर्षि व्यास द्वारा रचित यह श्री विश्वनाथाष्टक सम्पूर्ण होता है।

श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकम् श्री काशी विश्वनाथ जी की स्तुति में रचा गया एक प्राचीन और महत्वपूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र हमें भगवान शिव की महिमा और उनके विभिन्न रूपों के बारे में विस्तृत जानकारी देता है। इसमें कुल आठ श्लोक हैं, प्रत्येक श्लोक में भगवान शिव के किसी विशेष स्वरूप, उनके आभूषणों, उनके गुणों, और उनकी शक्तियों का वर्णन किया गया है।

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *