भगवान अयप्पा के 108 नाम in Hindi/Sanskrit
॥ श्री अय्यप्प अष्टोत्तरशतनामावलिः ॥
ॐ महाशास्त्रे नमः ।
ॐ महादेवाय नमः ।
ॐ महादेवसुताय नमः ।
ॐ अव्ययाय नमः ।
ॐ लोककर्त्रे नमः ।
ॐ लोकभर्त्रे नमः ।
ॐ लोकहर्त्रे नमः ।
ॐ परात्पराय नमः ।
ॐ त्रिलोकरक्षकाय नमः ॥ ९
ॐ धन्विने नमः ।
ॐ तपस्विने नमः ।
ॐ भूतसैनिकाय नमः ।
ॐ मन्त्रवेदिने नमः ।
ॐ महावेदिने नमः ।
ॐ मारुताय नमः ।
ॐ जगदीश्वराय नमः ।
ॐ लोकाध्यक्षाय नमः ।
ॐ अग्रगण्याय नमः ॥ १८
ॐ श्रीमते नमः ।
ॐ अप्रमेयपराक्रमाय नमः ।
ॐ सिंहारूढाय नमः ।
ॐ गजारूढाय नमः ।
ॐ हयारूढाय नमः ।
ॐ महेश्वराय नमः ।
ॐ नानाशास्त्रधराय नमः ।
ॐ अनघाय नमः ।
ॐ नानाविद्या विशारदाय नमः ॥ २७
ॐ नानारूपधराय नमः ।
ॐ वीराय नमः ।
ॐ नानाप्राणिनिषेविताय नमः ।
ॐ भूतेशाय नमः ।
ॐ भूतिदाय नमः ।
ॐ भृत्याय नमः ।
ॐ भुजङ्गाभरणोज्वलाय नमः ।
ॐ इक्षुधन्विने नमः ।
ॐ पुष्पबाणाय नमः ॥ ३६ ।
ॐ महारूपाय नमः ।
ॐ महाप्रभवे नमः ।
ॐ मायादेवीसुताय नमः ।
ॐ मान्याय नमः ।
ॐ महनीयाय नमः ।
ॐ महागुणाय नमः ।
ॐ महाशैवाय नमः ।
ॐ महारुद्राय नमः ।
ॐ वैष्णवाय नमः ॥ ४५
ॐ विष्णुपूजकाय नमः ।
ॐ विघ्नेशाय नमः ।
ॐ वीरभद्रेशाय नमः ।
ॐ भैरवाय नमः ।
ॐ षण्मुखप्रियाय नमः ।
ॐ मेरुशृङ्गसमासीनाय नमः ।
ॐ मुनिसङ्घनिषेविताय नमः ।
ॐ देवाय नमः ।
ॐ भद्राय नमः ॥ ५४
ॐ जगन्नाथाय नमः ।
ॐ गणनाथाय नामः ।
ॐ गणेश्वराय नमः ।
ॐ महायोगिने नमः ।
ॐ महामायिने नमः ।
ॐ महाज्ञानिने नमः ।
ॐ महास्थिराय नमः ।
ॐ देवशास्त्रे नमः ।
ॐ भूतशास्त्रे नमः ॥ ६३
ॐ भीमहासपराक्रमाय नमः ।
ॐ नागहाराय नमः ।
ॐ नागकेशाय नमः ।
ॐ व्योमकेशाय नमः ।
ॐ सनातनाय नमः ।
ॐ सगुणाय नमः ।
ॐ निर्गुणाय नमः ।
ॐ नित्याय नमः ।
ॐ नित्यतृप्ताय नमः ॥ ७२
ॐ निराश्रयाय नमः ।
ॐ लोकाश्रयाय नमः ।
ॐ गणाधीशाय नमः ।
ॐ चतुःषष्टिकलामयाय नमः ।
ॐ ऋग्यजुःसामाथर्वात्मने नमः ।
ॐ मल्लकासुरभञ्जनाय नमः ।
ॐ त्रिमूर्तये नमः ।
ॐ दैत्यमथनाय नमः ।
ॐ प्रकृतये नमः ॥ ८१
ॐ पुरुषोत्तमाय नमः ।
ॐ कालज्ञानिने नमः ।
ॐ महाज्ञानिने नमः ।
ॐ कामदाय नमः ।
ॐ कमलेक्षणाय नमः ।
ॐ कल्पवृक्षाय नमः ।
ॐ महावृक्षाय नमः ।
ॐ विद्यावृक्षाय नमः ।
ॐ विभूतिदाय नमः ॥ ९०
ॐ संसारतापविच्छेत्रे नमः ।
ॐ पशुलोकभयङ्कराय नमः ।
ॐ रोगहन्त्रे नमः ।
ॐ प्राणदात्रे नमः ।
ॐ परगर्वविभञ्जनाय नमः ।
ॐ सर्वशास्त्रार्थ तत्वज्ञाय नमः ।
ॐ नीतिमते नमः ।
ॐ पापभञ्जनाय नमः ।
ॐ पुष्कलापूर्णासम्युक्ताय नमः ॥ ९९
ॐ परमात्मने नमः ।
ॐ सताङ्गतये नमः ।
ॐ अनन्तादित्यसङ्काशाय नमः ।
ॐ सुब्रह्मण्यानुजाय नमः ।
ॐ बलिने नमः ।
ॐ भक्तानुकम्पिने नमः ।
ॐ देवेशाय नमः ।
ॐ भगवते नमः ।
ॐ भक्तवत्सलाय नमः ॥ १०८
108 Names of Lord Ayyappa in English
॥ Shri Ayyappa Ashtottarashatanamavaliḥ ॥
Om Mahashastre Namah ।
Om Mahadevaya Namah ।
Om Mahadevasutaya Namah ।
Om Avyayaya Namah ।
Om Lokakartre Namah ।
Om Lokabhartre Namah ।
Om Lokahartre Namah ।
Om Paratparaya Namah ।
Om Trilokarakshakaya Namah ॥ 9
Om Dhanvine Namah ।
Om Tapasvine Namah ।
Om Bhutasainikaya Namah ।
Om Mantravedine Namah ।
Om Mahavedine Namah ।
Om Marutaya Namah ।
Om Jagadishvaraya Namah ।
Om Lokadhyakshaya Namah ।
Om Agraganyaya Namah ॥ 18
Om Shrimate Namah ।
Om Aprameyaparakramaya Namah ।
Om Simharudhaya Namah ।
Om Gajarudhaya Namah ।
Om Hayarudhaya Namah ।
Om Maheshvaraya Namah ।
Om Nanashastradharaya Namah ।
Om Anaghaya Namah ।
Om Nanavidya Visharadaya Namah ॥ 27
Om Nanarupadharaya Namah ।
Om Viraya Namah ।
Om Nanapraninishevitaya Namah ।
Om Bhuteshaya Namah ।
Om Bhutidaya Namah ।
Om Bhrityaya Namah ।
Om Bhujangabharanojjvalaya Namah ।
Om Ikshudhanvine Namah ।
Om Pushpabanaya Namah ॥ 36
Om Maharupaya Namah ।
Om Mahaprabhave Namah ।
Om Mayadevisutaya Namah ।
Om Manyaya Namah ।
Om Mahaniyaya Namah ।
Om Mahagunaya Namah ।
Om Mahashaivaya Namah ।
Om Maharudraya Namah ।
Om Vaishnavaya Namah ॥ 45
Om Vishnupujakaya Namah ।
Om Vighneshaya Namah ।
Om Virabhadreshaya Namah ।
Om Bhairavaya Namah ।
Om Shanmukhapriyaya Namah ।
Om Merushringasamasinaya Namah ।
Om Munisanghanishevitaya Namah ।
Om Devaya Namah ।
Om Bhadraya Namah ॥ 54
Om Jagannathaya Namah ।
Om Ganathaya Namah ।
Om Ganeshvaraya Namah ।
Om Mahayogine Namah ।
Om Mahamayine Namah ।
Om Mahajnanine Namah ।
Om Mahasthiraya Namah ।
Om Devashastre Namah ।
Om Bhutashastre Namah ॥ 63
Om Bhimahasaparakramaya Namah ।
Om Nagaharaya Namah ।
Om Nagakeshaya Namah ।
Om Vyomakeshaya Namah ।
Om Sanatanaya Namah ।
Om Sagunaya Namah ।
Om Nirgunaya Namah ।
Om Nityaya Namah ।
Om Nityatriptaya Namah ॥ 72
Om Nirashrayaya Namah ।
Om Lokashrayaya Namah ।
Om Ganadhishaya Namah ।
Om Chatushashtikalamayaya Namah ।
Om Rigyajuhsamatharvatmane Namah ।
Om Mallakasurabhanjanaya Namah ।
Om Trimurtaye Namah ।
Om Daityamathanaya Namah ।
Om Prakritaye Namah ॥ 81
Om Purushottamaya Namah ।
Om Kalajnanine Namah ।
Om Mahajnanine Namah ।
Om Kamadaya Namah ।
Om Kamalekshanaya Namah ।
Om Kalpavrikshaya Namah ।
Om Mahavrikshaya Namah ।
Om Vidyavrikshaya Namah ।
Om Vibhutidaya Namah ॥ 90
Om Samsaratapavichchhetre Namah ।
Om Pashulokabhayankaraya Namah ।
Om Rogahantre Namah ।
Om Pranadatre Namah ।
Om Paragarvavibhanjanaya Namah ।
Om Sarvashastrartha Tatvajnaya Namah ।
Om Neetimate Namah ।
Om Papabhanjanaya Namah ।
Om Pushkalapurnasamyuktaya Namah ॥ 99
Om Paramatmane Namah ।
Om Satangataye Namah ।
Om Anantadityasankashaya Namah ।
Om Subrahmanyanujaya Namah ।
Om Baline Namah ।
Om Bhaktanukampine Namah ।
Om Deveshaya Namah ।
Om Bhagavate Namah ।
Om Bhaktavatsalaya Namah ॥ 108
श्री अय्यप्प अष्टोत्तरशतनामावलिः PDF Download
श्री अय्यप्प अष्टोत्तरशतनामावलिः का अर्थ
॥ श्री अय्यप्प अष्टोत्तरशतनामावलिः ॥
यह 108 नामों का संग्रह है जो भगवान अय्यप्प को समर्पित है। हर नाम भगवान अय्यप्प के एक विशेष गुण, शक्ति या स्वरूप को दर्शाता है। अय्यप्प स्वामी दक्षिण भारत में पूज्य देवता हैं, जिन्हें विशेष रूप से केरल के सबरीमाला मंदिर में पूजा जाता है। इस नामावली का पाठ अय्यप्प स्वामी की पूजा के दौरान किया जाता है और यह भक्तों को भगवान के विविध स्वरूपों और उनके दिव्य गुणों का स्मरण कराता है।
पूरे नामों का विस्तृत विवरण:
- महाशास्त्रे: जो महान शास्त्रधारी हैं।
- महादेवाय: जो स्वयं महादेव हैं।
- महादेवसुताय: जो महादेव के पुत्र हैं।
- अव्ययाय: जो अविनाशी और अचल हैं।
- लोककर्त्रे: जो सम्पूर्ण लोक के रचयिता हैं।
- लोकभर्त्रे: जो संसार का पालन करने वाले हैं।
- लोकहर्त्रे: जो संसार का संहार करने वाले हैं।
- परात्पराय: जो परमात्मा से भी श्रेष्ठ हैं।
- त्रिलोकरक्षकाय: जो तीनों लोकों की रक्षा करने वाले हैं।
- धन्विने: जो धनुषधारी हैं।
- तपस्विने: जो महान तपस्वी हैं।
- भूतसैनिकाय: जो भूतगणों के सेनापति हैं।
- मन्त्रवेदिने: जो सभी मंत्रों को जानते हैं।
- महावेदिने: जो महान वेदों के ज्ञाता हैं।
- मारुताय: जो वायु के समान गतिशील हैं।
- जगदीश्वराय: जो सम्पूर्ण जगत के ईश्वर हैं।
- लोकाध्यक्षाय: जो लोकों के अध्यक्ष हैं।
- अग्रगण्याय: जो सबसे आगे और मुख्य हैं।
- श्रीमते: जो श्री से संपन्न हैं।
- अप्रमेयपराक्रमाय: जिनकी पराक्रम को मापा नहीं जा सकता।
- सिंहारूढाय: जो सिंह पर आरूढ़ हैं।
- गजारूढाय: जो गज पर आरूढ़ हैं।
- हयारूढाय: जो घोड़े पर आरूढ़ हैं।
- महेश्वराय: जो महेश्वर हैं, सबका स्वामी।
- नानाशास्त्रधराय: जो विभिन्न शस्त्रों को धारण करने वाले हैं।
- अनघाय: जो पाप रहित हैं।
- नानाविद्या विशारदाय: जो विभिन्न विद्याओं के ज्ञाता हैं।
- नानारूपधराय: जो विभिन्न रूप धारण करने वाले हैं।
- वीराय: जो वीर हैं।
- नानाप्राणिनिषेविताय: जो विभिन्न प्राणियों द्वारा पूजित हैं।
- भूतेशाय: जो भूतों के स्वामी हैं।
- भूतिदाय: जो समृद्धि देने वाले हैं।
- भृत्याय: जो भक्तों के सेवक हैं।
- भुजङ्गाभरणोज्वलाय: जिनका अलंकरण सर्प हैं।
- इक्षुधन्विने: जिनका धनुष गन्ने का बना है।
- पुष्पबाणाय: जो पुष्पबाण धारण करने वाले हैं।
- महारूपाय: जो महान रूप वाले हैं।
- महाप्रभवे: जिनकी महान प्रभा है।
- मायादेवीसुताय: जो मायादेवी के पुत्र हैं।
- मान्याय: जो सम्माननीय हैं।
- महनीयाय: जो पूजनीय हैं।
- महागुणाय: जिनके महान गुण हैं।
- महाशैवाय: जो शिव के परम भक्त हैं।
- महारुद्राय: जो महारुद्र हैं।
- वैष्णवाय: जो विष्णु के उपासक हैं।
- विष्णुपूजकाय: जो विष्णु की पूजा करने वाले हैं।
- विघ्नेशाय: जो विघ्नों को दूर करने वाले हैं।
- वीरभद्रेशाय: जो वीरभद्र के स्वामी हैं।
- भैरवाय: जो भैरव हैं, उग्र रूप।
- षण्मुखप्रियाय: जो षण्मुख (कार्तिकेय) के प्रिय हैं।
- मेरुशृङ्गसमासीनाय: जो मेरु पर्वत पर स्थित हैं।
- मुनिसङ्घनिषेविताय: जिनकी सेवा मुनि करते हैं।
- देवाय: जो देवता हैं।
- भद्राय: जो शुभ और कल्याणकारी हैं।
- जगन्नाथाय: जो जगत के नाथ हैं।
- गणनाथाय: जो गणों के स्वामी हैं।
- गणेश्वराय: जो गणों के ईश्वर हैं।
- महायोगिने: जो महान योगी हैं।
- महामायिने: जो महान माया के स्वामी हैं।
- महाज्ञानिने: जो महान ज्ञानी हैं।
- महास्थिराय: जो अत्यंत स्थिर हैं।
- देवशास्त्रे: जो देवताओं के शास्त्र हैं।
- भूतशास्त्रे: जो भूतों के शास्त्र हैं।
- भीमहासपराक्रमाय: जिनका पराक्रम महान है।
- नागहाराय: जिनका आभूषण सर्प है।
- नागकेशाय: जिनके केश नागों से सज्जित हैं।
- व्योमकेशाय: जिनके केश आकाश में फैले हैं।
- सनातनाय: जो सनातन हैं।
- सगुणाय: जो सगुण रूप में हैं।
- निर्गुणाय: जो निर्गुण रूप में हैं।
- नित्याय: जो नित्य हैं।
- नित्यतृप्ताय: जो सदा तृप्त हैं।
- निराश्रयाय: जो किसी के अधीन नहीं हैं।
- लोकाश्रयाय: जो सम्पूर्ण लोक के आश्रय हैं।
- गणाधीशाय: जो गणों के अध्यक्ष हैं।
- चतुःषष्टिकलामयाय: जिनमें 64 कलाएं विद्यमान हैं।
- ऋग्यजुःसामाथर्वात्मने: जो चारों वेदों के आत्मा हैं।
- मल्लकासुरभञ्जनाय: जिन्होंने मल्लासुर का संहार किया।
- त्रिमूर्तये: जो त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के स्वरूप हैं।
- दैत्यमथनाय: जो दैत्यों का संहार करने वाले हैं।
- प्रकृतये: जो प्रकृति के आधार हैं।
- पुरुषोत्तमाय: जो परम पुरुष हैं।
- कालज्ञानिने: जो काल के ज्ञाता हैं।
- महाज्ञानिने: जो महान ज्ञानवान हैं।
- कामदाय: जो इच्छाओं को पूरा करने वाले हैं।
- कमलेक्षणाय: जिनकी आँखें कमल के समान हैं।
- कल्पवृक्षाय: जो कल्पवृक्ष के समान हैं।
- महावृक्षाय: जो महान वृक्ष हैं।
- विद्यावृक्षाय: जो विद्याओं के वृक्ष हैं।
- विभूतिदाय: जो ऐश्वर्य देने वाले हैं।
- संसारतापविच्छेत्रे: जो संसार के ताप को हरने वाले हैं।
- पशुलोकभयङ्कराय: जो पशुओं को भय देने वाले हैं।
- रोगहन्त्रे: जो रोगों को हरने वाले हैं।
- प्राणदात्रे: जो प्राणों के दाता हैं।
- परगर्वविभञ्जनाय: जो दूसरों के गर्व को नष्ट करने वाले हैं।
- सर्वशास्त्रार्थ तत्वज्ञाय: जो सभी शास्त्रों के तत्व के ज्ञाता हैं।
- नीतिमते: जो नीति के ज्ञाता हैं।
- पापभञ्जनाय: जो पापों को नष्ट करने वाले हैं।
- पुष्कलापूर्णासम्युक्ताय: जो पुष्कला देवी के साथ हैं।
- परमात्मने: जो परमात्मा हैं।
- सताङ्गतये: जो सत्संगति में हैं।
- अनन्तादित्यसङ्काशाय: जो अनंत और सूर्य के समान तेजस्वी हैं।
- सुब्रह्मण्यानुजाय: जो सुब्रह्मण्य (कार्तिकेय) के अनुज हैं।
- बलिने: जो बलशाली हैं।
- भक्तानुकम्पिने: जो भक्तों पर दया करते हैं।
- देवेशाय: जो देवताओं के स्वामी हैं।
- भगवते: जो भगवान हैं।
- भक्तवत्सलाय: जो भक्तों के प्रति स्नेह रखने वाले हैं।
इस प्रकार यह नामावली भगवान अय्यप्प के दिव्य गुणों, उनकी शक्तियों और उनके महान कार्यों का वर्णन करती है। इस नामावली का पाठ करने से भगवान अय्यप्प की कृपा प्राप्त होती है और साधक के जीवन में समृद्धि, शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
भगवान अय्यप्प
श्री अय्यप्प अष्टोत्तरशतनामावलि भगवान अय्यप्प की 108 नामों की एक स्तुति है, जो उनके विविध स्वरूपों, गुणों और शक्तियों का वर्णन करती है। अय्यप्प स्वामी की उपासना मुख्य रूप से दक्षिण भारत में होती है, खासकर केरल के सबरीमाला मंदिर में, जहाँ हर साल लाखों भक्त उन्हें श्रद्धा अर्पित करने आते हैं।
भगवान अय्यप्प के विषय में:
भगवान अय्यप्प को शिव और विष्णु के संयुक्त अवतार के रूप में माना जाता है। उनकी उत्पत्ति की कथा के अनुसार, जब राक्षसी महिषासुर के अत्याचारों से त्रस्त होकर देवता भगवान शिव और मोहिनी (भगवान विष्णु का स्त्री रूप) के पास मदद के लिए पहुंचे, तब भगवान अय्यप्प का जन्म हुआ। वह राक्षसी को पराजित करने के लिए प्रकट हुए थे और उनका उद्देश्य देवताओं और भक्तों की रक्षा करना था। इसलिए उन्हें ‘हरिहरपुत्र’ भी कहा जाता है, जिसमें ‘हरि’ का अर्थ विष्णु और ‘हर’ का अर्थ शिव है।
अष्टोत्तरशतनामावलि का महत्व:
- आध्यात्मिक उन्नति: इस नामावली का पाठ भक्तों के जीवन में आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति और स्थिरता लाता है। यह ध्यान और साधना में सहायता करता है।
- संकट से मुक्ति: अय्यप्प स्वामी की आराधना से भक्तों को जीवन के संकटों, कष्टों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
- भक्तों की रक्षा: भगवान अय्यप्प को त्रिलोकरक्षक कहा जाता है, अर्थात् वे तीनों लोकों की रक्षा करते हैं। यह नामावली उनके रक्षक रूप का स्मरण कर भक्तों को सुरक्षा का अनुभव कराती है।
- सकारात्मक ऊर्जा: इस नामावली का पाठ घर या पूजा स्थल में सकारात्मक ऊर्जा और वातावरण का निर्माण करता है। इससे परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
- प्रसिद्ध तीर्थ यात्रा: सबरीमाला मंदिर में भगवान अय्यप्प की पूजा के दौरान, इस नामावली का विशेष महत्व है। भक्त 41 दिनों तक व्रत और संयम का पालन करते हैं और इस नामावली का पाठ कर अपनी भक्ति और श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
अय्यप्प स्वामी के स्वरूप और प्रतीक:
- योगमुद्रा: भगवान अय्यप्प को योगमुद्रा में बैठे हुए दर्शाया जाता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे सभी सांसारिक मोह-माया से परे हैं और ध्यान में स्थित हैं।
- शक्तिशाली योद्धा: उनके नामों में महाशास्त्र, धन्वि, तपस्वी, और वीर जैसे गुण उनके शक्तिशाली योद्धा स्वरूप का संकेत देते हैं, जो अन्याय और अधर्म का नाश करने के लिए तत्पर रहते हैं।
- सर्पाभूषण: वे सर्प को आभूषण के रूप में धारण करते हैं, जो उनके उग्र और शौर्यपूर्ण स्वरूप को दर्शाता है।
- भक्तवत्सल: भगवान अय्यप्प अपने भक्तों के प्रति करुणा और स्नेह रखने वाले हैं। वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनकी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं।
श्री अय्यप्प अष्टोत्तरशतनामावलि का पाठ:
भक्त इस नामावली का पाठ अय्यप्प स्वामी की आरती, अभिषेक या पूजा के समय करते हैं। इस नामावली को गाते हुए, भक्त भगवान अय्यप्प के प्रत्येक नाम के साथ उनका ध्यान करते हैं और उनसे अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं। इसे पाठ करने का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल और सायं काल माना जाता है। इससे घर में सकारात्मकता और शुभता का संचार होता है।
समापन:
इस नामावली का नियमित पाठ भक्तों को भगवान अय्यप्प की कृपा और संरक्षण प्रदान करता है। अय्यप्प स्वामी की उपासना उनके भक्तों को संयम, साधना, और आत्मानुशासन की शिक्षा देती है, जो उनके जीवन को सफल और सार्थक बनाती है।