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नमो भूथ नाधम नमो देव देवं,
नाम कला कालं नमो दिव्य थेजं,
नाम काम असमं, नाम संथ शीलं,
भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं ।

सदा थीर्थ सिधं, साध भक्था पक्षं,
सदा शिव पूज्यं, सदा शूर बस्मं,
सदा ध्यान युक्थं, सदा ज्ञान दल्पं,
भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं ।

स्मसानं भयनं महा स्थान वासं,
सरीरं गजानां सदा चर्म वेष्टं,
पिसचं निसेस समा पशूनां प्रथिष्टं,
भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं ।

फनि नाग कन्दे, भ्जुअन्गःद अनेकं,
गले रुण्ड मलं, महा वीर सूरं,
कादि व्यग्र सर्मं., चिथ बसम लेपं,
भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं ।

सिराद शुद्ध गङ्गा, श्हिवा वाम भागं,
वियद दीर्ग केसम सदा मां त्रिनेथ्रं,
फणी नाग कर्णं सदा बल चन्द्रं,
भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं ।

करे सूल धरं महा कष्ट नासं,
सुरेशं वरेसं महेसं जनेसं,
थाने चारु ईशं, द्वजेसम्, गिरीसं,
भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं ।

उधसं सुधासम, सुकैलस वासं,
दर निर्ध्रं सस्म्सिधि थं ह्यथि देवं,
अज हेम कल्पध्रुम कल्प सेव्यं,
भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं ।

मुनेनं वरेण्यं, गुणं रूप वर्णं,
ड्विज संपदस्थं शिवं वेद सस्थ्रं,
अहो धीन वत्सं कृपालुं शिवं,
भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं ।

सदा भव नाधम, सदा सेव्य मानं,
सदा भक्थि देवं, सदा पूज्यमानं,
मया थीर्थ वासं, सदा सेव्यमेखं,
भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं ।

पार्वती वल्लभा अष्टकम्

नमो भूथ नाधम नमो देव देवं (शिव स्तुति)

यह स्तुति भगवान शिव को समर्पित है, जो उनके विभिन्न गुणों और स्वरूपों का वर्णन करती है। इस स्तुति में भगवान शिव के महानतम और अद्वितीय गुणों की महिमा गायी गई है। आइए इसे विस्तार से समझें।

नमो भूथ नाधम नमो देव देवं

शिव की सर्वव्यापकता का गुणगान
इस पंक्ति में शिव को “भूतनाथ” और “देवों के देव” के रूप में नमन किया गया है। भूतनाथ का अर्थ है समस्त प्राणियों के स्वामी, जो इस ब्रह्मांड के समस्त जीवों के संरक्षक हैं। देवों के देव यानी महादेव, जो समस्त देवताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं।

नाम कला कालं नमो दिव्य थेजं

शिव की असीमित शक्ति और तेज
यह पंक्ति शिव की असीम शक्ति और दिव्य तेज को नमन करती है। शिव वह हैं जिनका स्वरूप समय के परे है। वे काल के भी काल हैं, यानी समय का भी अंत करने वाले। साथ ही उनका दिव्य तेज हर जगह व्याप्त है, जो समस्त ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है।

नाम काम असमं, नाम संथ शीलं

शिव का अद्वितीय सौंदर्य और शांत स्वभाव
यहाँ शिव के अद्वितीय सौंदर्य और उनके शांत स्वभाव की प्रशंसा की गई है। शिव को काम असम कहा गया है, जिसका अर्थ है कि उनका सौंदर्य अतुलनीय है। साथ ही उनका स्वभाव इतना शांत और स्थिर है कि वे सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं

शिव की पार्वती से अटूट बंधन
शिव को यहाँ पार्वती वल्लभ कहा गया है, जिसका अर्थ है पार्वती के प्रिय। यह उनके अटूट प्रेम और समर्पण को दर्शाता है। साथ ही उन्हें नीलकंठ भी कहा गया है, जो इस बात का प्रतीक है कि उन्होंने समुद्र मंथन के समय विष का पान किया था और उनके गले में विष के प्रभाव से नीला रंग हो गया था।

सदा थीर्थ सिधं, साध भक्था पक्षं

शिव हमेशा तीर्थ में उपस्थित और भक्तों के रक्षक
शिव को यहाँ तीर्थों में सदैव उपस्थित और भक्तों के पक्षधर के रूप में नमन किया गया है। वे हमेशा तीर्थ स्थानों में विद्यमान रहते हैं, जहाँ उनके भक्त उनकी पूजा करते हैं। वे सदैव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनके प्रति दयालु रहते हैं।

सदा शिव पूज्यं, सदा शूर बस्मं

शिव सदैव पूजनीय और शूरवीर
शिव सदैव पूजनीय हैं और उनका आभूषण है भस्म। शिव की पूजा करने वाले हमेशा उनकी वीरता और महानता का गुणगान करते हैं। वे युद्ध में अपराजित योद्धा हैं और अपनी वीरता के प्रतीक रूप में भस्म को धारण करते हैं।

सदा ध्यान युक्थं, सदा ज्ञान दल्पं

ध्यान और ज्ञान के अधिष्ठाता
शिव सदैव ध्यान में लीन रहते हैं और वे ज्ञान के अधिष्ठाता हैं। उनके ध्यान में असीम शांति है और उनके ज्ञान का कोई अंत नहीं है। वे आध्यात्मिकता के सर्वोच्च प्रतीक हैं और साधक उनके ध्यान से अपार ज्ञान प्राप्त करते हैं।

स्मसानं भयनं महा स्थान वासं

शिव का स्मशानवासी स्वरूप
शिव का एक महत्वपूर्ण स्वरूप स्मशानवासी के रूप में जाना जाता है। यह पंक्ति इस बात की ओर इंगित करती है कि शिव का निवास स्थान स्मशान है, जो भयानक और भयावह स्थान के रूप में जाना जाता है। इसका आध्यात्मिक अर्थ यह है कि शिव मृत्यु से परे हैं और जीवन-मृत्यु के बंधनों से मुक्त हैं। वे संसारिक माया और भयों से निर्लिप्त रहते हैं, इसलिए वे इस दुनिया के भयावह स्थान, जैसे कि स्मशान में रहते हैं।

सरीरं गजानां सदा चर्म वेष्टं

शिव का गजचर्म धारण करना
यह पंक्ति बताती है कि शिव ने गजचर्म (हाथी की खाल) धारण किया हुआ है। यह प्रतीक है उनकी वीरता का, क्योंकि उन्होंने गजराक्षस का संहार कर उसकी खाल को अपने शरीर पर धारण किया। यह उनके अद्वितीय बल और शक्ति का प्रमाण है, और उनके त्याग एवं तपस्या की गहराई को दर्शाता है।

पिसाचं निसेस समा पशूनां प्रथिष्टं

शिव के साथ पिशाचों और पशुओं का संबंध
शिव के साथ पिशाचों और पशुओं का वर्णन भी किया गया है। यह पंक्ति दर्शाती है कि शिव पिशाचों और पशुओं के भी देवता हैं। शिव समस्त जीवों के रक्षक हैं, चाहे वे इंसान हों या अन्य जीव। उनका आशीर्वाद हर प्राणी पर समान रूप से होता है। यह शिव की करुणा और उनकी सार्वभौमिकता का प्रतीक है।

फनि नाग कन्दे, भुजंगःद अनेकं

शिव का नागों का आभूषण
शिव के गले में नाग (सर्प) लिपटे हुए होते हैं। यह सर्प उनके आभूषण के रूप में हैं, जो उनके शक्तिशाली और भयानक स्वरूप को दर्शाता है। नाग को शिव के कंठ में देखना इस बात का संकेत है कि वे काल (समय) और मृत्यु पर नियंत्रण रखते हैं। शिव का यह रूप उनके भक्तों को यह संदेश देता है कि वे सभी भय से मुक्त रहें, क्योंकि शिव ही समय और मृत्यु के स्वामी हैं।

गले रुण्ड मलं, महा वीर सूरं

वीर शिव का रुण्डमाला धारण करना
शिव के गले में रुण्डमाला है, यानी खोपड़ियों की माला। यह माला उनकी वीरता और मृत्यु पर विजय का प्रतीक है। शिव का यह रूप यह दर्शाता है कि वे मृत्यु के भी देवता हैं और उनके सामने सभी समर्पित होते हैं। वे महावीर हैं, जो किसी भी परिस्थिति में अद्वितीय साहस का प्रदर्शन करते हैं।

कादि व्यग्र सर्मं, चिथ बसम लेपं

शिव का व्याघ्रचर्म और भस्म धारण करना
शिव के वस्त्र के रूप में व्याघ्रचर्म (बाघ की खाल) है, और उनका शरीर चिता की भस्म से लेपा हुआ है। यह उनके संन्यासी जीवन का प्रतीक है। वे माया, मोह और सांसारिक सुखों से परे हैं। भस्म इस बात का प्रतीक है कि संसार में हर चीज़ अस्थायी है, और अंततः सब कुछ मिट्टी में मिल जाता है। शिव का भस्म लेपित शरीर मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति की ओर इंगित करता है।

सिराद शुद्ध गङ्गा, शिवा वाम भागं

शिव के सिर पर गंगा और शिवा का संग
शिव के सिर पर शुद्ध गंगा विराजमान हैं, जो उनकी कृपा और शुद्धता का प्रतीक है। गंगा का उनके सिर से प्रकट होना यह दर्शाता है कि वे संसार को जीवनदायिनी जल देने वाले हैं। साथ ही, शिव की पत्नी शिवा (पार्वती) उनके वाम भाग में विराजमान हैं, जो उनके दांपत्य प्रेम और अर्धनारीश्वर रूप को दर्शाता है। इसका आध्यात्मिक अर्थ यह है कि शिव और शक्ति (पार्वती) एक-दूसरे के पूरक हैं, और उनकी एकता संसार की सृष्टि और पालन का आधार है।

वियद दीर्ग केसम सदा मां त्रिनेथ्रं

त्रिनेत्रधारी शिव
शिव के तीन नेत्र हैं, जो उनके त्रिकालदर्शी स्वरूप को दर्शाते हैं। उनका तीसरा नेत्र अग्नि का प्रतीक है, जो संसार के अज्ञान और अंधकार को समाप्त करता है। शिव का त्रिनेत्र यह भी संकेत करता है कि वे भूत, वर्तमान और भविष्य – तीनों कालों के ज्ञाता हैं। उनके दीर्घ केश उन्हें योगी रूप में प्रस्तुत करते हैं, और यह उनकी साधना और तपस्या का प्रतीक है।

फणी नाग कर्णं सदा बल चन्द्रं

शिव के कर्णों में नाग और मस्तक पर चन्द्रमा
शिव के कानों में नाग हैं, जो उनके भयंकर और शक्तिशाली स्वरूप को दर्शाते हैं। उनके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित है, जो शांति और शीतलता का प्रतीक है। चन्द्रमा उनके माथे पर यह दर्शाता है कि वे संसार के संतुलन को बनाए रखते हैं। वे कठोरता और कोमलता, दोनों का अद्वितीय मिश्रण हैं।

करे सूल धरं महा कष्ट नासं

शिव का त्रिशूल और कष्टों का नाश
शिव के हाथ में त्रिशूल है, जो उनके तीन प्रमुख गुणों – सृजन, पालन, और संहार – का प्रतीक है। त्रिशूल के माध्यम से वे संसार के कष्टों का नाश करते हैं और अपने भक्तों को दुःखों से मुक्ति दिलाते हैं। उनके इस स्वरूप में असीम शक्ति और दयालुता का समन्वय है।

सुरेशं वरेसं महेसं जनेसं

सर्वेश्वर शिव
शिव को सुरेश (देवताओं के राजा), वरेश (वरदान देने वाले), महेश (महान देव), और जनेश (जीवों के स्वामी) कहा गया है। ये सभी नाम शिव के विभिन्न स्वरूपों और शक्तियों को दर्शाते हैं। वे देवताओं के भी देव हैं और उनके पास अनंत शक्ति है। वे संसार के समस्त जीवों के स्वामी और पालक हैं।

थाने चारु ईशं, द्वजेसम्, गिरीसं

गिरीश – पर्वतों के स्वामी शिव
शिव को यहाँ गिरीश कहा गया है, जिसका अर्थ है पर्वतों के स्वामी। यह उनके हिमालय के साथ संबंध को दर्शाता है, जो उनके निवास स्थान के रूप में जाना जाता है। इसके साथ ही उन्हें द्वजेश (ध्वज के स्वामी) कहा गया है, जो उनकी विजय और अधिकार का प्रतीक है। उनका स्वरूप एक सशक्त राजा का है, जो संसार के सभी क्षेत्रों में राज करते हैं।

उधसं सुधासम, सुकैलस वासं

शिव का अमृतमय और कैलाशवासी स्वरूप
यहाँ शिव को अमृतमय कहा गया है, जो दर्शाता है कि उनका स्वरूप अमरत्व से युक्त है। शिव के शरीर से अमृत की धारा बहती है, जो उनके शाश्वत जीवन का प्रतीक है। साथ ही, उनका निवास स्थान सुकैलाश यानी कैलाश पर्वत है। कैलाश पर्वत शिव के लिए एक विशेष स्थान है, जहाँ वे ध्यानमग्न रहते हैं। यह उनकी साधना और आत्मानुशासन का प्रतीक है।

दर निर्ध्रं सस्म्सिधि थं ह्यथि देवं

शिव का निर्धनता और सिद्धि का स्वामी होना
शिव को निर्ध्र यानी समस्त बाधाओं और निर्धनताओं से मुक्त माना गया है। वे संसार के समस्त दुखों और अभावों को समाप्त करने वाले देवता हैं। शिव को सिद्धियों का स्वामी कहा गया है, जिसका अर्थ है कि उनके आशीर्वाद से साधक सभी प्रकार की सिद्धियों को प्राप्त कर सकते हैं। वे भक्तों के जीवन में समृद्धि और शांति लाते हैं। शिव की साधना करने से मनुष्य को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।

अज हेम कल्पध्रुम कल्प सेव्यं

शिव का अज (अजन्मा) और कल्पवृक्ष स्वरूप
शिव को अज कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे अजन्मा हैं। शिव का कोई जन्म नहीं हुआ, वे अनादि और अनंत हैं। साथ ही, उन्हें कल्पवृक्ष के समान कहा गया है, जो इच्छाओं को पूर्ण करने वाला वृक्ष होता है। शिव अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। जो भी भक्त उनकी भक्ति करता है, उसे शिव की कृपा से उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं

पार्वती के प्रिय नीलकंठ
यहाँ फिर से शिव को पार्वती वल्लभ और नीलकंठ के रूप में नमन किया गया है। शिव का यह स्वरूप उनके समर्पण और प्रेम को दर्शाता है। शिव ने पार्वती के साथ अपने अटूट बंधन को स्थापित किया और विषपान कर संसार की रक्षा की। उनके गले का नीला रंग उनकी इस महानता का प्रतीक है।

मुनेनं वरेण्यं, गुणं रूप वर्णं

शिव का ऋषियों में श्रेष्ठ और गुणों से युक्त स्वरूप
शिव को यहाँ मुनेनं वरेण्यं कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे ऋषियों में श्रेष्ठ हैं। वे ज्ञान और तपस्या के प्रतीक हैं और सदैव साधकों के आदर्श रहे हैं। शिव के गुणों की महिमा अनंत है, उनका रूप और स्वरूप अद्वितीय है। उनके चरित्र में गुणों की कोई सीमा नहीं है और उनका रूप अत्यंत आकर्षक और प्रभावशाली है।

ड्विज संपदस्थं शिवं वेद सस्थ्रं

शिव का विद्वानों में प्रतिष्ठित और वेदों के ज्ञाता स्वरूप
यहाँ शिव को द्विज (ब्राह्मण या विद्वान) संपदस्थं कहा गया है, यानी वे विद्वानों और ब्राह्मणों के बीच अत्यंत प्रतिष्ठित हैं। वे वेदों और शास्त्रों के सर्वोच्च ज्ञाता हैं। शिव को समस्त ज्ञान का स्रोत माना जाता है, और उनके उपदेश और शिक्षाएं वेदों में वर्णित हैं। वे धर्म और न्याय के आदर्श रूप हैं, और उनका ज्ञान मानवता के कल्याण के लिए है।

अहो धीन वत्सं कृपालुं शिवं

दयालु शिव
शिव को कृपालु कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे अत्यंत दयालु हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा कृपा दृष्टि रखते हैं, चाहे वे किसी भी अवस्था में हों। शिव दीन-दुखियों के रक्षक और स्नेही पिता हैं। उनके पास हर उस व्यक्ति के लिए सहानुभूति है, जो कष्ट में होता है। उनकी करुणा और दया का कोई मोल नहीं है, और वे हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

सदा भव नाधम, सदा सेव्य मानं

शिव का सदा पूजनीय और सेवनीय होना
शिव को भव नाथ कहा गया है, जो संसार के स्वामी हैं। वे सदा सेव्य मानं हैं, जिसका अर्थ है कि वे हमेशा पूजनीय और सेवनीय हैं। उनके भक्तों द्वारा उनकी सेवा और पूजा सदैव की जाती है। शिव का यह स्वरूप दर्शाता है कि वे कभी भी अपने भक्तों से दूर नहीं होते और हमेशा उनकी भक्ति स्वीकार करते हैं।

सदा भक्थि देवं, सदा पूज्यमानं

भक्ति के देवता शिव
शिव को यहाँ भक्ति के देवता के रूप में वर्णित किया गया है। वे भक्ति के प्रतीक हैं और उनके भक्त उन्हें पूरी निष्ठा से पूजते हैं। वे सदैव पूजनीय हैं और उनके प्रति भक्तों की श्रद्धा और समर्पण अटूट रहता है। शिव की भक्ति करने से भक्तों को आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मया थीर्थ वासं, सदा सेव्यमेखं

शिव का तीर्थवास और सेवनीय स्वरूप
शिव का निवास स्थान तीर्थ है, यानी वे सदैव तीर्थ स्थानों में रहते हैं जहाँ भक्त उनकी सेवा करते हैं। तीर्थ स्थानों पर शिव की उपस्थिति से वहाँ की पवित्रता और महत्व बढ़ जाता है। शिव को सेव्यमेखं कहा गया है, यानी वे ऐसे देवता हैं, जिनकी सेवा करना सौभाग्य की बात है। उनके प्रति समर्पित रहने से सभी सांसारिक और आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान मिलता है।

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं

शिव की अंतिम स्तुति
इस अंतिम पंक्ति में पुनः शिव को पार्वती वल्लभ और नीलकंठ के रूप में नमन किया गया है। इस स्तुति के अंत में भक्त शिव के इस अद्वितीय और दिव्य स्वरूप को स्मरण करते हुए उन्हें नमन करता है। उनकी महिमा का गुणगान करते हुए भक्त अपनी प्रार्थना को पूर्ण करता है।


यह शिव स्तुति भगवान शिव के महान गुणों, स्वरूपों, और उनकी अनंत शक्तियों की महिमा का विस्तृत वर्णन है। यह स्तुति भगवान शिव के प्रति भक्तों के अटूट प्रेम, श्रद्धा, और समर्पण को व्यक्त करती है।

शिव का त्रिनेत्र (तीन नेत्रों का प्रतीक)

शिव को त्रिनेत्रधारी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि उनके तीन नेत्र हैं। उनके तीन नेत्र अतीत, वर्तमान, और भविष्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि शिव कालातीत हैं और वे समय के सभी आयामों को देख सकते हैं।
उनका तीसरा नेत्र ज्ञान और विनाश का प्रतीक भी है। जब यह नेत्र खुलता है, तो वह अज्ञानता और अंधकार का नाश कर देता है। यह नेत्र चेतना और विवेक का प्रतीक है, जो संसार के अज्ञान का अंत करता है और आत्मज्ञान का प्रकाश फैलाता है।

शिव का नटराज स्वरूप

नटराज शिव का वह रूप है जिसमें वे तांडव नृत्य करते हैं। यह नृत्य सृष्टि, संहार, और पुनर्निर्माण का प्रतीक है। शिव का यह रूप दर्शाता है कि जीवन निरंतर परिवर्तनशील है और नाश के बाद पुनर्निर्माण अवश्य होता है। नटराज का यह स्वरूप विज्ञान और कला के संगम को दर्शाता है।
इस नृत्य में शिव ब्रह्मांड के लय और ताल का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका नृत्य यह बताता है कि हर चीज़ बदलती है, और यह बदलाव जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नटराज के रूप में शिव जीवन के सभी पक्षों को एक सामंजस्यपूर्ण ताल में रखकर चलाते हैं।

शिव का चन्द्रमा (मस्तक पर चंद्र धारण करना)

शिव के मस्तक पर स्थित चन्द्रमा उनके शीतल स्वभाव और शांति का प्रतीक है। चंद्रमा की शीतलता शिव के संयम और धैर्य को दर्शाती है। यह उनकी सौम्यता और सहनशीलता का प्रतीक है।
शिव का चंद्रमा यह बताता है कि वे हर परिस्थिति में स्थिर रहते हैं, चाहे संसार में कितनी भी उथल-पुथल क्यों न हो। यह उनके शांत और स्थिर मानसिकता का प्रतीक है, जो उन्हें संसार की विकट परिस्थितियों से भी अडिग रखता है।

शिव का गंगा धारण करना

शिव के मस्तक पर गंगा का वास यह दर्शाता है कि वे जीवनदायिनी शक्ति के स्वामी हैं। गंगा जल शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है, और शिव के सिर पर स्थित गंगा यह दर्शाती है कि वे संसार को शुद्ध करने वाली शक्तियों का स्रोत हैं।
गंगा का शिव के मस्तक पर धारण होना यह भी संकेत करता है कि शिव सृष्टि के पोषक और संरक्षक हैं। गंगा जल का प्रवाह इस बात का प्रतीक है कि वे अपने भक्तों पर सदैव कृपा करते हैं और उनकी समस्त बाधाओं को दूर करते हैं।

शिव का भस्म लेपन

शिव के शरीर पर भस्म का लेपन उनके त्याग और मृत्यु से परे होने का प्रतीक है। भस्म का अर्थ है कि सब कुछ अंततः मिट्टी में मिल जाता है। यह जीवन की अस्थायीता का प्रतीक है और यह दिखाता है कि शिव मृत्यु और जीवन, दोनों से परे हैं।
भस्म शिव के वैराग्य का भी प्रतीक है। इसका अर्थ है कि वे संसारिक सुख-सुविधाओं और वस्तुओं से निर्लिप्त हैं। शिव का भस्म धारण करना यह दिखाता है कि सांसारिक माया उनके लिए कोई मायने नहीं रखती, और उनका ध्यान केवल आध्यात्मिकता और मोक्ष पर केंद्रित है।

शिव का नाग (सर्प) धारण करना

शिव के गले में नाग या सर्प का लिपटा होना यह दर्शाता है कि शिव मृत्यु पर विजय प्राप्त कर चुके हैं। सर्प को काल (समय) का प्रतीक माना जाता है, और शिव का सर्प धारण करना यह बताता है कि वे समय के स्वामी हैं और उन्हें समय या मृत्यु का भय नहीं है।
यह भी एक संदेश है कि शिव जीवन के सभी पहलुओं को नियंत्रित कर सकते हैं, चाहे वह कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो। नाग का प्रतीक यह बताता है कि शिव सभी शक्तियों का स्वामी हैं, चाहे वे जीवन की हों या मृत्यु की।

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