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नृसिंह कवचम वक्ष्येऽ प्रह्लादनोदितं पुरा ।
सर्वरक्षाकरं पुण्यं सर्वोपद्रवनाशनं ॥

सर्वसंपत्करं चैव स्वर्गमोक्षप्रदायकम ।
ध्यात्वा नृसिंहं देवेशं हेमसिंहासनस्थितं॥

विवृतास्यं त्रिनयनं शरदिंदुसमप्रभं ।
लक्ष्म्यालिंगितवामांगम विभूतिभिरुपाश्रितं ॥

चतुर्भुजं कोमलांगम स्वर्णकुण्डलशोभितं ।
ऊरोजशोभितोरस्कं रत्नकेयूरमुद्रितं ॥

तप्तकांचनसंकाशं पीतनिर्मलवासनं ।
इंद्रादिसुरमौलिस्थस्फुरन्माणिक्यदीप्तिभि: ॥

विराजितपदद्वंद्वं शंखचक्रादिहेतिभि:।
गरुत्मता च विनयात स्तूयमानं मुदान्वितं ॥

स्वहृतकमलसंवासम कृत्वा तु कवचम पठेत
नृसिंहो मे शिर: पातु लोकरक्षात्मसंभव:।
सर्वगोऽपि स्तंभवास: फालं मे रक्षतु ध्वनन ।
नरसिंहो मे दृशौ पातु सोमसूर्याग्निलोचन: ॥

शृती मे पातु नरहरिर्मुनिवर्यस्तुतिप्रिय: ।
नासां मे सिंहनासास्तु मुखं लक्ष्मिमुखप्रिय: ॥

सर्वविद्याधिप: पातु नृसिंहो रसनां मम ।
वक्त्रं पात्विंदुवदन: सदा प्रह्लादवंदित:॥

नृसिंह: पातु मे कण्ठं स्कंधौ भूभरणांतकृत ।
दिव्यास्त्रशोभितभुजो नृसिंह: पातु मे भुजौ ॥

करौ मे देववरदो नृसिंह: पातु सर्वत: ।
हृदयं योगिसाध्यश्च निवासं पातु मे हरि: ॥

मध्यं पातु हिरण्याक्षवक्ष:कुक्षिविदारण: ।
नाभिं मे पातु नृहरि: स्वनाभिब्रह्मसंस्तुत: ॥

ब्रह्माण्डकोटय: कट्यां यस्यासौ पातु मे कटिं ।
गुह्यं मे पातु गुह्यानां मंत्राणां गुह्यरुपधृत ॥

ऊरु मनोभव: पातु जानुनी नररूपधृत ।
जंघे पातु धराभारहर्ता योऽसौ नृकेसरी ॥

सुरराज्यप्रद: पातु पादौ मे नृहरीश्वर: ।
सहस्रशीर्षा पुरुष: पातु मे सर्वशस्तनुं ॥

महोग्र: पूर्वत: पातु महावीराग्रजोऽग्नित:।
महाविष्णुर्दक्षिणे तु महाज्वालस्तु निर्रुतौ ॥

पश्चिमे पातु सर्वेशो दिशि मे सर्वतोमुख: ।
नृसिंह: पातु वायव्यां सौम्यां भूषणविग्रह: ॥

ईशान्यां पातु भद्रो मे सर्वमंगलदायक: ।
संसारभयद: पातु मृत्यूर्मृत्युर्नृकेसरी ॥

इदं नृसिंहकवचं प्रह्लादमुखमंडितं ।
भक्तिमान्य: पठेन्नित्यं सर्वपापै: प्रमुच्यते ॥

पुत्रवान धनवान लोके दीर्घायुर्उपजायते ।
यंयं कामयते कामं तंतं प्रप्नोत्यसंशयं ॥

सर्वत्र जयवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत ।
भुम्यंतरिक्षदिवानां ग्रहाणां विनिवारणं ॥

वृश्चिकोरगसंभूतविषापहरणं परं ।
ब्रह्मराक्षसयक्षाणां दूरोत्सारणकारणं ॥

भूर्जे वा तालपत्रे वा कवचं लिखितं शुभं ।
करमूले धृतं येन सिद्ध्येयु: कर्मसिद्धय: ॥

देवासुरमनुष्येशु स्वं स्वमेव जयं लभेत ।
एकसंध्यं त्रिसंध्यं वा य: पठेन्नियतो नर: ॥

सर्वमंगलमांगल्यंभुक्तिं मुक्तिं च विंदति ।
द्वात्रिंशतिसहस्राणि पाठाच्छुद्धात्मभिर्नृभि: ।
कवचस्यास्य मंत्रस्य मंत्रसिद्धि: प्रजायते।
आनेन मंत्रराजेन कृत्वा भस्माभिमंत्रणम ॥

तिलकं बिभृयाद्यस्तु तस्य गृहभयं हरेत।
त्रिवारं जपमानस्तु दत्तं वार्यभिमंत्र्य च ॥

प्राशयेद्यं नरं मंत्रं नृसिंहध्यानमाचरेत ।
तस्य रोगा: प्रणश्यंति ये च स्यु: कुक्षिसंभवा: ॥

किमत्र बहुनोक्तेन नृसिंहसदृशो भवेत ।
मनसा चिंतितं यस्तु स तच्चाऽप्नोत्यसंशयं ॥

गर्जंतं गर्जयंतं निजभुजपटलं स्फोटयंतं
हरंतं दीप्यंतं तापयंतं दिवि भुवि दितिजं क्षेपयंतं रसंतं ।
कृंदंतं रोषयंतं दिशिदिशि सततं संभरंतं हरंतं ।
विक्षंतं घूर्णयंतं करनिकरशतैर्दिव्यसिंहं नमामि ॥
॥ इति प्रह्लादप्रोक्तं नरसिंहकवचं संपूर्णंम ॥

नृसिंह कवचम् का महत्त्व और अर्थ

नृसिंह कवचम् एक पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है जिसे भगवान नृसिंह की आराधना और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए प्रह्लाद महाराज द्वारा रचित बताया गया है। यह कवच भक्त को सभी प्रकार की बाधाओं, विपत्तियों और संकटों से रक्षा करता है और जीवन में सफलता और समृद्धि लाने का कार्य करता है।

नृसिंह कवचम् का विवरण

कवच के लाभ

  • सभी प्रकार की रक्षा: यह कवच सभी प्रकार की बाधाओं और विपत्तियों से रक्षा करता है।
  • पुण्य और मोक्ष: इसके पाठ से पुण्य की प्राप्ति होती है और यह स्वर्ग और मोक्ष दोनों प्रदान करने में सक्षम है।
  • समृद्धि और सफलता: यह कवच सभी प्रकार की समृद्धि प्रदान करता है और जीवन में सफलता लाता है।

नृसिंह कवचम् का ध्यान

नृसिंह कवच का पाठ करने से पहले भगवान नृसिंह का ध्यान करना आवश्यक है। ध्यान में उन्हें स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान, त्रिनयन, शरद पूर्णिमा के चंद्रमा के समान आभा वाले, लक्ष्मी के आलिंगन से सुशोभित, चार भुजाओं वाले और कोमलांग रूप में देखा जाता है।

ध्यान का स्वरूप

  • हेमसिंहासन पर स्थित: भगवान नृसिंह स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान हैं।
  • त्रिनयन: तीन नेत्रों से युक्त, जिनमें सूर्य, चंद्र और अग्नि का तेज है।
  • लक्ष्मी के साथ: लक्ष्मीजी उनके वामांग (बाएँ अंग) से आलिंगन कर रही हैं।
  • चतुर्भुज: चार भुजाओं वाले, जिनमें शंख, चक्र आदि धारण हैं।

नृसिंह कवचम् का पाठ और उसकी रक्षा

शिरस्त्राण (सिर की रक्षा)

“नृसिंहो मे शिरः पातु, लोकरक्षात्मसंभव” – भगवान नृसिंह मेरे सिर की रक्षा करें, जो लोकों की रक्षा के लिए प्रकट हुए हैं।

नेत्रों की रक्षा

“नरसिंहो मे दृशौ पातु, सोमसूर्याग्निलोचन” – जिनकी आंखों में सूर्य, चंद्र और अग्नि का तेज है, वे मेरे नेत्रों की रक्षा करें।

मुख की रक्षा

“मुखं लक्ष्मिमुखप्रिय” – लक्ष्मी जी को प्रिय मुख वाले भगवान नृसिंह मेरे मुख की रक्षा करें।

कण्ठ और स्कंध (गले और कंधों की रक्षा)

“नृसिंह: पातु मे कण्ठं, स्कंधौ भूभरणांतकृत” – भगवान नृसिंह मेरे कण्ठ और कंधों की रक्षा करें।

हृदय की रक्षा

“हृदयं योगिसाध्यश्च, निवासं पातु मे हरि” – भगवान हृदय में वास करने वाले योगियों के साध्य हरि मेरे हृदय की रक्षा करें।

मध्य भाग की रक्षा

“मध्यं पातु हिरण्याक्षवक्ष:कुक्षिविदारण:” – हिरण्याक्ष के वक्षस्थल को विदीर्ण करने वाले भगवान मेरे मध्य भाग की रक्षा करें।

दिशाओं की रक्षा

भगवान नृसिंह पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, और ईशान्य सभी दिशाओं से भक्तों की रक्षा करते हैं। उनका हर दिशा में अलग-अलग रूप और शक्ति है, जो सभी विपत्तियों और संकटों को दूर करती है।

पूर्व दिशा

“महोग्र: पूर्वत: पातु” – पूर्व दिशा में भगवान नृसिंह उग्र रूप में रक्षा करें।

दक्षिण दिशा

“महाविष्णुर्दक्षिणे तु” – दक्षिण दिशा में महाविष्णु रूप में भगवान नृसिंह रक्षा करें।

पश्चिम दिशा

“पश्चिमे पातु सर्वेशो” – पश्चिम दिशा में सर्वेश्वर रूप में भगवान नृसिंह रक्षा करें।

उत्तर दिशा

“सहस्रशीर्षा पुरुष: पातु मे सर्वशस्तनुं” – सहस्रशीर्ष रूपधारी पुरुष भगवान मेरी पूरी देह की रक्षा करें।

कवच का परिणाम और प्रभाव

  • सर्वपापों से मुक्ति: जो व्यक्ति इस कवच का नित्य पाठ करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
  • सभी इच्छाओं की पूर्ति: कवच का पाठ करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  • सभी प्रकार की विजय: कवच के पाठ से सभी क्षेत्रों में विजय प्राप्त होती है।
  • रोगों का नाश: कवच के पाठ से सभी रोगों का नाश होता है और जीवन में रोगों से मुक्ति मिलती है।
  • सिद्धियों की प्राप्ति: इस मंत्र का नियमित जप करने से मंत्रसिद्धि प्राप्त होती है।

कवच का पाठ और नियम

  • भक्ति और श्रद्धा से पाठ: इस कवच का पाठ सच्ची भक्ति और श्रद्धा से करना चाहिए।
  • नियमितता: एक बार, तीन बार, या नियमित रूप से इसका पाठ करना लाभकारी होता है।
  • सिद्धि की प्राप्ति: यह कवच सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति में सहायक है और जीवन के सभी कष्टों को दूर करता है।

नृसिंह कवचम् का विस्तार से वर्णन

नृसिंह कवचम् हिंदू धर्म के सबसे शक्तिशाली और पवित्र स्तोत्रों में से एक है। यह भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार की महिमा का बखान करता है और इसे पढ़ने से व्यक्ति को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। आइए, इस कवच के विभिन्न पहलुओं और लाभों के बारे में विस्तार से जानें।

नृसिंह अवतार का महत्व

भगवान नृसिंह, भगवान विष्णु के दशावतारों में से एक हैं, जिन्होंने हिरण्यकशिपु के अत्याचारों से अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए इस रूप में अवतार लिया। भगवान नृसिंह का अवतार यह सिद्ध करता है कि जब भी कोई भक्त संकट में होता है, भगवान उसकी रक्षा के लिए किसी भी रूप में अवतरित हो सकते हैं।

नृसिंह अवतार की कथा

हिरण्यकशिपु, एक शक्तिशाली राक्षस, ने भगवान विष्णु के प्रति द्वेष रखते हुए अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान की भक्ति करने के कारण अनेक प्रकार से सताया। अंत में, जब हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि उसका भगवान कहाँ है, तो प्रह्लाद ने कहा कि भगवान हर जगह हैं। हिरण्यकशिपु ने एक स्तंभ की ओर संकेत करके पूछा कि क्या वह भगवान उसमें भी हैं। जैसे ही उसने स्तंभ को तोड़ा, भगवान नृसिंह आधे मानव और आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकशिपु का वध किया।

नृसिंह कवच का पाठ कैसे करें?

नृसिंह कवचम् का पाठ करने से पहले कुछ आवश्यक नियमों का पालन करना चाहिए ताकि इसका पूरा लाभ प्राप्त हो सके।

पाठ करने का सही समय

  • ब्रह्म मुहूर्त: नृसिंह कवच का पाठ करने के लिए सबसे उत्तम समय ब्रह्म मुहूर्त होता है, जो प्रातःकाल सूर्योदय से पहले का समय होता है।
  • संध्या समय: इसके अलावा, संध्या के समय भी इस कवच का पाठ किया जा सकता है।

पाठ करने की विधि

  • स्नान और शुद्ध वस्त्र: नृसिंह कवच का पाठ करने से पहले स्नान करना और शुद्ध वस्त्र धारण करना आवश्यक है।
  • स्वच्छ स्थान: पाठ के लिए एक शांत और स्वच्छ स्थान का चयन करें।
  • भगवान का ध्यान: पाठ से पहले भगवान नृसिंह का ध्यान करें और उनके दिव्य रूप का स्मरण करें।

पाठ की संख्या

  • एक बार: साधारण रक्षा के लिए इस कवच का एक बार पाठ करें।
  • तीन बार: विशेष लाभ के लिए इसे तीन बार पढ़ना चाहिए।
  • अधिक संख्या में: यदि कोई विशेष संकट है या किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति करनी है, तो इसे अधिक संख्या में भी पढ़ा जा सकता है।

नृसिंह कवचम् के विभिन्न लाभ

आध्यात्मिक लाभ

  • आत्मिक शांति: इस कवच के नियमित पाठ से व्यक्ति को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
  • भय से मुक्ति: यह कवच सभी प्रकार के भय, चाहे वह मानसिक हो या आत्मिक, से मुक्ति दिलाता है।

भौतिक लाभ

  • धन और समृद्धि: नृसिंह कवच का पाठ करने से व्यक्ति को धन, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
  • संतान प्राप्ति: जिन लोगों को संतान की प्राप्ति में कठिनाई होती है, वे भी इस कवच का पाठ कर सकते हैं।

रोगों से मुक्ति

  • शारीरिक रोग: इस कवच का पाठ करने से व्यक्ति को शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
  • मन:स्थिति का सुधार: जिन लोगों को मानसिक तनाव या अवसाद जैसी समस्याएं होती हैं, उनके लिए भी यह कवच अत्यंत लाभकारी है।

नृसिंह कवचम् के पाठ के दौरान विशेष सावधानियां

संयम और नियम

  • सात्विक भोजन: कवच का पाठ करने से पहले सात्विक भोजन का सेवन करें और तामसिक आहार से बचें।
  • नियमितता: यदि आप इस कवच का पाठ नियमित रूप से करते हैं, तो इसे एक ही समय पर प्रतिदिन पढ़ने का प्रयास करें।

मन की एकाग्रता

  • ध्यान और एकाग्रता: पाठ के समय मन को शांत और एकाग्र रखें। ध्यान भटकने से कवच का प्रभाव कम हो सकता है।
  • विश्वास और श्रद्धा: कवच का पाठ श्रद्धा और विश्वास के साथ करें, तभी इसका पूरा लाभ मिलेगा।

नृसिंह कवचम् का विशेष प्रभाव

संकटों से रक्षा

नृसिंह कवच व्यक्ति को जीवन के सभी प्रकार के संकटों से बचाता है। चाहे वह आर्थिक समस्या हो, पारिवारिक कलह हो या फिर किसी अन्य प्रकार का संकट, यह कवच सभी समस्याओं को दूर करने में सक्षम है।

ग्रह दोषों का निवारण

इस कवच के नियमित पाठ से कुंडली में उपस्थित सभी ग्रह दोष शांत होते हैं और व्यक्ति को ग्रहों के बुरे प्रभाव से मुक्ति मिलती है।

तंत्र-मंत्र और काले जादू से रक्षा

नृसिंह कवच तंत्र-मंत्र, काले जादू और अन्य नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है। यदि किसी व्यक्ति पर तंत्र-मंत्र का प्रभाव है, तो इस कवच का पाठ उसे इन सभी बुरे प्रभावों से मुक्त कर सकता है।

निष्कर्ष

नृसिंह कवचम् भगवान नृसिंह की असीम कृपा का प्रतीक है। यह कवच हर प्रकार की समस्याओं और विपत्तियों से रक्षा करने वाला, सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला और जीवन को सुख-समृद्धि से भरने वाला है। जो भी व्यक्ति इसे सच्चे मन से, श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़ता है, उसे निश्चित रूप से भगवान नृसिंह की कृपा प्राप्त होती है।

इस कवच का पाठ न केवल भौतिक लाभ प्रदान करता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक शांति भी देता है। अतः इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ नियमित रूप से पढ़ना चाहिए और भगवान नृसिंह की कृपा प्राप्त करनी चाहिए।

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