अच्युतस्याष्टकम् – अच्युतं केशवं in Hindi/Sanskrit
अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं
जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ॥1॥
अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं
माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम् ।
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं
देवकीनन्दनं नन्दजं सन्दधे ॥२॥
विष्णवे जिष्णवे शाङ्खिने चक्रिणे
रुक्मिणिरागिणे जानकीजानये ।
बल्लवीवल्लभायार्चितायात्मने
कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः ॥३॥
कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण
श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे ।
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज
द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक ॥४॥
राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो
दण्डकारण्यभूपुण्यताकारणः ।
लक्ष्मणेनान्वितो वानरौः सेवितोऽगस्तसम्पूजितो
राघव पातु माम् ॥५॥
धेनुकारिष्टकानिष्टकृद्द्वेषिहा
केशिहा कंसहृद्वंशिकावादकः ।
पूतनाकोपकःसूरजाखेलनो
बालगोपालकः पातु मां सर्वदा ॥६॥
विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससं
प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम् ।
वन्यया मालया शोभितोरःस्थलं
लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥७॥
कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननं
रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः ।
हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं
किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ॥८॥
अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं
प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम् ।
वृत्ततः सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरस्तस्य
वश्यो हरिर्जायते सत्वरम् ॥९॥
Achyutashtakam Acyutam Keshavam in English
Achyutam Keshavam Ram Narayanam
Krishna Damodaram Vasudevam Harim
Shridharam Madhavam Gopikavallabham
Janakinayakam Ramachandram Bhaje.
Achyutam Keshavam Satyabhamadhavam
Madhavam Shridharam Radhikaradhitam
Indiramandiram Chetasa Sundaram
Devakinandanam Nandajam Sandadhe.
Vishnave Jishnave Shankhine Chakrine
Rukminiragine Janakijanaye
Ballavivallabhayarchitayatmane
Kansavidhvansine Vanshine Te Namah.
Krishna Govinda He Ram Narayan
Shripate Vasudevajita Shrinidhe
Achyutananta He Madhavadhokshaja
Dwarakanayaka Draupadirakshaka.
Rakshasakshobhitah Sitaya Shobhitah
Dandakaranyabhu Punyatakarana
Lakshmanenanvito Vanarauh Sevito’
Agastapujito Raghava Patu Mam.
Dhenukarishthakanishthakridveshihah
Keshihah Kansahrid Vanshika Vadakah
Putanakopakaha Surajakhelano
Balagopalakah Patu Mam Sarvada.
Vidyududyotavatprasphuradvasasam
Pravridhambhodavatprollasadvigraham
Vanyaya Malaya Shobhitorahsthalam
Lohitanghridvayam Varijaksham Bhaje.
Kunchitaih Kuntalairbhrajamanananam
Ratnamoulim Lasatkundalam Gandayoh
Harakeyurakam Kankanaprojjvalam
Kinkinimanjulam Shyamalam Tam Bhaje.
Achyutasyaashtakam Yah Pathedishtadam
Prematah Pratyaham Purushah Saspriham
Vrttatah Sundaram Karturvishvambharas
Tasya Vashyo Harirjayate Satvaram.
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अच्युतं केशवं स्तोत्रम् का अर्थ
अच्युतं केशवं रामनारायणं
यहां पर सबसे पहले ‘अच्युत’ शब्द का उल्लेख होता है, जिसका अर्थ है ‘जो कभी गिरता नहीं है’ या ‘जिसका पतन नहीं होता’। यह भगवान विष्णु का एक प्रमुख नाम है, जो यह दर्शाता है कि वे सदा अडिग और अविनाशी हैं। ‘केशव’ भगवान कृष्ण का एक और नाम है, जो तीन प्रमुख देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का प्रतिनिधित्व करता है। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘केश का स्वामी’। यह भगवान विष्णु की सुंदरता और आकर्षण को भी व्यक्त करता है।
रामनारायण
‘रामनारायण’ नाम भगवान विष्णु के राम अवतार और नारायण रूप को संदर्भित करता है। यह नाम राम और नारायण को एक रूप में पूजने का प्रतीक है। ‘राम’ भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं और ‘नारायण’ भगवान विष्णु का एक प्रमुख नाम है, जो यह दर्शाता है कि वे संसार के संरक्षक हैं।
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम्
यहां ‘कृष्ण’ भगवान के उस रूप की ओर संकेत करता है जो गोपियों और ग्वाल-बालों के बीच प्रिय है। ‘दामोदर’ वह नाम है जो उस घटना से जुड़ा हुआ है जब बालक कृष्ण को माता यशोदा ने एक रस्सी से बांध दिया था। ‘वासुदेव’ भगवान कृष्ण का दूसरा नाम है, जो वासुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में जाना जाता है। ‘हरि’ का अर्थ है ‘जो बुराई को हर लेता है’ या ‘जो दुखों को हर लेता है’। भगवान विष्णु को ‘हरि’ नाम से भी पूजा जाता है क्योंकि वे संसार से पाप और अज्ञानता को दूर करते हैं।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं
‘श्रीधर’ का अर्थ है ‘जो लक्ष्मी (श्री) को धारण करते हैं’। लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की पत्नी हैं, और भगवान विष्णु को श्रीधर कहा जाता है क्योंकि वे धन और समृद्धि के संरक्षक हैं। ‘माधव’ का अर्थ है ‘लक्ष्मी का पति’, और यह नाम विष्णु या कृष्ण दोनों के लिए प्रयुक्त होता है। ‘गोपिकावल्लभ’ वह है जो गोपियों के प्रिय हैं, विशेष रूप से भगवान कृष्ण के ब्रजलीला के संदर्भ में।
जानकीनायकं रामचंद्रं भजे
‘जानकीनायक’ का अर्थ है ‘जानकी (सीता) के स्वामी’। भगवान राम को जानकी के पति के रूप में जाना जाता है, और यह उनके वैवाहिक जीवन और धर्म के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता है। ‘रामचंद्र’ भगवान राम का एक और नाम है, जो चंद्रमा की शांति और शीतलता को दर्शाता है।
सत्यभामाधवं माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम्
इस पंक्ति में ‘सत्यभामाधव’ का उल्लेख किया गया है, जो भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा के बीच प्रेम और संबंध को दर्शाता है। ‘श्रीधर’ और ‘माधव’ भगवान विष्णु के पहले ही बताए गए नाम हैं। ‘राधिकाराधितम्’ का अर्थ है ‘जो राधा द्वारा पूजा जाता है’, अर्थात भगवान कृष्ण का वह रूप जिसे राधा सबसे अधिक मानती थीं। राधा और कृष्ण का प्रेम भारतीय भक्ति साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, और यह पंक्ति उस अमर प्रेम का वर्णन करती है।
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं
‘इन्दिरा’ लक्ष्मी जी का एक और नाम है, और ‘मन्दिरं’ का अर्थ है ‘गृह’। इस पंक्ति में भगवान विष्णु को लक्ष्मी के निवास के रूप में वर्णित किया गया है, जो यह दर्शाता है कि वे समृद्धि और धन के स्त्रोत हैं। ‘चेतसा सुन्दरं’ का अर्थ है ‘जो हृदय और आत्मा में सुंदर हैं’।
विष्णवे जिष्णवे शाङ्खिने चक्रिणे
यहां ‘विष्णवे’ भगवान विष्णु के व्यापक रूप की ओर संकेत करता है, जो समस्त जगत के पालनहार हैं। ‘जिष्णवे’ का अर्थ है ‘जो विजय प्राप्त करने वाले हैं’, भगवान विष्णु को शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले के रूप में वर्णित किया गया है। ‘शाङ्खिन’ का अर्थ है ‘जो शंख धारण करते हैं’ और ‘चक्रिणे’ का अर्थ है ‘जो सुदर्शन चक्र धारण करते हैं’।
रुक्मिणिरागिणे जानकीजानये
‘रुक्मिणिरागिणे’ भगवान कृष्ण का वह रूप है जो उनकी पत्नी रुक्मिणी के प्रति प्रेम और स्नेह से भरा है। इसी प्रकार ‘जानकीजानये’ का अर्थ है ‘जो जानकी (सीता) के पति हैं’, जो भगवान राम को संदर्भित करता है। यह भगवान विष्णु के दोनों प्रमुख अवतारों, राम और कृष्ण के पारिवारिक संबंधों को दर्शाता है।
बल्लवीवल्लभायार्चितायात्मने
‘बल्लवीवल्लभ’ का अर्थ है ‘गोपियों के प्रिय’, जो भगवान कृष्ण के ब्रजलीला से जुड़ा है। इस पंक्ति में भगवान कृष्ण को गोपियों द्वारा अर्चित और पूजा गया बताया गया है। ‘आत्मने’ का अर्थ है ‘सर्वशक्तिमान’ या ‘आत्मा का स्वामी’।
कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः
इस पंक्ति में ‘कंसविध्वंसी’ का अर्थ है ‘जो कंस का नाश करने वाले हैं’। कंस भगवान कृष्ण के मामा थे, जिन्होंने अत्याचार किया था और भगवान कृष्ण ने उनका वध किया। ‘वंशिने’ का अर्थ है ‘जो बांसुरी (वंशी) बजाते हैं’, भगवान कृष्ण को वंशीधर के रूप में भी जाना जाता है।
श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे
इस पंक्ति में भगवान विष्णु के विभिन्न नामों का उल्लेख किया गया है। ‘कृष्ण’ और ‘गोविन्द’ भगवान कृष्ण के नाम हैं, जो गोकुल में ग्वालों और गायों के साथ उनकी लीलाओं को दर्शाते हैं। ‘राम’ भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं और ‘नारायण’ उनका दिव्य रूप है। ‘श्रीपति’ का अर्थ है ‘लक्ष्मी के पति’, जो यह दर्शाता है कि भगवान विष्णु समृद्धि के देवता हैं। ‘वासुदेवाजित’ का अर्थ है ‘जो वासुदेव (कृष्ण) के रूप में विजय प्राप्त करते हैं’। ‘श्रीनिधि’ का अर्थ है ‘धन और समृद्धि का स्त्रोत’।
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज
यहां भगवान विष्णु को ‘अच्युत’ कहा गया है, जो अविनाशी और अडिग हैं। ‘अनन्त’ का अर्थ है ‘जो अंतहीन हैं’, यह विष्णु के उस रूप को दर्शाता है जो अनंत और असीमित हैं। ‘माधव’ लक्ष्मी के पति के रूप में और ‘अधोक्षज’ का अर्थ है ‘जो इंद्रियों से परे हैं’। यह दर्शाता है कि भगवान विष्णु भौतिक संसार से परे हैं और केवल ध्यान और भक्ति के माध्यम से ही प्राप्त किए जा सकते हैं।
द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक
‘द्वारकानायक’ का अर्थ है ‘द्वारका के स्वामी’। भगवान कृष्ण का द्वारका से गहरा संबंध है, जहां उन्होंने अपने राज्य की स्थापना की थी। ‘द्रौपदीरक्षक’ का अर्थ है ‘जो द्रौपदी के रक्षक हैं’। महाभारत के समय जब द्रौपदी का चीरहरण होने वाला था, तब भगवान कृष्ण ने उनकी रक्षा की थी। यह भगवान के करुणामय और रक्षक स्वरूप का प्रतीक है।
दण्डकारण्यभूपुण्यताकारणः
इस पंक्ति में भगवान राम के जीवन से जुड़ी घटनाओं का वर्णन किया गया है। ‘राक्षसक्षोभितः’ का अर्थ है ‘जो राक्षसों से घिरे हुए थे’, भगवान राम ने राक्षसों से युद्ध करके दंडकारण्य (वन) को पवित्र किया। ‘सीतया शोभितो’ का अर्थ है ‘जो सीता के साथ शोभायमान हैं’, यह उनके दांपत्य जीवन की गरिमा को दर्शाता है।
लक्ष्मणेनान्वितो वानरौः सेवितोऽगस्तसम्पूजितो
‘लक्ष्मणेनान्वितो’ का अर्थ है ‘जो अपने भाई लक्ष्मण के साथ हैं’, भगवान राम के जीवन में लक्ष्मण का एक महत्वपूर्ण स्थान है। ‘वानरौः सेवितो’ का अर्थ है ‘वानरों द्वारा सेवित’, जो यह दर्शाता है कि भगवान राम की सेवा में वानर सेना थी, खासकर हनुमान। ‘अगस्तसम्पूजितो’ का अर्थ है ‘जो अगस्त्य मुनि द्वारा पूजित हैं’, यह उस घटना की ओर संकेत करता है जब अगस्त्य मुनि ने भगवान राम का स्वागत और पूजा की थी।
राघव पातु माम्
इसका अर्थ है ‘राघव (राम) मेरी रक्षा करें’। यह एक प्रार्थना है जो भगवान राम से की जाती है कि वे भक्त की रक्षा करें और उसे कठिनाइयों से मुक्ति दिलाएं।
केशिहा कंसहृद्वंशिकावादकः
‘धेनुकारिष्ट’ और ‘कानिष्टकृद्’ का अर्थ है ‘जो दैत्य धेनुकासुर और अरिष्टासुर का वध करने वाले हैं’। भगवान कृष्ण ने अपने बाल्यकाल में कई राक्षसों का संहार किया था, जिनमें धेनुकासुर और अरिष्टासुर प्रमुख थे। ‘केशिहा’ का अर्थ है ‘जो केशी दैत्य का नाश करने वाले हैं’। केशी भगवान कृष्ण के जीवन में एक महत्वपूर्ण दैत्य था जिसे उन्होंने मारा। ‘कंसहृद्वंशिकावादकः’ का अर्थ है ‘जो कंस का हृदय नाश करने वाले और वंशी (बांसुरी) वादन में निपुण हैं’।
पूतनाकोपकः सूरजाखेलनो
‘पूतनाकोपकः’ का अर्थ है ‘जो पूतना का वध करने वाले हैं’। पूतना वह दैत्यनी थी जिसने कृष्ण को मारने के लिए उनका स्तनपान कराने का प्रयास किया था, लेकिन भगवान कृष्ण ने उसे ही मार दिया। ‘सूरजाखेलनो’ का अर्थ है ‘जो सूर्योदय और सूर्यास्त के समय खेलते हैं’, यह भगवान कृष्ण के बाल्यकाल की लीला को दर्शाता है।
बालगोपालकः पातु मां सर्वदा
‘बालगोपालकः’ का अर्थ है ‘जो बाल रूप में ग्वालों और गोपियों के बीच खेलते हैं’। यह भगवान कृष्ण के बाल्यकाल के आकर्षण और उनकी लीलाओं को दर्शाता है। यहां भक्त प्रार्थना करता है कि बालगोपाल उसकी सदा रक्षा करें।
प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम्
‘विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससं’ का अर्थ है ‘जिनका वस्त्र बिजली की चमक जैसा है’, यह भगवान विष्णु की दिव्यता और उनकी महिमा को दर्शाता है। ‘प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम्’ का अर्थ है ‘जिनका शरीर वर्षा ऋतु के बादलों की तरह चमकता है’, यह भगवान विष्णु की अलौकिक सुंदरता और दिव्य रूप को बताता है।
वण्यया मालया शोभितोरःस्थलं
‘वण्यया मालया’ का अर्थ है ‘जो वन के फूलों की माला धारण करते हैं’, भगवान विष्णु को जंगल के प्राकृतिक फूलों से सजी माला से सुशोभित दिखाया गया है। ‘शोभितोरःस्थलं’ का अर्थ है ‘जो अपने वक्षस्थल पर शोभायमान हैं’, यह उनके भव्य और सुंदर स्वरूप को दर्शाता है।
लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे
‘लोहिताङ्घ्रिद्वयं’ का अर्थ है ‘जिनके चरण कमल के समान लाल हैं’, भगवान विष्णु के चरणों को यहां लाल कमल के समान दर्शाया गया है। ‘वारिजाक्षं भजे’ का अर्थ है ‘मैं कमल के नेत्रों वाले भगवान की पूजा करता हूँ’। भगवान विष्णु के नेत्रों की सुंदरता और उनके दयालु रूप का वर्णन किया गया है।
रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः
‘कुञ्चितैः कुन्तलैः’ का अर्थ है ‘जो घुंघराले बालों से सुशोभित हैं’, भगवान विष्णु के बालों को सुंदरता से वर्णित किया गया है। ‘भ्राजमानाननं’ का अर्थ है ‘जिनका मुखमंडल चमकता है’। ‘रत्नमौलिं’ का अर्थ है ‘जो मस्तक पर रत्नों का मुकुट धारण करते हैं’। ‘लसत्कुण्डलं गण्डयोः’ का अर्थ है ‘जिनके गालों पर सुंदर कुण्डल (झुमके) सुशोभित हैं’।
किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे
‘हारकेयूरकं’ का अर्थ है ‘जो हार और बाजूबंद धारण करते हैं’, भगवान विष्णु को आभूषणों से अलंकृत किया गया है, जो उनकी दिव्यता और भव्यता को दर्शाता है। ‘कङ्कणप्रोज्ज्वलं’ का अर्थ है ‘जो उज्ज्वल कंगन धारण करते हैं’, यह भगवान के कलाई पर चमकते हुए कंगनों की बात करता है, जो उनके स्वरूप को और भी आकर्षक बनाते हैं।
‘किङ्किणीमञ्जुलं’ का अर्थ है ‘जो किन्नरी (घुंघरू) की मधुर ध्वनि से सुशोभित हैं’। यह भगवान के चरणों में बंधे हुए घुंघरूओं की मधुर ध्वनि को व्यक्त करता है। ‘श्यामलं तं भजे’ का अर्थ है ‘मैं उस श्यामल (काले रंग के) भगवान की पूजा करता हूँ’। भगवान विष्णु या कृष्ण का श्यामल रंग उनकी आकर्षक और अद्वितीय सुंदरता को दर्शाता है।
प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम्
यह श्लोक इस स्तोत्र की महिमा और फल की ओर संकेत करता है। ‘अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं’ का अर्थ है ‘जो व्यक्ति प्रतिदिन इस अच्युत के आठ श्लोकों को प्रेमपूर्वक पढ़ता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं’। यहां पर यह कहा गया है कि जो भक्त प्रतिदिन इस स्तोत्र को श्रद्धा और प्रेम से पाठ करता है, उसे भगवान की कृपा प्राप्त होती है और उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
‘प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम्’ का अर्थ है ‘जो व्यक्ति इसे प्रतिदिन प्रेम और भक्ति से पढ़ता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं’। यहां प्रेम और भक्ति का महत्व बताया गया है। जो भी व्यक्ति भगवान विष्णु की सच्चे प्रेम और समर्पण से पूजा करता है, उसे उनकी कृपा प्राप्त होती है।
वृत्ततः सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरस्तस्य
इसका अर्थ है ‘जो इसे सुंदर रूप से पाठ करता है, उसका जीवन सुंदर और सार्थक हो जाता है’। इस पंक्ति में बताया गया है कि यदि इस स्तोत्र का पाठ सही विधि से किया जाता है तो यह व्यक्ति के जीवन को सुंदर और समृद्ध बनाता है। ‘कर्तृविश्वम्भर’ का अर्थ है ‘जो समस्त संसार का पालनकर्ता है’। यहां भगवान विष्णु की उस महिमा का वर्णन किया गया है कि वे संसार के पालनहार हैं।
वश्यो हरिर्जायते सत्वरम्
इसका अर्थ है ‘जो इसे पढ़ता है, भगवान हरि (विष्णु) उसकी इच्छा के अधीन हो जाते हैं’। यह दर्शाता है कि यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से इस स्तोत्र का पाठ करता है, तो भगवान हरि उसकी हर इच्छा को पूरा करते हैं और उसके जीवन में आशीर्वाद प्रदान करते हैं। ‘सत्वरम्’ का अर्थ है ‘शीघ्रता से’, यानी भगवान विष्णु तुरंत ही उस भक्त की प्रार्थना को सुनते हैं और उसकी सहायता करते हैं।
भगवान विष्णु के प्रमुख नामों का विश्लेषण
यह स्तोत्र भगवान विष्णु के विभिन्न नामों और उनके गहरे अर्थों को उजागर करता है। हर नाम उनके किसी खास रूप, लीला या गुण से संबंधित है। कुछ प्रमुख नामों की व्याख्या इस प्रकार है:
अच्युत
‘अच्युत’ का अर्थ है ‘जो कभी न गिरने वाला है’। भगवान विष्णु को इस नाम से पुकारा जाता है क्योंकि वे कभी पतन का सामना नहीं करते। वे सदा अडिग, अविनाशी और स्थिर रहते हैं। यह नाम उनकी शाश्वत और अटल स्थिति को दर्शाता है।
केशव
‘केशव’ शब्द का अर्थ है ‘सुंदर बालों वाला’ या ‘केश का स्वामी’। यह नाम भगवान विष्णु के आकर्षक स्वरूप को व्यक्त करता है। इसके अलावा, केशव शब्द का गहरा धार्मिक अर्थ यह भी है कि भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश को नियंत्रित करते हैं।
रामनारायण
रामनारायण का अर्थ है ‘राम जो नारायण हैं’। राम, भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं और नारायण उनके शाश्वत रूप का संकेत है। यह नाम राम के जीवन की दिव्यता को दर्शाता है और यह बताता है कि राम और विष्णु एक ही हैं।
कृष्णदामोदर
‘कृष्ण’ का अर्थ है ‘जो सबके प्रिय हैं’ और ‘दामोदर’ वह नाम है जो भगवान कृष्ण के बाल्यकाल की एक घटना से संबंधित है, जब माता यशोदा ने उन्हें एक रस्सी से बांध दिया था। यह भगवान कृष्ण के बालक रूप की मासूमियत और खेल को दर्शाता है।
वासुदेव
यह नाम भगवान कृष्ण के माता-पिता, वासुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में उनकी पहचान को व्यक्त करता है। इसके साथ ही यह यह भी बताता है कि भगवान वासुदेव सभी जीवों के आत्मा हैं और वे सबके भीतर निवास करते हैं।
हरि
‘हरि’ का अर्थ है ‘जो दुखों और पापों का नाश करता है’। भगवान विष्णु को इस नाम से पुकारा जाता है क्योंकि वे संसार के संकटों और कष्टों को हर लेते हैं। यह नाम उनके रक्षक स्वरूप की ओर संकेत करता है।
श्रीधर
‘श्रीधर’ का अर्थ है ‘जो लक्ष्मी (श्री) को धारण करते हैं’। भगवान विष्णु को लक्ष्मी के पति और धन-समृद्धि के स्त्रोत के रूप में देखा जाता है। यह नाम विष्णु के साथ लक्ष्मी के अनन्य संबंध को व्यक्त करता है।
माधव
‘माधव’ का अर्थ है ‘लक्ष्मी का पति’ या ‘वसंत ऋतु का स्वामी’। भगवान विष्णु को माधव के रूप में पूजा जाता है क्योंकि वे समृद्धि और शांति के देवता हैं। यह नाम उनके सौम्य और दयालु स्वरूप को दर्शाता है।
गोपिकावल्लभ
इसका अर्थ है ‘जो गोपिकाओं के प्रिय हैं’। भगवान कृष्ण को गोपियों के साथ उनकी दिव्य लीलाओं के कारण यह नाम दिया गया है। यह नाम उनके अद्वितीय प्रेम और भक्ति संबंध को दर्शाता है।
श्री कृष्ण की लीलाओं का महत्व
स्त्रोत में भगवान कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का वर्णन किया गया है। उनके द्वारा किए गए असुरों का वध, जैसे कि पूतना, केशी, कंस और धेनुकासुर, यह दर्शाते हैं कि वे न्याय और धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेते हैं। कृष्ण की बाल लीलाएं, जैसे कि दामोदर रूप, उनका वंशी (बांसुरी) वादन, और गोपिकाओं के साथ उनके प्रेम संबंध, भारतीय संस्कृति और भक्ति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
इन लीलाओं का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व यह है कि भगवान ने अपने हर रूप और कर्म से संसार को एक संदेश दिया है—चाहे वह प्रेम का हो, न्याय का हो या धर्म की स्थापना का। भगवान के हर कार्य के पीछे एक गहरा आध्यात्मिक सत्य छिपा होता है, जिसे जानने और समझने के लिए भक्त को भक्ति और श्रद्धा की आवश्यकता होती है।
राम और कृष्ण के रूप में विष्णु का अवतार
अच्युतं केशवं स्तोत्रम् में भगवान विष्णु के राम और कृष्ण दोनों रूपों का सुंदरता से वर्णन किया गया है। राम रूप में भगवान विष्णु ने मर्यादा और धर्म की स्थापना की, जबकि कृष्ण रूप में उन्होंने प्रेम और भक्ति का मार्ग दिखाया। रामायण में सीता के पति और राक्षसों के नाशक के रूप में उनकी भूमिका हमें यह सिखाती है कि एक राजा को कैसे धर्म और न्याय का पालन करना चाहिए।
भगवान कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को गीता का उपदेश देकर कर्म और भक्ति का महत्व बताया। उन्होंने कंस जैसे अत्याचारी का नाश कर धर्म की पुनः स्थापना की। उनका बाल गोपाल रूप हमें यह सिखाता है कि भगवान के साथ प्रेमपूर्ण संबंध कैसे स्थापित किया जा सकता है।
भक्ति और प्रेम की महिमा
अच्युतं केशवं स्तोत्रम् भक्त को यह सिखाता है कि भगवान विष्णु की भक्ति और प्रेम के द्वारा उन्हें प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम और भक्ति ही भगवान के सच्चे उपासक का मार्ग है। जो भक्त अपने हृदय में भगवान के प्रति सच्चा प्रेम और समर्पण रखता है, उसे भगवान की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
यह स्तोत्र हमें यह भी सिखाता है कि भगवान विष्णु असीम दया और करुणा के सागर हैं, और वे सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। भगवान की भक्ति से न केवल सांसारिक दुखों का नाश होता है, बल्कि आत्मा को भी शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।