मुख्य बिंदु
- – यह भजन भगवान गणेश की स्तुति में लिखा गया है, जिसमें उन्हें गौरी के पुत्र के रूप में स्वीकार करने का निवेदन किया गया है।
- – भजन में गणेश को विद्या, बुद्धि और दया का सागर बताया गया है, जो भक्तों के दुख हराते हैं।
- – गणेश को विघ्नहर्ता, मोदकप्रिय और त्राता के रूप में वर्णित किया गया है, जो सभी बाधाओं को दूर करते हैं।
- – भक्ति भाव से भरे इस भजन में गणेश से जीवन की कठिनाइयों और दुखों से मुक्ति की प्रार्थना की गई है।
- – भजन में गणेश की महिमा का गुणगान करते हुए उनकी कृपा और आशीर्वाद की कामना की गई है।

भजन के बोल
भाव सुमन लेकर मैं बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो,
हे गणनायक शुभ वरदायक,
हे गणनायक शुभ वरदायक,
आकर सिर पर हाथ धरो,
भाव सुमन लेकर मै बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो ॥
विद्यावारिधि बुद्धिविधाता,
आप दया के सागर हो,
भक्तों के दुःख हरने वाले,
ना तुमसे करुणाकर हो,
रिद्धि सिद्धि के देने वाले,
हम पर भी उपकार करो,
भाव सुमन लेकर मै बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो ॥
लम्बोदर गजवदन विनायक,
विघ्न हरण कर लो सारे,
मोदक प्रिय मुदमंगल त्राता,
दुःख दारिद्र हरने वाले,
लाज तुम्हारे हाथ गजानन,
भव से बेड़ा पार करो,
भाव सुमन लेकर मै बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो ॥
‘आलूसिंह’ तेरी महिमा का,
पार नहीं कोई पाया,
त्रास हरो सांवल की सारी,
द्वार आपके ये आया,
दास तुम्हारे श्री चरणों का,
हम सबके भंडार भरो,
भाव सुमन लेकर मै बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो ॥
भाव सुमन लेकर मैं बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो,
हे गणनायक शुभ वरदायक,
हे गणनायक शुभ वरदायक,
आकर सिर पर हाथ धरो,
भाव सुमन लेकर मै बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो ॥
