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भावयामि गोपालबालं in Hindi/Sanskrit

भावयामि गोपालबालं मन-
स्सेवितं तत्पदं चिन्तयेहं सदा ॥
भावयामि गोपालबालं मन-
स्सेवितं तत्पदं चिन्तयेहं सदा ॥

कटि घटित मेखला खचितमणि घण्टिका-
पटल निनदेन विभ्राजमानम् ।
कुटिल पद घटित सङ्कुल शिञ्जितेनतं
चटुल नटना समुज्ज्वल विलासम् ॥

भावयामि गोपालबालं मन-
स्सेवितं तत्पदं चिन्तयेहं सदा ॥

निरतकर कलित नवनीतं ब्रह्मादि
सुर निकर भावना शोभित पदम् ।
तिरुवेङ्कटाचल स्थितम् अनुपमं हरिं
परम पुरुषं गोपालबालम् ॥

भावयामि गोपालबालं मन-
स्सेवितं तत्पदं चिन्तयेहं सदा ॥

भावयामि गोपालबालं मन-
स्सेवितं तत्पदं चिन्तयेहं सदा ॥
भावयामि गोपालबालं मन-
स्सेवितं तत्पदं चिन्तयेहं सदा ॥

Bhavayami Gopalabalam in English

Bhavayami Gopalabalam manassevitam tatpadam chintayeham sada
Bhavayami Gopalabalam manassevitam tatpadam chintayeham sada

Kati ghatita mekhala khachita mani ghantika-
Patala ninadena vibhrajamanam
Kutila pada ghatita sankula shinjitena tam
Chatula natana samujjvala vilasam

Bhavayami Gopalabalam manassevitam tatpadam chintayeham sada

Nirataka kara kalita navanitam brahmadi
Sura nikara bhavana shobhita padam
Tiruvengkatachala sthitam anupamam harim
Parama purusham Gopalabalam

Bhavayami Gopalabalam manassevitam tatpadam chintayeham sada

Bhavayami Gopalabalam manassevitam tatpadam chintayeham sada
Bhavayami Gopalabalam manassevitam tatpadam chintayeham sada

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भावयामि गोपालबालं स्तोत्र का अर्थ

“भावयामि गोपालबालं” एक अत्यंत प्रसिद्ध और लोकप्रिय स्तोत्र है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के बालस्वरूप का सुन्दर वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र अद्वितीय भक्ति भावना के साथ लिखा गया है, जिसमें गायक भगवान के चरणों में अपनी पूरी आत्मा समर्पित करते हैं। श्रीकृष्ण के बाल रूप के अद्वितीय गुणों और लीलाओं का गायन करते हुए, भक्ति का सर्वोच्च रूप प्रस्तुत किया गया है।

भगवान गोपाल का परिचय

भगवान श्रीकृष्ण को “गोपाल” कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘गायों का पालन करने वाला’। उनके इस रूप में वे अपने बाल्यकाल में ग्वालबालों के साथ गायों को चराते और विभिन्न लीलाएं करते हुए देखे जाते हैं। इस स्तोत्र में गोपाल के बाल रूप का अत्यंत सजीव और आनंदमय वर्णन किया गया है। भक्त इस स्तोत्र के माध्यम से उनकी लीलाओं और सौंदर्य का ध्यान करते हैं और अपने मन को उनकी भक्ति में स्थिर करते हैं।

भावयामि गोपालबालं मन-

स्सेवितं तत्पदं चिन्तयेहं सदा ॥

इस श्लोक में गायक यह कहता है कि वह अपने मन में गोपालबाल (बालकृष्ण) का ध्यान करता है। उनकी सेवा में लगा हुआ मन हमेशा उनके चरणों का चिन्तन करता है। यहाँ यह संकेत मिलता है कि भक्त का मन सदैव भगवान श्रीकृष्ण की सेवा में लगा रहता है और उनके दिव्य स्वरूप का ध्यान करता है।

कटि घटित मेखला खचितमणि घण्टिका-

पटल निनदेन विभ्राजमानम् ।

यहाँ श्रीकृष्ण की दिव्य अलंकरण का वर्णन है। उनके कटि पर एक सुन्दर मेखला (कमरबंद) है, जो रत्नों और घंटियों से सुसज्जित है। इन घंटियों की मधुर ध्वनि उनके हर कदम के साथ गूंजती है और उनकी उपस्थिति को दिव्यता से भर देती है।

कुटिल पद घटित सङ्कुल शिञ्जितेनतं

चटुल नटना समुज्ज्वल विलासम् ॥

श्रीकृष्ण के कुटिल (मुड़े हुए) कदमों का और उनके चपल नर्तन का वर्णन किया गया है। उनकी हर चाल में अनोखी शोभा है, और उनके नृत्य की चपलता अद्वितीय है। यह दृश्य बालकृष्ण की चंचलता और मस्ती को दर्शाता है।

भगवान श्रीकृष्ण का बालरूप उनकी बाल लीलाओं के लिए प्रसिद्ध है। वे यशोदा माता के लाडले बालक थे, जिन्होंने ग्वालों के साथ खेल-खेल में अद्भुत लीलाएं कीं। यह स्तोत्र उनकी चंचलता, उनकी बाललीलाओं और उनके अद्वितीय सौंदर्य का ध्यान करता है।

निरतकर कलित नवनीतं ब्रह्मादि

सुर निकर भावना शोभित पदम् ।

यहाँ गोपालबाल के नवनीत (मक्खन) चुराने की लीला का वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण का बाल रूप सदा अपने हाथों में माखन लिए रहता था, जिसे वे बड़े आनंद के साथ चुराते थे। उनके इस रूप को देखकर ब्रह्मादि देवता भी उनकी भावना में मग्न हो जाते थे।

तिरुवेङ्कटाचल स्थितम् अनुपमं हरिं

परम पुरुषं गोपालबालम् ॥

श्रीकृष्ण को तिरुपति के वेंकटाचल पर्वत पर स्थित भगवान वेंकटेश्वर के रूप में भी पूज्य माना जाता है। इस श्लोक में गायक भगवान गोपालबाल को परम पुरुष और अनुपम हरि के रूप में दर्शाते हैं, जो समस्त सृष्टि के पालनकर्ता हैं।

गोपाल बालकृष्ण की लीलाएं और उनका भक्ति महत्व

श्रीकृष्ण की बाललीलाएं भक्तों के लिए अत्यंत प्रिय हैं, क्योंकि इनमें भगवान का सरल, मासूम और चंचल स्वरूप सामने आता है। बालकृष्ण का हर कार्य लीला के रूप में देखा जाता है, चाहे वह माखन चुराना हो, ग्वालबालों के साथ क्रीड़ा करना हो, या माता यशोदा से बाल रूप में प्रेम भिक्षा मांगना हो।

माखन चोर की लीला

बालकृष्ण को “माखन चोर” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उनके बाल्यकाल में माखन चुराने की लीला अत्यंत प्रसिद्ध है। गोपियों के घरों से माखन चुराकर खाने में उन्हें अत्यंत आनंद आता था। उनकी यह लीला केवल एक बालक की चंचलता नहीं थी, बल्कि इसके माध्यम से उन्होंने भक्तों को यह सन्देश दिया कि भगवान अपने भक्तों के हर भाव को स्वीकार करते हैं। माखन चुराने की उनकी यह क्रिया भी भक्तों की निष्ठा और प्रेम का प्रतीक है।

ब्रह्मादि देवताओं का स्तवन

बालकृष्ण के चरणों की महिमा का वर्णन करते हुए, यह बताया गया है कि ब्रह्मा, शिव, इंद्र जैसे सभी देवता उनके चरणों में नमन करते हैं। यद्यपि वह एक बालक के रूप में माखन चुरा रहे हैं, फिर भी उनके चरणों की दिव्यता असीम है। यह संकेत देता है कि भगवान का कोई भी रूप, चाहे वह बालकृष्ण हो या गोवर्धनधारी, भक्तों के लिए समान रूप से पूजनीय और महान है। देवता भी उनकी लीलाओं को देखकर स्तंभित हो जाते हैं और उनकी महिमा का गान करते हैं।

चंचलता और नृत्य का महत्व

श्लोकों में वर्णित “कुटिल पद” और “चटुल नर्तन” भगवान के चंचल और नटखट स्वभाव को दर्शाते हैं। श्रीकृष्ण का यह स्वरूप उनकी चंचलता और अनंत प्रेम को दर्शाता है। उनके हर कदम के साथ बजती घंटियों की आवाज भक्तों के हृदय में अनुगूंजित होती है और उन्हें भगवान की भक्ति में मग्न कर देती है।

कुटिल पद का प्रतीकात्मक अर्थ

कुटिल पद केवल कृष्ण के शारीरिक चाल-ढाल का वर्णन नहीं करता, बल्कि यह उनके जीवन के हर पहलू में अंतर्निहित रहस्यों को दर्शाता है। कुटिल पद से यह संकेत मिलता है कि भगवान की लीला कभी-कभी हमें समझ में नहीं आती, परंतु उसमें भी दिव्यता और गहराई छिपी होती है।

भक्त और भगवान का संबंध

“भावयामि गोपालबालं” का प्रमुख उद्देश्य भक्त और भगवान के बीच गहरे संबंध को स्थापित करना है। इस स्तोत्र के माध्यम से भक्त अपने मन को श्रीकृष्ण के चरणों में स्थिर करते हैं और अपनी भक्ति भावना को प्रगाढ़ बनाते हैं।

सतत ध्यान

इस स्तोत्र में बार-बार यह दोहराया गया है कि भक्त सदैव भगवान के चरणों का ध्यान करते हैं। यह ध्यान किसी एक समय या स्थिति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सतत चलता रहता है। भक्त का मन, विचार और आत्मा सभी भगवान के चरणों में समर्पित होते हैं।

ध्यान की गहराई

जब भक्त बालकृष्ण के रूप का ध्यान करते हैं, तो वे केवल उनके सौंदर्य और लीलाओं को ही नहीं देखते, बल्कि उनके भीतर छिपी हुई दिव्यता और महानता का भी अनुभव करते हैं। यह ध्यान भक्त को आध्यात्मिक शांति और आनंद की ओर ले जाता है। भगवान का हर रूप, हर लीला एक गहरे आध्यात्मिक संदेश से भरी होती है, जिसे समझने और अनुभव करने के लिए भक्त का मन पूरी तरह से भगवान में लीन होना चाहिए।

निष्काम भक्ति

भावयामि गोपालबालं स्तोत्र निष्काम भक्ति का सबसे उत्तम उदाहरण है। यहाँ भक्त भगवान से किसी फल या वरदान की अपेक्षा नहीं करता, बल्कि केवल अपने मन, आत्मा और विचारों को उनके चरणों में अर्पित करता है। यह भक्ति का सर्वोच्च रूप है, जिसमें कोई इच्छा, कोई अपेक्षा नहीं होती, केवल प्रेम और समर्पण होता है।

तिरुपति वेंकटाचल का महत्व

श्रीकृष्ण का एक अन्य रूप तिरुपति वेंकटाचल पर स्थित वेंकटेश्वर के रूप में है। इस स्तोत्र में यह बताया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण का यह रूप अनुपम है और यह परम पुरुष के रूप में उनकी दिव्यता का प्रतीक है।

परम पुरुष का रूप

भगवान श्रीकृष्ण केवल एक बालक नहीं हैं, वे समस्त सृष्टि के पालक और परम पुरुष हैं। उनका हर रूप भक्तों के लिए प्रिय है, चाहे वह बालकृष्ण हो या तिरुपति वेंकटाचल का स्वरूप।

अनंत लीला और दिव्यता

श्रीकृष्ण की लीलाएं अनंत हैं, और उनका हर रूप भक्तों के लिए एक नई भक्ति अनुभूति प्रदान करता है। चाहे वे गोवर्धनधारी हों, माखनचोर हों, या तिरुपति वेंकटाचल के रूप में हों, उनकी दिव्यता हर रूप में प्रकट होती है और भक्त उनके चरणों में नत-मस्तक होते हैं।

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