शिव भो शंम्भो शिव शम्भो स्वयंभो in Hindi/Sanskrit
शिव भो शंम्भो शिव शम्भो स्वयंभो
भो शम्भो शिव शम्भो स्वयंभो
गङ्गाधर शंकर करुणाकर मामव भवसागर तारक
यह श्लोक भगवान शिव की स्तुति का एक सुंदर उदाहरण है। इसमें भगवान शिव के विभिन्न नामों और उनके गुणों का वर्णन किया गया है।
शिव भो शंम्भो शिव शम्भो स्वयंभो:
- शिव: भगवान शिव का प्रमुख नाम।
- भो शम्भो: शम्भो शिव का ही एक और नाम है, जिसका अर्थ होता है “सुख देने वाला”।
- स्वयंभो: जो स्वयं उत्पन्न हुए हैं, अर्थात् आत्मनिर्भर।
गङ्गाधर शंकर करुणाकर मामव भवसागर तारक:
- गङ्गाधर: जो गंगा नदी को अपने जटाओं में धारण करते हैं।
- शंकर: जो कल्याणकारी हैं।
- करुणाकर: जो दयालु हैं।
- मामव: मुझे बचाओ।
- भवसागर तारक: संसार रूपी सागर से पार लगाने वाले।
निर्गुण परब्रह्म स्वरुप गमगम भूत प्रपञ्चा रहित:
- निर्गुण: जो किसी भी गुण या आकार में बंधे नहीं हैं।
- परब्रह्म: सर्वोच्च सत्य।
- स्वरुप: वास्तविक रूप।
- गमगम: शब्द या ध्वनि के रूप में।
- भूत प्रपञ्चा रहित: सभी भूत, वर्तमान और भविष्य से परे।
निज गुहानिहित नितान्त अनन्त आनन्द अतिशय अक्सयलिङ्ग:
- निज गुहानिहित: अपने भीतर स्थित।
- नितान्त अनन्त: जो अनंत हैं।
- आनन्द: जो आनंद स्वरुप हैं।
- अतिशय: अत्यधिक।
- अक्सयलिङ्ग: जो अविनाशी लिंग रूप में हैं।
धिमित धिमित धिमि धिमिकित किततों तों तों तरिकित तरिकितकित तों:
यह पंक्तियाँ शिव तांडव स्तोत्र की ध्वनि और नृत्य का वर्णन करती हैं।
मातङ्ग मुनिवर वन्दिता इष सर्व दिगंबर वेस्तित:
- मातङ्ग: हाथी के समान।
- मुनिवर: महान ऋषि।
- वन्दिता: जिनकी पूजा की जाती है।
- इष: इच्छाशक्ति।
- सर्व दिगंबर: जो सभी दिशाओं में नग्न (मुक्त) हैं।
- वेस्तित: आवृत्त।
वेस इष सबेष नित्य निरञ्जन नित्य न अतेष इष सबेष सर्वेश:
- वेस: वस्त्र।
- इष: इच्छाशक्ति।
- सबेष: सभी में।
- नित्य निरञ्जन: हमेशा शुद्ध।
- नित्य न अतेष: हमेशा और कभी भी।
- सर्वेश: सभी के स्वामी।
यह पूरा श्लोक भगवान शिव की महिमा और उनकी अनंत शक्तियों का गुणगान करता है।
यह श्लोक भगवान शिव की भक्ति और उनके अद्वितीय गुणों का वर्णन करता है। प्रत्येक शब्द और पंक्ति में शिव की महिमा और दिव्यता की व्याख्या की गई है।
Bho Shambho Shiva Shambho Swayambho in English
Bho Shambho,Shiva Shambho,svayambho…
Gangadhara Shankara Karunakara
Mamava bhava sagara Tharaka
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Nirguna parabrahma swaroopa..
gama gama bhootha prapancha rahitha..
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Nija gunanihitha nithantha anantha..
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Ananda athishaya Akshaya linga
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Dhimita dhimita dhimi dhimikita kitathom
thom thom tarikita tarikitakita thom
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Matanga munivara vandita Isha…
sarva digambara vestitha vesha
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Nithya Niranjana Nithya natesa
Isha sarvesha sarvesha….
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शिव भो शंम्भो शिव शम्भो स्वयंभो PDF Download
शिव भो शंम्भो शिव शम्भो स्वयंभो का अर्थ
यह पंक्तियाँ शिव के विभिन्न नामों और विशेषणों को उद्धृत करती हैं:
- शिव: इस नाम का अर्थ है “कल्याणकारी”। शिव को संहारक और पुनर्जन्म के देवता के रूप में भी जाना जाता है।
- भो शंम्भो: “भो” संबोधन है और “शंम्भो” का अर्थ है “सुख देने वाला”। यह शिव के करुणामय और सौम्य रूप का वर्णन करता है।
- स्वयंभो: इसका अर्थ है “स्वयं उत्पन्न”, जो यह दर्शाता है कि शिव किसी अन्य पर निर्भर नहीं हैं और वे स्वयं में ही पूर्ण हैं।
गङ्गाधर शंकर करुणाकर मामव भवसागर तारक
- गङ्गाधर: शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया था ताकि पृथ्वी पर उसका प्रचंड प्रवाह नियंत्रित हो सके।
- शंकर: जिसका अर्थ है “कल्याणकारी”। शिव का यह नाम उनके भक्तों के लिए उनकी अनुकंपा और रक्षा का प्रतीक है।
- करुणाकर: दया और करुणा के सागर।
- मामव भवसागर तारक: यहां भक्त शिव से प्रार्थना कर रहा है कि वे उसे संसार के दुःखों से पार करें।
निर्गुण परब्रह्म स्वरुप गमगम भूत प्रपञ्चा रहित
- निर्गुण: जो किसी गुण या माया से परे हैं।
- परब्रह्म: सर्वोच्च वास्तविकता, जो सभी सीमाओं से परे है।
- स्वरुप: वास्तविक रूप।
- गमगम भूत प्रपञ्चा रहित: जो सभी भूतकाल, वर्तमान और भविष्य से परे हैं। शिव को असीम और अनंत रूप में वर्णित किया गया है।
निज गुहानिहित नितान्त अनन्त आनन्द अतिशय अक्सयलिङ्ग
- निज गुहानिहित: जो अपने स्वयं के हृदय में स्थित हैं।
- नितान्त अनन्त: जो अनंत और असीम हैं।
- आनन्द: जो शुद्ध आनंद का स्वरुप हैं।
- अतिशय: अत्यधिक।
- अक्सयलिङ्ग: जो अविनाशी और शाश्वत लिंग रूप में हैं। शिवलिंग को शिव की अनंतता और शाश्वतता का प्रतीक माना जाता है।
धिमित धिमित धिमि धिमिकित किततों तों तों तरिकित तरिकितकित तों
यह ध्वनियाँ शिव के तांडव नृत्य का वर्णन करती हैं, जो सृष्टि, संहार और पुनर्जन्म का प्रतीक है। तांडव नृत्य में शिव का हर कदम और ताल जीवन के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करता है।
मातङ्ग मुनिवर वन्दिता इष सर्व दिगंबर वेस्तित
- मातङ्ग: हाथी के समान विशाल और शक्तिशाली।
- मुनिवर वन्दिता: महान ऋषियों द्वारा पूजित।
- इष: इच्छाशक्ति।
- सर्व दिगंबर: जो सभी दिशाओं में मुक्त (दिगंबर) हैं।
- वेस्तित: आवृत्त।
वेस इष सबेष नित्य निरञ्जन नित्य न अतेष इष सबेष सर्वेश
- वेस: वस्त्र।
- इष: इच्छाशक्ति।
- सबेष: सभी में।
- नित्य निरञ्जन: हमेशा शुद्ध।
- नित्य न अतेष: हमेशा और कभी भी।
- सर्वेश: सभी के स्वामी।
यह श्लोक भगवान शिव की असीम महिमा, उनके दया और करुणा, और उनके शाश्वत स्वरूप का सुंदर वर्णन करता है। यह उनके भक्तों के लिए प्रेरणा और भक्ति का स्रोत है।