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ॐ भूर्भुव: स्व: ।
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो न: प्रचोदयात् ॥ यजुर्वेद 36.3

ॐ विश्वानि देव
सवितर्दुरितानि परासुव ।
यद भद्रं तन्न आ सुव ॥ यजुर्वेद 30.3

हिरण्यगर्भ: समवर्त्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत ।
स दाधार प्रथिवीं ध्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ यजुर्वेद 13.4

य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवा: ।
यस्य छायाऽमृतं यस्य मृत्यु: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ यजुर्वेद 25.13

य: प्राणतो निमिषतो महित्वैक इन्द्राजा जगतो बभूव ।
य ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पद: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ यजुर्वेद 23.3

येन द्यौरुग्रा पृथिवी च द्रढा येन स्व: स्तभितं येन नाक: ।
यो अन्तरिक्षे रजसो विमान: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ यजुर्वेद 32.6

प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परिता बभूव ।
यत्कामास्ते जुहुमस्तनो अस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥ ऋ्गवेद 10.121.10

स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा ।
यत्र देवा अमृतमानशाना स्तृतीये घामन्नध्यैरयन्त ॥ यजुर्वेद 32.10

अग्ने नय सुपथा राये अस्मान्‌
विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्‌।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो
भूयिष्ठां ते नम‍उक्तिं विधेम ॥ यजुर्वेद 40.16

ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना मंत्र

यहां दिए गए मंत्रों और श्लोकों का विवरण इस प्रकार है:

1. ॐ भूर्भुव: स्व:। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात् ॥ यजुर्वेद 36.3

  • यह मंत्र गायत्री मंत्र के नाम से प्रसिद्ध है। यह वेदों का सबसे पवित्र मंत्र माना जाता है। इस मंत्र में सूर्य देव की स्तुति की गई है। इसका अर्थ है:
    • हम उस आदित्य देव (सविता) के दिव्य तेज का ध्यान करते हैं, जो पृथ्वी, अंतरिक्ष और स्वर्ग (तीनों लोकों) में व्याप्त है। वह हमारी बुद्धि को सही दिशा में प्रेरित करें।

2. ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव। यद भद्रं तन्न आ सुव ॥ यजुर्वेद 30.3

  • यह मंत्र सविता देव की स्तुति करता है। इसमें प्रार्थना की गई है कि हे सविता देव, हमारे सारे पापों को दूर करें और हमारे लिए कल्याणकारी वस्तुएं प्रदान करें।

3. हिरण्यगर्भ: समवर्त्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत। स दाधार प्रथिवीं ध्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ यजुर्वेद 13.4

  • यह श्लोक हिरण्यगर्भ की महिमा का वर्णन करता है, जो सृष्टि के प्रारंभ में उत्पन्न हुए थे और सभी जीवों के स्वामी बने। उन्होंने पृथ्वी और आकाश को धारण किया। हम किस देवता को यह आहुति अर्पित करें?

4. य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवा:। यस्य छायाऽमृतं यस्य मृत्यु: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ यजुर्वेद 25.13

  • यह श्लोक उस देवता की स्तुति करता है जो जीवन और शक्ति देने वाला है, जिसकी पूजा सभी प्राणी करते हैं, और जिसकी छाया अमरत्व और मृत्यु को नियंत्रित करती है। हम किस देवता को यह आहुति अर्पित करें?

5. य: प्राणतो निमिषतो महित्वैक इन्द्राजा जगतो बभूव। य ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पद: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ यजुर्वेद 23.3

  • इस श्लोक में उस देवता की महिमा का वर्णन है जो जीवों के श्वास और निःश्वास का स्वामी है, और जिसने संसार की रचना की है। वह द्विपद और चतुष्पद प्राणियों का भी स्वामी है। हम किस देवता को यह आहुति अर्पित करें?

6. येन द्यौरुग्रा पृथिवी च द्रढा येन स्व: स्तभितं येन नाक:। यो अन्तरिक्षे रजसो विमान: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ यजुर्वेद 32.6

  • इस श्लोक में उस देवता की स्तुति है जिसने द्युलोक, पृथ्वी, और अंतरिक्ष को स्थिरता प्रदान की है, और जो आकाश के रजस तत्व में विद्यमान है। हम किस देवता को यह आहुति अर्पित करें?

7. प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परिता बभूव। यत्कामास्ते जुहुमस्तनो अस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥ ऋ्गवेद 10.121.10

  • यह श्लोक प्रजापति की महिमा करता है, जो सभी प्राणियों के जनक हैं। उनसे प्रार्थना की जाती है कि हमारी इच्छाएँ पूरी हों और हम संपत्ति के स्वामी बनें।

8. स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा। यत्र देवा अमृतमानशाना स्तृतीये घामन्नध्यैरयन्त ॥ यजुर्वेद 32.10

  • इस श्लोक में प्रजापति को सर्वज्ञाता और सृष्टिकर्ता के रूप में वर्णित किया गया है, जो सभी लोकों को जानते हैं। यह श्लोक उनकी स्तुति करता है कि उन्होंने देवताओं के लिए अमृत की व्यवस्था की।

9. अग्ने नय सुपथा राये अस्मान्‌ विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्‌। युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम‍उक्तिं विधेम ॥ यजुर्वेद 40.16

  • यह श्लोक अग्निदेव से प्रार्थना करता है कि वे हमें अच्छे मार्ग पर ले चलें और हमारे सारे पापों को दूर करें। साथ ही, उनसे हमारी प्रार्थना स्वीकार करने की विनती की जाती है।

इन मंत्रों और श्लोकों में वेदों की गहरी आध्यात्मिक शिक्षाओं का सार छिपा हुआ है, जो मानव जीवन के लिए मार्गदर्शक हैं।

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