- – यह भजन भगवान शिव (भोलेनाथ) की महिमा और उनकी आराधना का वर्णन करता है।
- – भजन में कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान बताया गया है, जहाँ भक्ति के साथ जाना चाहता है।
- – भोलेनाथ के माथे पर चंद्रमा, हाथ में डमरू, और जटाओं में गंगा का वर्णन किया गया है।
- – भांग और धतूरे का भोग चढ़ाने, और डमरू की धुन बजाने का उल्लेख है, जो शिव पूजा के प्रतीक हैं।
- – भजन में भोलेनाथ को भक्तों के पालनहार और संपूर्ण जगत का स्वामी बताया गया है।
- – गीत का स्वर सौरभ मधुकर ने दिया है और यह भजन श्रद्धा और भक्ति की भावना से ओतप्रोत है।
जय हो भोलेनाथ,
मैं वारि जाऊं कैलाशी।
माथे पे तेरे चंदा साजे,
हाथ में डमरू डम डम बाजे,
जय हों भोलेनाथ,
मैं वारि जाऊं कैलाशी,
मैं वारि जाऊं कैलाशी,
बलिहारी जाऊं कैलाशी,
जय हों भोलेनाथ,
मैं वारि जाऊं कैलाशी।।
तर्ज – मैं वारि जाऊं बालाजी।
बाएं अंग तेरे गिरिजा सोहे,
दाएं गजानन मन को मोहे,
नंदी के तुम असवार,
मैं वारि जाऊं कैलाशी,
जय हों भोलेनाथ,
मैं वारि जाऊं कैलाशी।।
जटा में तेरे गंगा साजे,
भुत प्रेत तेरे आगे नाचे,
हो रही जय जयकार,
मैं वारि जाऊं कैलाशी,
जय हों भोलेनाथ,
मैं वारि जाऊं कैलाशी।।
भांग धतूरे का भोग लगाए,
डम डम डम डम डमरू बजाए,
भक्तो के पालनहार,
मैं वारि जाऊं कैलाशी,
जय हों भोलेनाथ,
मैं वारि जाऊं कैलाशी।।
ये सारा जग संसार है तेरा,
कैलाश पर्वत के ऊपर बसेरा,
महिमा है अपरम्पार,
मैं वारि जाऊं कैलाशी,
जय हों भोलेनाथ,
मैं वारि जाऊं कैलाशी।।
माथे पे तेरे चंदा साजे,
हाथ में डमरू डम डम बाजे,
जय हों भोलेनाथ,
मैं वारि जाऊं कैलाशी,
मैं वारि जाऊं कैलाशी,
बलिहारी जाऊं कैलाशी,
जय हो भोलेनाथ,
मैं वारि जाऊं कैलाशी।।
स्वर – सौरभ मधुकर।
https://youtu.be/WJwoRXoUMa4
