धर्म दर्शन वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें Join Now

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

कनकधारा स्तोत्रम् in Hindi/Sanskrit

अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥१॥

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥२॥

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षम्_
आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धम्_
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥३॥

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम्_
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥४॥

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥५॥

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्_
धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्_
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥६॥

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन ।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥७॥

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम्_
अस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥८॥

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र_
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥९॥

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति ।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥१०॥

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥११॥

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै ।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥१२॥

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥१३॥

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः ।
संतनोति वचनाङ्गमानसैस्_
त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥१४॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥१५॥

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट_
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष_
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥१६॥

कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः ।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥१७॥

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥१८॥

आदि शंकराचार्य कृत

Kanakadhara Stotram in English

Here is the Hindi text written in simple English script without adding any meaning:

Angam hareh pulakabhushanamashrayanti
Bhringanganeva mukulabharanam tamalam.
Angikritakhilavibhutirapangalila
Mangalyadastu mama mangaladevatayah.

Mugdha muhurvidadhati vadane murareh
Prematrapapranihitani gatagatani.
Mala drishormadhukariva mahotpale ya
Sa me shriyam dishatu sagarasambhavayah.

Vishvamarendrapadavibhramadanadaksham
Anandaheturadhikam muravidvisho’pi.
Ishannishidatu mayi kshanamikshanardham
Indivarodarasahodaramindirayah.

Amilitakshamadhigamya muda mukundam
Anandakandamanimeshamanangatantram.
Aakekarasthitakaninikapakshmanetram
Bhutyai bhavenmama bhujangashayanganayah.

Bahvantare madhujitah shritakaustubhe ya
Haravaliva harinilamayi vibhati.
Kamaprada bhagavato’pi katakshamala
Kalyanamavahatu me kamalalayayah.

Kalamubdalilalitorasi kaitabhareh
Dharadhare sphurati ya tadidanganveva.
Matur samastajagatam mahaniyamurtir
Bhadrani me dishatu bhargavanandanayah.

Praptam padam prathamatah kila yatprabhavan
Mangalyabhaji madhumathini manmathena.
Mayyapatettadiha mantharamikshanardham
Mandalasam cha makaralayakanyakayah.

Dadyad dayanupavano dravinambudharam
Asminnakinchanavihangashishau vishanne.
Dushkarmagharmamapaniya chiraya duram
Narayanapranayininyanambuvahah.

Ishta vishishtamatayo’pi yaya dayardra
Drishtya trivishtapapadam sulabham labhante.
Drishtih prahrishtakamalodaradeeptirishtam
Pushtim krishisht mama pushkaravishtarayah.

Girdeva teti garudadhvajasundariti
Shakambhariti shashishekharavallabheti.
Srishtisthitipralayakelishu samsthitayai
Tasyai namastribhuvanai gurostarunyai.

Shrutyai namo’stu shubhakarmaphalaprasutyai
Ratyai namo’stu ramaniyagunarnavayai.
Shaktyai namo’stu shatatraniketanayai
Pushtyai namo’stu purushottamavallabhayai.

Namo’stu nalikanibhananayai
Namo’stu dugdhodadhijanmabhutyai.
Namo’stu somamritasodarayi
Namo’stu narayanavallabhayai.

Sampatkarani sakalendriyanandanani
Samrajyadanavibhanani saroruhakshi.
Tvadvandani duritaharanodyatani
Mameva mataranisham kalayantu manye.

Yatkatakshasamupasanavidhih
Sevakasya sakalarthasampadah.
Santanoti vachanangamanasais_
Tvam murarihridayeshvarim bhaje.

Sarasijanilaye sarojahaste
Dhavalatamanshukagandhamalyashobhe.
Bhagavati harivallabhe manojne
Tribhuvanabhutikari prasida mahyam.

Digghastibhih kanakakumbhamukhavasrishta_
Svarvahinivimalacharujalaplutangim.
Pratarnamami jagatam jananimashesha_
Lokadhinathagrhinimamritabdhiputrim.

Kamale kamalakshavallabhe
Tvam karunapurataringitairapangaih.
Avalokaya mamakinchananam
Prathamam patramakritrimam dayayaih.

Stuvanti ye stutibhiramubhiranvaham
Trayimayim tribhuvanamataram ramam.
Gunadhika gurutarabhagyabhagino
Bhavanti te bhuvi budhabhavitasayah.

Adi Shankaracharya Krit.

कनकधारा स्तोत्र PDF Download

कनकधारा स्तोत्र (श्री लक्ष्मी स्तुति)

आदि शंकराचार्य द्वारा रचित “कनकधारा स्तोत्र” श्री लक्ष्मी जी की स्तुति है। इस स्तोत्र में श्री लक्ष्मी की महिमा और कृपा की प्रार्थना की गई है। आइए प्रत्येक श्लोक का हिंदी में विस्तृत अर्थ समझते हैं:

अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! आपके श्री हरि के शरीर पर रोमांच रूपी आभूषण शोभित हैं, जैसे तमाल वृक्ष के पत्तों पर भौंरा बैठा हो। आपके कटाक्षों की लीलाएं समस्त विभूतियों को प्रदान करने वाली हैं। आप मंगल की अधिष्ठात्री देवी हैं। आप मुझे मंगल प्रदान करें।

इस श्लोक में देवी लक्ष्मी की कृपा को दर्शाया गया है, जो भगवान विष्णु के अंगों पर रोमांच (पुलक) रूप में शोभित होती हैं और भक्तों के लिए सौभाग्य और कल्याण की दाता होती हैं।

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः…

अर्थ:

हे सागर पुत्री लक्ष्मी जी! आपके नेत्र, मुरारी (भगवान विष्णु) के मुख की ओर बार-बार प्रेम और लज्जा से निहारते रहते हैं। जैसे मधुमक्खी कमल के फूल पर बार-बार जाती है, वैसे ही आपकी दृष्टि मुरारी की ओर जाती रहती है। आप मुझे अपनी कृपा दृष्टि से धन्य करें।

यह श्लोक भगवान विष्णु के प्रति लक्ष्मी जी के प्रेम और समर्पण को दर्शाता है, जिसमें उनकी दृष्टि भगवान के मुख की ओर लगातर निहारती रहती है।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षम्…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! आप की एक दृष्टि से ही देवताओं के राजा इन्द्र को भी पद का गौरव प्राप्त होता है। भगवान विष्णु के शत्रु को भी आपकी कृपा से आनंद प्राप्त होता है। आपके कमल समान नेत्रों की कृपा से आप मुझे भी कृपा प्रदान करें।

इस श्लोक में लक्ष्मी जी की महिमा का वर्णन है कि उनकी कृपा से देवता और असुर सभी को समान रूप से आनंद प्राप्त होता है।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम्…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! आप अपनी अर्ध-खुली आँखों से भगवान मुकुंद (विष्णु) को आनन्दपूर्वक निहारती हैं। आपकी अर्ध-निमेष दृष्टि अनंत आनंद प्रदान करती है। आपकी आँखें सदा भगवान के रूप में ध्यानमग्न रहती हैं। कृपया आप मुझे भी सम्पत्ति और आनंद प्रदान करें।

इस श्लोक में लक्ष्मी जी की अर्ध-निमेष दृष्टि की महिमा का वर्णन है, जो भगवान विष्णु की ओर लगी रहती है और अनंत आनंद प्रदान करती है।

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! भगवान विष्णु के कंठ में कौस्तुभ मणि की हारावली के रूप में आप शोभायमान होती हैं। भगवान को भी आपकी कृपा से प्रेम प्राप्त होता है। आपके कटाक्षों की माला मुझे कल्याण प्रदान करे।

इस श्लोक में लक्ष्मी जी की उपमा कौस्तुभ मणि से दी गई है, जो भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर स्थित है और कल्याणकारी है।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! आप भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर काले बादलों के समान शोभायमान हैं। जैसे बादलों के बीच बिजली चमकती है, वैसे ही आप भगवान के वक्षस्थल पर तेजस्वी रूप में विराजमान हैं। समस्त जगत की माता होने के नाते आप मुझे कल्याण प्रदान करें।

इस श्लोक में लक्ष्मी जी की उपमा बादलों और बिजली से दी गई है, जो भगवान विष्णु के साथ मिलकर जगत के कल्याण का कार्य करती हैं।

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! आपकी कृपा से ही पहले मन्मथ (कामदेव) ने भगवान मधु के शत्रु (विष्णु) के हृदय में स्थान प्राप्त किया था। उसी कृपा से आपका मंद, मंथर कटाक्ष मुझ पर भी पड़े और मुझे धन्य कर दे।

इस श्लोक में लक्ष्मी जी के कटाक्ष की महिमा का वर्णन है, जिससे मन्मथ ने भगवान विष्णु के हृदय में स्थान प्राप्त किया था।

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम्…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! आपकी दयादृष्टि से मुझ गरीब और दुखी को धन की वर्षा हो। आपकी कृपा से मेरे सभी बुरे कर्म दूर हो जाएं और मेरे जीवन में सुख-समृद्धि का प्रवेश हो।

यह श्लोक लक्ष्मी जी से धन और समृद्धि की प्रार्थना करता है, ताकि दीन-हीन व्यक्ति को उनकी कृपा से कल्याण और शांति प्राप्त हो।

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! जिनकी दयादृष्टि से ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसे देवता भी आपके कृपाकटाक्ष से समृद्ध होते हैं, आपकी वह कृपादृष्टि मुझे भी मिले और मुझे सम्पत्ति और समृद्धि प्रदान करे।

इस श्लोक में लक्ष्मी जी की कृपा का वर्णन किया गया है, जिससे उच्चतर देवता भी लाभान्वित होते हैं।

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! आप को “गीर्देवता” (वाणी की देवी), “गरुड़ध्वज की सुंदरी” (विष्णु की पत्नी), “शाकंभरी” (धरती की पालन करने वाली), और “शशिशेखरवल्लभा” (शिव की पत्नी) जैसे नामों से पुकारा जाता है। सृष्टि, स्थिति और प्रलय की लीला में स्थित उस तीनों लोकों की गुरुमाता को मेरा नमस्कार।

यह श्लोक लक्ष्मी जी के विभिन्न नामों और रूपों की स्तुति करता है, जिससे उनकी अनंत महिमा और विभिन्न रूपों में उपस्थित होने का बोध होता है।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! आप शुभ कर्मों का फल देने वाली हैं। आपकी स्तुति वेदों में भी की गई है। आपकी कृपा से ही भक्तों को पुण्य के फलों की प्राप्ति होती है। आप मुझे भी शुभ कर्मों के फलों का वरदान दें।

इस श्लोक में लक्ष्मी जी की स्तुति की जा रही है, जो शुभ कर्मों का फल देती हैं।

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! मैं आपको प्रणाम करता हूँ, जिनका मुख कमल के समान सुंदर है। आप समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई हैं। आप सोम (चंद्रमा) और अमृत के समान दिव्य गुणों से युक्त हैं। आप भगवान नारायण की प्रियतमा हैं, आपको बार-बार प्रणाम।

इस श्लोक में देवी लक्ष्मी की उपमा उनके कमल-सदृश मुख, चंद्रमा के समान उज्ज्वलता और अमृत की दिव्यता से की गई है। उनका संबंध समुद्र मंथन से है, और उन्हें नारायण की पत्नी के रूप में सम्मानित किया गया है।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! आपके वंदन से समृद्धि प्राप्त होती है, इन्द्रियों को आनंद प्राप्त होता है, और सम्राज्य, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। आपके चरणों की वंदना पापों का नाश करती है। हे कमलनयन माता! मुझे हमेशा आपका आशीर्वाद प्राप्त हो।

इस श्लोक में देवी लक्ष्मी के चरणों की वंदना से प्राप्त होने वाली समृद्धि, ऐश्वर्य और सुखों का वर्णन किया गया है, साथ ही पापों के विनाश की प्रार्थना की गई है।

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः…

अर्थ:

जिसके कटाक्ष की उपासना से सेवक को समस्त संपत्ति और समृद्धि की प्राप्ति होती है, ऐसे हे मुरारी की हृदयेश्वरी लक्ष्मी जी! मैं आपको अपने मन, वाणी और कर्म से सेवा करता हूँ।

इस श्लोक में देवी लक्ष्मी की कटाक्ष कृपा का महत्त्व बताया गया है, जो समस्त इच्छाओं और धन-संपत्ति की पूर्ति करने में सक्षम है।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! आप कमल के आसन पर विराजमान हैं, आपके हाथ में कमल शोभायमान है। आप अत्यंत उज्ज्वल वस्त्र और सुगंधित माला धारण करती हैं। हे हरिवल्लभा! हे तीनों लोकों की समृद्धि प्रदान करने वाली देवी! कृपया मुझ पर प्रसन्न हों।

यह श्लोक देवी लक्ष्मी की सुंदरता, धैर्य और भगवान विष्णु के प्रति उनके प्रेम का वर्णन करता है, साथ ही उनसे तीनों लोकों के लिए समृद्धि की कामना की गई है।

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट…

अर्थ:

हे समुद्र पुत्री लक्ष्मी जी! जैसे स्वर्ग की गंगा जल से अर्घ्य देती है, वैसे ही स्वर्ण कलशों से अभिषेक किए गए हाथियों द्वारा अर्पित जल से आपके दिव्य शरीर का स्नान होता है। मैं प्रातःकाल आपको प्रणाम करता हूँ, आप समस्त जगत की माता और तीनों लोकों के स्वामी की गृहिणी हैं।

इस श्लोक में लक्ष्मी जी के दिव्य रूप का वर्णन किया गया है, जहाँ स्वर्ण कलशों से अभिषेक करने वाले हाथियों द्वारा उनका स्नान होता है। उन्हें जगत की माता और तीनों लोकों की अधिष्ठात्री बताया गया है।

कमले कमलाक्षवल्लभे…

अर्थ:

हे लक्ष्मी जी! आप भगवान विष्णु की प्रियतमा हैं। आपकी करुणा की तरंगों से मुझे देखिए, मैं एक गरीब और असहाय हूँ। आपकी करुणा का पहला पात्र बनकर मुझे आपकी कृपा की प्राप्ति हो।

इस श्लोक में लक्ष्मी जी से करुणा और कृपा की प्रार्थना की गई है, और उनके प्रति गहन भक्ति और श्रद्धा व्यक्त की गई है।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं…

अर्थ:

जो लोग इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन त्रयीमयी (तीनों वेदों की देवी), त्रिभुवन माता (तीनों लोकों की माता) लक्ष्मी जी की स्तुति करते हैं, वे गुणों में श्रेष्ठ, भाग्यशाली और धरती पर बुद्धिमान माने जाते हैं।

यह श्लोक उन लोगों की महिमा का वर्णन करता है जो प्रतिदिन इस स्तुति का पाठ करते हैं। ऐसे लोग धरती पर बुद्धिमान, श्रेष्ठ और भाग्यशाली होते हैं।


समाप्त

यह आदि शंकराचार्य द्वारा रचित कनकधारा स्तोत्र का विस्तृत अर्थ है। इसमें लक्ष्मी जी की महिमा, उनके सौंदर्य, करुणा और कृपा का गुणगान किया गया है। यह स्तोत्र विशेष रूप से समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भक्तों द्वारा गाया जाता है।

शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

अस्वीकरण (Disclaimer) : नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर HinduismFAQ में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। 'HinduismFAQ' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *