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कर्पूरगौरं करुणावतारं क्या होता है?

“कर्पूरगौरं करुणावतारं” भगवान शिव की स्तुति में गाया जाने वाला एक प्रसिद्ध मंत्र है। यह शिव के स्वरूप और गुणों का वर्णन करता है। इस मंत्र में शिव को उनके श्वेत और उज्ज्वल रूप में, जो कि कर्पूर (कपूर) के समान गौरवर्ण है, तथा करुणा के साकार रूप में संबोधित किया गया है।

मंत्र का पहला भाग, “कर्पूरगौरं”, शिव के पवित्र और निर्मल स्वरूप का प्रतीक है। कर्पूर या कपूर की तुलना में उनका गौर वर्ण उनकी पवित्रता, शांति और दिव्यता का द्योतक है। यह उनके निर्विकार और सत्य स्वरूप को दर्शाता है। शिव का यह स्वरूप हमें यह संदेश देता है कि उनकी चेतना शुद्ध, निर्मल और सदा शांत है।

“करुणावतारं” भगवान शिव की असीम करुणा और दया का वर्णन करता है। शिव को ‘करुणा का अवतार’ कहा गया है क्योंकि वे सृष्टि के सभी जीवों पर दया और कृपा करते हैं। चाहे वह असुर हों, देवता हों, या कोई सामान्य मानव, शिव सबको समान दृष्टि से देखते हैं और सबकी प्रार्थनाओं को सुनते हैं। उनकी करुणा का उदाहरण उनके द्वारा हलाहल विष का पान करना है, जो उन्होंने संसार की रक्षा के लिए किया।

यह मंत्र न केवल भगवान शिव की महिमा का गुणगान करता है, बल्कि यह उनकी कृपा, करुणा, और शांति का अनुभव करने का एक माध्यम भी है। इसे गाने से मन शांत होता है और आत्मा में शिव की ऊर्जा का संचार होता है।

कर्पूरगौरं करुणावतारं  का अर्थ

कर्पूरगौरं करुणावतारं,

संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।

सदावसन्तं हृदयारविन्दे,

भवं भवानीसहितं नमामि॥

इस मंत्र की विशेषता यह है कि यह भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती की भी स्तुति करता है, जो अद्वैत और भक्ति का अद्वितीय मेल है। आइए इसे और विस्तार से समझते हैं:

  1. कर्पूरगौरं: कर्पूर (कपूर) सफेदी और पवित्रता का प्रतीक है। भगवान शिव का रंग कर्पूर के समान उज्ज्वल और शीतल है, जो उनकी शांति और निर्मलता को दर्शाता है। यह हमें सिखाता है कि हमें भी अपने जीवन में पवित्रता और शांति का पालन करना चाहिए।
  2. करुणावतारं: भगवान शिव का करुणामय स्वभाव सभी जीवों के प्रति उनकी अनुकंपा को दर्शाता है। वे त्रिपुरारी हैं, जिन्होंने त्रिपुरासुर का संहार किया और भक्तों की रक्षा की। उनकी करुणा हमें सिखाती है कि हमें भी दूसरों के प्रति दयालु और संवेदनशील होना चाहिए।
  3. संसारसारं: भगवान शिव संसार के सार और सत्य को जानते हैं। वे योगीश्वर हैं, जो ध्यान और समाधि के माध्यम से ब्रह्मांड के रहस्यों को समझते हैं। यह हमें प्रेरित करता है कि हमें भी आत्मज्ञान और सत्य की खोज में लगे रहना चाहिए।
  4. भुजगेन्द्रहारम्: उनके गले में नागों का हार उनकी शक्ति और वशीकरण का प्रतीक है। यह उनके निर्भय और साहसी स्वभाव को दर्शाता है, जो हमें सिखाता है कि हमें भी जीवन के चुनौतियों का सामना निर्भीकता से करना चाहिए।
  5. सदावसन्तं हृदयारविन्दे: भगवान शिव और माता पार्वती अपने भक्तों के हृदय में सदा वास करते हैं। यह दर्शाता है कि भक्ति और प्रेम से भगवान हमारे हृदय में निवास करते हैं। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने हृदय को प्रेम, भक्ति, और पवित्रता से भरना चाहिए।
  6. भवं भवानीसहितं नमामि: यह मंत्र भगवान शिव और माता पार्वती को संयुक्त रूप से नमन करता है। यह हमें सिखाता है कि जीवन में संतुलन और सामंजस्य बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। भगवान शिव और माता पार्वती का एक साथ पूजन हमारे जीवन में संतुलन और सामंजस्य लाने का प्रतीक है।

कर्पूरगौरं करुणावतारं के फायदे क्या हैं?

“कर्पूरगौरं करुणावतारं” एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली शिव स्तुति है, जिसे “शिव तांडव स्तोत्र” या अन्य धार्मिक ग्रंथों में पाया जाता है। इसका नियमित जाप करने से आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक लाभ मिलते हैं। यह स्तुति भगवान शिव के स्वरूप और उनकी करुणा को समर्पित है। इसे गाने या पढ़ने के निम्नलिखित फायदे हैं:

  1. आध्यात्मिक शांति और सकारात्मकता: इस मंत्र का उच्चारण या जाप करने से मन में शांति और स्थिरता आती है। भगवान शिव को शांति और ध्यान के देवता माना जाता है, और यह स्तुति उनके कृपा स्वरूप का वर्णन करती है। यह ध्यान और साधना को गहन बनाती है।
  2. दैनिक तनाव और नकारात्मकता का नाश: “कर्पूरगौरं” का नियमित जाप नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है और मानसिक तनाव को दूर करता है। यह शरीर और मन को शुद्ध करता है, जिससे जीवन में उत्साह और सकारात्मक दृष्टिकोण आता है।
  3. बीमारियों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ: भगवान शिव को औषधियों और चिकित्सा का अधिपति माना जाता है। इस स्तुति में उनके गुणों का गान करने से मन और शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक हो सकता है।
  4. पारिवारिक और सामाजिक जीवन में सुख-शांति: शिव स्तुति परिवार में प्रेम, विश्वास और सामंजस्य बढ़ाने में मदद करती है। भगवान शिव को परिवार का संरक्षक माना जाता है, और यह मंत्र उनके आशीर्वाद को आकर्षित करता है।
  5. भय और अवरोधों का नाश: “कर्पूरगौरं” के नियमित जाप से जीवन के सभी प्रकार के भय, जैसे मृत्यु का भय, असफलता का डर और अन्य अवरोध समाप्त हो जाते हैं। यह आत्मबल और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
  6. आध्यात्मिक प्रगति: इस स्तुति का नियमित अभ्यास साधक को भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और उनकी दिव्य ऊर्जा के निकट लाने में सहायक होता है। यह मनुष्य को आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।

शिव मंत्र का अर्थ:
इस मंत्र में भगवान शिव को “कर्पूरगौरं” यानी चंद्रमा की तरह श्वेत और शीतल बताया गया है। “करुणावतारं” उन्हें करुणा और दया का अवतार दर्शाता है। यह उनके शांत और सौम्य स्वरूप की प्रशंसा करता है, जो भक्तों के कष्टों का अंत करते हैं और उन्हें सुख-शांति प्रदान करते हैं।

नियमित रूप से इस स्तुति का जाप न केवल आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है बल्कि मानसिक और भौतिक जीवन में भी अपार शांति और समृद्धि लाता है।

कर्पूरगौरं करुणावतारं के नियम और विधि?

कर्पूरगौरं करुणावतारं शिव पंचाक्षर स्तोत्र का एक अंश है, जिसे भगवान शिव की स्तुति के लिए गाया जाता है। इसे प्रायः आरती या पूजा के समय गाया जाता है। इसका पाठ सरल है, लेकिन इसे नियम और विधि से करना अधिक प्रभावी होता है।

नियम और विधि:

  1. पवित्रता का ध्यान:
    इस मंत्र का जाप करते समय शरीर और मन दोनों की पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए। स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को स्वच्छ करें।
  2. पूजा स्थल:
    शिवलिंग, शिव प्रतिमा, या केवल शिव का ध्यान करते हुए इसे किया जा सकता है। पूजा स्थल में दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
  3. आसन और मुद्रा:
    पूजन करते समय कुश या सफेद वस्त्र का आसन लेकर बैठें। पद्मासन या सुखासन में बैठना उचित है। हाथ जोड़कर ध्यान मुद्रा में मंत्र का उच्चारण करें।
  4. संकल्प:
    मंत्र जाप से पहले भगवान शिव से अपनी मनोकामना या उद्देश्य के लिए प्रार्थना करें और संकल्प लें।
  5. मंत्र पाठ:
    मंत्र को कम से कम 11 बार, 21 बार, या 108 बार जपें। जप करते समय भगवान शिव के स्वरूप का ध्यान करें। शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, और पुष्प चढ़ाएं। मंत्र इस प्रकार है:
   कर्पूरगौरं करुणावतारं
   संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
   सदा वसन्तं हृदयारविन्दे
   भवं भवानीसहितं नमामि॥
  1. समर्पण भाव:
    मंत्र के उच्चारण के समय अपने मन को शांत रखें और शिव की कृपा का अनुभव करें। यह ध्यान दें कि यह मंत्र भगवान शिव की करुणा और उनकी सादगी को व्यक्त करता है।
  2. समापन:
    जप के बाद भगवान शिव को प्रणाम करें और आरती करें। उसके बाद सभी पूजन सामग्री जैसे बेलपत्र, जल आदि शिवलिंग पर अर्पित करें।

महत्व:

यह मंत्र भगवान शिव के शुभ्र रूप, उनके करुणामय स्वरूप, और संसार के सार के रूप में उनके महत्व को वर्णित करता है। इसे श्रद्धा और भक्ति से जपने से व्यक्ति को मानसिक शांति, सुख, और समृद्धि प्राप्त होती है। यदि इसे नियमित रूप से किया जाए, तो साधक को भगवान शिव की कृपा सहज ही प्राप्त होती है।

इस मंत्र का जाप विशेष रूप से सोमवार, महाशिवरात्रि, और श्रावण मास में करना अत्यधिक फलदायक माना जाता है।

कर्पूरगौरं करुणावतारं Video

Karpura Gauram Karuna Avataram in English

Karpur Gauram Karuna Avataram,
Sansara Saram Bhujagendra Haram.
Sada Vasantam Hridayaravinde,
Bhavam Bhavani Sahitam Namami.

Meaning

I bow to Lord Shiva, who is pure white like camphor, the embodiment of compassion,
The essence of worldly existence, adorned with a serpent garland.
He always resides in the lotus of the heart,
Along with Goddess Bhavani (Parvati), his consort.

कर्पूरगौरं करुणावतारं PDF Download

कर्पूरगौरं करुणावतारं Mp3 Audio

कर्पूरगौरं करुणावतारं का महत्व (Significance)

इस मंत्र का जाप करने से भक्तों को आत्मिक शांति, मानसिक स्थिरता, और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। यह न केवल एक प्रार्थना है बल्कि एक ध्यान और साधना का साधन भी है। इसके नियमित जाप से भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का वास होता है।

इस प्रकार, कर्पूरगौरं मंत्र हमें भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना के माध्यम से जीवन के सर्वोत्तम गुणों को अपनाने और आत्मिक उन्नति की दिशा में अग्रसर होने की प्रेरणा देता है।

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