- – यह कविता एक व्यक्ति की व्यथा और उसकी आध्यात्मिक शरण की अभिव्यक्ति है, जो जीवन की कठिनाइयों और धोखों से जूझ रहा है।
- – कवि भगवान श्री कृष्ण (श्याम) से प्रेम और भक्ति की एक झलक पाने की प्रार्थना करता है, ताकि झूठे रिश्तों और नफरत की दुनिया से मुक्ति मिल सके।
- – कविता में जीवन की बर्बादियों और निराशाओं के बीच भी ईश्वर की कृपा और दया की उम्मीद व्यक्त की गई है।
- – कवि अपने दुखों और परेशानियों के बावजूद केवल भगवान की शरण में जाकर शांति और समाधान चाहता है।
- – यह रचना भक्ति और विश्वास की ताकत को दर्शाती है, जो कठिन समय में भी आशा और संबल प्रदान करती है।

किस्मत का मारा हूँ सांवरे,
प्यार की थोड़ी सी,
झलक दिखा मेरे श्याम,
सब झूठे रिश्तो को तोड़के,
तेरी भक्ति की,
अलख जगा मेरे श्याम,
झलक दिखा मेरे श्याम।।
तर्ज – नफरत की दुनिया को छोड़के।
मेरी ज़िंदगी में श्याम,
धोखे ही धोखे है,
बर्बादियों के पल,
आते ही रहते है,
अब हार के तेरी शरण मैं,
लेने आया हूँ,
आज मुझे भी तार,
किस्मत का मारा हूं सांवरे,
प्यार की थोड़ी सी,
झलक दिखा मेरे श्याम।।
सब जान कर भी तू,
चुप चाप बैठा है,
कह दे के तेरा ये,
इंसाफ कैसा है,
अब आज ना जाऊं डाल दे,
मेरी झोली में,
भीख दया की श्याम,
किस्मत का मारा हूं सांवरे,
प्यार की थोड़ी सी,
झलक दिखा मेरे श्याम।।
सुनता हूँ निर्धन के,
भंडार भरते हो,
भक्तो की नैया को,
भव पार करते हो,
एक बार मुझ पर भी कृपा,
बरसा दे रे मोहन,
बिगड़े बने मेरे काम,
किस्मत का मारा हूं सांवरे,
प्यार की थोड़ी सी,
झलक दिखा मेरे श्याम।।
अब तो सिवा तेरे,
कोई चाह नहीं मुझको,
दुनिया की अब कुछ भी,
परवाह नहीं मुझको,
अब चौखठ पे तेरी,
‘हर्ष’ की बीते रे कान्हा,
जीवन की ये शाम,
किस्मत का मारा हूं सांवरे,
प्यार की थोड़ी सी,
झलक दिखा मेरे श्याम।।
किस्मत का मारा हूँ सांवरे,
प्यार की थोड़ी सी,
झलक दिखा मेरे श्याम,
सब झूठे रिश्तो को तोड़के,
तेरी भक्ति की,
अलख जगा मेरे श्याम,
झलक दिखा मेरे श्याम।।
स्वर – मुकेश बागड़ा जी।
प्रेषक – प्रशांत मिश्रा।
