मदन मोहन अष्टकम in Hindi/Sanskrit
जय शङ्खगदाधर नीलकलेवर
पीतपटाम्बर देहि पदम् ।
जय चन्दनचर्चित कुण्डलमण्डित
कौस्तुभशोभित देहि पदम् ॥१॥
जय पङ्कजलोचन मारविमोहन
पापविखण्डन देहि पदम् ।
जय वेणुनिनादक रासविहारक
वङ्किम सुन्दर देहि पदम् ॥२॥
जय धीरधुरन्धर अद्भुतसुन्दर
दैवतसेवित देहि पदम् ।
जय विश्वविमोहन मानसमोहन
संस्थितिकारण देहि पदम् ॥३॥
जय भक्तजनाश्रय नित्यसुखालय
अन्तिमबान्धव देहि पदम् ।
जय दुर्जनशासन केलिपरायण
कालियमर्दन देहि पदम् ॥४॥
जय नित्यनिरामय दीनदयामय
चिन्मय माधव देहि पदम् ।
जय पामरपावन धर्मपरायण
दानवसूदन देहि पदम् ॥५॥
जय वेदविदांवर गोपवधूप्रिय
वृन्दावनधन देहि पदम् ।
जय सत्यसनातन दुर्गतिभञ्जन
सज्जनरञ्जन देहि पदम् ॥६॥
जय सेवकवत्सल करुणासागर
वाञ्छितपूरक देहि पदम् ।
जय पूतधरातल देवपरात्पर
सत्त्वगुणाकर देहि पदम् ॥७॥
जय गोकुलभूषण कंसनिषूदन
सात्वतजीवन देहि पदम् ।
जय योगपरायण संसृतिवारण
ब्रह्मनिरञ्जन देहि पदम् ॥८॥
Madana Mohana Ashtakam in English
Jaya Shankha-Gadadhara Neelakalebara
Peetapatambara Dehi Padam.
Jaya Chandana-Charchita Kundala-Mandita
Kaustubha-Shobhita Dehi Padam.
Jaya Pankaja-Lochana Maaravimohana
Paapa-Vikhandana Dehi Padam.
Jaya Venuninaadaka Raasavihaaraka
Vankima Sundara Dehi Padam.
Jaya Dheeradhurandhara Adbhutasundara
Daivata-Sevita Dehi Padam.
Jaya Vishvavimohana Maansamohana
Sansthitikaarana Dehi Padam.
Jaya Bhaktajanashraya Nityasukhaalaya
Antimabandhava Dehi Padam.
Jaya Durjana-Shasana Keliparayan
Kaaliya-Mardana Dehi Padam.
Jaya Nityaniraamaya Deenadayaamaya
Chinmaya Maadhava Dehi Padam.
Jaya Paamarpavana Dharmaparaayan
Daanava-Soodana Dehi Padam.
Jaya Vedavidambara Gopavadhupriya
Vrindaavanadhana Dehi Padam.
Jaya Satyasanaatana Durgatibhanjana
Sajjanaranjana Dehi Padam.
Jaya Sevakavatsala Karunasagara
Vanchhitapooraka Dehi Padam.
Jaya Pootadharatal Devaparatpara
Sattvagunakara Dehi Padam.
Jaya Gokulabhushana Kamsanishoodana
Saatvatajeevana Dehi Padam.
Jaya Yogaparaayan Sansrativaaran
Brahmaniranjana Dehi Padam.
मदन मोहन अष्टकम PDF Download
मदन मोहन अष्टकम का अर्थ
यह स्तुति भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है, जो कि विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। इसमें भगवान की विभिन्न रूपों और गुणों की महिमा का वर्णन किया गया है, और भक्त उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे अपने चरणों की कृपा प्रदान करें। यह श्लोक भक्तों के लिए भगवान श्रीकृष्ण की महिमा और उनकी करुणा का बखान करता है।
श्लोक का सार
पहला श्लोक
जय शङ्खगदाधर नीलकलेवर पीतपटाम्बर देहि पदम्।
इस पंक्ति में भगवान को “शङ्ख” (शंख), “गदा” (मेस) और “धारक” (धारण करने वाले) कहा गया है, जो भगवान विष्णु के प्रतीक हैं। यहाँ भगवान का नील वर्ण (नीला शरीर) और पीला वस्त्र धारण करने की महिमा गाई गई है। भक्त उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे अपने चरण कमलों की कृपा प्रदान करें।
जय चन्दनचर्चित कुण्डलमण्डित कौस्तुभशोभित देहि पदम्।
भगवान की चन्दन की महक, कानों में झूलते हुए कुंडल, और उनके कंठ में कौस्तुभ मणि का वर्णन किया गया है। ये भगवान की सुंदरता और दिव्यता को दर्शाते हैं। इस पंक्ति में भक्त उनसे पुनः चरण-कमलों की कृपा की प्रार्थना करते हैं।
दूसरा श्लोक
जय पङ्कजलोचन मारविमोहन पापविखण्डन देहि पदम्।
यहाँ भगवान के कमल के समान नेत्रों का वर्णन है जो देखने वालों के मन को मोह लेते हैं। उनका दर्शन पापों का नाश करता है। भक्त उनसे निवेदन करते हैं कि वे अपने चरणों का आशीर्वाद दें।
जय वेणुनिनादक रासविहारक वङ्किम सुन्दर देहि पदम्।
यह पंक्ति भगवान के वेणु (बाँसुरी) वादन और रासलीला में उनकी भूमिका का वर्णन करती है। उनकी सुन्दरता अद्वितीय है और उनके भक्तों को लुभाती है। यहाँ भक्त फिर से उनसे चरण-कमलों की कृपा की मांग कर रहे हैं।
तीसरा श्लोक
जय धीरधुरन्धर अद्भुतसुन्दर दैवतसेवित देहि पदम्।
इस पंक्ति में भगवान की महानता और उनके अद्भुत सौंदर्य का वर्णन किया गया है। उन्हें देवता भी सेवा करते हैं। भक्त भगवान से चरणों की कृपा की प्रार्थना कर रहे हैं।
जय विश्वविमोहन मानसमोहन संस्थितिकारण देहि पदम्।
भगवान विश्व के मोहक और मनों को आकर्षित करने वाले हैं। वे सृष्टि की उत्पत्ति और विनाश के कारण भी हैं। भक्त उनसे चरण-कमलों की कृपा की मांग कर रहे हैं।
चौथा श्लोक
जय भक्तजनाश्रय नित्यसुखालय अन्तिमबान्धव देहि पदम्।
भगवान अपने भक्तों के आश्रयदाता और नित्य आनंद के स्रोत हैं। वे जीवन के अंतिम क्षणों में भी साथ देने वाले मित्र होते हैं। भक्त उनसे चरण-कमलों की कृपा चाहते हैं।
जय दुर्जनशासन केलिपरायण कालियमर्दन देहि पदम्।
यह पंक्ति भगवान के दुर्जनों को नियंत्रित करने और उनके द्वारा किए गए कालिया नाग के मर्दन की घटना का स्मरण कराती है। भक्त भगवान से चरणों की कृपा की मांग कर रहे हैं।
पांचवां श्लोक
जय नित्यनिरामय दीनदयामय चिन्मय माधव देहि पदम्।
भगवान निरंतर निरामय (रोगों से मुक्त) हैं और दीन-दुखियों पर उनकी अपार दया होती है। वे आत्मा के आध्यात्मिक स्वरूप का प्रतिनिधित्व करते हैं। भक्त उनसे चरणों की कृपा की प्रार्थना कर रहे हैं।
जय पामरपावन धर्मपरायण दानवसूदन देहि पदम्।
भगवान पामर (नीच) जनों को भी पवित्र कर देते हैं और धर्म के संरक्षक हैं। वे दानवों का संहार करने वाले हैं। भक्त भगवान से चरण-कमलों की कृपा की मांग करते हैं।
छठा श्लोक
जय वेदविदांवर गोपवधूप्रिय वृन्दावनधन देहि पदम्।
भगवान वेदज्ञों के अग्रणी और गोपियों के प्रिय हैं। वृन्दावन की संपत्ति और गौरव भगवान के कारण ही है। भक्त उनसे चरण-कमलों की कृपा की प्रार्थना कर रहे हैं।
जय सत्यसनातन दुर्गतिभञ्जन सज्जनरञ्जन देहि पदम्।
भगवान सत्य और सनातन धर्म के प्रतिनिधि हैं। वे दुर्गतियों को दूर करने वाले और सज्जनों के रंजन (खुश करने वाले) हैं। भक्त उनसे चरण-कमलों की कृपा की मांग कर रहे हैं।
सातवां श्लोक
जय सेवकवत्सल करुणासागर वाञ्छितपूरक देहि पदम्।
भगवान अपने सेवकों पर अत्यधिक स्नेह रखने वाले और करुणा के सागर हैं। वे भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं। भक्त उनसे चरण-कमलों की कृपा की प्रार्थना कर रहे हैं।
जय पूतधरातल देवपरात्पर सत्त्वगुणाकर देहि पदम्।
भगवान पृथ्वी को पवित्र करने वाले, देवताओं से भी श्रेष्ठ और सत्त्व गुण के स्रोत हैं। भक्त उनसे चरण-कमलों की कृपा की मांग कर रहे हैं।
आठवां श्लोक
जय गोकुलभूषण कंसनिषूदन सात्वतजीवन देहि पदम्।
भगवान गोकुल की शोभा और कंस का वध करने वाले हैं। वे सात्वत समुदाय के जीवन आधार हैं। भक्त भगवान से चरण-कमलों की कृपा की प्रार्थना कर रहे हैं।
जय योगपरायण संसृतिवारण ब्रह्मनिरञ्जन देहि पदम्।
भगवान योग के प्रति समर्पित और संसार के दुखों को दूर करने वाले हैं। वे ब्रह्म के निराकार और निर्मल स्वरूप का प्रतिनिधित्व करते हैं। भक्त उनसे चरण-कमलों की कृपा की मांग कर रहे हैं।
भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति का विस्तार
यह स्तुति भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न गुणों, लीलाओं और उनके भक्तों पर की गई करुणा का गहरा वर्णन करती है। आइए हर श्लोक के कुछ विशेष और दार्शनिक पहलुओं पर चर्चा करते हैं जो भगवान की दिव्यता को और गहराई से समझाते हैं।
शंख, गदा और पीताम्बर का प्रतीक
भगवान के “शंखगदाधर” रूप का प्रतीक यह है कि शंख (शंखनाद) सृष्टि का प्रारंभ है, जबकि गदा बुराई का विनाश करने का प्रतीक है। पीताम्बर (पीले वस्त्र) का मतलब भगवान का धरती से संबंध है, जहाँ वे अपनी लीलाओं के माध्यम से धर्म की स्थापना करते हैं। शंख और गदा भगवान विष्णु के दो प्रमुख आयुध हैं, जो भगवान की शाश्वतता और शक्ति का संकेत देते हैं। पीत वस्त्र भगवान की सादगी और उनकी भक्तों के प्रति करुणा का प्रतीक है।
चन्दन, कौस्तुभ मणि और कुंडल
चन्दन भगवान की शीतलता और शांति का प्रतीक है। भक्तगण चन्दन से भगवान का अभिषेक करते हैं क्योंकि यह देवत्व और पवित्रता का प्रतीक है। कौस्तुभ मणि, जो भगवान के वक्ष पर सुशोभित होती है, ब्रह्मांड के सबसे उच्चतम और मूल्यवान सत्य की प्रतीक है। यह मणि भगवान की विशालता, असीमता और अज्ञेयता का प्रतिनिधित्व करती है। कुंडल (कर्ण आभूषण) भगवान के दिव्य स्वरूप और उनकी आभा का प्रतीक हैं।
पंकज नेत्र और रासलीला
भगवान के “पंकजलोचन” (कमल के समान नेत्र) न केवल उनके रूप की सुंदरता का वर्णन करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि वे कैसे सभी जीवों पर अपनी करुणा की दृष्टि रखते हैं। भगवान की “रासलीला” केवल एक नृत्य नहीं है, यह प्रेम, भक्ति और आत्मा की परमात्मा से मिलन की उच्चतम अभिव्यक्ति है। इसमें हर गोपी और हर जीव, भगवान के प्रेम में पूर्ण रूप से लीन हो जाता है। रासलीला आध्यात्मिक समर्पण का प्रतीक है।
दुर्जनशासन और कालिय मर्दन
भगवान ने हमेशा अधर्म और दुर्जनों का विनाश किया है। “कालिय मर्दन” कथा में भगवान का यह रूप दर्शाता है कि जब पृथ्वी पर संकट होता है, तब वे अपने भक्तों की रक्षा के लिए स्वयं अवतरित होते हैं। कालिय नाग का मर्दन बुराई और विष के नाश का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि भगवान अपने भक्तों को जीवन के हर विष से बचाते हैं।
भक्तों के आश्रयदाता
भगवान कृष्ण “भक्तजनाश्रय” हैं, अर्थात वे अपने भक्तों को हमेशा सुरक्षा और शांति प्रदान करते हैं। उनकी कृपा से भक्त न केवल सांसारिक कष्टों से मुक्त होते हैं, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति भी करते हैं। वे नित्यसुखालय हैं, यानी भगवान का ध्यान करने से भक्त को सदा के लिए सुख और शांति प्राप्त होती है।
वेदों के विद्वान और धर्मरक्षक
भगवान को “वेदविदांवर” कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे वेदों के ज्ञाता और आचार्य हैं। वे सत्य और धर्म के रक्षक हैं, और वे धर्मपरायण लोगों की हमेशा रक्षा करते हैं। वे सज्जनों को आनंदित करते हैं और दुर्जनों का नाश करते हैं। उनका अवतार धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करने के लिए होता है।
गोपियों के प्रिय और वृंदावन का धन
भगवान श्रीकृष्ण की गोपियों के साथ की लीलाओं का वर्णन उनकी दिव्यता और सौंदर्य का प्रतीक है। गोपियों के प्रति उनका प्रेम भक्तों के प्रति उनकी असीम करुणा का प्रतीक है। वृंदावन उनका निवास स्थान है, जहाँ उनके प्रेम और भक्ति की अनेकों लीलाएँ होती हैं। वृंदावन का सौंदर्य और महिमा भगवान के कारण ही है। वे गोकुल और वृंदावन के भूषण हैं।
अद्वितीय योगी और ब्रह्म का स्वरूप
भगवान श्रीकृष्ण का रूप योगियों और ध्यान करने वालों के लिए प्रेरणा है। वे योग के परम लक्ष्य हैं, और संसार के बंधनों को समाप्त करने वाले हैं। वे ब्रह्म के निराकार स्वरूप हैं, और उनकी स्तुति से आत्मा संसार के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करती है।