मोक्षदा एकादशी के फल
मोक्षदा एकादशी, जिसे “पितृमोक्षणी एकादशी” और “सर्वार्थ सिद्धि एकादशी” के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह वर्ष में दो बार आती है, एक बार मार्गशीर्ष मास में और दूसरी बार फाल्गुन मास में।
मान्यताएं
- मोक्ष प्राप्ति: इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, यानि जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।
- पापों का नाश: इस व्रत के प्रभाव से सभी पापों का नाश होता है।
- पितरों की तृप्ति: इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण करने से उन्हें परम गति प्राप्त होती है।
- ग्रह दोषों का निवारण: यह व्रत ग्रह दोषों को दूर करने में भी लाभदायक माना जाता है।
- सभी मनोकामनाओं की पूर्ति: इस व्रत को विधि-विधानपूर्वक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
इस व्रत के कुछ अन्य फल
- धन-धान्य की वृद्धि: इस व्रत को करने से धन-धान्य की वृद्धि होती है।
- आरोग्य लाभ: यह व्रत स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।
- शत्रुओं पर विजय: इस व्रत को करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
- सुख-शांति में वृद्धि: इस व्रत को करने से जीवन में सुख-शांति का अनुभव होता है।
मोक्षदा एकादशी व्रत का महत्त्व
मोक्षदा एकादशी, जिसे “पितृमोक्षणी एकादशी” और “सर्वार्थ सिद्धि एकादशी” के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह वर्ष में दो बार आती है, एक बार मार्गशीर्ष मास में और दूसरी बार फाल्गुन मास में।
धार्मिक महत्व
- मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत सभी व्रतों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है, यानि जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
- पापों का नाश: इस व्रत के प्रभाव से सभी पापों का नाश होता है।
- पितरों की तृप्ति: इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण करने से उन्हें परम गति प्राप्त होती है।
- ग्रह दोषों का निवारण: यह व्रत ग्रह दोषों को दूर करने में भी लाभदायक माना जाता है।
- सभी मनोकामनाओं की पूर्ति: इस व्रत को विधि-विधानपूर्वक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
सामाजिक महत्व
- दान-पुण्य: इस व्रत के दौरान दान-पुण्य करने से समाज में बराबरी और भाईचारे की भावना बढ़ती है।
- ब्राह्मणों और गरीबों का सम्मान: इस व्रत के दौरान ब्राह्मणों को भोजन खिलाने और गरीबों की मदद करने से समाज में सकारात्मकता का प्रसार होता है।
- संयम और आत्मबल में वृद्धि: यह व्रत हमें एकादश दिवस तक व्रत रखने, भोजन पर नियंत्रण रखने और इन्द्रियों को वश में रखने की प्रेरणा देता है, जिससे हमारा आत्मबल और संयम शक्ति बढ़ती है।
ऐतिहासिक महत्व
- महाभारत काल: ऐसा माना जाता है कि महाभारत युद्ध से पहले भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को मोक्षदा एकादशी का व्रत रखने और भगवद्गीता का उपदेश दिया था।
- अनेक ऋषियों-मुनियों द्वारा व्रत का पालन: मोक्षदा एकादशी व्रत का उल्लेख अनेक प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। ऋषि-मुनि और महापुरुष भी इस व्रत का पालन करते थे।
मोक्षदा एकादशी कथा
गोकुल नामक नगर में वैखानस नामक एक राजा राज्य करता था। वेदों के ज्ञाता ब्राह्मणों से घिरा उसका राज्य सुख-समृद्धि से परिपूर्ण था। राजा अपनी प्रजा का पालन पुत्रवत करता था।
एक रात राजा ने स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। यह देखकर राजा अत्यंत विचलित हो गया।
सुबह उठकर राजा ने विद्वान ब्राह्मणों को बुलाया और अपना स्वप्न सुनाया। राजा ने कहा, “मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट भोगते हुए देखा। उन्होंने मुझसे कहा, ‘हे पुत्र, मैं नरक में हूँ। तुम मुझे यहाँ से मुक्त कराओ।’ तब से मैं अत्यंत बेचैन हूँ। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख नहीं मिल रहा है। मैं क्या करूँ?”
राजा ने विनती करते हुए कहा, “हे ब्राह्मण देवताओं! इस दुःख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है। कृपा करके कोई उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल सके। जो पुत्र अपने माता-पिता का उद्धार नहीं कर पाता, उसका जीवन व्यर्थ है। उत्तम पुत्र वही है जो अपने माता-पिता और पूर्वजों का उद्धार करता है। एक चंद्रमा सारे जगत को प्रकाशित कर देता है, हजारों तारे नहीं कर सकते।”
ब्राह्मणों ने कहा, “हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। वे आपकी समस्या का समाधान अवश्य करेंगे।”
यह सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। वहाँ अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। पर्वत मुनि भी ध्यानस्थ थे। राजा ने मुनि को दंडवत प्रणाम किया। मुनि ने राजा का कुशलक्षेम पूछा। राजा ने कहा, “महाराज, आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है, परंतु अचानक मेरे मन में अत्यंत अशांति छा गई है।”
यह सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद कर भूत काल का ज्ञान प्राप्त किया। फिर बोले, “हे राजन! मैंने योग बल से आपके पिता के कुकर्मों को जान लिया है। पूर्व जन्म में उन्होंने कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी, परंतु सौत के कहने पर दूसरी पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया। उसी पापकर्म के कारण आपके पिता को नरक जाना पड़ा है।”
राजा ने विनती की, “कृपया इसका कोई उपाय बताइए।”
मुनि बोले, “हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का व्रत रखें और उस व्रत का पुण्य अपने पिता को संकल्प करें। इससे आपके पिता अवश्य नरक से मुक्त हो जाएंगे।”
मुनि के वचन सुनकर राजा महल लौट आया और मुनि के निर्देशानुसार परिवार सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत रखा। व्रत का पुण्य उन्होंने अपने पिता को अर्पित कर दिया। इसके प्रभाव से उनके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग जाते हुए वे पुत्र से बोले, “हे पुत्र, तेरा कल्याण हो।” यह कहकर वे स्वर्गलोक चले गए।
मोक्षदा एकादशी पूजाविधि
दशमी तिथि
- दशमी तिथि के दिन सूर्यास्त से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- घर की साफ-सफाई करें और पूजा स्थान को स्वच्छ और पवित्र करें।
- एक चौकी स्थापित करें और उस पर भगवान विष्णु या भगवान कृष्ण की प्रतिमा रखें।
- प्रतिमा को गंगाजल, दूध, और पंचामृत से स्नान कराएं।
- प्रतिमा को वस्त्र, आभूषण, और फूल अर्पित करें।
- दीप प्रज्ज्वलित करें और धूप-बत्ती लगाएं।
- भगवान विष्णु या भगवान कृष्ण के मंत्रों का जाप करें।
- “श्री विष्णु सहस्रनाम” का पाठ करें।
- रात्रि में फलाहार करें।
एकादशी तिथि
- एकादशी तिथि के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
- स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थान पर जाएं।
- पूजा विधि दशमी तिथि जैसी ही करें।
- इस दिन व्रत रखें।
- दिन भर भगवान का ध्यान करें और मंत्रों का जाप करें।
- गीता का पाठ करें।
- रात्रि में भी फलाहार करें।
द्वादशी तिथि
- द्वादशी तिथि के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
- पूजा विधि दशमी और एकादशी तिथि जैसी ही करें।
- इस दिन व्रत का पारण करें।
- ब्राह्मणों को भोजन खिलाएं और दान-पुण्य करें।
- गाय, गरीबों, और असहायों की मदद करें।
- दोपहर के बाद भोजन ग्रहण करें।