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नाम रामायणम (Nama Ramayanam) एक अत्यंत महत्वपूर्ण और लोकप्रिय हिंदू धार्मिक ग्रंथ है जो श्रीराम के जीवन और उनके कृत्यों पर आधारित है। इसे सामान्य रूप से दक्षिण भारत में बहुत श्रद्धा के साथ पढ़ा जाता है, और इसे भगवान राम की महिमा का संक्षिप्त वर्णन कहा जा सकता है। इसका मुख्य उद्देश्य रामायण के महत्वपूर्ण घटनाओं और कहानियों का संक्षेप में वर्णन करना है।

नाम रामायणम का अर्थ है “राम के नाम का रामायण।” इसमें श्रीराम के विभिन्न नामों का उल्लेख किया गया है और उनके गुणों और लीलाओं का वर्णन किया गया है। इसे तेलुगु, तमिल, कन्नड़, और मलयालम जैसी दक्षिण भारतीय भाषाओं में विशेष रूप से लोकप्रियता प्राप्त है, लेकिन इसे संस्कृत में भी पाया जा सकता है।

यह रामायण के मूल कथा का संक्षिप्त रूप है, जिसमें श्रीराम के जन्म से लेकर उनके राज्याभिषेक तक की घटनाओं का वर्णन किया गया है। इसमें कुल मिलाकर 108 श्लोक होते हैं, जो बहुत ही संगीतमय और सरल भाषा में रचे गए हैं। इसे अक्सर भजन या कीर्तन के रूप में गाया जाता है और इसे सुनने से या इसका पाठ करने से भक्तों को श्रीराम का आशीर्वाद मिलता है।

नाम रामायणम के पाठ के समय श्रद्धालु भगवान राम के जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों का स्मरण करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसमें श्रीराम के चरित्र की महानता, उनकी धर्मपरायणता, साहस, करुणा और निष्ठा का उल्लेख किया गया है। यह भक्तों को यह सिखाता है कि जीवन में कैसे धर्म और सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए और कठिनाइयों का सामना कैसे करना चाहिए।

नाम रामायणम का पाठ विशेष अवसरों पर, जैसे राम नवमी, दशहरा और दीपावली के समय किया जाता है। यह रामभक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण साधना का माध्यम है और इसे पढ़ने या सुनने से मानसिक शांति, संतोष और आत्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है।

॥ बालकाण्डः ॥
शुद्धब्रह्मपरात्पर राम् ॥ १ ॥
कालात्मकपरमेश्वर राम् ॥ २ ॥
शेषतल्पसुखनिद्रित राम् ॥ ३ ॥
ब्रह्माद्यामरप्रार्थित राम् ॥ ४ ॥
चण्डकिरणकुलमण्डन राम् ॥ ५ ॥
श्रीमद्दशरथनन्दन राम् ॥ ६ ॥
कौसल्यासुखवर्धन राम् ॥ ७ ॥
विश्वामित्रप्रियधन राम् ॥ ८ ॥
घोरताटकाघातक राम् ॥ ९ ॥
मारीचादिनिपातक राम् ॥ १० ॥
कौशिकमखसंरक्षक राम् ॥ ११ ॥
श्रीमदहल्योद्धारक राम् ॥ १२ ॥
गौतममुनिसम्पूजित राम् ॥ १३ ॥
सुरमुनिवरगणसंस्तुत राम् ॥ १४ ॥
नाविकधावितमृदुपद राम् ॥ १५ ॥
मिथिलापुरजनमोहक राम् ॥ १६ ॥
विदेहमानसरञ्जक राम् ॥ १७ ॥
त्र्यम्बककार्मुकभञ्जक राम् ॥ १८ ॥
सीतार्पितवरमालिक राम् ॥ १९ ॥
कृतवैवाहिककौतुक राम् ॥ २० ॥
भार्गवदर्पविनाशक राम् ॥ २१ ॥
श्रीमदयोध्यापालक राम् ॥ २२ ॥
राम् राम् जय राजा राम्।
राम् राम् जय सीता राम् ॥

॥ अयोध्याकाण्डः ॥
अगणितगुणगणभूषित राम् ॥ २३ ॥
अवनीतनयाकामित राम् ॥ २४ ॥
राकाचन्द्रसमानन राम् ॥ २५ ॥
पितृवाक्याश्रितकानन राम् ॥ २६ ॥
प्रियगुहविनिवेदितपद राम् ॥ २७ ॥
तत्क्षालितनिजमृदुपद राम् ॥ २८ ॥
भरद्वाजमुखानन्दक राम् ॥ २९ ॥
चित्रकूटाद्रिनिकेतन राम् ॥ ३० ॥
दशरथसन्ततचिन्तित राम् ॥ ३१ ॥
कैकेयीतनयार्थित राम् ॥ ३२ ॥
विरचितनिजपितृकर्मक राम् ॥ ३३ ॥
भरतार्पितनिजपादुक राम् ॥ ३४ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ।
राम् राम् जय सीता राम् ॥

॥ अरण्यकाण्डः ॥
दण्डकवनजनपावन राम् ॥ ३५ ॥
दुष्टविराधविनाशन राम् ॥ ३६ ॥
शरभङ्गसुतीक्ष्णार्चित राम् ॥ ३७ ॥
अगस्त्यानुग्रहवर्धित राम् ॥ ३८ ॥
गृध्राधिपसंसेवित राम् ॥ ३९ ॥
पञ्चवटीतटसुस्थित राम् ॥ ४० ॥
शूर्पणखार्तिविधायक राम् ॥ ४१ ॥
खरदूषणमुखसूदक राम् ॥ ४२ ॥
सीताप्रियहरिणानुग राम् ॥ ४३ ॥
मारीचार्तिकृदाशुग राम् ॥ ४४ ॥
विनष्टसीतान्वेषक राम् ॥ ४५ ॥
गृध्राधिपगतिदायक राम् ॥ ४६ ॥
शबरीदत्तफलाशन राम् ॥ ४७ ॥
कबन्धबाहुच्छेदक राम् ॥ ४८ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ।
राम् राम् जय सीता राम् ॥

॥ किष्किन्धाकाण्डः ॥
हनुमत्सेवितनिजपद राम् ॥ ४९ ॥
नतसुग्रीवाभीष्टद राम् ॥ ५० ॥
गर्वितवालिसंहारक राम् ॥ ५१ ॥
वानरदूतप्रेषक राम् ॥ ५२ ॥
हितकरलक्ष्मणसंयुत राम् ॥ ५३ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ।
राम् राम् जय सीता राम् ॥

॥ सुन्दरकाण्डः ॥
कपिवरसन्ततसंस्मृत राम् ॥ ५४ ॥
तद्‍गतिविघ्नध्वंसक राम् ॥ ५५ ॥
सीताप्राणाधारक राम् ॥ ५६ ॥
दुष्टदशाननदूषित राम् ॥ ५७ ॥
शिष्टहनूमद्‍भूषित राम् ॥ ५८ ॥
सीतावेदितकाकावन राम् ॥ ५९ ॥
कृतचूडामणिदर्शन राम् ॥ ६० ॥
कपिवरवचनाश्वासित राम् ॥ ६१ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ।
राम् राम् जय सीता राम् ॥

॥ युद्धकाण्डः ॥
रावणनिधनप्रस्थित राम् ॥ ६२ ॥
वानरसैन्यसमावृत राम् ॥ ६३ ॥
शोषितसरिदीशार्थित राम् ॥ ६४ ॥
विभीषणाभयदायक राम् ॥ ६५ ॥
पर्वतसेतुनिबन्धक राम् ॥ ६६ ॥
कुम्भकर्णशिरच्छेदक राम् ॥ ६७ ॥
राक्षससङ्घविमर्दक राम् ॥ ६८ ॥
अहिमहिरावणचारण राम् ॥ ६९ ॥
संहृतदशमुखरावण राम् ॥ ७० ॥
विधिभवमुखसुरसंस्तुत राम् ॥ ७१ ॥
खस्थितदशरथवीक्षित राम् ॥ ७२ ॥
सीतादर्शनमोदित राम् ॥ ७३ ॥
अभिषिक्तविभीषणनत राम् ॥ ७४ ॥
पुष्पकयानारोहण राम् ॥ ७५ ॥
भरद्वाजादिनिषेवण राम् ॥ ७६ ॥
भरतप्राणप्रियकर राम् ॥ ७७ ॥
साकेतपुरीभूषण राम् ॥ ७८ ॥
सकलस्वीयसमानत राम् ॥ ७९ ॥
रत्नलसत्पीठास्थित राम् ॥ ८० ॥
पट्टाभिषेकालङ्कृत राम् ॥ ८१ ॥
पार्थिवकुलसम्मानित राम् ॥ ८२ ॥
विभीषणार्पितरङ्गक राम् ॥ ८३ ॥
कीशकुलानुग्रहकर राम् ॥ ८४ ॥
सकलजीवसंरक्षक राम् ॥ ८५ ॥
समस्तलोकाधारक राम् ॥ ८६ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ।
राम् राम् जय सीता राम् ॥

॥ उत्तरकाण्डः ॥
आगतमुनिगणसंस्तुत राम् ॥ ८७ ॥
विश्रुतदशकण्ठोद्भव राम् ॥ ८८ ॥
सीतालिङ्गननिर्वृत राम् ॥ ८९ ॥
नीतिसुरक्षितजनपद राम् ॥ ९० ॥
विपिनत्याजितजनकज राम् ॥ ९१ ॥
कारितलवणासुरवध राम् ॥ ९२ ॥
स्वर्गतशम्बुकसंस्तुत राम् ॥ ९३ ॥
स्वतनयकुशलवनन्दित राम् ॥ ९४ ॥
अश्वमेधक्रतुदीक्षित राम् ॥ ९५ ॥
कालावेदितसुरपद राम् ॥ ९६ ॥
आयोध्यकजनमुक्तिद राम् ॥ ९७ ॥
विधिमुखविबुधानन्दक राम् ॥ ९८ ॥
तेजोमयनिजरूपक राम् ॥ ९९ ॥
संसृतिबन्धविमोचक राम् ॥ १०० ॥
धर्मस्थापनतत्पर राम् ॥ १०१ ॥
भक्तिपरायणमुक्तिद राम् ॥ १०२ ॥
सर्वचराचरपालक राम् ॥ १०३ ॥
सर्वभवामयवारक राम् ॥ १०४ ॥
वैकुण्ठालयसंस्थित राम् ॥ १०५ ॥
नित्यानन्दपदस्थित राम् ॥ १०६ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ॥ १०७ ॥
राम् राम् जय सीता राम् ॥ १०८ ॥
राम् राम् जय राजा राम् ।
राम् राम् जय सीता राम् ॥
॥ इति नामरामायणम् सम्पूर्णम् ॥

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