नटराज स्तुति in Hindi/Sanskrit
सत सृष्टि तांडव रचयिता
नटराज राज नमो नमः ।
हे आद्य गुरु शंकर पिता
नटराज राज नमो नमः ॥
गंभीर नाद मृदंगना
धबके उरे ब्रह्माडना ।
नित होत नाद प्रचंडना
नटराज राज नमो नमः ॥
शिर ज्ञान गंगा चंद्रमा
चिद्ब्रह्म ज्योति ललाट मां ।
विषनाग माला कंठ मां
नटराज राज नमो नमः ॥
तवशक्ति वामांगे स्थिता
हे चंद्रिका अपराजिता ।
चहु वेद गाए संहिता
नटराज राज नमोः ॥
Natraj Stuti in English
Sat srishti tandav rachayita
Nataraj Raj namo namah.
He adya guru Shankar pita
Nataraj Raj namo namah.
Gambhir nad mridangana
Dhabake ure brahmandana.
Nit hot nad prachandana
Nataraj Raj namo namah.
Shir gyan Ganga Chandrama
Chidbrahma jyoti lalat maan.
Vishnag mala kanth maan
Nataraj Raj namo namah.
Tavshakti vamaange sthita
He Chandrika aparajita.
Chahu ved gaaye samhita
Nataraj Raj namoh.
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नटराज स्तुति का अर्थ
सत सृष्टि तांडव रचयिता
इस पंक्ति का मतलब है कि भगवान शिव पूरी सृष्टि के रचयिता और विनाशकर्ता हैं। सृष्टि का अर्थ है सृजन, यानी निर्माण, और तांडव भगवान शिव द्वारा किया जाने वाला नृत्य है, जो ब्रह्मांड के सृजन, पालन और विनाश का प्रतीक है। शिव की इस भूमिका में उन्हें ब्रह्मांडीय शक्तियों का मालिक माना जाता है।
नटराज राज नमो नमः
नटराज भगवान शिव का वह रूप है जिसमें वे नृत्य करते हुए ब्रह्मांड की गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं। नमो नमः का अर्थ होता है “आपको बारंबार नमन”। इसमें भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त किया गया है, जिन्हें नृत्य के देवता के रूप में माना जाता है।
हे आद्य गुरु शंकर पिता
यहां भगवान शिव को आद्य गुरु कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण शिक्षक हैं। शंकर पिता का अर्थ है कि वे हमारे रक्षक और पालनकर्ता हैं। भगवान शिव को आदि गुरु माना जाता है क्योंकि उन्होंने ज्ञान, योग, और साधना का मार्ग दिखाया है।
गंभीर नाद मृदंगना
इस पंक्ति में गंभीर नाद का अर्थ है गहरी ध्वनि। मृदंगना से तात्पर्य है मृदंग की ध्वनि, जो शिव के तांडव नृत्य के दौरान उत्पन्न होती है। इस ध्वनि को ब्रह्मांडीय ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक माना जाता है, जो भगवान शिव के नृत्य के समय उत्पन्न होती है।
धबके उरे ब्रह्मांडना
धबके का अर्थ होता है जोर से ध्वनि करना। इस पंक्ति में उरे का अर्थ है हृदय, और ब्रह्मांडना का तात्पर्य है ब्रह्मांड। इस पंक्ति का मतलब है कि भगवान शिव के तांडव नृत्य की ध्वनि पूरे ब्रह्मांड में गूंजती है और ब्रह्मांड की हर इकाई पर इसका प्रभाव पड़ता है।
नित होत नाद प्रचंडना
इस पंक्ति में कहा गया है कि भगवान शिव के नृत्य के समय प्रचंड नाद होता है, जो प्रतिदिन उत्पन्न होता है। प्रचंड नाद एक तीव्र ध्वनि है जो उनके तांडव नृत्य के दौरान उत्पन्न होती है। यह नाद पूरी सृष्टि में गति और परिवर्तन का संकेत है।
शिर ज्ञान गंगा चंद्रमा
इस पंक्ति में भगवान शिव के सिर पर गंगा और चंद्रमा को दर्शाया गया है। ज्ञान गंगा का अर्थ है कि गंगा नदी को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है, और भगवान शिव ने इसे अपने जटाओं में स्थान दिया है। चंद्रमा शिव के सिर पर स्थित है, जो शांति और शीतलता का प्रतीक है।
चिद्ब्रह्म ज्योति ललाट मां
चिद्ब्रह्म का अर्थ है शुद्ध चेतना और ब्रह्मांड की दिव्य शक्ति। ज्योति का मतलब है प्रकाश, और ललाट का अर्थ है माथा। इस पंक्ति का तात्पर्य है कि भगवान शिव के ललाट पर दिव्य ज्योति का वास है, जो पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है। यह ज्योति ब्रह्मांडीय सत्य और शक्ति का प्रतीक है।
विषनाग माला कंठ मां
इस पंक्ति में भगवान शिव के गले में विषनाग माला को दिखाया गया है। विषनाग का अर्थ है विषैले नाग, और भगवान शिव ने उन्हें अपने गले में धारण किया है। यह उनकी अजेय शक्ति और विष को अमृत में बदलने की क्षमता का प्रतीक है।
तवशक्ति वामांगे स्थिता
इस पंक्ति में कहा गया है कि भगवान शिव की शक्ति उनके बाएं अंग में स्थिर है। शक्ति से तात्पर्य है देवी पार्वती, जो शिव की अर्धांगिनी हैं। पार्वती को शक्ति का रूप माना जाता है, जो ब्रह्मांड की सभी ऊर्जाओं की संरक्षिका हैं।
हे चंद्रिका अपराजिता
इस पंक्ति में देवी पार्वती को अपराजिता कहा गया है, जिसका अर्थ है जो कभी पराजित नहीं होती। चंद्रिका का अर्थ है चंद्रमा की शीतल किरणें, जो शांति और सुंदरता का प्रतीक हैं। पार्वती देवी की यह शक्ति हमेशा भगवान शिव के साथ रहती है।
चहु वेद गाए संहिता
इस पंक्ति का अर्थ है कि भगवान शिव की महिमा और शक्ति को चारों वेदों में गाया गया है। सन्हिता का मतलब है एकत्रित रूप में वर्णित किया जाना। चार वेदों में शिव की शक्ति और तांडव का महत्व विशेष रूप से वर्णित है, जो उनकी ब्रह्मांडीय भूमिका को दर्शाता है।
नटराज राज नमो नमः
फिर से भगवान शिव को नटराज के रूप में नमन किया गया है। नटराज उनके नृत्य और सृजनात्मक शक्ति का प्रतीक है, और नमो नमः का अर्थ है उन्हें बार-बार नमन करना। इस तरह से भगवान शिव की परम शक्ति, ज्ञान, और ब्रह्मांडीय स्थिति का वर्णन किया गया है।
नटराज राज नमोः नमः
यहां एक बार फिर से भगवान शिव के नटराज रूप को नमन किया जा रहा है। नटराज का मतलब है नृत्य के राजा, जो ब्रह्मांड की गतिविधियों को अपने नृत्य के माध्यम से नियंत्रित करते हैं। उनका नृत्य सृष्टि (सृजन), स्थितिः (संरक्षण), संहार (विनाश), तिरोभाव (भ्रम या मोहन), और अनुग्रह (मुक्ति) का प्रतिनिधित्व करता है। नटराज का यह रूप न केवल उनकी शक्ति, बल्कि उनके अनुग्रह और अद्वितीय ऊर्जा को भी दर्शाता है।
शिव का तांडव: सृजन, विनाश और नृत्य की व्याख्या
भगवान शिव के तांडव नृत्य को सृष्टि के चक्र का प्रतीक माना जाता है। यह नृत्य उस समय को दर्शाता है जब ब्रह्मांड की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश होता है। शिव का तांडव नृत्य पांच प्राथमिक गतिविधियों को भी दर्शाता है:
- सृजन – नृत्य की मुद्रा में उनका एक हाथ जो ‘डमरु’ (ढोलक) पकड़ता है, वह सृजन का प्रतीक है।
- संरक्षण – उनका दूसरा हाथ ‘अभय मुद्रा’ में है, जो संरक्षण और सुरक्षा का प्रतीक है।
- विनाश – उनके एक पैर से भूमि पर प्रहार विनाश का प्रतीक है, जो सृष्टि के अंत को दर्शाता है।
- तिरोभाव – भ्रम और मायाजाल की स्थिति का संकेत देता है।
- अनुग्रह – मुक्ति और मोक्ष का प्रतीक है।
शिव और पार्वती की शक्ति का संगम
भगवान शिव को अर्धनारीश्वर रूप में भी जाना जाता है, जो इस तथ्य को प्रकट करता है कि वे आधे पुरुष और आधे महिला हैं। उनकी बाईं ओर पार्वती का निवास होता है, जो शक्ति का प्रतीक हैं। यह इस तथ्य का प्रतीक है कि शिव और शक्ति (पार्वती) मिलकर ब्रह्मांड का संचालन करते हैं।
शिव का जटाओं में गंगा और चंद्रमा का निवास
भगवान शिव के सिर पर गंगा और चंद्रमा का निवास ब्रह्मांड की शांति, ऊर्जा और सतत प्रवाह का प्रतीक है। गंगा का शिव की जटाओं में वास यह दिखाता है कि उन्होंने इस अद्भुत नदी को नियंत्रित किया और धरती पर लाकर जीवन के लिए इसे उपयोगी बनाया। चंद्रमा उनके मस्तक पर स्थित है, जो उनके शांति, ठंडक और नियंत्रण का प्रतीक है।
माला में विषनाग: विष के संचालक शिव
भगवान शिव को विषनाग माला के साथ दिखाया गया है, जो उनके विषपान की घटना का प्रतिनिधित्व करती है। समुद्र मंथन के समय निकले विष को पीकर उन्होंने सभी जीवों को बचाया था, लेकिन उन्होंने उसे अपने गले में ही रखा और इसे बाहर नहीं जाने दिया। यही कारण है कि उन्हें नीलकंठ कहा जाता है। यह घटना दर्शाती है कि शिव विनाशकारी तत्वों को अपने भीतर समाहित कर सकते हैं, ताकि शांति और सृजनात्मकता बनी रहे।
शिव की ज्ञान और प्रकाश की शक्ति
भगवान शिव को चिद्ब्रह्म और ज्योति का स्रोत माना जाता है। उनकी ललाट पर जो दिव्य ज्योति स्थित है, वह ब्रह्मांड के सभी ज्ञान और प्रकाश का स्रोत है। यह ज्योति एक रूपक है, जो इस बात का प्रतीक है कि शिव में सम्पूर्ण सत्य और वास्तविकता निहित है।
शिव का चारों वेदों में स्थान
भगवान शिव को चारों वेदों में सम्मानित किया गया है। यह वेद शिव की महिमा का वर्णन करते हैं और उनके योगदान की व्याख्या करते हैं। चार वेद – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद – शिव के ज्ञान, नृत्य, संगीत और ध्यान की महिमा का गुणगान करते हैं। इस प्रकार, भगवान शिव को एक संपूर्ण देवता के रूप में वर्णित किया गया है, जो न केवल शक्ति और विनाश का प्रतीक हैं, बल्कि ज्ञान और मुक्ति के स्रोत भी हैं।
नटराज रूप की महिमा
नटराज भगवान शिव का वह रूप है जिसमें वे नृत्य करते हुए ब्रह्मांड को नियंत्रित करते हैं। उनका नृत्य ब्रह्मांड की पूरी संरचना और उसके विभिन्न चरणों का प्रतिनिधित्व करता है। नटराज रूप में भगवान शिव के नृत्य को संसार के नाश और निर्माण का संकेत माना जाता है।
शिव और ऊर्जा का संतुलन
भगवान शिव और उनकी शक्ति के बीच संतुलन का प्रतीक यह भी दर्शाता है कि जब सृष्टि का निर्माण होता है, तब शक्ति और शिव दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिव का रूप स्थिर और अनंत है, जबकि शक्ति ऊर्जा और गति का प्रतीक है। इस संतुलन के बिना ब्रह्मांड का संचालन संभव नहीं है।