संकटमोचन हनुमान अष्टक क्या होता है?
संकटमोचन हनुमान अष्टक एक प्रसिद्ध भक्ति स्तोत्र है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचा है। यह स्तोत्र भगवान हनुमान की महिमा का वर्णन करता है और उनके संकटमोचन स्वरूप को नमन करता है। “संकटमोचन” का अर्थ है “संकटों का नाश करने वाला” और यह अष्टक आठ छंदों (श्लोकों) का समूह है। इसका पाठ विशेष रूप से उन लोगों द्वारा किया जाता है जो जीवन में कठिनाइयों और बाधाओं का सामना कर रहे हैं।
हनुमान जी को बल, बुद्धि, विद्या और विजय के देवता माना जाता है। संकटमोचन हनुमान अष्टक में उनके इन्हीं गुणों की प्रार्थना की गई है। तुलसीदास जी ने इसमें उनके द्वारा किए गए महान कार्यों जैसे भगवान राम की सहायता, सीता माता की खोज, और रावण जैसे अत्याचारी को हराने में उनके योगदान का वर्णन किया है। यह अष्टक न केवल भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह आत्मविश्वास, साहस और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
इस अष्टक के हर छंद में भगवान हनुमान से प्रार्थना की गई है कि वे अपने भक्तों के संकटों का नाश करें। इसे नियमित रूप से पढ़ने से मन को शांति, शक्ति और आत्मबल प्राप्त होता है। भक्तजन इसे विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को, जो हनुमान जी के प्रिय दिन माने जाते हैं, श्रद्धा भाव से पढ़ते हैं। यह अष्टक भक्तों को उनके जीवन के संकटों से उबरने का मार्ग प्रदान करता है और उनके जीवन में शांति और समृद्धि लाता है।
संकटमोचन हनुमान अष्टक का अर्थ
बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों । ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो । देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो । को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो । चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो । कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो । जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो । हेरी थके तट सिन्धु सबै तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥
रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो । ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मारो । चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥
बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावन मारो । लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो । आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥
रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो । श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो । आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥
बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो । देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो । जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥
काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो । कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो । बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो ॥ ८ ॥
दोहा
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर । वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ॥
संकटमोचन हनुमान अष्टक गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित एक भक्ति स्तोत्र है, जिसमें भगवान हनुमान की कृपा और उनके द्वारा किए गए महा कार्यों का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र भगवान हनुमान को संकटों का निवारण करने वाला देवता मानते हुए, उनकी महिमा का गुणगान करता है। आइए श्लोकवार इस स्तोत्र का अर्थ विस्तार से समझते हैं:
पहला श्लोक: बाल समय रवि भक्षी लियो तब…
जब हनुमान जी बाल्यावस्था में थे, उन्होंने अपनी खेल-खेल में सूर्य को एक लाल फल समझकर निगल लिया। इससे तीनों लोकों में अंधकार फैल गया। इस घटना से सभी देवता और प्राणी भयभीत हो गए, क्योंकि बिना सूर्य के जीवन असंभव हो गया। इस संकट से उबरने के लिए सभी देवता हनुमान जी के पास विनती करने आए। उनकी प्रार्थना पर हनुमान जी ने सूर्य को मुक्त कर दिया, और इस प्रकार उनका संकटमोचन स्वरूप पहली बार प्रकट हुआ। यह श्लोक दर्शाता है कि बचपन से ही हनुमान जी ने सभी का कष्ट दूर करना शुरू कर दिया था।
दूसरा श्लोक: बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि…
हनुमान जी ने सुग्रीव के साथ मित्रता की और उन्हें उनके भाई बालि के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। बालि का आतंक इतना बढ़ गया था कि सुग्रीव अपने ही राज्य से निर्वासित होकर ऋष्यमूक पर्वत पर शरण लेने को विवश हो गए थे। बाद में हनुमान जी ने श्रीराम से सुग्रीव का परिचय कराया और राम ने बालि का वध किया। इस श्लोक में बताया गया है कि हनुमान जी ने कैसे सुग्रीव के संकट को दूर किया और उन्हें उनका राज्य वापस दिलाया।
तीसरा श्लोक: अंगद के संग लेन गए सिय…
जब माता सीता को रावण ने अपहरण करके लंका में बंदी बना लिया, तो श्रीराम ने वानर सेना के साथ उन्हें ढूंढने का निश्चय किया। हनुमान जी ने अंगद और अन्य वानरों के साथ सीता माता की खोज की। समुद्र के किनारे पहुंचकर सभी वानर थक गए, लेकिन हनुमान जी ने अपनी शक्ति और साहस से समुद्र पार करके माता सीता का पता लगाया। उन्होंने उनकी सुधि लेकर श्रीराम को दी और उनकी आशा को पुनः जीवित किया। इस श्लोक में हनुमान जी की दृढ़ता और समर्पण का वर्णन है।
चौथा श्लोक: रावण त्रास दई सिय को सब…
लंका में सीता माता रावण के अत्याचार और राक्षसियों के डर से दुखी थीं। जब हनुमान जी लंका पहुंचे, तो उन्होंने वहां राक्षसों को परास्त कर सीता माता को प्रभु श्रीराम की मुद्रिका दी। इससे उनका मनोबल बढ़ा और उन्हें श्रीराम के आगमन का विश्वास हुआ। हनुमान जी ने अपनी बुद्धि और साहस से सीता माता के कष्टों को दूर किया और उनके मन से भय हटाया।
पाँचवां श्लोक: बान लग्यो उर लछिमन के तब…
जब लक्ष्मण जी मेघनाद के शक्तिबाण से घायल होकर मूर्छित हो गए, तो पूरा राम दल चिंता में डूब गया। उनके प्राण संकट में थे। हनुमान जी ने तुरंत सुषेण वैद्य को लंका से बुलाया और वैद्य के कहने पर संजीवनी बूटी लाने के लिए द्रोणगिरि पर्वत तक गए। समय की कमी को देखते हुए, उन्होंने पूरा पर्वत ही उठा लिया और लेकर आए। उनके इस कार्य ने न केवल लक्ष्मण जी के प्राण बचाए बल्कि पूरी वानर सेना का उत्साह भी बढ़ाया।
छठा श्लोक: रावन युद्ध अजान कियो तब…
रावण ने नागपाश का प्रयोग कर श्रीराम और उनकी सेना को बंधक बना लिया था। इससे पूरी वानर सेना और स्वयं श्रीराम भी असहाय हो गए। तब हनुमान जी ने गरुड़ को बुलाया, जिन्होंने नागपाश को काट दिया और सेना को मुक्त किया। इस घटना से हनुमान जी की सूझबूझ और संकट को हरने की क्षमता का परिचय मिलता है।
सातवां श्लोक: बंधु समेत जबै अहिरावन…
जब अहिरावण ने छल से श्रीराम और लक्ष्मण को पाताल लोक में कैद कर लिया, तब भी हनुमान जी ने अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। उन्होंने अहिरावण के सारे राक्षसों का संहार किया और श्रीराम-लक्ष्मण को मुक्त कर लाए। इस श्लोक में हनुमान जी की पाताल विजय का वर्णन है, जो उनकी असीम शक्ति और भक्ति को दर्शाता है।
आठवां श्लोक: काज किये बड़ देवन के तुम…
हनुमान जी ने अपने पराक्रम से न केवल श्रीराम का कार्य सिद्ध किया, बल्कि देवताओं के भी कई बड़े कार्य पूरे किए। यह श्लोक हर भक्त के लिए प्रार्थना है कि हनुमान जी उनके सभी संकटों को हर लें। इसमें हनुमान जी की कृपा और भक्तों के प्रति उनकी दया का वर्णन है।
दोहा: लाल देह लाली लसे…
हनुमान जी का स्वरूप उनकी शक्ति और तेजस्विता को दर्शाता है। उनकी लाल रंग की देह और वज्र के समान शरीर दुष्टों का संहार करने में सक्षम है। यह दोहा उनके सौंदर्य और पराक्रम की प्रशंसा करता है।
निष्कर्ष:
संकटमोचन हनुमान अष्टक भगवान हनुमान के अद्वितीय पराक्रम, भक्ति और कृपा का बखान करता है। यह भक्ति स्तोत्र हर भक्त को यह विश्वास दिलाता है कि चाहे कोई भी संकट हो, हनुमान जी उसे दूर करने में सक्षम हैं। यह पाठ न केवल श्रद्धा और भक्ति को जागृत करता है, बल्कि जीवन के हर कठिन समय में आशा और साहस प्रदान करता है।
संकटमोचन हनुमान अष्टक के फायदे क्या हैं?
संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ हिंदू धर्म में एक अत्यंत प्रभावशाली और लोकप्रिय साधना मानी जाती है। यह भगवान हनुमान को समर्पित एक स्तुति है, जिसे तुलसीदास जी ने रचा है। संकटमोचन हनुमान अष्टक के नियमित पाठ से न केवल मानसिक और शारीरिक शांति प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में आने वाली हर प्रकार की बाधाओं, कष्टों और समस्याओं का समाधान भी होता है। इस स्तुति के कई लाभ हैं, जो इसे साधकों के बीच अत्यधिक प्रिय बनाते हैं। आइए विस्तार से इसके फायदों को समझते हैं।
1. सभी प्रकार के संकटों का समाधान
इस अष्टक का नाम ही “संकटमोचन” है, जिसका अर्थ है संकटों को हरने वाला। ऐसा माना जाता है कि नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले हर प्रकार के संकट, चाहे वे व्यक्तिगत हों, पारिवारिक हों, आर्थिक हों, या स्वास्थ्य से संबंधित हों, दूर हो जाते हैं। भगवान हनुमान अपने भक्तों के हर दुख और कष्ट को हर लेते हैं और उनके जीवन को सुखमय बनाते हैं।
2. नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा
संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ बुरी शक्तियों, नकारात्मक ऊर्जा और शत्रुओं के प्रभाव से बचाने में सहायक है। यह पाठ एक शक्तिशाली कवच के रूप में कार्य करता है जो साधक को अदृश्य बुराइयों और दुर्भावनाओं से सुरक्षित रखता है। घर या कार्यस्थल पर इसे पढ़ने से वहां की ऊर्जा सकारात्मक हो जाती है।
3. आध्यात्मिक विकास और आत्मबल में वृद्धि
भगवान हनुमान को शक्ति, भक्ति और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। इस अष्टक का नियमित पाठ व्यक्ति के अंदर आत्मबल, साहस और दृढ़ विश्वास को बढ़ाता है। यह साधक को न केवल आध्यात्मिक रूप से प्रगति करने में मदद करता है, बल्कि उसे जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए मानसिक और भावनात्मक मजबूती भी प्रदान करता है।
4. स्वास्थ्य लाभ और मानसिक शांति
हनुमान अष्टक के श्लोकों में ऐसे शब्द और ध्वनियां हैं जो सकारात्मक कंपन (positive vibrations) उत्पन्न करते हैं। इनका नियमित उच्चारण करने से मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद जैसी समस्याओं से राहत मिलती है। इसके साथ ही, यह शरीर के अंदर ऊर्जा के प्रवाह को बेहतर बनाता है, जिससे व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ और मानसिक रूप से शांत महसूस करता है।
5. कार्यक्षेत्र और व्यवसाय में सफलता
जो लोग अपने करियर या व्यवसाय में बार-बार असफलताओं का सामना कर रहे हैं, उनके लिए यह अष्टक वरदान साबित हो सकता है। संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ जीवन में सकारात्मकता लाता है और बाधाओं को दूर करके सफलता के रास्ते खोलता है। यह व्यक्ति को सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है और उसके प्रयासों को फलदायी बनाता है।
6. पारिवारिक सुख-शांति और समृद्धि
इस अष्टक के नियमित पाठ से घर में शांति, सुख और समृद्धि बनी रहती है। परिवार के सदस्यों के बीच झगड़े और मतभेद समाप्त हो जाते हैं। भगवान हनुमान की कृपा से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे परिवार का माहौल शांतिपूर्ण और खुशहाल रहता है।
7. भगवान हनुमान की कृपा और भक्ति का अनुभव
संकटमोचन हनुमान अष्टक के पाठ से साधक के मन में भगवान हनुमान के प्रति असीम भक्ति और श्रद्धा उत्पन्न होती है। यह भक्ति न केवल जीवन के कठिन क्षणों में सहायक होती है, बल्कि साधक को भगवान हनुमान के दिव्य रूप का अनुभव भी कराती है। इस अष्टक के माध्यम से साधक भगवान हनुमान के करीब महसूस करता है और उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है।
8. राहु और शनि दोष से मुक्ति
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु या शनि दोष हो, तो उसे जीवन में कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। संकटमोचन हनुमान अष्टक का नियमित पाठ इन ग्रह दोषों के प्रभाव को कम करने में सहायक होता है। इससे व्यक्ति को इन ग्रहों की अशुभ स्थिति से राहत मिलती है और उसका जीवन बेहतर बनता है।
9. विद्यार्थियों के लिए विशेष लाभ
विद्यार्थियों के लिए यह अष्टक अत्यधिक लाभकारी है। यह पाठ उनके ध्यान और एकाग्रता को बढ़ाने में मदद करता है। साथ ही, यह पढ़ाई में आने वाली बाधाओं को दूर करता है और परीक्षाओं में सफलता पाने के लिए मानसिक शक्ति प्रदान करता है।
10. जन्म-कुंडली के दोषों का निवारण
इस पाठ से जन्म-कुंडली में मौजूद विभिन्न प्रकार के दोष, जैसे मांगलिक दोष, कालसर्प दोष, या अन्य ग्रह दोषों का प्रभाव कम किया जा सकता है। इसके अलावा, यह व्यक्ति के जीवन में बाधाओं को दूर कर शुभ फल लाने में सहायक होता है।
संकटमोचन हनुमान अष्टक के नियम और विधि?
संकटमोचन हनुमान अष्टक भगवान हनुमान की स्तुति में लिखा गया एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है। इसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचा है। यह अष्टक विशेष रूप से उन भक्तों के लिए प्रभावी माना जाता है जो जीवन के कष्टों, संकटों और कठिनाइयों का सामना कर रहे होते हैं। इसे विधिपूर्वक पढ़ने से व्यक्ति के जीवन से सभी बाधाएँ दूर होती हैं और शांति, सुख एवं समृद्धि प्राप्त होती है। इस पाठ को करने के लिए कुछ विशेष नियमों और विधियों का पालन करना चाहिए ताकि इसका अधिकतम लाभ मिल सके।
पाठ करने के नियम
- शुद्धता का पालन करें: संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ करने से पहले तन, मन और स्थान की शुद्धता सुनिश्चित करें। सुबह के समय स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पाठ करने का स्थान साफ और पवित्र होना चाहिए।
- नियमितता बनाए रखें: इसे एक निश्चित समय पर और नियमित रूप से पढ़ना चाहिए। विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार का दिन इस पाठ के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
- निर्मल मन से करें पाठ: पाठ के समय मन को शांत और ध्यानमग्न रखें। किसी भी प्रकार की नकारात्मकता, क्रोध या व्यर्थ चिंताओं से बचें।
- आसन का चयन करें: पाठ करते समय कुशासन, चटाई, या स्वच्छ वस्त्र पर बैठें। पीले, लाल या केसरिया रंग का वस्त्र उत्तम माना जाता है।
- दीप जलाएं: हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाना शुभ होता है। साथ में, लाल चंदन, फूल, सिंदूर और गुड़ चढ़ाएं।
- भोजन नियम: पाठ से पहले सात्विक भोजन ग्रहण करें या उपवास रखें। पाठ के दिन तामसिक भोजन जैसे मांस, लहसुन और प्याज का सेवन न करें।
- संयम रखें: पाठ के दिनों में संयम और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
पाठ की विधि
- स्थापना और पूजन: संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ करने से पहले भगवान हनुमान जी की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करें। उन्हें सिंदूर और चोला चढ़ाएं। गुड़-चने का भोग लगाएं। हनुमान चालीसा का पाठ भी प्रारंभ में कर सकते हैं।
- शुद्ध उच्चारण: संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ शुद्ध उच्चारण के साथ करें। प्रत्येक पंक्ति को स्पष्ट और श्रद्धा भाव के साथ पढ़ें। पाठ के दौरान किसी प्रकार की जल्दबाजी न करें।
- संख्या: इसे कम से कम तीन बार या अधिक संख्या में पढ़ें। संकटमोचन हनुमान अष्टक का 11 बार पाठ करने से विशेष फल मिलता है।
- मंत्र जाप: अष्टक के पाठ के बाद “ॐ हं हनुमते नमः” मंत्र का जाप करें। यह पाठ की शक्ति को और बढ़ा देता है।
- संकल्प लें: यदि आप विशेष कामना पूर्ति के लिए पाठ कर रहे हैं, तो पाठ से पहले अपनी कामना का संकल्प लें और पाठ के दौरान हनुमान जी से अपनी प्रार्थना करें।
विशेष ध्यान रखने योग्य बातें
- संकटमोचन हनुमान अष्टक को मंगलवार और शनिवार के अलावा विशेष पर्व जैसे हनुमान जयंती, रामनवमी आदि के अवसर पर भी पढ़ा जा सकता है।
- पाठ के बाद हनुमान जी के प्रसाद को सभी परिजनों में बांटें। प्रसाद में गुड़-चने का उपयोग शुभ माना जाता है।
- पाठ के दौरान कोई अशुद्धि हो जाए, तो “हनुमान जी” का ध्यान करते हुए क्षमा प्रार्थना करें।
संकटमोचन हनुमान अष्टक Video
Sankatmochan Hanuman Ashtak in English
Baal samai ravi bhakshi liyo tab,
teenahu loka bhayo andhiyaro ।
Taahi so traas bhayo jag ko,
yah sankat kaahu so jaat na taaro ।
Dewan aani kari bintee tab,
chaadhi diyo ravi kasht niwaaro ।
Ko nahin jaanat hai jag mein kapi,
sankat mochan naam tihaaro ॥1॥
Baali ki traas kapees basai giri,
jaat mahaaprabhu panth nihaaro ।
Chownki mahaa muni saap diyo tab,
chahiy kaun bichaar bichaaro ।
Kai dwij roop liwaay mahaa prabhu,
so tum daas ke sok niwaaro ।
Ko nahin jaanat hai jag mein kapi,
sankat mochan naam tiharo ॥2॥
Angad ke sang lain gaye siya,
khoj kapees yah baain uchaaro ।
jeevat na bachihau hum son ju,
bina sudhi laay ehaan pagu dhaaro ।
Hayri thake tatt sindhu sabaai tab,
laay siya-sudhi praan ubaaro ।
Ko nahin jaanat hai jag mein kapi,
sankat mochan naam tiharo ॥3॥
Raavan traas dayee siya ko sab,
raakshashi so kahi sok nivaaro ।
Taahi samay hanuman mahaprabhu,
Jaay mahaa rajneechar maaro ।
Chaahat seeya asoka so aagi su,
dai prabhu mudrika soka nivaaro ।
Ko nahin jaanat hai jag mein kapi,
sankat mochan naam tiharo ॥4॥
Baan lagyo ur lakshiman ke tab,
praan taje sut raavan maaro ।
Lai griha baidya sushen samet,
tabai giri dron su beer upaaro ।
Aani sajeewan hath dayee taba,
lakshiman ke tum praan upaaro ।
Ko nahin jaanat hai jag mein kapi,
sankat mochan naam tiharo ॥5॥
Raavan yudh ajaan kiyo tab,
naag ki phaas sabhi sir daaro ।
Sri Raghunath samet sabai dal,
moh bhayo yah sankat bhaaro ।
Aani khagesh tabai hanumaan ju,
bandhan kaati sutraas nivaaro ।
Ko nahin jaanat hai jag mein kapi,
sankat mochan naam tiharo ॥6॥
Bandhu samet jabai ahiraavan,
lai raghunath pataal sidhaaro ।
Devhi puji bhalee vidhi so bali,
deu sabai mili mantra vichaaro ।
Jaay sahaay bhayo tab hi,
ahiraavan sainya samet sanhaaro ।
Ko nahin jaanat hai jag mein kapi,
sankat mochan naam tiharo ॥7॥
Kaaj kiye barh dewan kei tum,
beer mahaaprabhu dekhi bichaaro ।
Kaun so sankat mohin gareeb ko,
jo tumso nahin jaat hai taaro ।
Begi haro hanumaan mahaprabhu,
jo kuch sankat hoya hamaaro ।
Ko nahin jaanat hai jag mein kapi,
sankat mochan naam tiharo ॥8॥
॥ Doha ॥
Laal deh laalee lase,
aru dhari laal langoor ।
Bajra deh daanavdalan,
jai jai jai kapi soor ॥
संकटमोचन हनुमान अष्टक PDF Download
संकटमोचन हनुमान अष्टक Mp3 Audio
कुछ मुख्य बिंदु
- पहले छंद में बाल्यकाल में सूर्य को निगल लेने की घटना का वर्णन है, जिससे तीनों लोक अंधकारमय हो गए थे। देवताओं की प्रार्थना पर हनुमान जी ने सूर्य को मुक्त किया और संकट को समाप्त किया।
- दूसरे छंद में बालि की त्रासदी का वर्णन है। हनुमान जी ने बालि के अत्याचार से पीड़ितों की रक्षा की।
- तीसरे छंद में सीता जी की खोज के समय समुद्र पार करने और सीता जी की सूचना लाने का वर्णन है।
- चौथे छंद में सीता जी को रावण के अत्याचारों से मुक्त कराने की कहानी है। हनुमान जी ने लंका में जाकर रावण के राक्षसों का विनाश किया।
- पाँचवे छंद में लक्ष्मण जी के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी लाने का वर्णन है, जिससे लक्ष्मण जी के प्राण बच गए।
- छठे छंद में नागपाश से श्रीराम और उनकी सेना की मुक्ति का वर्णन है।
- सातवें छंद में अहिरावण द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण कर पाताल लोक ले जाने की घटना का वर्णन है। हनुमान जी ने अहिरावण और उसकी सेना का संहार कर उन्हें मुक्त कराया।
- आठवें छंद में हनुमान जी की समस्त देवताओं के कार्यों में सहायता और उनकी अद्भुत शक्ति की महिमा का वर्णन है।
दोहा
अंत में दोहा है जिसमें हनुमान जी की लाल देह, लाल लंगूर और उनकी वज्र के समान मजबूत देह का वर्णन है। इस दोहे में उनकी विजय की कामना की गई है।
यह अष्टक हनुमान जी की भक्ति और संकटमोचन की शक्ति का प्रतीक है। इसे नियमित रूप से पाठ करने से भक्तों को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है और भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त होती है।