सरस्वती जी आरती in Hindi/Sanskrit
ओइम् जय वीणे वाली,
मैया जय वीणे वाली
ऋद्धि-सिद्धि की रहती,
हाथ तेरे ताली
ऋषि मुनियों की बुद्धि को,
शुद्ध तू ही करती
स्वर्ण की भाँति शुद्ध,
तू ही माँ करती॥ 1 ॥
ज्ञान पिता को देती,
गगन शब्द से तू
विश्व को उत्पन्न करती,
आदि शक्ति से तू॥ 2 ॥
हंस-वाहिनी दीज,
भिक्षा दर्शन की
मेरे मन में केवल,
इच्छा तेरे दर्शन की॥ 3 ॥
ज्योति जगा कर नित्य,
यह आरती जो गावे
भवसागर के दुख में,
गोता न कभी खावे॥ 4 ॥
Saraswati Om Jai Veene Wali Aarti in English
Om Jai Veene Wali,
Maya Jai Veene Wali
Riddhi-Siddhi ki Rahti,
Haath Tere Tali
Rishi Muniyon ki Buddhi ko,
Shuddh Tu Hi Karti
Swarna ki Bhaanti Shuddh,
Tu Hi Maa Karti ॥ 1 ॥
Gyaan Pita Ko Deti,
Gagan Shabd Se Tu
Vishv Ko Utpann Karti,
Aadi Shakti Se Tu ॥ 2 ॥
Hans-Vahini Deej,
Bhiksha Darshan Ki
Mere Mann Mein Keval,
Ichha Tere Darshan Ki ॥ 3 ॥
Jyoti Jaga Kar Nitya,
Yeh Aarti Jo Gaave
Bhavsagar Ke Dukh Mein,
Gota Na Kabhi Khaave ॥ 4 ॥
ओम् जय वीणे वाली आरती का अर्थ PDF Download
ओम् जय वीणे वाली आरती का अर्थ और विवरण
इस आरती में माँ सरस्वती की स्तुति की गई है, जो ज्ञान, बुद्धि और संगीत की देवी मानी जाती हैं। हर पंक्ति में माँ सरस्वती की महिमा और उनकी कृपा का वर्णन किया गया है। चलिए पंक्ति दर पंक्ति इसका हिंदी में अर्थ समझते हैं।
ओइम् जय वीणे वाली, मैया जय वीणे वाली
इस पंक्ति में माँ सरस्वती का आह्वान किया जा रहा है, जो वीणा धारण करती हैं। “जय वीणे वाली” का अर्थ है “वीणा धारण करने वाली माता की जय हो।” यह माँ सरस्वती की स्तुति है, जो हमें ज्ञान और संगीत प्रदान करती हैं।
ऋद्धि-सिद्धि की रहती, हाथ तेरे ताली
इसका अर्थ है कि माँ सरस्वती के हाथों में ऋद्धि और सिद्धि अर्थात समृद्धि और सिद्धि निवास करती हैं। यहाँ “ताली” शब्द का अर्थ “हाथ” से है, यानी माँ के हाथों में ऐसी शक्तियां हैं जो भक्तों को पूर्णता और सफलता की ओर ले जाती हैं।
ऋषि मुनियों की बुद्धि को, शुद्ध तू ही करती
इस पंक्ति में बताया गया है कि माँ सरस्वती ऋषि-मुनियों की बुद्धि को शुद्ध करती हैं। वह उनकी विचारधारा को निर्मल बनाती हैं और ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं, जिससे उनकी बुद्धि और विवेक शुद्ध होता है।
स्वर्ण की भाँति शुद्ध, तू ही माँ करती
यहाँ माँ सरस्वती को स्वर्ण यानी सोने के समान शुद्ध बताया गया है। जिस प्रकार सोना शुद्ध और निर्मल होता है, उसी प्रकार माँ सरस्वती के आशीर्वाद से भक्तों का मन और आत्मा शुद्ध होती है।
ज्ञान पिता को देती, गगन शब्द से तू
इसका अर्थ है कि माँ सरस्वती ज्ञान के स्रोत हैं और वे शब्दों के माध्यम से इस संसार को ज्ञान प्रदान करती हैं। “गगन शब्द” से अभिप्राय उन पवित्र और दिव्य शब्दों से है जो ज्ञान के आकाश में गूंजते हैं और सत्य का बोध कराते हैं।
विश्व को उत्पन्न करती, आदि शक्ति से तू
इस पंक्ति में माँ सरस्वती की आदि शक्ति के रूप में स्तुति की गई है, जो संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति का कारण हैं। वह आदि शक्ति हैं जो संपूर्ण संसार का आधार हैं।
हंस-वाहिनी दीज, भिक्षा दर्शन की
यहाँ भक्त माँ सरस्वती से प्रार्थना कर रहे हैं कि वह अपने वाहन हंस पर सवार होकर दर्शन दें। भक्त उनके दिव्य दर्शन की भिक्षा माँग रहे हैं, जिससे उन्हें आध्यात्मिक संतुष्टि मिले।
मेरे मन में केवल, इच्छा तेरे दर्शन की
इस पंक्ति में भक्त अपनी इच्छा व्यक्त कर रहे हैं कि उनके मन में केवल माँ सरस्वती के दर्शन की अभिलाषा है। भक्त उनके दर्शन से आत्मिक आनंद प्राप्त करना चाहता है।
ज्योति जगा कर नित्य, यह आरती जो गावे
यहाँ कहा गया है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन श्रद्धा और भक्ति के साथ माँ सरस्वती की आरती गाता है, उसकी आत्मा में ज्ञान और प्रकाश की ज्योति हमेशा जलती रहती है।
भवसागर के दुख में, गोता न कभी खावे
इस पंक्ति में कहा गया है कि जो भी इस आरती को सच्चे मन से गाता है, उसे संसार के दुखों और कष्टों का सामना नहीं करना पड़ता। भवसागर यानी जीवन के कष्टों में वह कभी नहीं डूबता।