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शम्भु स्तुति – नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं in Hindi/Sanskrit

नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं
नमामि सर्वज्ञमपारभावम् ।
नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं
नमामि शर्वं शिरसा नमामि ॥१॥

नमामि देवं परमव्ययंतं
उमापतिं लोकगुरुं नमामि ।
नमामि दारिद्रविदारणं तं
नमामि रोगापहरं नमामि ॥२॥

नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं
नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम् ।
नमामि विश्वस्थितिकारणं तं
नमामि संहारकरं नमामि ॥३॥

नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं
नमामि नित्यंक्षरमक्षरं तम् ।
नमामि चिद्रूपममेयभावं
त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥४॥

नमामि कारुण्यकरं भवस्या
भयंकरं वापि सदा नमामि ।
नमामि दातारमभीप्सितानां
नमामि सोमेशमुमेशमादौ ॥५॥

नमामि वेदत्रयलोचनं तं
नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् ।
नमामि पुण्यं सदसद्व्यातीतं
नमामि तं पापहरं नमामि ॥६॥

नमामि विश्वस्य हिते रतं तं
नमामि रूपापि बहुनि धत्ते ।
यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता
नमामि तं विश्वपतिं नमामि ॥७॥

यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं
तथागतिं लोकसदाशिवो यः ।
आराधितो यश्च ददाति सर्वं
नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् ॥८॥

नमामि सोमेश्वरंस्वतन्त्रं
उमापतिं तं विजयं नमामि ।
नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं
पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि ॥९॥

नमामि देवं भवदुःखशोक
विनाशनं चन्द्रधरं नमामि ।
नमामि गंगाधरमीशमीड्यं
उमाधवं देववरं नमामि ॥१०॥

नमाम्यजादीशपुरन्दरादि
सुरासुरैरर्चितपादपद्मम् ।
नमामि देवीमुखवादनानां
ईक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत् ॥११॥

पंचामृतैर्गन्धसुधूपदीपैः
विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः ।
अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः
सम्पूजितं सोममहं नमामि ॥१२॥

Shambhu Stuti in English

Namami Shambhum Purusham Puranam
Namami Sarvajnam Aparabhavam.
Namami Rudram Prabhum Akshayam Tam
Namami Sharvam Shirasaa Namami.

Namami Devam Paramavyayantam
Umapatim Lokagurum Namami.
Namami Daridra-Vidaranam Tam
Namami Rogapaharam Namami.

Namami Kalyanam Achintya Rupam
Namami Vishvodhvabi Jarupam.
Namami Vishvasthitikaranam Tam
Namami Samharakaram Namami.

Namami Gauri-Priyamavyayam Tam
Namami Nityamksharam Aksharam Tam.
Namami Chidrupam Ameya Bhavam
Trilochanam Tam Shirasaa Namami.

Namami Karunyakaram Bhavasya
Bhayankaram Vaapi Sada Namami.
Namami Dataram Abhipsitaanam
Namami Somesham Umeshamadau.

Namami Vedatrayalochanam Tam
Namami Murtitraya Varjitam Tam.
Namami Punyam Sadasadvyatitam
Namami Tam Papaharam Namami.

Namami Vishvasya Hite Ratam Tam
Namami Rupapi Bahuni Dhatte.
Yo Vishvagopta Sadasatpraneta
Namami Tam Vishvapatim Namami.

Yajneshwaram Samprati Havyakavyam
Tathagatim Lokasadasivo Yah.
Aradhito Yah Cha Dadati Sarvam
Namami Danapriyam Ishtadevam.

Namami Someshwaram Swatantram
Umapatim Tam Vijayam Namami.
Namami Vighneshwaranandinatham
Putrapriyam Tam Shirasaa Namami.

Namami Devam Bhavaduhkha-Shoka
Vinashanam Chandradharam Namami.
Namami Gangadharam Isham Idyam
Umadhavam Devavaram Namami.

Namamyajadeshapurandaradi
Surasurairarchitapadapadmam.
Namami Devimukhavadanaanam
Ikshartham Akshitritayam Ya Aichhat.

Panchamritairgandhasudhupadipaih
Vichitrapushpairvividhashcha Mantraih.
Annaprakaraih Sakalopacharaih
Sampujitam Somam Aham Namami.

नमामि शम्भुं स्तोत्र PDF Download

नमामि शम्भुं स्तोत्र: का अर्थ

‘नमामि शम्भुं’ स्तोत्र भगवान शिव की स्तुति में रचित एक अद्भुत प्रार्थना है। यह स्तोत्र भक्त को शिव की महिमा और उनके गुणों का स्मरण कराता है। इसमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों और उनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भक्त को शिव कृपा प्राप्त होती है और उसके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।

स्त्रोत का अर्थ और व्याख्या

प्रथम श्लोक:

“नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं नमामि सर्वज्ञमपारभावम् । नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं नमामि शर्वं शिरसा नमामि ॥१॥”

इस श्लोक में भगवान शिव को ‘पुरुष पुराण’ कहा गया है, जो ब्रह्माण्ड के आदिदेव हैं। उन्हें ‘सर्वज्ञ’ अर्थात् सर्वज्ञाता और ‘अक्षय’ अर्थात् अविनाशी कहा गया है। इस श्लोक में भगवान रुद्र की वंदना की गई है जो सभी प्राणियों के पालनहार हैं।

द्वितीय श्लोक:

“नमामि देवं परमव्ययंतं उमापतिं लोकगुरुं नमामि । नमामि दारिद्रविदारणं तं नमामि रोगापहरं नमामि ॥२॥”

इस श्लोक में भगवान शिव को ‘उमापति’ अर्थात् पार्वती के पति के रूप में वर्णित किया गया है। वे ‘दारिद्रविदारण’ यानी गरीबी का नाश करने वाले और ‘रोगापहरं’ अर्थात् रोगों को हरने वाले हैं।

तृतीय श्लोक:

“नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम् । नमामि विश्वस्थितिकारणं तं नमामि संहारकरं नमामि ॥३॥”

इस श्लोक में भगवान शिव को ‘कल्याणमूर्ति’ कहा गया है। वे ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, स्थिति और संहार के कारण हैं। उनका रूप ‘अचिन्त्य’ अर्थात् विचार से परे है।

चतुर्थ श्लोक:

“नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं नमामि नित्यंक्षरमक्षरं तम् । नमामि चिद्रूपममेयभावं त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥४॥”

भगवान शिव को ‘गौरीप्रिय’ कहा गया है, अर्थात वे माता पार्वती के प्रियतम हैं। वे ‘अक्षर’ यानी नित्य और ‘चिद्रूप’ अर्थात् शुद्ध चेतना स्वरूप हैं। उनके तीन नेत्र हैं, जो त्रिकालदर्शी हैं।

पंचम श्लोक:

“नमामि कारुण्यकरं भवस्या भयंकरं वापि सदा नमामि । नमामि दातारमभीप्सितानां नमामि सोमेशमुमेशमादौ ॥५॥”

भगवान शिव को ‘कारुण्यकर’ यानी दया करने वाला और ‘भयंकर’ यानी भयानक रूप धारण करने वाला कहा गया है। वे भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं और ‘सोमेश’ तथा ‘उमेश’ के रूप में पूजनीय हैं।

षष्ठ श्लोक:

“नमामि वेदत्रयलोचनं तं नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् । नमामि पुण्यं सदसद्व्यातीतं नमामि तं पापहरं नमामि ॥६॥”

इस श्लोक में भगवान शिव को वेदों के ज्ञाता और ‘मूर्तित्रयवर्जित’ कहा गया है, जो किसी भी एक रूप में बंधे नहीं हैं। वे पुण्य के प्रतीक हैं और सभी पापों का नाश करने वाले हैं।

सप्तम श्लोक:

“नमामि विश्वस्य हिते रतं तं नमामि रूपापि बहुनि धत्ते । यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता नमामि तं विश्वपतिं नमामि ॥७॥”

भगवान शिव को ‘विश्वगोप्ता’ अर्थात् विश्व के रक्षक और ‘विश्वपति’ अर्थात् समस्त ब्रह्माण्ड के स्वामी के रूप में नमस्कार किया गया है। उनका रूप अनेक हैं, वे निराकार भी हैं और साकार भी।

अष्टम श्लोक:

“यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं तथागतिं लोकसदाशिवो यः । आराधितो यश्च ददाति सर्वं नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् ॥८॥”

भगवान शिव को यज्ञ के स्वामी कहा गया है। वे ‘दानप्रिय’ अर्थात् दान देने वाले देवता हैं। वे भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं और ‘सदाशिव’ के रूप में लोककल्याण में संलग्न रहते हैं।

नवम श्लोक:

“नमामि सोमेश्वरंस्वतन्त्रं उमापतिं तं विजयं नमामि । नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि ॥९॥”

भगवान शिव को ‘सोमेश्वर’ कहा गया है, जो स्वतंत्र हैं। वे ‘विघ्नेश्वर’ और ‘नन्दिनाथ’ के रूप में पूजनीय हैं। वे अपने पुत्रों के प्रति विशेष स्नेह रखते हैं।

दशम श्लोक:

“नमामि देवं भवदुःखशोक विनाशनं चन्द्रधरं नमामि । नमामि गंगाधरमीशमीड्यं उमाधवं देववरं नमामि ॥१०॥”

भगवान शिव को ‘चन्द्रधर’ और ‘गंगाधर’ कहा गया है। वे सभी दुःखों और शोकों का नाश करने वाले हैं। ‘उमाधव’ अर्थात् माता पार्वती के पति के रूप में वे सर्वश्रेष्ठ देवता हैं।

एकादश श्लोक:

“नमाम्यजादीशपुरन्दरादि सुरासुरैरर्चितपादपद्मम् । नमामि देवीमुखवादनानां ईक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत् ॥११॥”

इस श्लोक में भगवान शिव के पादपद्मों की वंदना की गई है, जिनकी आराधना सभी देवता और असुर करते हैं। वे त्रिनेत्रधारी हैं और उनकी कृपा से ही सभी देवी-देवताओं को दिशा प्राप्त होती है।

द्वादश श्लोक:

“पंचामृतैर्गन्धसुधूपदीपैः विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः । अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः सम्पूजितं सोममहं नमामि ॥१२॥”

भगवान शिव की पंचामृत, गंध, धूप, दीप और विविध प्रकार के मंत्रों से पूजा की जाती है। वे सोमेश्वर के रूप में पूजनीय हैं और उनकी उपासना से सभी प्रकार की समृद्धि प्राप्त होती है।

उपसंहार

‘नमामि शम्भुं’ स्तोत्र भगवान शिव के विभिन्न रूपों, गुणों और शक्तियों का सजीव वर्णन करता है। यह स्तोत्र भक्त को यह स्मरण कराता है कि शिव ही इस ब्रह्माण्ड के रचयिता, पालनहार और संहारक हैं। वे सदैव अपने भक्तों के कल्याण में तत्पर रहते हैं और उनकी हर प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करते हैं।

नमामि शम्भुं स्तोत्र: भगवान शिव की महिमा

‘नमामि शम्भुं’ स्तोत्र भगवान शिव की अद्भुत महिमा और उनके अनंत रूपों का विस्तार से वर्णन करता है। यह स्तोत्र भगवान शिव के उपासकों के लिए विशेष महत्व रखता है। इसमें शिव के विभिन्न स्वरूपों की स्तुति की गई है, जो उन्हें सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्वज्ञाता के रूप में प्रस्तुत करती है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ भक्त के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने का विश्वास दिलाता है।

भगवान शिव का परिचय

भगवान शिव को त्रिदेवों में एक माना जाता है। वे सृष्टि के संहारक, पालक और पुनर्निर्माता के रूप में जाने जाते हैं। उनका स्वरूप अत्यंत शांत, गंभीर और तपस्वी है, लेकिन वे क्रोध में आने पर संहारक भी बन जाते हैं। शिव के पास अनेक नाम हैं, जैसे शंकर, महादेव, नीलकंठ, भोलेनाथ आदि। वे भक्तों के लिए अति सरल हैं और उनकी भक्ति से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।

भगवान शिव के प्रमुख गुण:

  1. त्रिलोचन: शिव तीन नेत्रों वाले देवता हैं, जो भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता हैं।
  2. नटराज: वे नृत्य कला के भगवान हैं, जो सृष्टि के निर्माण, संरक्षण और विनाश का प्रतीकात्मक नृत्य करते हैं।
  3. महाकाल: शिव को काल के भी काल कहा जाता है, वे समय और मृत्यु के भी अधिपति हैं।
  4. अशुतोष: वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं, जो थोड़ी सी भक्ति से ही प्रसन्न होकर वरदान देते हैं।

शिव स्तुति का महत्व

भगवान शिव की स्तुति करने से उनके भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वे मोक्ष की प्राप्ति करते हैं। ‘नमामि शम्भुं’ स्तोत्र विशेष रूप से शिवभक्तों के लिए प्रभावशाली माना जाता है। यह स्तोत्र भक्त को शिव के विभिन्न रूपों और उनके महत्व का स्मरण कराता है, जिससे भक्त का शिव के प्रति समर्पण और भक्ति बढ़ती है।

शिव स्तुति के लाभ:

  1. मन की शांति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मन शांत होता है और जीवन में संतुलन बना रहता है।
  2. कष्टों का निवारण: शिव की आराधना से जीवन के सभी कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं।
  3. समृद्धि की प्राप्ति: शिव की कृपा से धन, वैभव और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  4. रोगों का नाश: शिव को ‘रोगापहरं’ कहा गया है, जिससे उनके भक्तों के सभी रोग दूर हो जाते हैं।

शिव के विविध स्वरूप

भगवान शिव के अनेक स्वरूप हैं, जो विभिन्न अवसरों और परिस्थितियों में प्रकट होते हैं। उनके प्रमुख स्वरूपों में रुद्र, नटराज, महाकाल, भोलेनाथ, पशुपति, लिंगमूर्ति, सोमेश्वर, त्रिनेत्रधारी आदि शामिल हैं।

रुद्र:

यह शिव का उग्र रूप है, जो संहारक है। वे त्रिशूलधारी और भयानक रूप में प्रकट होते हैं। जब भी अधर्म और अन्याय बढ़ता है, तब वे रुद्र रूप में अवतरित होते हैं।

नटराज:

नटराज शिव का नृत्य करते हुए स्वरूप है। यह नृत्य सृष्टि के निर्माण, संरक्षण और विनाश का प्रतीक है। उनका यह स्वरूप शिव के लास्य और तांडव नृत्य को दर्शाता है।

महाकाल:

महाकाल शिव का काल को भी जीतने वाला रूप है। वे समय और मृत्यु के भी स्वामी हैं और उनका यह स्वरूप विशेषकर उज्जैन में प्रसिद्ध है।

भोलेनाथ:

भगवान शिव का यह रूप उनके सरल, भोले और सहज स्वभाव का प्रतीक है। वे अपने भक्तों की भक्ति से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।

शिव की आराधना और पूजा विधि

भगवान शिव की पूजा अत्यंत सरल और प्रभावशाली है। शिवलिंग पर जल, दूध, बिल्वपत्र और धतूरा अर्पित करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जप करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। शिवरात्रि के दिन शिव की विशेष पूजा की जाती है, जिसे ‘महाशिवरात्रि’ के रूप में मनाया जाता है।

पूजा के प्रमुख तत्व:

  1. शिवलिंग: शिवलिंग शिव के निराकार रूप का प्रतीक है। इसे जल और दूध से स्नान कराना शुभ माना जाता है।
  2. बिल्वपत्र: भगवान शिव को बिल्वपत्र अर्पित करना विशेष फलदायक होता है। यह उनके प्रिय पत्रों में से एक है।
  3. धतूरा: धतूरा शिव को अर्पित करने से विशेष लाभ मिलता है, क्योंकि यह उनका प्रिय पुष्प है।
  4. दूध और जल: शिवलिंग पर दूध और जल अर्पित करने से शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

निष्कर्ष: भगवान शिव की अनन्य भक्ति

भगवान शिव की भक्ति जीवन के सभी कष्टों और परेशानियों का निवारण करती है। ‘नमामि शम्भुं’ स्तोत्र भगवान शिव की स्तुति का एक अद्वितीय माध्यम है, जो भक्तों को शिव के प्रति उनकी अनंत भक्ति और प्रेम को व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त का जीवन सुख, शांति और समृद्धि से भर जाता है, और उसे शिव की अनंत कृपा प्राप्त होती है।

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