शंख पूजन मन्त्र in Hindi/Sanskrit
त्वंपुरा सागरोत्पन्न विष्णुनाविघृतःकरे ।
देवैश्चपूजितः सर्वथौपाच्चजन्यमनोस्तुते ॥
Shankh Poojan Mantra in English
Tvam Pura Sagarotpanna Vishnu Naavighritah Kare ।
Devaiścha Pujitah Sarvathopachcha Janya Manostute ॥
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शंख पूजन मन्त्र का अर्थ
यह श्लोक महाभारत के भीष्म पर्व के एक भाग से लिया गया है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य शंख ‘पाञ्चजन्य’ का वर्णन किया गया है। इस श्लोक का अर्थ और व्याख्या निम्नलिखित है:
श्लोक का अर्थ: “हे पाञ्चजन्य! तुम समुद्र से उत्पन्न हुए हो और भगवान विष्णु की नाभि में स्थित हो। तुम भगवान विष्णु (श्रीकृष्ण) के हाथ में सुशोभित हो और सभी देवताओं द्वारा पूजनीय हो। मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।”
श्लोक के प्रत्येक शब्द का अर्थ:
- त्वं (त्वं): तुम।
- पुरा (पुरा): पहले, अतीत में।
- सागर-उत्पन्न (सागरोत्पन्न): समुद्र से उत्पन्न।
- विष्णु-नाभिघृतः (विष्णुनाविघृतः): विष्णु की नाभि से निकला हुआ।
- करे (करे): हाथ में।
- देवैः (देवैः): देवताओं द्वारा।
- च (च): और।
- पूजितः (पूजितः): पूजनीय।
- सर्वथ (सर्वथ): हर तरह से।
- उपाच्च (उपाच्च): और भी।
- जन्य (जन्य): शंख।
- मनःस्तुते (मनःस्तुते): मन से स्तुति करते हैं।
श्लोक का भावार्थ: इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य शंख ‘पाञ्चजन्य’ का महिमा-मंडन किया गया है। यह शंख समुद्र से उत्पन्न हुआ है और भगवान विष्णु की नाभि में स्थित है, जिससे यह अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह शंख भगवान श्रीकृष्ण के हाथ में सुशोभित होता है और सभी देवताओं द्वारा पूजित है। इस श्लोक में भक्त पाञ्चजन्य की स्तुति करते हुए इसे नमन करता है।
पाञ्चजन्य शंख का इतिहास
- समुद्र मंथन और उत्पत्ति: पाञ्चजन्य का संबंध समुद्र मंथन से माना जाता है। समुद्र मंथन के दौरान कई दिव्य वस्तुएं निकली थीं, जिनमें पाञ्चजन्य शंख भी था। इसे समुद्र से उत्पन्न होने के कारण इसे “सागरोत्पन्न” कहा गया है।
- पाञ्चजन्य नाम का महत्व: ‘पाञ्चजन्य’ नाम का अर्थ है ‘पांच जनों से उत्पन्न’। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इसे भगवान श्रीकृष्ण ने दानव ‘पाञ्चजन’ को पराजित करने के बाद धारण किया था। उस दानव के शरीर से यह शंख प्राप्त हुआ था। यह शंख भगवान विष्णु के पाँच स्वरूपों (अनन्त, गरुड़, विष्वक्सेन, सुदर्शन और पाञ्चजन्य) का प्रतिनिधित्व करता है।
- भगवान कृष्ण का शंख: महाभारत के युद्ध में, जब भगवान श्रीकृष्ण ने इस शंख को बजाया, तो इसके नाद से पूरी युद्धभूमि गूंज उठी और कौरवों के मन में भय उत्पन्न हुआ। यह शंख धर्म की विजय और अधर्म के नाश का संकेत माना जाता है।
- देवताओं द्वारा पूजित: यह शंख इतना पवित्र और दिव्य है कि इसे सभी देवताओं द्वारा पूजनीय माना गया है। शंखध्वनि को शुभ और मंगलकारी माना जाता है, जो नकारात्मक शक्तियों और बुरे विचारों का नाश करती है।
- विष्णु की नाभि से संबंध: विष्णु पुराण के अनुसार, यह शंख भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुआ है, जो इसकी अलौकिकता और महत्व को दर्शाता है। विष्णु की नाभि से उत्पन्न होने का अर्थ है कि यह शंख सृष्टि की उत्पत्ति और पालन का प्रतीक है।
- युद्ध में भूमिका: महाभारत के युद्ध में, जब भी भगवान श्रीकृष्ण ने इस शंख को बजाया, तो पांडवों का मनोबल बढ़ता था और कौरव सेना में भय का संचार होता था। इसे धर्म की स्थापना और सत्य की विजय के लिए इस्तेमाल किया गया।
- धार्मिक महत्व: हिंदू धर्म में शंख बजाने को शुभ माना जाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और वातावरण को शुद्ध करता है। शंखध्वनि से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- ध्वनि का प्रभाव: पाञ्चजन्य की ध्वनि इतनी प्रभावशाली है कि इसे सुनकर शत्रुओं का मनोबल टूट जाता है। इसकी ध्वनि से देवताओं को भी शक्ति मिलती है और बुराइयों का नाश होता है।
पाञ्चजन्य का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व:
- आध्यात्मिक महत्व: पाञ्चजन्य को भगवान की वाणी का स्वरूप माना जाता है। इसे धर्म, शांति और न्याय का प्रतीक माना गया है। इसे बजाने का अर्थ है सत्य की घोषणा करना।
- सांस्कृतिक महत्व: भारतीय संस्कृति में शंख की ध्वनि को अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा-पाठ और महत्वपूर्ण अवसरों पर किया जाता है।
पाञ्चजन्य के प्रति श्रद्धा:
इस श्लोक में भक्त पाञ्चजन्य की स्तुति करते हुए इसे प्रणाम करता है, जो यह दर्शाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का शंख केवल युद्ध का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह भक्तों के लिए आस्था, श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक भी है। इस शंख का नाम लेते ही एक अद्भुत ऊर्जा और उत्साह का संचार होता है, जो धर्म और सत्य की स्थापना के लिए प्रेरित करता है।
यह श्लोक भगवान श्रीकृष्ण और उनके शंख पाञ्चजन्य की दिव्यता और शक्ति की महिमा को रेखांकित करता है, जो न केवल एक योद्धा के रूप में उनकी महानता को दर्शाता है, बल्कि उनके सृष्टि के पालनकर्ता रूप की भी महिमा करता है।